सतीश कोळपे सर यांचे प्रवास वर्णन

अष्टविनायक....!!


अष्टविनायकांपैकी  थेऊर,मोरगाव,रांजणगाव  आणि  सिद्धटेक  माझ्या  घरापासून  जवळ  असल्याने  बर्‍याच  वेळा  जाण्याचा  योग  येतो  परंतु  एकत्रित  अष्टविनायक  यात्रा  करायची  असं  ठरवून  चार  टु  व्हिलरवर  आम्ही  आठ  जण  2014 साली  सकाळीच  निघालो.प्रथम  मोरगाव  वरुन  सुरुवात  करायची  असा  प्लॅन  केला.यवत  वरुन  चौफुला  मार्गे  सुपे  घाटातून  पुढे  निघालो.येथे  मयुरेश्वर  अभयारण्याचा  निसर्ग संपन्न  असा  भाग  आहे.अभयारण्यात  मोर,कोल्हे,चिंकारांचे  कळप  रस्त्यावरुनही  बर्‍याच  वेळा  दृष्टीस  पडतात..अभयारण्यात   फिरुन  पाहण्यासाठीही  अनेक  रस्ते  तयार  करण्यात  आलेले  आहेत ..त्यासाठी  सुप्यात  वनअधिकारी  यांचे  आॅफिस  असून  परवानगी  काढून  मस्त  फिरण्याची  सोय!!!

सुप्यापासून  दहा  कि.मी.अंतरावर  कर्‍हा  नदिच्या  काठावर  वसलेलं  मोरगावचं  मयुरेश्वर  मंदिर  खूप  सुंदर  आहे..गाड्या  लावून  चालत  मंदिरापर्यत  गेलो.मंदिरात  तुरळक  गर्दी  होती.लाईन  जाऊन  गणपती बाप्पांचे  दर्शन  घेऊन  अष्टविनायक  यात्रेची  सुरुवात  केली..परिसर  खुप  छान!!!मंदिर  अगदी  प्रसन्न  वातावरणाने  भारलेलं  असतं!!!

मोरगाव  निघून  पुन्हा  सुपा  ,चौफुला  करत  दौंडला  आलो.दौंडवरुन  पंधरा  कि.मी.अंतरावर  देऊळगाव राजे  अन पुढे  पाच  कि.मी. अंतर पार करुन  आपण  शिरापुरला  पोहोचतो.पुर्वी  इथे  भिमा  नदिवर  पुल  नव्हता  त्यावेळी  नावेतून  पलीकडे  जावे  लागायचे  तोही  अनुभव  घेतलेला  आहे.आता  मात्र  भिमा  नदिवर पुल  बांधून  शिरापुर  आणि  सिद्धटेक  अगदी  जवळ  आले  आहे.या  पुलावरच  छोट्या  छौट्या  टपरीवजा  हाॅटेलात  मिळणारे  चुलीवरचं  जेवण  भेसन,भाकरी अन  मिरचीचा  ठेचा  भारीच!!!पुलावरुन  गाड्या  थेट  मंदिरासमोर  नेल्या.भिमा  नदिच्या  काठावर  वसलेलं  नितांत  सुंदर  सिद्धीविनायकाचं  मंदिर  खुपच  सुंदर  आहे.परिसर  तर एवढा  सुंदर  की  मी  तर बर्‍याच  वेळा इथे   आवर्जुन  येत  असतो,.मंदिरात  पायर्‍या  चढून  वर  गेलं की  मंडपातून  पुढे  गाभार्‍यात  भव्य  सिद्धीविनायकाची  मुर्ती  पाहुन  मन  प्रसन्न होतं.मंदिरात  दर्शन  घेऊन  बाहेर  पडलो.गणपतीची  प्रदक्षिणा  एक  कि.मी.लांबून  घालावी  लागते.प्रदक्षिणेचा  मार्ग ही खूपच  सुंदर  !!!!

दहा  पंधरा  मिनिटात  सुंदर  निसर्गाच्या  साथीने  हि प्रदक्षिणा  आम्ही  पुर्ण  केली.छान  तयार  केलेल्या  वर्तुळाकार  रस्त्याने  चालण्याचा  आनंद  अविस्मरणीय  असा!!मंदिरात  येऊन  पुन्हा  दर्शन  घेतलं  अन  गाड्या  घेऊन  थेट  भिमा  नदिवर!!!येथे सुंदर  घाट  बांधण्यात  आलेले असून  बोंटींगची  व्यवस्थाही  आहे.आम्ही  मात्र  पोहण्याचा  मोह  आवरु  शकलो  नाही.भिमाच्या  नदीच्या  त्या  पाण्यात  पोहुन  परत  दौंडला  आलो.दौंडवरुन  काष्टी,तांदळी  मार्गे  शिरुर  गाठलं.अन  तिथून  वीस कि.मी.अंतरावर  पुणे  नगर  हायवे रस्त्याच्या  शेजारीच  असलेल्या  रांजणगावच्या  महागणपतीला  पोहोचलो.भव्य  प्रवेशद्वार  आपलं लक्ष  वेधून  घेणारं.!!आतमधे  छान  गार्डन,काही तयार  केलेल्या  मुर्ती  ही  फारच  आकर्षक!!!मंदिरात  प्रवेश  केला.इथे  मात्र  कायम  गर्दी  असते.लाईन ने दर्शनाला  अर्धा  ते  पाऊण  तास गेला.महागणपतीचं  दर्शन  घेतलं  .दुपार  होत  आली  होती.एका  हाॅटेलला  मस्त  जेवण  केलं  अन  शिक्रापुर  चौकात  आलो.पाबळ  ला  मस्तीनीची  कबर  आहे.व्यवस्था  अशी  तशीच  !!!तिथून  भिमाशंकर  कारखाना  मार्गे  मांजरवाडी करत  खोडदला  पोहोचलो.आशिया  खंडातील  सर्वात  मोठी  दुर्बीण  इथे  पाहण्यासारखी!!!उलट्या  छत्रीच्या  आकाराच्या  अनेक  दुर्बीर्णी  आपल्याला  इथे  पहायला  मिळतात.खोडद  पाहून  नारायणगाव मार्गे  थेट  शिवनेरीच्या  पायथ्याजवळून  गेलो  ते  थेट  लेण्याद्रीला.लेण्याद्रीचा  गिरीजात्मक  उंच  डोंगरात  वसलेले  नयनरम्य  असं  देखणं ठिकाण!!

चालतच  वरती  गेलो.चालताना  पाय  दुखतात  पण  सर्व मित्रांबरोबर  कठिण  चढाई  सुद्धा  रमत गमत  पुर्ण  झाली.कोरलेल्या  लेणीत  असलेलं  हे मंदिर  खूप  मस्त  !!तिथुन  दिसणारे  दृश्य  आपल्या  डोळ्याचं  पारणे  फेडणारे!!!लेण्याद्री जवळच अनेक लेणी  पाहण्यासारखी  आहेत.इथे  माकडांचा  उपद्रव  फार!!!

खाली  पुन्हा  चालत  येऊन  ओझरकडे  निघालो.ओझरचा विघ्नहर्ता  म्हणजे  भक्तांवरील  विघ्न  टाळणारा  अशी  भाविकांची  श्रद्धा!!मंदिर  परिसर खूप  छान!!!मंदिरात  दर्शन  घेतलं  आणि  परिसरही  फिरुन  पाहिला.इथेही  शेजारी धरणाचे  बॅकवाॅटर  पहायला  नयनरम्य असेच!!बोटींगची  छान  व्यवस्था!!इथे  अंधार  पडला  होता.म्हणून  देवस्थानच्या  रुमवर  छान पैकी  मुक्काम  केला.आमचे  बरेच  मित्रही  इथे राहतात.त्यामधे  श्री.दत्तात्रय  लोखंडे  सरांनी  घरी  मुक्कामाला  येण्याची  विनंती  केली  पण  आम्ही  आठ  जण  असल्यामुळे  मीच  नाही  म्हणालो..!

दुसर्‍या  दिवशी सकाळीच  फ्रेश  झालो  अन  नारायणगाव,मंचर,

राजगुरुनगर वरुन  चाकणला  आलो.चाकण  वरुन MIDC  तुन  तळेगाव  दाभाडे.!!!इथला  निसर्ग  छान  आहे.तळेगाव वरुन लोणावळा,खंडाळा करत  घाटातून  खोपोलीला  आलो.पुर्वीचा  अतिशय  अवघड  घाट  पण  सध्या  रस्ता  खूपच  भारी  झालाय,!!

खोपोलीवरुन  थेट  महड  ला  आलो.गाड्या  लावून  मंदिर  परिसरात  गेलो.तळ्याच्या  काठावर  वसलेलं  रमणीय मंदिर म्हणजे महडचा  वरदविनायक  !!! पुरातन  जुनं  मंदिर  फारच  सुंदर!!मंदिरात  दर्शन  घेऊन  बाहेर  पडलो.अन  पाली  कडे  निघालो..एक्सप्रेस वे मधून  पलीकडे  जाण्यासाठी  पुलाखालून  पलीकडे  गेलो.इथून  जाणारा  सगळा  रस्ता  मस्तच!!दाट  झाडीतून  जाणारा  रस्ता  पालीकडे  जातो.कोकणातला  निसर्ग  अनुभवता  येतो  इथे.तीस  कि.मी.अंतरावर असणारे पाली चं  मंदिर  एका  उंच  डोंगर शिखराच्या  पायथ्याला वसलेलं  नयनरम्य  असं  स्थान.पालीचा  बल्लाळेश्वर  दुकांनांच्या  गर्दीत  वसलेलं  मंदिर!!!

मंदिरात  जाऊन  दर्शन  घेतलं.इथे  कंदी  पेढे  खूप  छान  मिळतात.जेवन  तिथंच  केलं आणि  निघालो  परत  खोपोली ला.टोलनाक्यावरुन  पुढच्या  बाजूने  एक्सप्रेसने  रस्ता!!!खंडाळ्याच्या  बोगद्याजवळ  गाडी  पोलिसांनी  अडवली..आपण  चुकुन  एक्सप्रेसवर  आलो  असल्याचे  माझी  समज  पण  हेल्मेट  नसल्यामुळे  गाडी  अडवली  होती.विनंती  करुन  पोलिसांनी  गाडी  सोडली.पुढे  लोणावळ्यात  जुन्या  पुणे  मुंबई  रस्त्याला  उतरण्याची  सोय  आहे.लोणावळ्यातुन  परत  तळेगाव,निगडी,पिंपरी  पुणे  करत  वाघोलीला  आलो.वाघोलीतुन  केसनंद  मार्गे  थेऊर ला आलो.अष्टविनायकापैकी  आमचा  शेवटचा  गणपती.थेऊर  चे  गणपती  मंदिर  फारच  सुरेख  आहे.थेऊरच्या  चिंतामणी  गणपतीचे  छान  दर्शन  झाले. उशीर  बराच झाला होता.थेऊर  वरुन  थेऊर  फाटा आठ  कि.मी. तेथुन  उरुळीकांचन  करत  घरी  आलो.

अष्टविनायक  यात्रा खूप  छान  पार  पडली.टु  व्हिलर  आणि  मित्रांची  सोबत  असल्याने  पाहिजे  तिथं  थांबणं , पाहणं  आणि  फिरणं  सुद्धा झालं.गाड्यांनीही  त्रास  अजिबात  दिला  नाही,.दोन  दिवसात  मस्त  फिरता  येतं.

अष्टविनायक  यात्रा  करुन  अजून  एक  छान  अनुभव  घेता  आला!!!


शब्दांकन—

श्री.सतिश  नानासाहेब  कोळपे

तांबेवाडी  ता.दौंड  जि.पुणे

बनेश्वर....!


निसर्गाची  किमया  पहावी  तेवढी  थोडीच!!अशीच  एक  सुंदर  सफर  घेऊन  जाते  आपल्याला  बनेश्वरला!!मागील वर्षी  पुण्यातुन

पुणे  सातारा  हायवेवर निघालो. कात्रज  घाटाच्या  पुढे  वीस पंचवीस  कि.मी. च्या  अंतरावर  चेलाडी  नसरापूर  फाटा!!!तिथून  उजवीकडे  तीन  कि.मी. अंतरावर  वसलेलं  निसर्गरम्य  ठिकाण  म्हणजे  बनेश्वर!!

झाडांची  भाऊगर्दी  आणि  कधीही  पावसाची  शक्यता  असलेलं  डोंगरांनी  वेढलेलं  असं  नयनरम्य  ठिकाण   !!हे  ठिकाण पाहण्यासाठी  कुंटुंबासह  निघालो   होतो!!!!    प्रवास  करत  तासा  दिड  तासात  बनेश्वरला पोहोचलो...गाडी  पार्किग  ला  लावून  झाडामधून  छान  रस्त्याने  चालत  आपण  पोहोचतो  ते  शिव मंदिरापर्यंत!!!थोडच  चालाव  लागतं.पुरातन  आणि  देखणं  मंदिर!!दगडी  बांधकामाने  त्याची  शोभा  अधिकच  खुलून  दिसते.मंदिरात  प्रवेश  केला  की,समोरच  अतिशय  स्वच्छ पाण्याचे कुंड  दृष्टीस  पडतं.त्यात  पोहणारे  मासे  खूपच  सुंदर!!कुंडात  उतरण्याची  सोय  नाही.पुढे  शंकराच्या  मंदिरात  दर्शन  घेऊन  बाहेर  पडलो.अतिशय  शांत  परिसर मनाला  उत्साह  देणारा!!मंदिराच्या  डाव्या  बाजूने  पाठीमागे  चालत  गेलं  की  नदित  असलेला  अप्रतिम  खळखळ  करत  छोट्या  धबधब्याच्या  रुपाने  वाहणारा  नदीचा  प्रवाह  म्हणजे  पर्यटकांची  आवडती  जागा!!दगडातुन  उसळत  वाहणारे  पाणी  खाली  खडकावर  आदळुन  रांजणखळगे  तयार  झालेले  असल्याने  पोहण्यासाठी  अत्यंत  धोकादायक  पण  पाहण्यासाठी  अत्यंत  रमणीय!!

नदीत  पाणी  जास्त  असेल  तर  पाण्यात  उतरायलाही  भीती  वाटावी  इतका  वेग!!!

तरीही  काही  तरुण  या  पाण्यात  उतरुन  दंगा मस्त करताना  आढळतात.तेथील  दगडांवर  पाण्यात  पाय  सोडून  निवांत  बसण्याची  मजा  भारीच  !!!

पोहोबाजुनी  दाट  झाडी  आणि  त्यात  वाहणारा  हा  धबधबा  खूप  च  मस्त  वाटला!!

श्रावण  महिन्यात  तर  इथे  खूप  गर्दि असते.विकएन्डला   पर्यटकांची  पावलं  आपोआप  या  भागात  वळतात  एवढं  भारी  ठिकाण!!

तिथच  छान  गार्डन  बनवलेली  असल्याने  लहान  मुलांसाठीही  खूप  छान  जागा!!मुलांना खेळण्यासाठी  सुविधा  उपलब्ध  केलेल्या  आहेत.बनेश्वर  वन उद्यानात  फिरण्याची  मजा  भारीच!!

बनेश्वरचा  निसर्ग  मस्तच  आहे.!!!

बनेश्वर  नंतर  कापुरव्होळ  ,नारायणपुरमार्गे  सासवड  आणि  तिथून  बोपगाव   ....ला  आलो.बोपगाव  हे  निसर्गाच्या  सानिध्यात  घाटमाथ्यावर वसलेलं  सुंदर  ठिकाणांपैकी  एक.नवनाथांपैकी  कानिफनाथांचे  सुंदर  मंदिर  आणि  त्याच्या  शेजारचा  निसर्ग  अत्यंत  देखणा असाच!!

गाडी  वरपर्यंत  जाते.वाटेत  बंधार्‍यातलं  पाणी,नवीन  लावलेली  झाडं  अन  पक्ष्यांची  किलबिल  ऐकत  चालायलाही  खूप  मस्त  जागा!!

पार्किगला  गाडी  लावली  की  वर  सरळ  रेषेत  असलेल्या  दोन  तीनशे  पायर्‍या  चढून  जावं  लागत.वरती  टोकावर  जागाही  भरपुर..भव्य सभा मंडप आणि  सुंदर  मंदिर!!

तिथून  दिसणारा  पुणे  शहराचा  नजाराही  छान!!उंचावर  असल्याने  हवा  ही  थंडगार  अशी!!!!.

पावसाळ्यात  इतकं  सुंदर  ठिकाण  पहायला  मिळालं  तर  आपल्या सारखे  भाग्यवान  आपणच!!!

मंदिराचा  आकार  पंधरा  बाय  पंधरा  असेल..जुनं  मंदिर असल्याने भिंती  चांगल्याच  जाड..!

गंम्मत  खरी इथे......!!!!!!

मंदिरात  आत  प्रवेश करण्यासाठी  फक्त  एक  बाय  दिड फुटाची  ची  छोटीसी  जागा  आहे.

बाहेर ही  तिथुनच  यायचं.मंदिरात  जाताना  पुरुषांना  शर्ट,  बनियन,,बेल्ट  काढून  झोपुनच  अंग  इकडे  तिकडे  सरकवत  आत  जावं  लागतं.महिलांना  मंदिरात  प्रवेश  वर्ज्य  आहे..!!!

आत  गाभार्‍यात  बरीच  मोठी  जागा.

दहा  बारा जण सहज बसतील एवढी  जागा  पण  जाताना  आणि  येताना  मात्र  छोटासा  मार्ग!!!

आतमधे  कानिफनाथांचं  दर्शन  घेतलं.पुन्हा  बाहेर  येताना  प्रथम  आपले पाय  बाहेर  काढायचे , सरळ  झोपायचं  आणि  पुन्हा  सरकत  सरकत  बाहेर  यायचं.आहे  की  नाही  गंम्मत.!!!!

माणूस  कितीही  जाड  असला  तरी  तरी  तो  इथे  अडकत  नाही.

तेथील  पुजारी  आपण  आत  बाहेर  येताना  दरवाज्यात  बसुन  कानिफनाथांच्या  नावाचा  मोठ्याने  जयघोष  करतो  आणि  सुखरुप  बाहेर  येतो  असा  रोमांचकारी  अनुभव!!!पुर्वीपासुनच  दर्शनाची  वेगळी पद्धत  इथे  अस्तित्वात  आहे..पुण्यावरुन  कोंढवामार्गे अत्यंत  जवळ  त्याचबरोबर  हडपसर  ,भेकराईनगर वरुन  पुण्याच्या  बाजूने  पायथ्यापर्यंत  गाडी  जाते.तिथून  चालत  वरती  ट्रेक  करणारीही  भरपुर  मंडळी  असतात..!!!

अशा  सुंदर  कानिफनाथांच्या  भुमीतलं  वातावरण  ही  अतिशय  धार्मिक  त्याचबरोबर  मनाला  ऊर्जा  देणारं.नयनरम्य  असं  ठिकाण!!

वन डे  मधे  पाहता  येतील  अशी  ही  मस्त  अशी  ठिकाणं!!!


शब्दांकन—

श्री.सतिश  नानासाहेब  कोळपे

तांबेवाडी  ता.दौंड  जि.पुणे

अजमेर  ....स्पेशल!!!


उन्हाळ्याचे  दिवस  होते.आणि  निवडणुकांचा  हंगाम  होता!!!

अशातच  एका  बड्या  राजकिय  नेत्याने  सर्वांना  तीर्थयात्रेला  नेण्यासाठी  स्पेशल  ट्रेन  बुक  केली.ठिकाण  ठरलं  अजमेर.!!!!राजकिय  नवीन  तरुण  आणि  युवा  नेतृत्व  !!आमचे  अतिशय  जवळचे  संबंध!!!त्यामुळे  सर  तुम्हाला  यावंच  लागेल  हा  आग्रह  झाला  आणि  अजमेर  ला  जायचं  ठरलं.सकाळी  नऊ  वाजता  ही  स्पेशल  ट्रेन  दौंड वरुन निघाली.केडगाव,यवत  इथे  स्टाॅप  घेत  गाडी  पुढे  धावणार  होती,..यवत ला  आम्ही सगळे मित्र  गाडीत  बसलो.अन  गाडी ने  पुण्याच्या  दिशेने  प्रवास  सुरु  केला.यवत  मधेच  लगेजच्या  डब्यात  प्रवाशांसाठी  पाण्याचे  जार  भरुन  घेतले  होते.जरी  प्रवास  मोफत होता  तरी  येणार्‍या  जनतेची  काळजी  घ्यावी  लागणार  होती  कारण  कुणी  नाराज  व्हायला  नको..!पुण्यावरुन  गाडी  लोणावळ्याकडे  निघाली  की  लगेच  सर्वासाठी  नाष्ट्याची  पॅकेट्स  देण्यात  आली.आम्ही  ती  पाकिटं प्रत्येक  डब्यात  कशी  पोहचतील  हे  काम  पाहत  होतो.सर्वाना  नाष्टा  पोहोच  केल्यानंतर आम्हीही  नाष्टा  केला,..गाडी  लोणावळा  मार्गे  खंडाळा  घाटातुन  कर्जतला  आली.पुढे  ठाणे  स्टेशनवर  बराच  वेळ थांबली.पुढे स्पेशल  ट्रेनसाठी  ट्रॅक  उपलब्ध  नसल्यामुळे  गाडी  बराच  वेळाने  पुढे  निघाली.ठाण्यावरुन  गाडीने  वळण  घेतलं  आणि  गाडी वसई च्या  दिशेने  धावायला  लागली.गाडी  स्लो  च  चालली  होती.पुढे  जस जसा ट्रॅक  मोकळा होईल  अशा  पद्धतीने  ती  धावत  होती.गाडीतुन  रेल्वे शेजारी  असणारी  मिठागरं ही दिसतात..!!

सायं. पाच  वाजले होते.गाडीने  मुंबई  सोडली  होती.एका  एका  स्टेशनवर  अर्धा  अर्धा तासाचा  ब्रेक  व्हायचा. तो  पर्यंत  खाली  उतरुन  या  डब्यातून त्या  डब्यात  गप्पा  मारत  वेळ  जात  होता.दहा  वाजले  तरी  गाडी  संथच  होती..रात्री झोपी  गेलो.सकाळी  उठलो  तर  गाडी  आनंद  (गुजरात) जवळ पोहोचली  होती.रात्रभर  अगदी  थोडासाच  प्रवास  झाला  होता.स्पेशल  ट्रेनची  म्हणावी  अशी  कोणी  दखल  घेत  नाही..रुटवरच्या  गाड्यांना  प्रथम  प्राधान्य  दिलं  जातं.

सकाळी  आनंद  ला  फ्रेश झालो.सर्वाना  चहा  मिळाला  अन  तेथुन  मात्र  गाडीने  वेग  घ्यायला  सुरुवात  केली.सुरत,वडोदरा  ,

अहमदाबाद अशी  नाॅनस्टाॅप  गाडी  धावत  होती.अहमदाबाद  मधे रेल्वेतून दिसणारा  साबरमती  नदिचा  सुंदर  घाट  लक्ष वेधून  घेतो.अहमदाबाद वरुन  साबरमती  मार्गे  माउंटअबु  रोड  स्टेशनवर  गाडी  एक  वाजता  पोहोचली.वाटेत  शेती  त  एरंडीचे  उत्पादन  जास्त  असल्याचे  जाणवले,.रेल्वेच्या  कडेने  गुजरात  मधे  सगळा  इंन्डस्र्टिज  एरिया  आहे.अहमदाबाद  नंतर  कच्चे  तेल  काढण्याच्या  मशिनही  अनेक  ठिकाणी  लावलेल्या  आढळत  होत्या.मोर,निलगाई  यांचे  दर्शन  तर  बर्‍याच  वेळा होतं.आबूरोड  स्टेशन वरुन  गाडी  मारवाड  प्रांतातुन  निघाली.राजस्थान  असलं तरी  इथे  वाळवंट  नाही.फक्त  रेताड  प्रदेश  अन  काटेरी झुडपं  होती.

गाडीत  फेरीवाले अजिबात  नव्हते.पेन्र्टी  कारही  नव्हती.सर्व व्यवस्था  तरुण  नेत्यांनी  केलेली.दुपारी  मस्त  जेवणाची  पार्सल  देण्यात  आली.पाण्याचा  जार संपला की लगेच  लगेज  डब्यातून  आम्ही  स्वत  घेऊन  येत होतो.आमचे  तरुण  तडफदार नेते जाणीवपुर्वक  सर्वाची  काळजी  घेताना  दिसत  होते.आमच्यात  ते  बराच  वेळ  येऊन  गप्पा  मारायचे.!!लोकांच्या  किती  पुढं पुढं  करावं  लागतं  याचीही  चर्चा  व्हायची..!!,

असा  रमत गमत प्रवास ख़ूप  छान  चालला  होता.त्या डब्यात    ना  टि.सी.,ना  दूसरा प्रवासी फक्त  आमचीच  लोकं  !!  

गाडी फुल!!!

अगदी  आमचीच  गाडी  असल्याचा  आमचा  थाट!!!

सायं. पाच  वाजता  गाडी  अजमेरला  पोहोचली.गाडी  पहाटे पाच  वाजता  रिटन  निघणार  म्हणून  सर्वांना  सुचना  देण्यात आली.सगळे  प्रवासी अजमेर  स्टेशनवर उतरले.स्टेशनवरच्या  पुलावरुन  सगळे  एकत्र  च  बाहेर आले.बाहेरच्या  मोकळ्या  जागेत सर्वाना  एकत्र केलं.मी  रेल्वेच्या  पायर्‍यांवर  उभा  राहुन मोठ्या आवाजात सर्वाना  पुढच्या  दर्ग्यात  जाण्याच्या व  त्यानंतर  जेवण  व्यवस्था  व गाडी  किती  वाजता  माघारी  निघणार  याच्या  सुचना  दिल्या..जवळ जवळ  हजार  एक  माणसं  पण  सगळे जण  सुचनांचे  पालन  करताना  दिसुन  येत  होते.शहरातून  दर्ग्याकडे  जाताना  प्रभातफेरीसारखे  दोन  दोन  जणांचे  ग्रुप  करुन  चालायला  सांगितले व  मी  आमच्या  मित्रांबरोबर  पुढे  झालो.सर्वानी  शिस्तीत  रस्ता  पार  केला अन  दुकांनांच्या  बाऊगर्दीतुन  आमची  ही  पायी परेड  सुरु  झाली.एवढी लोकं एकदम  चालत  असलेली  पाहून  स्थानिक  लोकं  दुकानाबाहेर  येऊन  आम्हांला  पाहत  होती.सर्व लोक  शिस्तीत चालत  होते.स्टेशनपासून एक दिड  कि.मी.अंतर  पार करुन  सगळे अजमेरच्या  प्रसिद्ध  मोईनुद्दीन  चिश्तीच्या  दर्ग्याजवळ  पोहोचले.याला  गरीब  नवाज  किंवा ख्वाजा  असंही म्हणतात.दर्ग्याचं  भव्य  प्रवेशद्वार  लक्षवेधक  असं!!आम्ही  आत  प्रवेश  केला.आत  परिसर  बराच  मोठा  आहे,.अजमेर  शरिफच्या  दर्ग्यात  गर्दी  कायम  असते.दर्ग्यात  फिरुन     

आलो.सगळीकडे  गुलाबांच्या  फुलांचा  दरवळ  भरुन  राहिलेला.अंतराचा  घमघमाटही  खूप  !!!

दर्ग्यावर  चादर  वाहीली.अन  बाहेर  आलो.समोरच्या  गल्लीतल्या  डाव्या  बाजूला  एका  बिल्डींगच्या  टेरेसवर  जेवणाची  तयारी  सुरु  होती.तोपर्यंत  अजमेर  सिटीत  बराच  वेळ सगळे  फिरत  होते.कुणी  खरेदी करत होते तर  कुणी  भटकताना दिसत होते.पण  आपली  माणसं  तिथं  लगेच  ओळखू  येत  होती.दहा  वाजता  जेवण  तयार  झाले,भरपुर  मोठ्या टेरेसवर  टप्प्याटप्याने  पंगती  बसल्या.चिकन  बिर्याणीचा  बेत  खूप  भारी  जमला  होता..तिथल्या  आचार्‍याने  बनवलेली  बिर्याणी   आणि  त्याची  चवही  जबरदस्त  अशी!!!प्रथम  आम्ही  सर्वाना  जेवन  वाढायचे काम  केलं  आणि  शेवटी  आम्ही मित्र जेवायला  बसलो.सुंदर असा  जेवणाचा  बेत झाला.भरपुर  बिर्याणी  शिल्लकही राहीली  होती.

जेवन  झाल्यानंतर  मात्र  सगळ्यांना  रेल्वेकडे  जाण्याच्या  सुचना  दिल्या.तरीही  एक  दिड  वाजेपर्यत  बरेच  जण  बाजारपेठेतच  घुटमळत  होते,.झोप अशी  नव्हतीच  !!

रात्रभर  फिरुन  पहाटे  पहाटे  रेल्वेकडे  आलो.तोपर्यंत  गाडीचं  इंजिन  चेंज  करुन गाडी उभी  राहिली  होती.अनेक  जणं  रेल्वेत  आपआपल्या  जागेवर  येऊन  झोपले  होते.आम्हीही  आमच्या  डब्यात  आलो.अन  थोडा  वेळ झोपलो.सहा वाजताच  आमचे  मित्र उठवायला  आले.त्यानंतर  सगळ्या  गाडीत  चक्कर  मारली.कुणी  राहिलय  का  याची  खात्री केली.सर्व जण  आले होते.सकाळी  सात  वाजता  गाडीने हाॅर्न  दिला.अन  परतीचा  प्रवास  सुरु झाला.आलेल्या  मार्गानेच  पुन्हा  प्रवास  होणार होता.अजमेर  मधेच  पाण्याचे  जार भरुन  घेतले  होते,..काही  जणांनी रात्रीची  बिर्याणी  डब्यामधे  बरोबर घेतली  होती..सकाळीच  सर्वानी त्यावर  ताव  मारायला  सुरुवात  केल्यावर  कळलं,   बर्‍याच  जणांनी  रात्रीची बिर्याणी  पार्सल  आणली  होती.

सकाळी सर्वाना  चहा  देण्यात  आला.आणि  रेल्वेचा संथ प्रवास  सुरु  झाला..दिवसभर  आणि  रात्रभर  प्रवास  करुन सुद्धा गाडी  सकाळी सात  वाजता  अहमदाबादला  पोहोचली  होती.,उशीर होत  असल्याने  प्रवांशांचा  संयम  संपत  चालला  होता,..काही  तरुणांनी   अहमदाबाद  रेल्वे स्टेशनवरच  मोठे  काॅक  चालू  करुन  अंघोळी करायला सुरुवात  केली.एक एक  करुन  सगळे काॅक  चालु झाले अन अंघोळी सुरु  झाल्या.गाडीने  हाॅर्न  दिला  गाडी सुरु झाली  तर  अंघोळी  करत  असल्यामुळे  गाडीत  चैन  मारली  पुन्हा  गाडी  थांबली.पुन्हा  खाली  उतरुन  अंघोळी  सुरु!!!चार पाच  वेळा चैन  मारली  अंघोळीसाठी!!शेवटी  कंन्र्टोल  रुमला  सुचना  देण्यात  आली..आर  पी  एफ चे  जवान  ताबडतोप  आले,त्यांना  पाहुन  सगळे जण  पटापट  गाडीत  बसले.तरीही गोंधळ  सुरुच होता..शेवटी  आमच्या  नेत्यांना  आॅफिसमधे  बोलावण्यात  आलं  सुचना  देण्यात  आल्या  अन  गाडी  विनाकारण  थांबवल्यामुळे दंडही  केला  व  तो  भरावाच  लागला!!!!

शेवटी  सगळ्या  गाडीत  फिरुन  सर्वाना विनंती करुन  चाललेला  गोंधळ  थांबवायला  सांगितलं ...आणि   बर्‍याच  वेळानंतर गाडीने मार्गाक्रमण सुरु केलं.आता  मात्र  गाडीने  वेग  घेतला होता.ठाणे,कर्जत,पुणे  करत  सायं  .गाडी  यवत  स्टेशन वर  पोहोचली.आणि  अजमेरच्या  स्पेशलचा  नवीनच  अनुभव  गाठीशी पडला.

एकंदरीत  ही ट्रिप  फारच  मजेशीर  झाली  !!!!!


शब्दांकन—

श्री.सतिश नानासाहेब कोळपे

तांबेवाडी  ता.दौंड  जि.पुणे

 माळशेज  ....!!!!!


माळशेज  घाटात  पावसाळ्यात  जायच  ठरवलं  आणि  योगही  जुळून  आला.  जुन्नर तालुक्यात  मित्राच्या  घरी  कार्यक्रमाच्या  निमित्ताने  सकाळीच  आम्ही  आठ  नऊ  जण  निघालो.

सकाळी  नऊ  वाजताच  मित्रांच्या  घरी  .!!.कार्यक्रम  झाला  आणि  दुसरा  मित्र  जो  शितेवाडी  केंद्रात  काम करतो  त्यांची  भेट  झाली.ते म्हटले चला  जाऊया  माळशेजला  !!!!!

जुन्नर ला  येऊन  लेण्याद्रीच्या  मार्गाने  रस्ता  थेट सरळ जातो  तो  पिंपळजोगा  धरणाकडे  !!! तिथेच  शितेवाडी  केंद्र..!मित्रांची  सर्व्हिस इथेच!!!डोंगरातील  समोरची  खिंड  पार  केली  तर  समोर  धरणांचा  अथांग  जलाशय  नजरेत  भरत  होता.भाताची  डोलणारी  शेतं.रस्त्याच्या  कडेला  डोक्याएवढं वाढलेलं  गवत  आणि  त्यातुन  जाणारा  काळा कुळकुळीत  डांबरी  रस्ता  .खूपच  मस्त  वातावरण!!शितेवाडी  केंद्रात  मिटींग  होती.सर्वानी  आमचं  स्वागत  खूपच  आनंदाने  केलं.त्याच्या  स्वागताने  आम्ही  सगळे भारावून  गेलो  होतो.ध्यानीमनी  नसताना  सुंदर  योग  जुळून आला  होता!!

बराच  वेळ तिथे चर्चा  करुन  इथे  काम  करताना  काय अडचणी  येतात यावर ही  चर्चा  झाली.पावसाळ्यात  चारपाच  कि.मी.डोंगरात  चालत  जावून  ड्युटी  करावी  लागते.निसर्ग  भारीच  पण  दररोजचा  त्रास त्यांना  भोगावा  लागतोय  हेही  तितकच  खरं.आणि  मलाही  ते  पटत  होतं.!! एवढ्या  छान  निसर्गरम्य  प्रदेशात  आपण  काम करताय  आपण  सुदैवी  आहात  असा त्यांना  हुरुप  देऊन आम्ही  माळशेज  घाटाकडे  निघालो.त्या  रस्त्याचा  प्रवास  खरंच  मनाला  आनंदाची  भरती  आणणारा!!!

पुढे आळेफाट्यावरुन  कल्याण  ला  जाणार्‍या रस्त्याला  लागलो.  आणि  साह्याद्रिचे  ते  मनभावक  रुप  समोर  दिसलं  .

.हिरव्यागार  शालु  पांघरल्यासारखं  ते  देखणं  रुप  पाहून  मनाला  उत्साह  येतो.जसं जसं जवळ जाऊ  तसं तसं  ते  सौदर्य  खुलत  जातं.माळशेज  घाटाला  सुरुवात  झाली  अन  ढगांनी  दाटी  केली ड्रायव्हरला समोरचं  काहीच  दिसेना  .गाडी  थांबवली  सगळे  खाली उतरलो अन रस्त्याच्या  कडेने  चालतच  उतरायला  सुरुवात  केली.ढग  यायचे  तसे  निघून  जायचे.आणि  समोर  दिसायचे  ते  अफाट  सौंदर्य!!!गाडीवालाही  हळू हळू  आमच्या  बरोबरच!!डोंगरावरुन  कोसळणारे  छोटे छोटे  धबधबे  अन  त्यात  न्हाहत  असलेली  तरुणाई   !!रस्त्याच्या कडेला लावलेल्या टु व्हिलर  अन  तरुणाईची  धमाल  चाललेली.!!! निसर्गाने  जणु  काही  भरभरुन  दिलय  इथे!!!

पुन्हा  जीपमधे बसुन माळशेज  घाटातून  खाली  उतरायला  सुरुवात  केली.मध्यभागात  आल्यावर  जे  पाहिलं  ...असा नजारा  लाखात  एक,!!!

देवीचं मंदिर  ,डोंगरावरुन  रस्त्यावर  पडणारे  पाणी  आणि  सगळीकडे  डोंगरातून  वाहणारे  असंख्ख  धबधबे!!!या  निसर्गाची  शोभा  काय  वर्णावी?...

  ...ती  फक्त  अनुभवावी  !!!!!

मंदिराच्या  जवळ  घाटातच रस्त्याच्या कडेला बस,गाड्या  टु व्हिलर  पार्क  केलेल्या!!! जागा पाहुन आम्ही  ही  गाडी  पार्क  केली.अन  धबधब्याखाली  भिजण्याचा  यथेच्छ  आनंद  घेतला!!मंदिराच्या  पुढे  जाऊन  पुढच्या  वळणावरचा  माळशेज  घाटातला  सर्वात  मोठा  धबधबा!!!गाडीत  मोठ्या  आवाजात  लावलेली  गाणी  आणि  त्यात  धबधब्याखाली  भिजण्याचा  आनंद  काही  निराळाच!!!माळशेजला  पर्यटकांची  प्रचंड  गर्दी  असते.हौशे ,गवसे,नवसे  सगळी मंडळी  असतात.त्यामुळे जरा  जपुनच!!!त्यात  माळशेज  अत्यंत  धोकादायक  घाटरस्ता!!!दरडी  कोसळण्याचे  प्रमाणही  खूप!!म्हणून  काळजी  घेऊन  यथेच्छ  भिजण्याचा  आनंद  घेतला.!!आमचेतले  काही जण .. सर,आपण  पार खाली  पर्यंत  जाऊन  येऊ..मी ही हो म्हटलं .गाडीने पुन्हा  खाली कोकणात  उतरलो.तर निसर्ग  पुर्ण  चेंज.फक्त  डोंगर,हिरवीगार शेती अन  वाहणारे पाणी.माळशेज  घाटात  काही पहायला मिळेल  याची  यत्किंचितही  कल्पना  खालील बाजूने  येत  नाही,..

तिथून  पुन्हा  माळशेज  घाट  चढत  निसर्गाचे  ते  अप्रतिम  सौदर्य  अनुभवत  वरती  यायला  सुरुवात  केली.मध्यभागात  पुन्हा एकदा  धबधब्याखाली  भिजण्याचा  मोह  आवरु शकलो नाही,..पुन्हा  सगळे आनंदानेच  धबधब्याखाली  शिरले.एवढा  आनंद  खरंच  कधी  झाला  नसेल.पाणी  ,निसर्ग,आणि  त्यात  धबधब्याखाली  भिजणं  सगळं  काही  आज  आम्ही  अनुभवत  होतो.तिथेच  मस्त  गरमाग़रम  कांदा भजी  आणि  चहा म्हणजे  दुग्छशर्करा  योग  !!अनेक  छोट्या  छोट्या  टपर्‍यावर  खास  सोय  पर्यटकांसाठी!!खूप  सुंदर असं ठिकाण!!

माळशेजवरुन  सायं  .प्रफुल्लित  मनाने  परतीचा  प्रवास  केला.

माळशेट  घाटाच  ते  पावसाळ्यातलं  देखणं  रुप  खरंच  आनंददायी!!

सर्वानी  आवर्जुन  पहावे  असे  देखणं  तितकच  नयनरम्य  असा  निसर्गाचा अदभुत  नजारा!!!


शब्दांकन—

श्री.सतिश  नानासाहेब  कोळपे

तांबेवाडी ता.दौंड जि.पुणे

भिमाशंकर......!


बारा  ज्योर्तिंलिगांपैकी  एक  असलेलं  भिमाशंकर  पुणे  जिल्ह्यातील  खेड  आणि  आंबेगाव  तालुक्याच्या  सीमेवर  वसलेलं  नितांत  सुंदर  आणि  निसर्ग  सौदर्याने  नटलेलं  ठिकाण..!!!

पुणे  जिल्ह्यातील  शैक्षणिक  सहलींचे  नेहमीचं  ठिकाण.घनदाट  जंगलात  वसलेलं  अतिशय  रमणीय  असं  देवस्थान..!!!

शेजारीच  भिमाशंकरचं  मोठ  अन  घनदाट  अभयारण्य.! बाराही  महिने  गजबजलेलं  हे  ठिकाण  बर्‍याच  वेळा  पाहण्याचा  योग  आला.पुणे  जिल्ह्यातून  वन  डे  ट्रिपसाठी  मस्त  असा  पर्याय!!!!

श्रावण  महिन्यात  प्रचंड  गर्दी  असते.म्हणुन  आम्ही  मित्रांनी  इतर  वेळी  जायचा  बेत  केला.टु  व्हिलरवर  शिक्रापुर ,चाकण वरुन  मंचर  ला  गेलो.मंचर  वरुन  घोडेगाव  ला  गेलो.  आंबेगाव  तालुक्याचा  सर्व  कारभार  घोडेगावमधूनच   चालतो.

घोडेगाव  नंतर  पाऊस  भुरभुर  पडू  लागला.पण पावसाळ्यात या  भागात  पाऊस  हा  असतोच  त्यामुळे  पावसात  भिजतच  पुढे  निघालो.वाटेवरुन  डिंबा  धरणाची  भिंत  दिसायला  लागली  तसा  आमचा  उत्साह  वाढला.पाऊस  थांबला  होता.आम्ही  गाड्या  धरणभिंतीजवळ  नेल्या  अन  पार्क  करुन  डिंबा  धरणाचा  जलाशय,कॅनाॅल,पाहिला.

धरण  शंभर  टक्के  भरलेलं  असल्यामुळे  अथांग  असा  जलाशय  समोर दिसत  होता.डिंबा  धरणाचे  दरवाजे  काही प्रमाणात  उघडून  पाणी  सोडण्यात  आलं  होतं.हिरवी गार  झाडी,नयनरम्य  भाताची  शेतं अन  वेगाने  पडणार्‍या  पाण्याचा  प्रचंड  आवाज  आसमंतात  घुमत  होता.निसर्गरम्य  आशा  त्या  धरणाच्या  खालच्या  बाजूने  भिमाशंकरकडे  रस्ता  जातो.तिथला  परिसर  म्हणजे  निसर्गाची  जादुगरीच!!!

पावसाळा  असेल  तर  त्यावर  चार  चाँद  लागतात.

डिंबा  धरणावरुन  भिमाशंकरकडे  प्रस्थान  केलं. भिमाशंकरला  डायरेक्ट  गाडी  जाते.गाडी  पार्क  करुन  काही  पायर्‍या  उतरत  गेलं  की  समोर  पुरातन  भिमाशंकर  मंदिर.हेमाडपंथी  बांधकाम  असलेलं  मंदिर  पहायला  खूप  छान  आहे.सगळीकडे  हिरवागार  निसर्ग  आणि  त्यामधले  हे मंदिर  विलोभनीय  !!!!!

मंदिराच्या  शेजारुनच  भिमा  नदिचं  उगमस्थान  !!!झर्‍याच्या  रुपाने  निघालेला  तो  उगम  पुढे  भिमा  नदिच्या  रुपाने   आजुबाजूचा  परिसर  हिरवागार  करत  वाहत जातो.

भिमाशंकर  हे जंगलवस्तीत  असल्यामुळे  घनदाट  जंगलाने  वेढलेलं  आहे.मंदिरात  दर्शन  घेऊन  बाहेर  आलो.इथं  फिरण्यासाठी  अनेक  जागा  आहेत.पण  माहिती  मात्र  हवी.तिथे बोर्डवर  माहिती  आणि  अंतराचे  फलक  लावलेले  आहेत.सगळीकडे  पायीच  जावं  लागतं.

होळीच्या  दिवशी  कोकण  कड्याच्या  बाजूला  सायं.  होळी पेटवली  जाते  आणि  नंतर  कोकणात  खाली  एक एक  करुन  प्रत्येक  गावात  होळी  पेटवण्याची  प्रथा  आहे.तिथून  दिसणारे  ते  होळी  च्या  दिवशीचं दृश्य  अनेक  वेळा पेपरमधे  ,टि.व्ही. वर  पाहीले  होते  त्यामुळे  कोकण  कड्यावर  निघालो.जंगलातून  जाणारी  पायवाट.उंच उंच  झाडे  आणि  त्यामधून  आम्ही  चालतच  निघालो.अनेक  प्राणी  आणि  पक्ष्याचं  माहेर घर  म्हणजे  भिमाशंकर!!!

महाराष्र्टाचा  राज्यप्राणी  शेकरु  ची  मोठी  वस्ती  इथे.उंच  झाडावर  घरटी  करुन  राहणारा  लाजाळू  प्राणी  शेकरु.खारी च्या प्रजाती  मधला  पण  मोठा!!!जंगलाची  पायवाट  तुडवत ,शेजारची  नावं  माहीत  नसलेली  असंख्ख  झाडे  न्याहाळत  पुढे पुढे  जात  होतो.साधारणपणे  तीन चार कि.मी.अंतरावर  पोहोचलो  अन  समोर  खोल  दरी.पुढे रस्ताही  नाही.!!!तिथून  कोकण चा  दिसणारा  नजारा  अभुतपुर्व असा!हिरवागार  निसर्ग डोंगरावरुन  कोसळणारे  धबधबे  अन  ढगांची  दाटी!!!तिथून  आपण  ढगाच्या  वर  आहोत  असा  आभास  निर्माण  होतो.

स्वर्ग  पाहिलाय  कुणी ?

 पण स्वर्गातल्या  सारखा  सुंदर  नजारा पहायचा  असेल  तर  भिमाशंकर  पावसाळ्यात   पहायलाच  हवं.!!!!

आम्ही  पोहोचलो  ती  जागा  होळी  पेटवायची  नव्हती. आम्ही  चालत  दुसरीकडेच  गेलो  होतो.तिथून पुन्हा  चालतच  थोडसं वरच्या  बाजूला  आलो.समोर  बरीच  मोठी  सपाट  जागा.दगडांवर  उगवलेलं  नाजूक  सुंदर  गवत  आणि  फुले  व्वा!!भारीच!!!

त्यालाच  कोकणकडा  म्हणतात.अनेक  लोक  कोकणातुन  याच  मार्गाने  भिमाशंकरला  येतात  असं म्हणतात.पण  एवढा  

प्रचंड  डोंगर आणि  अवघड  पायवाट  चढून  वरती  यायचं  म्हणजे  दिव्यच  म्हणावं  लागेल!!पाहताना ही  डोळे  फिरावेत  एवढी  भयंकर  खोल  दरी.निसर्ग  भारी पण  त्यात  चालायचं  म्हणजे  जिवावरचं  काम!कोकणच्या  या  धाडसी  माणसांना  सलाम!!!

कोकण  कड्याच  ते  मनमोहक  दृश्य  बराच  वेळ पाहून  पुन्हा पायवाटेने  मंदिराकडे  परत  आलो. माहितगारा शिवाय  इथे प्रवास  करणे  धोक्याचे!!!कारण  भिमाशंकर चं  जंगल  बिबट्याचं  निवासस्थान  आहे. वाघोबा  कधी समोर उभे  राहतील  याचा नेम  नाही.म्हणून  ग्रुप  बरोबर  असावा.इथे  फिरताना  जंगलातले  नियम  पाळावेच  लागतात.

निसर्गरम्य  अशा  भिमाशंकरला  नेहमीच  पर्यटकांची  गर्दी  असते.पावसाळ्यात  तर  खूपच  जास्त.!!भिमाशंकरची  ही ट्रिप करुन  पुन्हा  माघारी आनंदाने परतीचा  प्रवास केला.

एका वर्षी  श्रावणी  सोमवारच्या  दिवशी  गाडीने  जायचा  योग  आला  तर  आठ  कि.मी . अलीकडेच पार्किंग  करावं  लागलं  आणि  चालत  भिमाशंकर  ला  गेलो.गर्दी  एवढी  की  बाहेरुनच  दर्शन  घेतलं.चालून  खूप  दमलो  होतो.येताना  एस टी.च्या  छोट्या  बसला  परवानगी  होती.जागा  नव्हती  म्हणून  पाठीमागे  बसला  लटकुन  आठ  कि.मी.प्रवास केला  होता.असेही  अनूभव  नाईलाजाने  घ्यावे लागतात  आणि  मित्रांमधे  चर्चेचा  विषय  होऊन  जातात.

भिमाशंकर  अतिशय  छान  असं डेस्टिनेशन  म्हणून  आवर्जुन  पहावं  असं!!!


शब्दांकन—

श्री.सतिश  नानासाहेब  कोळपे

तांबेवाडी  ता.दौंड  जि.पुणे

भन्नाट ....

....... टु  व्हिलर  प्रवास!!


फिरायला   जायचा  प्लॅन  ठरला.मित्र गणेश  आणि  मी आम्ही  दोघेच होतो.मी म्हटलं  फोर  व्हीलरने  जाऊ.तर  मित्र  म्हटला  आपण  टु  व्हिलर  वर  जाऊ!!!चार  पाच  दिवसाचा  प्लॅन  करुन  निघालो. स्पेंडर   मोटारसायकल  घेतली अन  घरुन  पारगाव,शिरुर  ,अहमदनगर  करत  दुपारी  शिर्डीला  पोहचलो.शिर्डीत  मुख दर्शन  लाईनने  साईंचे  दर्शन   घेतले.पारायण  कक्षात बसलो. बराच  वेळ  बसून श्रीरामपुर  मार्गे  नेवासा  फाटा  ,तिथून  देवगडला   गेलो.देवगडचा  परिसर  खूप छान  असा!!!मंदिरात  जाऊन  दर्शन  घेतलं  आणि  शनि  शिंगणापुरकडे  निघालो.मस्त  हायवेने   शनिला  पोहोचलो.गाडी  लावली.हात पाय  धुतले  अन  तेल  घेऊन  शनि  मंदिरात गेलो.पुर्वी  शनिच्या  शिळेवर  तेल घालता  येत  असे!!पण  आता  तेल  शेजारच्या  जाळीत  ओतावे  लागते.तेल  पाईपने  थेट  शिळेवर  जाते.शनि  ची  मनोभावे प्रार्थना  केली..इथला  परिसर  मला  खूप  आवडतो.इथे  घरांना  चौकटी  नाहीत.आता पडदे  , जाळ्या  वगैरे लावल्या  जातात.मंदिराच्या  समोर  घाटाच  सुंदर  काम  चालु  होतं. इथं कधीच  चोरी  होत  नाही,असं  म्हणतात!!!!शनि च्या  दर्शनानंतर  पुन्हा  पांढरीच्या  पुलावरुन  नगर  मार्गे  रात्री  उशीरा  मढीच्या  कानिफनाथला   पोहोचलो.मंदिर  खूप  छान  आहे.मंदिर  परिसर  उंचावर  असल्यामुळे  गार  हवा  जाणवत  होती.पाऊस  झाल्यामुळे  हिरवळ सगळीकडे  होती..!रात्री  पाथर्डीत  मुक्कामी  गेलो.मित्राकडे  मुक्काम  करुन  सकाळी  पुढे  निघायचा  प्लॅन  !!पण  आज  जरा  जास्त  प्रवास  झाल्यामुळे  उशीरा  उठलो.उरके पर्यंत अकरा  वाजले होते.जेवन  करुन  मोहटादेवी  ला  दर्शनाला  गेलो.भव्य  अशा  मंदिरात  दर्शन  घेतलं...!

पुर्वीचे  मंदिर  आणि  आताचं  मंदिर  यात  जमीन  आस्मानाचा  फरक  झाला  आहे.मंदिर  अतिशय  भव्य  असं.उंचावर  असलेलं  मंदिर  देखणं  आणि  त्याचबरोबर  श्रद्धास्थान  असल्यामुळे  इथे  नेहमीच  गर्दी  असते.मोहटादेवीला  यापुर्वीही  बर्‍याच  वेळा  जाण्याचा  योग  आला  !!!

आमचा  मित्र  येळी,आणि  कोरडगावला  राहत  असल्यामुळे इकडे  नेहमी  जाणं  व्हायचं!!दुपार  टळून  गेली  होती.

तिथून  येळी,खरवंडी  मार्गे  भगवानगडावर  गेलो.मंदिरात  जाऊन  बाबांच्या समाधीचे  दर्शन  घेतले.भगवान  गडाचा  परिसर  खूप  मोठा.गेटच्या  कमानीचं  मोठं काम  चालु  होतं.समोरुन  दिसणारा  परिसर  रमणीय  असा!!!!बराच  वेळ  फिरुन  भगवान  गडाचा  सर्व परिसर फिरुन  पाहिला.पुन्हा  माघारी  खरवंडी  रोडने  हायवेला  लागलो  अन  माजलगाव कडे  निघालो.बीड  हायवेला  येईपर्यंत  सहा  वाजले  होते.शेजारी  मस्त  हाॅटेलवर  चहा  घेतला अन हायवेने  डाव्या  हाताला  टर्न  मारुन  माजलगाव  फाट्यावर  आलो.अंधार  पडला  होता.माजलगाव  रोडवर  पहिल्या  टोक  नाक्याजवळ  गाडी  बंद  पडली.प्लग  काढला  पुन्हा  बसवला.गाडी  चालु  झाली.चारपाच  कि.मी. गेलो  गाडी  पुन्हा  बंद  पडली.पुन्हा  चोक  दे,वाकडी   कर  असे करत  गाडी  चालु झाली.निघालो.!!पुन्हा  चार पाच  कि.मी. वर गेलो तर गाडी  पुन्हा  बंद  झाली.आता  खूप प्रयत्न  करुन  दमलो  तरीही गाडी  चालु  होईना.रात्र झालेली  .!!वाटेत  ना  गॅरेज , ना  मोठं  गाव.!!किका  मारुन  मारुन  कशीबशी  गाडी  चालु  झाली.माजलगाव  बायपासला  आलो  तर  गाडी  पुन्हा  बंद  पडली.माजलगावची  गॅरेज ही एव्हाना  बंद  झाली  होती.पुन्हा  किका  मारुन  गाडी  चालु  झाली.पाथरी  रोडवर  गोदावरी नदिच्या  अलीकडेच  गाडी  बंद  पडली.उशीर  झालेला!!!वैताग  आला  होता  !! पण  पुढे  पाथरीत मित्राला फोन  केला  होता  येतो म्हणून  तो  वाट  पाहत  होता..काही  केल्या  गाडी  चालु  होईना.!!,,पेट्रोल  फुल,नवीन  प्लग,तरिही  गाडी  चालु  होत  नव्हती  शेवटी  कंटाळून पाथरीचे आमचे  जिवलग  मित्र  श्री.अशोक  कराड  यांना  फोन केला.आमचे  लोकेशन  सांगितलं. तो  म्हटला  तिथंच  थांबा  मी  लगेच  आलो.पाथरीपासुन वीस  कि.मी. चं  अंतर  होतं  ते.!!

मित्राने  रात्रीची  वेळ असल्यामुळे  मोठी  ब्रिझा  गाडी  आणली.आमची  गाडी  इथेच  लावून  सकाळी  न्यायचा  त्याचा  विचार  पण  आम्हाला  सकाळी  लवकर  निघायचं  होतं  .त्यामुळे मग  गाडी  दोरीने  ब्रिझा  ला  बांधली.मागे  गाडीवर  चालवायला बसलो.मित्र  स्लो  गाडी  चालवत  होता  तरिही  पाठीमागे  मात्र  गाडीला  झटके  बसत  होते.गाडीला  ब्रेक  मारला  तर  स्पीडने  गाडी  पुढे  ब्रिझाकडे  जात  होती.!गोदावरीच्या  पुलावर तर खूप  तारांबळ  झाली  माझी!!!

झटके  बसत  बसतच  कसेबसे  पाथरीत  पोहोचलो.रात्र झाली  होती.मित्राकडे  जेवन  केलं  आणि  झोपी  गेलो.आज  प्रवास कमी अन  त्रासच  जास्त  झाला  होता.!!

सकाळी  उठून  मस्त  फ्रेश  झालो.टु व्हिलर ढकलत मेनरोडला  आणली.  एका  गॅरेजवर  फिटरला  दाखवली  तर  गाडीची  काॅईल  गेल्याचं  कळलं..काॅईल  बदलेपर्यत  मित्राच्या  गाडीवर  तिथून  एक  कि.मी.अंतरावर  असणार्‍या  साईबाबांच्या  जन्मस्थान  पाहण्यासाठी  गेलो..मी  ही  आजवर  फक्त  वाचलेलं  होतं  पण  आज  प्रत्यक्ष  तिथे  जाण्याचा  योग  आला.अतिशय  गर्दित असलेली  ही  जागा!!!मंदिर  छान  बांधले  आहे.मंदिराच्या  खाली  साईबाबांच्या  घरातील  जुन्या  वस्तु,चुल  जतन  करुन  ठेवल्या  आहेत.इथं  आल्यानंतर  शिर्डीत  आल्यासारखं  वाटतं.  जन्मभुमीला  वंदन  करुन  रोडवर  आलो..गाडी  दुरुस्त  झाली  होती,..मित्राचा  निरोप  घेतला  अन  पुढे  निघालो.पाथरी  ते  मानवत  रोड  मस्त  झालाय!!!मानवत रोडला  आलो.बाहेरुन  परभणी कडे  निघालो.मानवत  रोड  ते परभणी  रस्ता  जरासा  खराब  ,खड्डे  ही  होते.परभणीत   अकरा  वाजले  होते.उड्डानपुलावरुन  कृषीविद्यापीठ  मार्गे  वसमत  कडे  प्रयाण  केलं.परभणी   ते  नांदेड  चारपदरी  रस्त्याचे  काम  चालू  होतं.सगळीकडे  उकरुन  ठेवलेलं  शंभर  ते  एकशे वीस  कि.मी. अंतर  पण खूप  वेळ  लागला.रस्ता  खोदुन  ठेवलेला  पण  काम  कुठेही  चालु  नव्हतं.झिरो  फाटा,वसमत  करत  नांदेड  हायवेला  आलो.फाट्यावरुन  डाव्या  हाताला टर्न  मारुन  अर्धापुर  आणि  तिथून  वारंगा  फाटा.!!!चारपदरी  हायवे  आहे  पण  जरा  जपुनच  कारण  रस्त्यावर काही  ठिकाणी गुडघ्याएवढे  खड्डे  आहेत.टु  व्हिलर  होती  म्हणुन  लक्षात  येत  होते  फोर  व्हिलर  ला  लवकर  दिसतही  नाहीत..!

वारंगा  फाट्यावरुन  उजव्या  हाताला  टर्न  मारुन  हदगाव  ,उमरखेड  आणि  तिथून  माहुर  ला  आलो.हा रस्ता  जरा  छान  होता.रस्त्यावर  हाॅटेल सुविधा  कमीच  आहे.राईसप्लेट  जेवणाची  जास्त  चलती!!!!

माहुरच्या  अलीकडे  नदीला  भरपुर  पाणी  वाहत  होतं.गाडी  पुलाजवळुन  वळवून  नदी पात्राजवळ  नेली.आणि  मस्त  नदीच्या  पाण्यात  पोहण्याचा  आनंद  घेतला.तिथुन  माहुर  गावातुन  वरती  रेणुकेचं  छान  मंदिर.मंदिरात  दर्शन  घेतलं तिथून  अनूसया माता आणि दत्तात्रयांच्या  दर्शनाने  मन तृप्त  झाले.सायं .झाली  होती.परिसर  खुप  छान  इथला.!!!,झाडीमधे डोंगरावरचा  तो  परिसर  खुलुन  दिसतो.किल्ल्यावर  गेलो  नाही.दुरुनच  पाहुन  परत  निघालो.किनवटचे  मित्र  रामराव राठोड  सर  येतो  म्हटले  पण  मीच  नका  येऊ म्हणुन  सांगितलं  आणि  रात्रीच  परत  निघालो.माहुर वरुन  पुसदला  आलो.रात्रीचे  दहा  वाजले होते.मग  जेवन  करुन  शिवाजी  महाराजांच्या  पुतळ्याजवळ  चौकातच  पेट्रोल पंप  आहे  तिथे  गाडी  फुल  केली  अन  कळमनुरी  रोडला  हनुमानाचंं  छोटसंच  पण  छान मंदिर  आहे  ,तिथे  मुक्काम  केला.सकाळी  स्थानिक मंदिरात पाया  पडायला  आल्यानंतर  जाग  आली.तिथेच  नळावर  मस्त पैकी  हात  पाय धुतले  .चहा  घेतला  अन  पहाटेच निघालो.तर  कळमनुरी  रोडला  पुसद  च्या  लोकांची  नुस्ती  जत्रा  भरलेली.चार पाच  कि.मी. गेल्यानंतर  लक्षात  आलं  की  सगळी  लोकं  व्यायामासाठी  बाहेर  पडलेली.निवांत  पटांगणावर येऊन  व्यायाम  करत  होती..पुसद  ची  जनता  आरोग्याच्या  बाबत  खूपच  जागृक!!!

महिलांपासुन,तरुण,वयस्कर  सगळेच  चालणे,पळणे,योगासन  आणि  व्यायाम   करताना  आढळली.खूप  चांगली  सवय!!!

त्या  गर्दीतुन  पुढे  निघाल्यानंतर  कळमनुरी पर्यंतचा  रस्ता  खूपच  खराब !!!!

 अक्षरशा  रस्त्याची  नुसती  चाळण  म्हटलं  तरी  वावगं  ठरणार नाही..!!!कळमनुरीला  आलो.एका  टाकीवर  मस्त  अंघोळी  केल्या.नाष्टा  केला.इकडच्या  भागात  नाष्ट्याला  चुलीवर  तळलेले सामोसे  अन  जिलेबी !!!भारीच!!!

इकडचे  आवडते पदार्थ!!!

कळमनुरीतुन  हिंगोलीला  आलो.हिंगोली  जिल्ह्याचे  ठिकाण  पण  छोटचं!!!मोठमोठ्या  बिल्डिंग  वगैरे  जास्त  प्रकार  नाहीत..चौकातुन  औढा  नागनाथकडे  निघालो.वाटेत  थांबत  थांबत  गप्पा  मारत.स्थानिकांशी  चर्चा  करत  आमचा  सगळा  प्रवास  चालू  होता.वेळ जात  होता  पण  माहीतीही  नवनवीन  मिळत  होती,..औंढा  नागनाथ ही छोटसंच  गाव  .साधी  हाॅटेल्स,इकडच्या  भागात  स्विटहोमसारखी  दुकाने  शोधूनही  सापडत  नाहीत.बारा  ज्योर्तिलिंगापैकी  एक  औंढा  नागनाथला  आलो..मंदिर  परिसर  बराच  मोठा.दगडी  पुरातन  बांधकाम!!!मंदिरात  गेलो.तिथुन  पुन्हा  आतमधे  खाली  वाकुन  खालच्या  बाजुला  उतरुन  महादेवाचं  दर्शन घेतलं.सात  आठ  जण  बसतील  एवढीच  जागा!!आत  खूप  गरम  होत  होतं.ए.सी. ची  सोय  आहे  पण  तो  बंद  होता.दर्शन  घेऊन  पुन्हा  वाकुनच  वरती  आलो.आणि  नवीन  ठिकाण  पाहिल्यांचा  आनंद  झाला.

औढा  नागनाथ  मंदिर  प्रेक्षणीय  आहे.

औढा  नागनाथ  वरुन  कारखाना  मार्गे  झिरो  फाट्यावर  आलो.रस्ता  खराबच  आहे.झिरो  फाटा  ते  परभणी  हाही  रस्ता  असा  तसाच!!!परभणीत  सात  वाजले  होते.पुन्हा  मित्राला  फोन  करुन  पाथरीत  मुक्कामी  आलो.इकडे  रस्ते  खराबच!!!परिसर  खूप  चांगला  आहे.रस्त्याअभावी  डेव्हलमेंट  म्हणावी  अशी  नाही.रस्त्याला  गाड्याही  कमीच!!टु  व्हिलर  बर्‍याच  आढळतात.फोर  व्हीलर ची  संख्या  कमी  जाणवली.

पाथरीवरुन  पुन्हा  सकाळी  लवकर  निघून  परतीचा  प्रवास  माजलगाव,पाथर्डी,

अहमदनगर,शिरुर  करत  सायं .उशीरा  घरी  पोहोचलो.

  टु  व्हिलर वरची  ही भन्नाट  अशी  ट्रिप  नवीन  ठिकाणं  पाहण्याची  इच्छा  पुर्ण  करुन  गेली.मजेत,रमतगमत  केलेला  प्रवासही  मस्त  वाटला.रस्ते  खराब  होते  पण  फिरताना  सब कुछ  ठिक  म्हणत  पुढे  जायचं.गाडीने  दिलेला  त्रास  मात्र  लक्षात  राहील  असाच!!!पण  त्यातही आम्ही  आनंद  घेतला!!!कारण  मनापासून  ठरवलं  ना  कुठेही  मुक्काम,मिळेल  तिथे  जेवण  !!!तर  प्रवासाला  जी  मज्जा  येते  ती  अनूभवण्यासारखी!!!अशी  ही  ट्रिप  भन्नाट  झाली!!!


शब्दांकन—श्री.सतिश  नानासाहेब  कोळपे

तांबेवाडी  ता. दौंड  जि.पु

कांगडा,ज्वालाजी,...............................वैष्णोदेवी  !!!!


बालाजी  अन  वैष्णोदेवीला डायरेक्ट  ट्रेन  असल्यामुळे  प्रवास  अत्यंत  सोपा.त्यामुळेच  वैष्णोदेवीला  

बर्‍याच  वेळा  जाण्याचा  योग  आला.वैष्णोदेवीला  जाताना  इतर  कोणती  जवळची  ठिकाणं  पाहता  येतील  का  याचा  विचार  करत  असताना  पठाणकोटला  उतरुन   कांगडा,ज्वालाजी  इथे  जायचा  प्लॅन  केला  अन  दिवाळी  सुट्टीत  निघालो.

सगळे  नवीन  मेंबर  यावेळी  ट्रिप ला  होते..

  पुण्याहून  झेलम एक्सप्रेसने  जायचं  बुकिंग  केलं  होतं. नियोजनानुसार  सगळे  दौंडला  गोळा  झाले  अन  सायं.सात  वाजता  दौंडवरुन  गाडी  निघाली.गाडीतच  मस्त  सर्वांनी  घरुन आणलेलं  जेवन  केलं.आणि  सगळे  झोपी  गेले.सकाळी  गाडी  सहा  वाजता  इटारसी ला  पोहोचली.सगळे जण फ्रेश झाले.चहा  झाला.अन  आजूबाजूचा  निसर्ग  पाहत  सकाळी  दहा वाजता  भोपाळला  पोहोचलो.भोपाळच्या  घाटातून  जाणारी गाडी  पहायला  भारी  मजा  येते.भोपाळनंतर  झाँसी,ग्वालियर  करत  गाडी  सायं सहा वाजता  आग्रा  येथे  पोहोचली.तिथून  मथुरा करत  नवी दिल्ली स्टेशनला  साडेदहा  वाजले  होते.रेल्वेतच  जेवन करुन  रात्री  सगळे निवांत  झोपी  गेले.दोन रात्री अन  एक  दिवसाचा  असा प्रवास करुन  सकाळी  सात वाजता  गाडी  जालंधर स्टेशनवर  आली.तिथून  पठानकोट  कडे  जाताना  बाजूला  सुंदर अशी शेती  पहायला  मिळते,.प्रत्येक बांधावर  असलेली  भेंडीची  झाडं  सगळीकडे  दिसतात.  

  गाडी  पाच  मिनिटं  चक्कीबँक  स्टेशनवर  थांबली होती.पठाणकोट ला  बायपास  काढून  तयार क़रण्यात  आलेलं  नवीन स्टेशन.!!!!,

याअगोदर  बर्‍याच  वेळा  वैष्णोदेवी  ला  जाताना  पठानकोट  स्टेशनवर  गाडीचं  इंजिन  चेंज  करावं  लागायचं.हे मला माहित  होत.त्यामुळे पठाणकोटला उतरायचा  आमचा  प्लॅन  ठरलेला.त्यामुळे सगळे निवांत ..पण  2009  साली  हे नवीन  स्टेशन नुकतच  तयार करण्यात  आलं होतं .गाडी  थांबल्यामुळे मी  बाहेर  आलो तर तिथे बोर्ड लावला होता  "पठानकोट  साठी  इथे उतरावे."

मी  लगेच  प्रवाशांना  विचारले तर  कळलं की,आता गाडी पठानकोट स्टेशनला  जात नाही  बाहेरुनच  जम्मु कडे  जाते.मी  पळतच  डब्यात शिरलो.सर्वांना  पटपट  उतरण्याच्या  सुचना दिल्या  गाडीने हाॅर्न दिला होता.बॅगा घेऊन  स्लो  गाडी  असतानाच  सगळे पटपट  उतरले. खूपच  धावपळ झाली सर्वांची.नवीन  स्टेशन बद्दल माहिती  न घेतल्यामुळे  हा  सर्व त्रास झाला.!!

सगळे उतरल्यानंतर गाडीने वेग  घेतला अन गाडी जम्मू कडे रवाना  झाली.चक्की  बँक  स्टेशनवरुन  बॅगा  घेऊन  चालतच  पठानकोट  ला  आलो..

पठाणकोट स्टेशनवरुन  सुरेंद्रनगरला  जाणारी  छोटी  रेल्वे अन  तिचा  प्रवास  भारीच!!त्यामुळे बायरोड ने न जाता  सोळा रु.तिकीट काढून  गाडीत  जागा  पकडली.सकाळी गाडीला गर्दी ही  कमीच  होती. अंतर नव्वद कि.मी.  होते.ज्वालामुखी  रोड  स्टेशन वर  उतरुन  पुढचा प्रवास करायचा  होता.गाडीने पठानकोट  सोडलं .प्रत्येक  स्टेशनवर थांबत  जाणारी  रेल्वे  ,!! निसर्गाचा  आस्वाद  घेताना  भारी  वाटत होती.हिमालयातून  वाहणार्‍या  नद्या  ,नदीवरचे  उंच पुल,धरणाचे बॅक वाॅटर असा  निसर्गरम्य प्रदेश!!रेल्वेच्या  दोन्ही बाजूला  पठानकोट  पासून  गांजाची  इतकी  झाडं  जसा आपल्याकडे  शेतात  कांग्रेस  नावाचं गवत असतं ना , अगदी  तसाच  जास्त प्रमाणात  गांजा!!!!

पुलावरुन  जाताना  खोलवर  नद्यामधे  दिसणारं  पाणी  अगदी  स्वच्छ!!!!

दृश्य  खूपच  मनमोहक  असं.  चार तासाचा  प्रवास करुन  ज्वालामुखी  रोड  स्टेशनवर  उतरलो.स्टेशनवरुन  पेठेतुन  चालत  वरती  रोडला  आलो.रोडवर  बसला हात  केला  आणि  पंचवीस कि.मी.वर असणार्‍या  ज्वालाजी  मंदिराकडे  निघालो.बसस्टँडजवळच  रुम घेतली .सगळे फ्रेश  झाले अन  दर्शनासाठी  अर्धा कि.मी.वर असणार्‍या मंदिराकडे  पायी  निघालो.दोन्ही बाजूला दुकानांची  गर्दी .या गर्दितुन  वाट  काढत  मंदिरापर्यंत  पोहोचलो.दहा बारा  पायर्‍या चढून वरती  गेलं की  समोर  बराच  मोठी  मोकळी  जागा.डाव्या अन उजव्या  हातालाही  मंदिरं...!

डोंगराच्या कुशीत वसलेलं  मंदिर  आणि परिसर  खूपच  छान  आहे. मंदिराचे  सोनेरी कळस  लक्ष वेधून  घेत होते,.प्रथम  लाईन  दर्शनाला  गेलो..मंदिरात  मुर्ती  नाहीच.मधोमध  एक  बांधकाम  केलेला  खड्डा  आणि  त्यातुन  बाहेर  पडणारी  निळसर  ज्वाळा  हेच  ज्वालादेवीचं रुप!!ज्वालेचीच  पुजा  करुन  तिथेच  मंदिरात  अजून  सात  आठ  ठिकाणी  निळसर ज्वाला  बाहेर पडतात  त्यांचीही  वेगवेगळ्या  देवींच्या  नावाने पुजा  केली  जाते.एक  वेगळच  मंदिर  आज  मी  पाहत  होतो.!!!!!!अकबर  बादशहाची  या  देवीवर खुप श्रद्धा  !!!,   त्यांनी देवीला  दिलेल्या  वस्तुही  तिथे पहायला  मिळतात.मंदिरात  खुप प्रसन्न  वातावरण!!!

मंदिराच्या  मागच्या  बाजूने  वरती  गोरख डिब्बी  हे ठिकाण!!कानफाटे  साधु चं  इथे  प्रमाण  खूप!!!,,.मंदिरात  गोरक्षनाथांचं दर्शन घेउन त्याच्या पाठीमागील बाजूस एक  अदभुत  अशी जागा.

एका  खोल खड्य्यात  उकळतं पाणी..मी  समोर  गेलो.पुजार्‍याने मला  त्या  पाण्यात हात  घालायला  सांगितला.मी  तर  प्रथम  घाबरलोच  पण  त्या  पुजार्‍याने  माझ्या  हाताला  धरत  मंत्र  म्हटला  आणि हात  पाण्यात  घातला !!!पाणी  बर्फासारखं  थंड!!चमत्कार  काय  असतो  हे  आज  अनूभवलं  होतं.!!!!,आमच्या  ग्रुपच्या  प्रत्येकाला  हा  अनूभव  मिळाला.गर्दी  फारशी  नसल्यामुळे  प्रत्येकाला हे  पाहता  येतं पण  गर्दी  जास्त  असेल  तर  योगायोगाने  येणार्‍या  शंभरातून  एखाद्या  व्यक्तीला  हा  लाभ  मिळतो.

गोरख डिब्बीतुन  खाली  आलो.अन  देवीचा  पलंग  असलेली  छान  मोठी  जागा.मोकळी असल्यामुळे अनेक  भाविक  नामस्मरण  करत  बसतात.

ज्वालामुखी  देवीचे  हे स्थान  अनुभवण्यासारखं!!!

माघारी  रुमवर  आलो.चार वाजून  गेले होते.लगेच रुम सोडली अन  कांगडादेवीला  जायला  बस मिळाली.पंचेचाळीस  कि.मी.चा  प्रवास  असाच  डोंगरातुन .!!!,,

परिसर  मस्त आहे.कांगडादेवीच्या  बसस्टँडला  उतरुन  एक  कि.मी.चालतच  मार्केटमधून  मंदिराजवळ गेलो.सायं.  झाली होती.प्रथम  मंदिराच्या अगदी समोर  असलेल्या  देवस्थान भक्त निवास मधे रुम घेतली.साहित्य  ठेवलं अन दर्शनाला  गेलो.कांगडा  देवीचं मंदिर ही खूप  छान  आहे.कांगडा  व्हलीचं  प्रवेशद्वार  म्हणजे  हेच  ठिकाण.मंदिरात  लाईनने  दर्शन  घेतलं,नंतर  शेजारीच  त्याचा  भक्त  ध्यानूमंदिरात  दर्शन घेऊन  मंदिर परिसरात  बराच  वेळ घालवला.कांगडादेवीच्या दर्शनाने मनाला  आत्मिक  ऊर्जा  मिळाली.इथला  परिसर खूप  गर्दिचा  आहे.मंदिरापासून  दुकानांच्या  रांगा  बसस्टँड पर्यंत  आहेत..

रात्री जेवन करुन  रुममधे  आराम केला.सकाळी  लवकर उठून फ्रेश झालो.पुन्हा मंदिरात  दर्शन  घेऊन कांगडा  रेल्वे स्टेशनला  उताराने  अगदी  पळतच  आलो..!!अंतर  दोन  कि.मी.आहे.नदिच्या लोखंडी  पुलावरुन  पलीकडे  गेलं की  शेजारीच  रेल्वे स्टेशन  आहे.सुंदरनगरला जाणारी  हीच ती  छोटी  रेल्वे!!!सकाळी  साडेआठची  गाडी  मिळाली अन   पठानकोटकडे  पुन्हा  तो  निसर्गरम्य  टाॅनट्रेनचा  प्रवास  केला.दुपारी  पठानकोटला  पोहोचलो.बसस्टँडवर  जाऊन बस ची  चौकशी  केली तर  कश्मीरला  जाणार्‍या  पंजाबच्या  सरकारी  गाड्या  बंद  असल्याचं कळलं.पण  रिक्षावाल्याला  विचारलं.तर  नवीन  बायपास वरुन  खाजगी  रोडवेज  बस मिळेल असं कळालं  आणि  त्याच  रिक्षातून  बायपासला  आलो.जम्मुकडे  जाणार्‍या  सर्वच  गाड्या  फुल  होऊन  येत असल्यामुळे जागा  मिळत नव्हती.बर्‍याच  वेळानंतर एक  बस मिळाली  आणि  जागाही!!!!जम्मुपर्यतचा  प्रवास हा  सपाट  भागातूनच.नद्यांची  विस्तीर्ण  पात्र  आणि  पुलावरुन  प्रवास करत  रघुनाथ मंदिराशेजारील बस स्टेशनवर   पोहोचलो.उतरल्यावर लगेचच  कटरा ला  जाणारी  बस मिळाली..छोटी  जाळ्या  लावलेली  बस  बसायलाही  जागा  कंजेस्टेड च!!!!

  बसने  कटराकडे  प्रस्थान केलं  तावी  नदीच्या  मोठ्या  पात्रावरुन  जाताना   या नदिला  एवढं  पाणी  येत असेल  यावर विश्वास बसत  नाही..कारण  आता  पात्रात  टिपकाही  पाणी  नव्हतं.आणि  पात्र  मात्र  चांगलं अर्धा कि.मी.रुंदीचं!!!

तिथून  पुढे  घाट  सुरु  होतो.उंच  पर्वत,दर्‍या यामधून  जाणारा कटरा पर्यंतचा  पंचेचाळीस  कि.मी. रस्ता  फारच  सुंदर!!!सायं. झाली  होती.दुरुनच  वेष्णोदेवीच्या  रस्त्यावरच्या  लाईट  वळणावळणाने  चमकत  होत्या.पायथ्याला  असलेलं कटरा ही  लाईडच्या  प्रकाशात  चमकत  होतं.खूप  छान दृश्य!!!वैष्णोदेवीच्या  टाॅपवर असणार्‍या  टाॅवर वरचा  लाल  दिवा  किती  उंचीवर  जायचय  हे लक्षात  आणून  देत  होता.

कटरा ला पोहोचल्यावर रुम घेतली अन  रात्रीच  वरती  जायचं ठरलं.जेवन करुन  यात्री पर्ची  घेतली  अन  रात्री नऊ  वाजता  वरती  निघालो.सुरुवातीला  दुकांनांची  गर्दी  होती.पण जस जसे वरती  जाऊ लागलो तशी  दुकानं  ही  संपली.पक्का  बांधलेला  रस्ता,मधेच  वाद्य  वाजवणारी  लोकं,आणि  जय माता दी  म्हणत  वर चढणारी  अनेक  लोकं.घोड्यावाले  भरपुर..अर्धा रस्ता  पार करुन अधकुंवारी  ला पोहोचलो.पाय  दुखायला  लागले  होते.पायाला  गोळे येत होते पण  भवनापर्यत  जायचा  निर्धारही  पक्का  होता.हिमकोठीमार्गे  जराशी  सोपी  चढाई!!!

बसत उठत  भवनापर्यत  पोहोचलो  तेव्हा  दिड  वाजले होते.सावकाश  आल्यामुळे  चौदा  कि.मी. चढून  यायला साडेचार  तास एवढा वेळ लागला.!बरोबरचा  बेल्ट,मोबाईल,चप्पल  लाॅकरमधे  ठेऊन  लाईन  ने  दर्शनाला गेलो.वरती  हवा चांगलीच  थंड होती.छान  गुहेतील  प्रवेश  द्वाराने आत  जाऊन  वैष्णोदेवीचं  दर्शन  घेतलं  आणि  प्रसन्न मनाने  बाहेर  आलो.एवढ्या  दुरवर  ज्या  दर्शनासाठी आलो  होतो  ते दर्शन  झालं होतं.बाहेर  येऊन  साहित्य पुन्हा  ताब्यात   घेतलं  आणि  भैरवघाटीचा  अवघड  चढ  चढायला सुरुवात केली.अगदी  सरळ वर जाणार्‍या  पायर्‍या !!!पायाला  गोळे येत  होते.कधी  शाॅटकटने  जाऊन वरती  थांबत  होतो.असं करत  करत  भैरव  घाटीला  पोहोचलो.वरती  हवा  खूपच गार लागत  होती.भैरवबाबाचे  दर्शन घेतले अन  माघारी  निघालो.येताना  हाथीमथ्था  मार्गे परतीचा  प्रवास  सुरु  केला.दमलो  होतो.तरिही  जेवढं अंतर  कमी  करता  येईल एवढा  पटकन  प्रयत्न  करत  होतो.सकाळी  आठ  वाजता  अधकुंवारीला  पोहोचलो..सगळेच  दमलेले होते.तिथं मंदिरात दर्शन  घेऊन  बराच  वेळ आराम  केला.वाटेत  चहा नाष्टाही  झाला..!

साडेनऊ वाजता  पुन्हा  उतरायला  सुरुवात  केली.आता  मात्र  पाय दुखत  असतानाही  दोन  तासात पायथ्यापर्यंत  पोहोचलो.पायाला  थांबुन  आराम  दिला  की  पुन्हा  चालायला  त्रास  जाणवतो.म्हणून  चढताना  उतरताना  एके  ठिकाणी जास्त वेळ आराम न करता  दमेल  तिथं  थांबावं आणि  पुन्हा  चालावं  असे केलं तर पायाला  जास्त  त्रास होत  नाही..

गेटपासुन रिक्षाने  रुमवर  आलो.अकरा वाजता  मस्त  सगळे  फ्रेश झाले .अन  सगळ्यांनी  जेवन  केलं.आणि  सगळे जण रुमवर आले.साडेबारा  वाजले होते.मी अन  माझा  मित्र रोल धुवायला  टाकून फिरुन  आलो.साडेतीन  वाजता  आलो तर सगळे झोपलेले  .दमल्यामुळे  आले तसे पडले.मीही  अंग  टाकलं.!!!

खोटं  वाटेल पण  खरं  सांगतो  त्या  दिवशीची  रात्र कशी संपली  कोणालाच  कळलं  नाही  दुसर्‍या दिवशी  सकाळी  सात वाजता  एक एक  करुन सगळे उठले.रात्रीच्या  जेवणाची  सुद्धा क़ुणाला  सुद  नव्हती.दमल्यामुळे  आणि  रात्रभर  जागल्यामुळे  रुमचे दरवाजे  सताड उघडे  ठेऊन निवांत  झोपले होते  सगळेजण!!!सकाळी  उठल्यानंतर  फ्रेश होऊन  निवांत दुपारी  जम्मुला  आलो.रघुनाथ टेंम्पलला  जाऊन दर्शन  व खरेदी  आटोपली .सफरचंदाच्या  पेट्या खरेदी केल्या अन रात्रीच्या  रेल्वेने  साडेनऊ  वाजता  परतीचा प्रवास  केला.

  सहा  दिवसाची वैष्णोदेवी ट्रिप  खूपच  मस्त  आणि  कमी  खर्चात  झाली.रेल्वे  रिझर्वेशन  साडेआठशे रु,रिटन  ,जेवण,बसप्रवास,

रुमभाडे ,छोटा रेल्वेप्रवास,पाणी  असा  प्रत्येकी दोन हजार  आणि  विस किलो  सफरचंदाची  पेटी  साडे चारशे रु. असा एकूण खर्च  आला  या  ट्रिपला  अवघा  3300/- रु.

ट्रिपची मजा भारीच.

खूप  छान प्रवास  आणि  इथले अनुभव ही भारीच!!!


शब्दांकन—

श्री.सतिश  नानासाहेब कोळपे

तांबेवाडी  ता.दौंड  जि.पुणे

उज्जैन  ......भांग!!!!!!


मित्रांनो केसातला  भांग  नव्हे  !!!

, झिंग  आणणारी  भांग..!!!

उज्जैन  ला  प्रथम फिरायला  जाण्याचा  योग  आला.

आम्ही  तिघेच  मित्र   गाडीत. !!!!फिरायला  उजैनला!!!मस्त  महांकाळेश्वर,क्षिप्रा  नदी,हरसिद्धी  माता,भैरवनाथ  मंदिर  ला  भेट  देऊन  महांकाळेश्वर  मंदिरासमोर  आलो.खूप  मोठं  मार्केट  आणि  त्याच  मार्केट मधे खूप  सारी  भांग  विकणारी  दूकाने..!!!आमच्या  इकडे  धार्मिक  कार्यक्रम  असेल  तर कुसुंबा  बनविला  जातो.व  कपामधे  घेऊन  थोडाथोडा  सर्वानाच  प्यायला  दिला  जातो. पण  यात  नशेचे  प्रमाण  अगदी  कमी  असतं..!!!मसाल्याचे  सगळे पदार्थ,काजू,बदाम  आणि  थोडा  नशा  येणारा  पदार्थ  मिसळून  वाटून कुसुंबा  तयार करतात. इथे  उजैनला  मात्र  भगवान  भोलेनाथाचा  प्रसाद   म्हणून  अनेक  जण  भांग  पितात.याने  काहीही होत  नाही  असे  ही  सगळे  जण सांगतात.!!!भांग  प्यायला  खूप  सारे  लोक.आमचे  महाराजही  म्हटले  , प्रसाद  म्हणून  घ्यावा  लागतो.भांग  महागही  नाही .वीस  रुपयाला   ग्लास.!!!,.त्यात  बदाम,काजू,किशमिश  टाकून  बनवण्याची  पद्धतही  मस्त.स्वच्छता  ही उत्तम.

एवढे  जण  घेतात  म्हटल्यावर  आम्ही  ही  तीन  ग्लास  तयार  करायला  सांगितले..भांग  विकणारी  व्यक्ती  मुळची  सातारची.अनेक  वर्ष  हाच  व्यवसाय  ते  करतात..वयस्कर  ,

लांबसडक  मिशा,तरतरीत  चेहरा...!  मी  त्या  बाबांना  म्हटलं ही बाबा  काही  त्रास  होणार  नाही  ना?  ते  म्हटले  कुछ  नही  होगा  शिवजी  का  नाम  लेके  पी  जाओ!!!!

   आम्ही  ग्लास  हातात  घेतले  अन  ग्लासभर  भांग  संपवली .चवही  अगदी  छान.बदाम  ,काजू  मुळे  टेस्ट  भारीच...!!

  पैसे  दिले,,पार्किंगला  येऊन  गाडीला  स्टार्टर  मारला..सकाळचे  अकरा — बारा  वाजले  होते.,आम्ही  इंदौर  च्या  दिशेने  चारपदरी हायवेने  निघालो.अर्धा  तास  झाला  होता.भांगेचा  काहीही  परिणाम  जाणवत  नव्हता.

ऊजैनच्या  बाहेर  दहा  बारा  कि.मी.  वर  आलो.एका  हाॅटेलवर  चहा  घ्यायला  थांबलो.आणि  भांगेने  आपला  करिश्मा  दाखवायला  सुरुवात  केली..डोळे  आपोआप  झाकायला  लागले.पायाच्या  बोटापासून  डोक्याच्या  केसापर्यत  अंग  थरथरायला लागलं,.चक्कर  आल्यासारखं  वाटायला  लागलं..अंग  भरुन  आलं  होतं..सगळीकडून  दाबून  धरल्यासारखी  अवस्था..मी  महाराजांना  व  शिवाला  काय  होतय  याची  कल्पना  दिली.महाराजांना  माहीत  असावं  बहुतेक !!ते  म्हटले  सर,गाडी  बाजूला  घ्या..अन   थोडा  वेळ  झोपा..!गाडी  चालवण्याची  डेअरिंग  होईना   शेवटी  गाडी  एका  रस्त्याच्या  कडेला  लावली..अन  शेतातल्या  एका  झाडाखाली  गेलो, आणि  झोपलो.डोकं  दुखायला  लागलं.झोप  येईना चक्कर  आल्यासारखी  वाटत  होती.झोपल्यावर  तर  जास्तच  फिरत  होतं.काय  करावे  समझत  नव्हते.खुप त्रास  होत  होता.पण  भांग  उतरेपर्यंत  पर्याय  नसल्याचे  महाराजांनी  सांगितल्यावर  उगाचच  या  कुशीवरुन  त्या  कुशीवर  लोळत  बसलो.  डोकं  प्रचंड  दूखत  होतं.पुढं  जायचं तर ग़ाडी  दुसरी  कुणालाच चालवायला  येत  नव्हती..पर्याय च  नव्हता  माझ्यासमोर  दुसरा!!सगळा  त्रास  सहन  करण्याशिवाय..हाताने  विकत  घेतलेलं  दुखणं  सांगताही येईना  अन  बोलताही  येईना..अंग  थरथर  कापत  होतं,..!!!!

पुन्हा  आयुष्यात  भांग  पिणार  नाही हे ठरवत  होतो  पण  यावेळी  त्रास  सहन  करण्याशिवाय  माझ्याकडे  दूसरा  उपाय  नव्हता..!!!!बर्‍याच  वेळा नंतर  झोप  लागली  अन  उठलो ते   सायं  सहा वाजता...!उठलो  फ्रेश  झालो  पण  डोकं  दुखत  होतचं.भांग  बर्‍यापैकी  उतरली  होती.

तेथुन  निघालो अन  थेट  ओंकारेश्वरला  मुक्कामी  गेलो.पण  या  भांगेने  जो  त्रास  झाला  तो  अनूभव  खूप  भयानक  असाच  होता..!त्या  ट्रिप वेळचा  अनूभव  गाठीशी  होताच !!!!!


.दुसर्‍या  ट्रिपवेळी  राजस्थान वरुन   आग्रा  मार्गे ,उजैनला  आलो.पुन्हा  एकदा  भैरवनाथाचे  दर्शन,महांकाळेश्वर  दर्शन  घेतलं.  संपुर्ण  प्रवासात  मित्रांना ही  भांगेची  हकीकत  सांगितली  होती.त्यामुळे  भांग  कुणीही  प्यायची  नाही  असे ठरवले  होते.दर्शन   घेऊन  बाहेर  पडलो.अन  हाॅटेलला  जेवण  केलं  .भांग  कशी  तयार  होते  आम्हाला  पहायचय  असे  दोन  तीन  मित्रांनी म्हटलं.!!!!.फक्त  पाहुया  प्यायची  नाही....!

मी म्हटलं , ठिक  आहे.,!!!भांग  तयार  करणार्‍या  दुकानाजवळ गेलो भली  मोठी  गर्दी...बरेच  जण,दुधात,मलईत  टाकून  भांग  पित  होते..भगवान भोले का  प्रसाद  म्हणून  एक  जण  सगळ्यांना  आग्रह  करत  होता पण  त्याचा  त्रास  मला  माहीत  होता.मी  त्या  बाबांना  म्हटलं  ,बाबा  मागच्या  वेळी  खूप  त्रास  झाला  .तर ते म्हटले  जास्त  भांग  पिल्यामुळे  झाला  असेल  कदाचित...!

सगळ्या मित्रांचा  इच्छा  एवढ्या  दूरवर  आलोय  तर  भांग  पिऊन  पाहुया.पण  माझा  मात्र नाही  चा  पाढा!!!!

मग  शेवटी  एका  मित्राने  आठ  जणात  एक  ग्लास  घेऊ , पण प्रसाद  घ्यायचाच!!!

असं  म्हटल्यावर  सगळेच  तयार  पण  तरिही  मी  मात्र समझावून  सांगत  होतो  .माझं  कोणीही  ऐकेना  शेवटी  एक  ग्लास  मलईत  बनवायला  सांगितला.साठ 

रुपये दिले  .आणि  नको  नको  म्हणत  फक्त  एकच  घोट  घेतला  .सगळ्यांच्या  वाट्याला  ग्लासात  एकच  घोट  आला  होता,!!!!

माझं  मात्र  लक्षच  होतं  की  अर्धा  तास  झाला  तरी  काही होतय का? दोन्ही  गाड्या  इदौरकडे  निघाल्या  होत्या  .सायं.  पाच   वाजले  होते..मध्यप्रदेशच्या  निवडणुका  असल्यामुळे गाड्यांची  कडक  चेकींग  होत  होती..एके  ठिकाणी गाड्या  चेकिंगला  थांबवल्या.आम्ही सगळे खाली उतरलो.गाडी  चेक  झाली  अन  आम्हांला  जायला  सांगितलं. आमचा  मित्र  जो  दुसरी गाडी  चालवत होता  तो पुढे  निघाला,   मी  पाठीमागे.!!!.समोर एका  चौकातच  मित्राची गाडी  रस्त्य्याच्या  कडेला  लावलेली दिसली.मी  गाडी  बाजूला घेतली  काय झालय ?? म्हणून  विचारले तर  आमचा  मित्र  मोठ्याने  ओरडायला लागला.मला  कसंतरीच  होतय  म्हणून  !!एक एक  करुन बर्‍याच  जणांना  त्रास  जाणवायला  लागला.मी  सावध  होत  दोन्ही  गाड्या  एका  ढाब्यावर  पार्क  केल्या..तो पर्यंत  सर्वानाच्याच हातापायाला  मुंग्या  यायला  लागल्या  होत्या.दोन्ही  गाड्या , मधे  जागा  ठेऊन  उभ्या  केल्या  अन  मधे  पाच  वाजताच  सतरंजी  अंथरली..सगळे जण  हसायला  लागले.भांगेने आपला रंग दाखवायला  सुरुवात  केली  होती..कोण  ढाब्यात  फिरुन  येत  होतं ,कुणी  गाडीला  गोल गोल  येरझारा घालत  होतं तर  काही  जण  डोकं  दुखतय  असं म्हणत   हसत  होते.कुणाचाच  कुणाला मेळ  नव्हता.मी  आणि आमचा एक  मित्र  आम्हाला  म्हणावा  एवढा त्रास  जाणवत नव्हता,.या  सगळ्यांना  सांभाळण्याची   जबाबदारी  आमच्यावर  होती..!!!

ढाब्यावर जेवणाची  आॅर्डर  दिली  ..कुणी  हसत  होतं  कुणी  रडत  होतं.अशा  या  मनस्थितीत  जेवण   करायला  सुरुवात केली.भांगेच्या  नशेमुळे  सगळे  जण भरपुर जेवले.रात्री आठ वाजले तरी काहीच  फरक  नव्हता.कुणी गाडीत,कुणी सतरंजीवर  झोपुन आपल्याला  होणारा  त्रास  सांगत   हसत  होते , कधी  रडतही  होते..!!!!मित्रांना  होणारा त्रास  पाहून  कधी  हसु  येत  होतं  तर कधी  वाईटही  वाटत  होतं.!!!!कुणी  पळत  होतं  सगळ्यांना  ओढून  आणून  पुन्हा  जागेवर  आणेपर्यंत  खूप  त्रास  होत होता..!!!!सगळ्यांचा  हा त्रास  निम्य्या  रात्रीपर्यत  झाला  .रात्री  उशीराने  सगळे  झोपी गेले..कुणी  गाडीच्या सीटवर  ,कुणी सतरंजीवर  आहे  तिथेच  गाढ  झोपी  गेले.   थंडी  खूप होती.  !!!!त्यामुळे  एका  गाडीत  मित्रांने  हिटर चालु  केला अन  तो  झोपी  गेला..आम्हीही  ,

सगळे झोपल्यावर  डुकला  घेतला  ,पण  गाढ  झोप कशाची  .....अधांतरीच...!!!

पहाटे  चार  वाजता  सगळे उठले  अन  ढाब्यावर  फ्रेश झाले  .निघायची  तयारी केली तर , ज्या गाडीचा  हिटर  चालु होता  ती स्विफ्ट चालूच  होईना..बॅटरी डाऊन  झालेली..आता  काय  करायचं  ,एवढ्या  पहाटे  फिटर  कुठे  शोधायचा..पण  आमचा  मित्र  हुशार,  म्हटला  वायर  सापडली  तर  टोचन  देऊन  चालु  करता  येईल..पण  तिथे  ना  गाव  होतं  ना  वस्ती  आडमार्गातला  ढाबा..!ढाब्यावर  वायरचा  शोध  घेतला.पण  सापडेना . वेटरला  विचारले  तर  तोही  नाही  म्हणाला..पण  तिथेच  एक  वायर  पडल्याचं  माझ्या  नजरेतून  सुटलं नाही..

वेटरला  विचारेपर्यत  तो  पुन्हा  झोपी गेला  होता.मग  मात्र  ती पडलेली  वायर उचलली  अन  गाडीजवळ घेऊन  आलो.दोन्ही  गाड्या  शेजारी  लावल्या  प्रथम  सिंगल  वायरने  बॅटरीचा  करंट  दिला . गाडीचा स्टाटर  मारला  पण  वायर गरम होऊन  धूर  निघायला  लागला,,वायर लहान  असल्यामुळे  !!!!    मग  डबल  केली  तरीही गाडी  स्टार्ट  होईना  ..वायर  ट्रिपल  केली तरीही गरमच  होत  होती .शेवटी  वायर  चारपदरी  चांगली  जाड  केली  बॅटरी वर  वायरी दगडाने  दाबून धरल्या  .स्टार्टर  मारला  अन  गाडी  सुरु झाली अन  मित्राची  आयडिया  कामाला  आली.तिथुन निघालो  ते  थेट    पुण्याकडे...!

पण  रात्री  भांगेमुळे  जो  त्रास झाला  त्याची  कल्पनासुद्धा  नको  वाटते  एवढी  भयानक!!!!म्हणूनच  सर्वाना  हात  जोडून  विनंती  कोणी  कितीही  आग्रह केला,त्रास  होत  नाही  म्हणाला !!!!! तरी  भांगेचा  एक  घोट सुद्धा  कुणी  उजैनलाच  नव्हे तर कुठेच  घेऊ  नये,.कारण  त्याचा  त्रास  मी  दोन  वेळा अनूभवलाय.प्रचंड  मनस्ताप,त्रास  आणि  वेदना  !!

भांगेचा प्रसंग, हा प्रताप  सुद्धा  जीवनातला  खूप  मोठा  अनूभव  देऊन  गेला..!


शब्दांकन—

श्री.सतिश  नानासाहेब  कोळपे

तांबेवाडी  ता.दौंड  जि.पुणे


आनंददायी   ......सफर!!!!


सह्याद्रीतील  किल्ले  ,मावळ  आणि  कोकण  हि  विद्यार्थी  दशेत  असताना पासूनच  आवडीची  ठिकाणे..मनाला  विरंगुळा  म्हणूनही  सहज   दोन  तीन  दिवसात  कोकणात  जाणं  म्हणजे  मजेशीर  प्रवास.कधी  खंडाळा,ताम्हीणी  घाट  तर  कधी  वरंधा,पोलादपुर  ,

चिपळूनमार्गे .!!!!!कोल्हापुरला  गेलं की  आंबा  घाट,,कधी  सज्जनगडावरुन  तर कधी  राधानगरीवरुन  कोकणात  उतरायचं  मस्त  कोकणात  फिरायचं  आणि  पुन्हा  दूसर्‍या  घाटातून  वरती  यायचं!!!नेहमीचं  झालंय  सगळं!!!

   गेल्यावर्षीच  आम्ही  मित्र  कोकणात  जायला  निघालो.दोन  दिवस  निवांत  असल्यामुळे  फिरत  फिरत  जायचा  बेत  आखला,.उरुळी  कांचन वरुन  सिंदवणे  घाटातून  सकाळीच  आठ  वाजता  सासवड  मार्गे  नारायणपुरला  पोहोचलो..प्रभु  दत्तात्रयांचे  एक  मुखी  प्रसिद्ध  असे  मंदिर.नारायण  महाराजांच्या  पदस्पर्शाने  पावन  झालेल्या  भुमीत  वातावरण  अगदी  प्रसन्न  असं.शेजारी  उभा    छत्रपती  संभाजी  राजांचा  जन्मस्थान  असलेला  पुरंधर  किल्ला.धुक्यात  हरवलेला  ,हिरवागार  शालु  नेसून  आपल्या  भव्यतेची  साक्ष  देणारा  पुरंधर!!!!

नारायणपुरचा  परिसर ही  देखणा!!हिवरीगार  भाताची  शेती.त्यातुन  वाहणारंं झुळझुळ  पाणी  अन  हिरवीगार  झाडी.नयनरम्य  असा  प्रदेश!!!सकाळी सकाळी  गर्दी  फारशी  नव्हती.छान  दर्शन  झालं.मंदिर  परिसर  खुप  मोठा  आहे,राहण्यासाठी  देवस्थानच्या  वतीने  व्यवस्था ही  उत्तम  केलेली  आहे..नारायणपुर  हे  धार्मिक    तसेच  प्रेक्षणीय  असं  स्थळ!!!

नारायणपुरवरुन  चिव्हेवाडी  घाटातून  खाली  उतरायला  सुरुवात  केली..घाटातून  दिसणारा  निसर्ग  खुपच  मस्त.दाट  झाडीतुन  उतरणारा  रस्ता  मनमोहक  असाच.रस्ताही  रुंद  !!!चिव्हेवाडी  पार करुन  आलो  ते  केतकावळ्याचा  बालाजी  इथे !!!  वेंकटेश्वरा  हॅचरीज  वतीने  उभारण्यात  आलें  प्रति  बालाजीचं  देखणं  मंदिर.1997  पर्यत  माळरान  असणारा  प्रदेश.वेंकटेश्वरा  हॅचरिजने  इथे  मंदिर  उभारणी  सुरु  केली  अन  या  भागाचं रुपडच  पालटलं.अत्यंत  देखणं आणि  सुरेख  असं  मंदिर  इथे उभा  राहिलं  आणि  पर्यटकांची  आवडती  जागा  बनलं.इथुन  दिसणारा  पुरंधर  किल्ला  अन  निसर्गाची  शोभा  अतिरमणीय  अशीच!!!!

बालाजीच्या  मंदिरात  छान  लाइनने  दर्शनाची  सोय.प्रसादासाठी  दिले  जाणारे  लाडू  ही  सर्वोत्तम  !!!!

मंदिर  आणि  परिसर  स्वच्छता  ही  खूप  चांगली.पार्किगलाही  छान  व्यवस्था  आहे..इथून  दहा  वाजता निघालो .कापुरव्होळ  मार्गे  सातारा  हायवेने  खंबाटकी  घाट  पार  करुन  उजव्या  हाताला  टर्न  मारला  अन  वाई  गाठली.इकडचा  परिसर  खूप  आवडतो  मला.!! छान  शेती,झाडे  अन  निवांत  असा  प्रदेश!!!वाई त गेलो  ते  थेट  गणपतीच्या  दर्शनाला.कृष्णा  काठावर वसलेलं  रम्य  देवस्थान.मंदिरातील गणेशाची  भव्य  दिव्य  अशा  मुर्तीला  हात  जोडले .इथे गेल्यावर घाटाच्या दगडी पायर्‍यावर  फिरणे  खूप  मस्त अनूभव!!!!

वाईतुन  निघालो  अन  थेट  पाचगणी  ला..घाटातून  जाणारा  वळणांचा  रस्ता  आणि  तिथून दिसणारं  मनमोहक  दृश्य  डोळ्याचंं पारणं  फेडणारे.पाचगणीत  थेट  टेबल लँन्डला  गेलो.डोंगर माथ्यावर असणारा  भरपुर  मोठा  सपाट  भुभाग.!!!तेच  सर्वांच्या  आवडीचं ठिकाण.!!थंडगार  वाहणारी  हवा  ,खोल  खोल  दर्‍या  अन  तिथल्या  घोड सवारीचा आनंदही  भारीच!!!अनेक  चित्रपटाच्या  शुटिंग  इथे  नेहमी  होत  असतात. पाचगणीतुन  पुढे  गार्डन  बघत  महाबळेश्वर  कडे  निघालो.वाटेत  असणारा  वेण्णा  लेक  पर्यटकांचा आवडता  स्पाॅट!!!घोड सवारी आणि  बोटींगची  मस्त व्यवस्था  इथे  आहे..तळ्यात  पाणी ही  भरपुर  होतं.बोटींगचा  आम्ही  तिथे  आनंदही  घेतला.  दुपारी तेथेच  मस्त  जेवन  केलं.अन पुढे  निघालो..महाबळेश्वर  महाराष्र्टातील  थंड हवेचे ठिकाण..पाहण्यासारखे  खूप  पाॅईंट  इथे  आहेत..अनेक  वेळा पाहिले.पण  त्यात  आवडलेलं  ठिकाण  म्हणजे  जुनं  महाबळेश्वर...!!गर्द  झाडीतुन   जाणारा  रस्ता  ,अन  शेजारी  घनदाट  असं जंगल.यातून प्रवास करत  जुन्या महाबळेश्वरला  पोहोचलो.गाडी  पार्क  केली.अन मदिरात  दर्शन घेऊन  पाच  नद्याचा  उगम  पहायला  आत मधे  चालत  गेलो.कृष्णा  कोयनेच्या त्या  उगमाच्या  ठिकाणी   वातावरण  खूप  प्रसन्न असं.पाणी  वाहत होतं!!!सुंदर  अशा  त्या  ठिकाणाहुन  आम्ही  गेलो  ते  इको  पाॅईट ला!!!आवाज  काढल्यानंतर  प्रतिध्वनी  ऐकायला  खूप  ऊत्साह  येतो.समोरचा  देखणा  निसर्ग आणि  कोकण  कडा  खूपच   भव्य असा,...इको  पाॅईटवर  गाडी  लावून  तेथुनच  एक  किलोमीटर  वर असणार्‍या  आर्थरशीट  पाॅईंटकडे!!!जायला  छोटासा रस्ता  !!,, पण  तिथे  पोहोचल्यावर  निसर्गाचा  जो  चमत्कार  आणि  रुप  पहायला  मिळतं ना!!!  ते अप्रतिम  !!!!डोंगराच्या  पुढे  जाण्यासाठी  बनवलेला  स्लॅब  आणि  कठडे  तिथून  दिसणारं  नयनरम्य  दृश्य  अवर्णनीय  असंच!!!खोल  दरीतुन  वरती  उसळ्या  घेणारा  कोकणातून  येणारा  गार  वारा  मनाला  ऊर्जा  देऊन  जातो..!!

पुन्हा  माघारी  चालत  येऊन  प्रतापगडाच्या दिशेने  निघालो.महाबळेश्वर वरुन  पोलादपुर  घाटातून  उजवीकडे  टर्न  मारुन  प्रतापगड  जवळ केला.वरती  जायचा  रस्ता  अरुंद  आहे.पायथ्याला  गाडी  पार्क करुन  वरती  गडावर  चालतच  गेलो.वरती  जातानाच  दमलो  होतो.गडावर फिरुन छत्रपती  शिवाजी  महाराजांच्या  पुतळ्याजवळ जाऊन  महाराजांना  मुजरा  केला.छत्रपती  शिवाजी  महाराज  कि जय!!जय भवानी  जय शिवाजी  च्या  घोषणाही  दिल्या.गडावरच्या  समोरच्या  बाजूला  असलेल्या  माचीवर  जाऊन फडकणार्‍या  भगव्याची   शानही पाहिली.डौलाने फडकणारा  भगवा  मनात  जोश  उत्पन्न  करतो.अफजलखान  वधाची  गोष्ट  इथले गाईड  खूप  मस्त  सांगतात...सुर्यास्त  गडावरुन  च  पाहिला.अन मुक्कामासाठी  पोलादपुर  घाटाने  खाली  उतरलो.रात्री  नऊ  वाजता  चिपळूनला  पोहोचलो.हाॅटेलमधे  रुम घेतली अन  रात्रीच्या जेवणासाठी  बाहेर पडलो.चिपळूनला  गेल्यानंतर  चिपळून   मेन चौकाच्या  जवळच  रत्नागिरी  रोडला  मस्त  हाॅटेल  आहे.हाॅटेलात  सगळ्या  विमांनांच्या  प्रतिकृती  लटकवलेल्या.फारच  मस्त  हाॅटेल  आणि  त्यात  मिळणारे  सर्व प्रकारचे  मासेअतिशय  उत्कृष्ट  असे,..विमानाचं  हाॅटेल म्हटलं की , कुणीही  सांगतं  कुठे  आहे !!!,, .खूप फेमस!!!मस्त  माशांचा  आस्वाद  घेतला  आणि  रुमवर येऊन  आराम केला..

 सकाळी  लवकर उठलो.फ्रेश झालो  .अन  तिथुन  जवळच  असलेल्या  डेरवण  गड  ला गेलो..किल्य्याची  प्रतिकृती,मावळे,देखावे  उत्तम!!!परिसर ही  खूप छान !!!निसर्गाच्या कुशीत लपलेलं  सुंदर  शिल्प!!!डेरवण  गड  पाहण्यासाठी  खूप  सुंदर.शालेय  सहलीसाठी उत्तम  असा  पर्याय..!डेरवण  पाहुन रत्नागिरी  हायवेने  निघालो.गणपतीपुळे  फाट्यावरुन  टर्न  मारला  अन  निसर्गरम्य  अशा  समुद्रकिनारी  पोहोचलो.सुंदर समुद्र  किनारा,नारळाच्या  बागा,गणेशाचं अप्रतिम  मंदिर  !!!निसर्गाने  भरभरुन  दिलय ते  या  गणपतीपुळेला!!!

गणेशाचं दर्शन घेऊन  समुद्रात  मनसोक्त  पोहण्याचा आनंद  घेतला..लांबच  लांब असलेला  समुद्र  किनारा,रेती  खूपच  छान!!!!गणपतीपुळे चा  निसर्ग   मनाला  खूप  भावतो..पर्यटकांच्या  आवडीचं  ठिकाण.डाॅल्फीन  राईड,स्पीड  बोट  याचाही  आनंद  घेतला  .सायं.  समुद्रावरचा  सुर्यास्त  अप्रतिम  असाच..! सुर्यास्त  पाहुन  मुक्कामी  निघालो.गोवा  हायवे  ला  येऊन  आंबा  घाटातुन  कोल्हापुरला  येताना  नरेंद्र महाराजांचा  खूप  मोठा  नाणीज  मठ  आहे.राहण्याची  उत्तम  व्यवस्था  होते.नाणीज ला  या  अगोदरही  खूप  वेळा  राहण्याचा  योग  आला  होता..तिथलं  खुप मोठं मंदिर    आकर्षणाचा केंद्रबिंदु!!!काजुची  खूप  झाडं  इथं पहायला  मिळतात..मठ  खूप  मोठ्या  विस्तीर्ण  जागेवर  उभारला आहे.निसर्गाच्या  सानिध्यात  असलेला  हा  परिसर  पाहण्यासारखा,!!!!मुक्कामी  आलो.रुम  वर  मस्तपैकी  आराम  केला.सकाळी  फ्रेश  होउन  मंदिरात  आरती  झाल्यानंतर   आंबा  घाटातून  पन्हाळगडाकडे  निघालो.घाट बराच  मोठा  आहे.पन्हाळा  किल्ला  सुरु  होताच  समोर बाजीप्रभुची  भव्य मुर्ती  लक्ष वेधून  घेते.त्यांच्या  पराक्रमाची  साक्ष देणारा  हा  भव्य  पुतळा  उभारला  आहे.पन्हाळगडावर  बरिच  हाॅटेल  बांधकाम  झालेली आहेत.  तटबंदी,कोकण दरवाजा,धान्याची  कोठारं  अशी  किल्य्यावरची  प्रेक्षणीय स्थळ  पाहुन  ज्योतीबा  ला  गेलो.ज्योतीबाचं  मंदिरही  उंचावर.पार्किगला  गाडी लावून  खाली  पायर्‍यांनी  उतरत  जावं  लागतं!! दोन्ही  बाजुला  दुकानांची  रेलचेल पहायला  मिळते.ज्योतीबाच्या   पुरातन मंदिरात  दर्शन  घेऊन दख्खनच्या या   राजाचं  रुप बराच  वेळ न्याहाळत  थांबलो.प्रदक्षिणा  मारली.गुलाल  खोबरे  उधळलं व  पुन्हा  पायर्‍या चढत  वरती  आलो.

तिथुन थेट   शाहु  पॅलेस  .तिथे सुंदर संग्रहालय पाहिलं. राजवाडा  ,रंकाळा तलाव इथेही  फेरफटका  मारला.महालक्ष्मी  दर्शनाने   तृप्त  होऊन   परतीचा  प्रवास सुरु केला.कोल्हापुरच्या  बाहेर  आल्यानंतर मस्त  हाॅटेलला  तांबडा  पांढरा रस्सा  !!!मनसोक्त  भोजन करुन  रात्री  बारा  साडे  बाराला  घरी  पोहचलो.येताना  कराड,सातारा,वाठार स्टेशन,लोणंद,नीरा,मोरगाव,चौफुला  मार्गे  परतीचा  प्रवास केला.

स्वताची  गाडी  असल्यामुळे  वाटेत  मनाला  वाटेल तिथे  थांबून  निसर्गाची  उधळण  पाहता  येते. अशी  तीन दिवसाची  ट्रिप  खूप  मस्त  झाली.


शब्दांकन  —

श्री.सतिश  नानासाहेब  कोळपे

तांबेवाडी  ता.दौंड  जि.पुणे

गिरनार   पर्वत...!!!


गुजरात फिरायला  खूप  छान. रस्तेही  मस्तच!!!गुजरात मधलं  सापुतारा   उंचीवरचं ठिकाण.  यापेक्षा  उंच , गुजरात  मधे   काही  नसेल  असं  मी  समझायचो..हा माझा  समज  चुकिचा  ठरवला  तो  गिरनार ने.!!!

सौराष्ट्र मधील जुनागढ इथे वसलेले श्रीक्षेत्र गिरनार इथे प्रत्यक्ष जाऊन दर्शनाचा योग येणं म्हणजे खरोखरच त्याला नशीबवान म्हणावं लागेल. आणि असाच योग आम्हाला देखील आला. गुजरात मधील द्वारका, सोमनाथ इथल्या विलक्षण भेटीनंतर आम्ही जुनागढ ला पोहचलो. खूप लांबूनच हा गिरनारचा पर्वत दिसत होता. आणि नुसता डोळ्यांनी बघूनच तो पर्वत सर करण्याची ओढ आम्हा प्रत्येकाच्या डोळ्यात दिसत होती. थोडीशी मनात असलेली भीती, आणि वरच्या टोकापर्यंत पोहचण्याची लागलेली ओढ ह्यांची सांगड घालताना खरोखरच मनात छोटंसं वादळ येऊन जात होत. कारण गिरनार पर्वत हा खरोखरच शारीरिकरित्या आणि मानसिकरित्या परीक्षा घेणारा होता. सुमारे दहा हजार  पायऱ्या चढून तीन   हजार  सहाशे  सहासष्ठ फुटावर असलेल्या ह्या स्थानावर आपल्याला जायचेच आहे ही मानसिक तयारी आमची झाली होती. आता परीक्षा होती ती मात्र शारीरिकरित्या तयार असण्याची. लोकांकडून वेगवेगळ्या गोष्टी ऐकायला मिळाल्या होत्या "वरती वारा खूप असतो , कपडे शक्यतो आरामदायक घाला... तिथे भाड्याने काठी मिळते ती देखील घ्या पायात गोळे सुद्धा येतात वगैरे वगैरे" हे ऐकुन आमच्या पोटात मात्र नक्कीच गोळा आला होता. पण लक्ष्य मात्र एकच.." ते टोकावरच मंदिर". पाण्याची झेपेल आणि पुरेल एवढीच बाटली.. घेऊन जास्त ओझ न घेता जायचं ठरलं. रात्री अकरा  वाजता   आम्ही सगळे मित्र निघालो. सगळे जण एकत्र चालत चालत पायथ्या पाशी आलो, पहिल्या पायरीला नमस्कार केला आणि एका अविस्मरणीय यात्रेच्या दिशेने पाऊले टाकायला सुरुवात केली.

समोर पायऱ्या दिसत होत्या आणि वर वर जाणारे बाजूने असणारे दिवे. 4..5 पायऱ्या चढल्या की 4 पाऊले सरळ अशा पद्धतीने सुरूवातीची रचना होती. गप्पा मारत मारत पुढे जात होतो. प्रत्येकाच्या शारीरिक सुदृढतेनुसार त्यांचा त्यांचा चालायचा वेग कमी जास्त होत होता... थोड्याच पायऱ्या वर आल्यावर घामाने आपल यायचं काम केलं होत. उजव्या हाताला कठडा, त्यामागे झाडं आणि डाव्या हाताला मोठे मोठे दगड होते..त्यावर यात्री विश्रांतीला बसत काही ठिकाणी तर दिवसभर यात्रा करून तिथेच वस्तीला असलेले देखील दिसून येत होते, प्रत्येक वयाचे पण जास्त करून चाळीशी ओलांडलेले सुद्धा दिसत होते त्यांच्याकडे बघून खरोखर आश्चर्य वाटायचं. हळू हळू आम्ही  पुढे जायला लागलो. तसा घाम आता कमी होत चालला होता. ठराविक पायऱ्यांवर लिहिलेलं होत १०००,१५००,२०००...  पायऱ्या चढत गेल्यावर तो समोर येणारा आकडा अजून ताकद देत गेला. दत्तात्रयांची गाणी म्हणत,ऐकत आम्ही  पुढे चालत होतो. वर मान करून बघावं तरी फक्त छोटे छोटे होत जाणारे दिवेच दिसत होते त्यावरून आम्हाला अजून किती आहे ह्याचा अंदाज येत गेला. मध्यरात्रीची यात्रा होती त्यामुळे वाटेत तसं कोणी नव्हत. एक वयस्कर आजोबा आम्हाला वरून खाली येताना भेटले आणि चक्क त्यांनी त्यांच्या हातातली काठी आमच्या ग्रुप मधे एकाला दिली .खर तर आम्ही नाकारत होतो पण त्यांच्या बोलण्यात एक अनोखाच अंदाज होता आम्ही त्यांना थँक्यू म्हणून पुढे निघालो. थोडावेळ वर आलं की 5 मिनटं बसायचं हे आमचं ठरलेलं. आता आम्ही बऱ्यापैकी उंचावर आलो होतो. सहजच मागे बघितल जुनागढ शहर झगमगत होत आणि त्याच झगमगीत ओम चा आकार दिसत होता,,!!,, खूपच सुंदर दृश्य होत ते.!!!!! आम्ही समजून गेलो हे चांगले संकेत आहेत !!!!!काहीही होऊ  दे!!! आपण पुढे जात राहायचे. हळूच गार वारा देखील आता आम्हाला स्फूर्ती देऊन जात होता. वेळ जात होता, पायऱ्या येत होत्या, आम्ही चढत होतो. आमच्या ग्रुप च्या तेव्हा एक गोष्ट नक्कीच लक्षात आली शारीरिक शक्ती पेक्षा मनाची शक्ती नेहमीच बाजी मारते, उदाहरण आमच्या समोर होत.वयस्कर व्यक्ती  पुढे जात  होत्या..

आम्ही हळू हळू ३०००-४००० एक एक टप्पा ओलांडून वर येत होतो. आता सरळ येणाऱ्या पायऱ्या कमी आणि उंच आणि उभ्या यायला सुरुवात झाली होती. एकमेकांना धीर देत , चलो कम ऑन म्हणत म्हणत  अर्धा टप्पा पार केला. तिथेच श्री क्षेत्र नेमिनाथ जैन धर्मियांचे पवित्र स्थान  आहे. साधारण एक वाजून गेला होता. आजूबाजूला कोणीही दिसत नव्हत फक्त आम्हीच. होता तो फक्त गार वारा आणि भन्नाट शांतता. इथपासून खाली वाकून बघितलं तर खालचे वळवळत जाणारे दिवे दिसत होते. आणि आत्ता मात्र वाट पूर्ण बदलून जाणार होती कारण एक डोंगर आम्ही पूर्ण चढून आलो होतो आणि हाच डोंगर पुढच्या बाजूने अर्धा उतरून दुसरा डोंगर पूर्ण चढायचा होता. दुसऱ्या टप्प्याची वाट ही खरोखर आमची वाट लावणारी होती. आम्ही दुसऱ्या टप्प्याला सुरुवात केली होती.. थोड्या खाली उतरणाऱ्या पायऱ्या , वर जाणाऱ्या पायऱ्या, डाव्या उजव्या बाजूने खाली वर जाणाऱ्या पायऱ्या होत्या. पण खरी परीक्षा आता होती. थंडी जाणवू लागली होती त्या सोबतच  वाऱ्याचा वेग वाढला होता. आणि त्या काळोखाच्या रात्रीत ऐन कठीण वाटेवर एक दिवा देखील नव्हता. पूर्ण काळाकुट्ट अंधार होता. थोडावेळ आम्ही बिथरलो होतो, पण जायचच ठरवलेलं.!!!  खिशात  ठेवलेली  छोटी बॅटरी आता कामी आली. एकमेकांचे हात धरत हळू हळू पायऱ्या चढत उतरत आम्ही पुढे होत होतो. वाऱ्याचा वेग खूपच वाढला होता .धुक देखील आता वाढलं होतं!!! खरच आता आम्ही कुडकुडत चालत होतो. सगळ्यात आठवणीत राहणारी म्हणजे ती रेलींग नसलेली कडा. काळा कुट्ट अंधार, जोरदार धुक्याचा वारा आणि एवढ्या उंचीवर एका बाजूला नसलेली कडा. आधारा शिवाय एकटा माणूस उभा राहू शकत नव्हता त्यावेळी. घाबरत घाबरत  कडेकडेने तो कठीण मार्ग मार्गी लावला. चंद्र देखील एकदम तेजस्वी आणि मोठ्ठा दिसत होता. अजूनही दुसरी कडा चढायची बाकी होती. आता गाणी गप्पा काहीच सुचत नव्हतं कोणाला. फक्त "किती पायऱ्या झाल्या असतील रे ?" "कधी येईल रे मंदिर ?" "वर चढायचं आहे ना अजून?" हेच शब्द कुडकुडत ओठातून निघत होते.   अडीच वाजून गेले होते .पायऱ्या मात्र संपत नव्हत्या. थोड्यावेळाने समोर एकच उंच च्या उंच वर जाणाऱ्या सलग पायऱ्या दिसल्या ह्यादेखील आम्हाला सर करायच्या होत्या. आमचा वेग आता कमी झाला होता.  आम्ही त्या सलग पायऱ्या चढायला लागलो 2..3 वळणं घेतल्यानंतर वरती पत्र्या सारखं काही दिसू लागलं..जेमतेम 3..4 दिवेच तिथे लागलेले.

"ते मंदिर आहे का ?" असे उच्चार ऐकू येताच एक खूपच समाधानकारक हसू चेहऱ्यावर आलं होत. जरी ते वरती दिसत असलं तरी तिथपर्यंत जायला अजून तीन एकशे पायऱ्या सर करायला लागणार होत्या पण आता आम्हाला फरक पडत नव्हता कारण आमचं लक्ष्य आम्हाला प्रत्यक्ष डोळ्यासमोर दिसत होत. शेवटच्या टप्प्यात आम्हाला ती शक्ती कुठून आली हे आम्हालाही कळले नाही. काहीच वेळात आम्ही मंदिराच्या जवळ पोहोचलो. खूपच उंचावर असलेलं एकच डोंगराच्या कडेवर असणारं ते छोटंसं मंदिर.  दहा  हजार पायऱ्या सर करून त्या मंदिराच्या बंद असलेल्या दाराजवळ पाठ टेकली आणि बंद गेट मधूनच आता मधे डोकावून पाहिलं. श्रीदत्त महाराजांची तेजस्वी मूर्ती पाहून सगळा थकवा तात्पुरता विसरूनच गेलो होतो आम्ही. !!!!!!!घड्याळाची आठवण आली तेव्हा चार वाजले होते. मंदिर साडेपाच   ला उघडणार होत. दिड तास तिथेच थांबावं लागणार होत. खूप सोसाट्याच्या गार धुक असलेला वारा, लागत असलेली भूक आणि थंडी सहन करत त्याच पायरीवर बसून राहायचं आम्ही निर्णय घेतला.   आम्हाला ज्याची आस होती त्यासाठी आम्ही तिथेच कुडकुडत राहायला तयार होतो.  पहाटेची वेळ आणि खूपच प्रसन्न वातावरण आयुष्यातल्या अनमोल क्षणांपैकी एक होता!!!!!

वेळ जाऊ लागला तसे यात्री येऊ लागले. ५.३० पर्यंत आमच्या मागे एक एक करत लांबच लांब दर्शनाची रांग तयार झाली.   तेवढ्यात  मंदिर उघडायला पुजारी आले आणि सगळ्यात आश्चर्याची गोष्ट म्हणजे एवढ्या उंचावर एवढ्या थंडीत पायऱ्या चढून त्यांच्यासोबत कुत्रा देखील आला होता. काय महिमा असावा त्याचा ! मंदिर उघडताच तो कुत्रा आता मधे गाभाऱ्यात जाऊन बसला. बहुदा दिवसभर वास्तव्य तिथेच करायच्या उद्देशाने तो आला असावा.

  आम्ही दर्शन घेतलं आणि परतीच्या प्रवासाला निघालो "       एवढं उंच आलो आहोत, त्याच पायऱ्या आता परत खाली उतरायच्या , कठीण होतं पण अशक्य नाही. थंडी अजूनही कमी होत नव्हती पण आमचा आनंद गगनात मावत नव्हता.

ज्यासाठी अट्टाहास केला होता ते आम्हाला मिळालं होतं. पण शारीरिक थकवा उतरताना जास्त जाणवत होता. येताना मात्र आम्ही तिघेच एकत्र होतो. आमच्या सोबतचे आलेले पुढे गेले होते. पण जेव्हा आम्ही परतीला निघालो तेव्हा बरेच जण वर येताना दिसत होते. काही जण डोली मधे बसून दर्शनाला येतं होते. ती डोली उचलून भक्तांना खांद्यावर घेऊन दहा  हजार  पायऱ्या चढून येणाऱ्या त्या कष्टकरु माणसांना मी मानलं होतं. एकच पर्वत पण हजारो भक्त आणि त्यांची होणारी परीक्षा विलक्षण आहे. परत येताना मात्र पाय थरथर करत होते. पण तेव्हा माझ्या मित्राला खरी मदत झाली त्याच  काठीची.!जी  एका  भाविकानी  दिली  होती .आणि तीच काठी आम्ही देखील दुसऱ्या कोणालातरी द्यायची ठरवली जेणेकरून त्यांना  देखील अशीच मदत व्हावी. लगेच पुढचा प्रश्न "अजून किती आहे ?". खालपर्यंत दिसत असणाऱ्या पायऱ्या खरोखरच आता संपाव्यात असं वाटतं होत. जास्त वेळ विश्रांती न घेता आम्ही येतं होतो. कधी खाली पोहचू असं वाटतं होतं.  थांबलो की संपलो अस म्हणत कमीत कमी वेळेत अंतर कापत आम्ही पाऊले टाकत होतो. जवळ येताच आम्ही ती काठी एका आजींना दिली. पाऊले टाकत वेळेशी आणि पायऱ्यांशी संघर्ष करत एकदाचे आम्ही पुन्हा एकदा पायथ्याशी आलो. खरंतर खूपच दमलो होतो, पायात गोळे आले होते पण मागे वळून त्या उंच पर्वताकडे बघितलं आणि मनातून स्वतःला खूप नशीबवान समजत होतो. पुढच्याच दहा मिनिटात हॉटेल वर पोहोचलो सकाळचे नऊ वाजले होते.  रूमच्या पायऱ्या देखील आता मोठ्या वाटत होत्या. सगळं आवरून नाश्ता चहा झाला.  एका जागेवरून बसून उठल्यावर पायात कळ यायची पण त्यात सुद्धा एक आनंद होता.!

पूर्ण रात्रीत केलेला तो प्रवास डोळ्यासमोर येत होता.  शेवटी रुमच्या खिडकीत बसलो आणि त्या पर्वताकडे एक कटाक्ष टाकला. अजूनही असच वाटत होत की तो प्रवास संपला नाहीये!!!!

गिरनारची  ही  सफर  खूपच  मस्त  .आपल्या  शारीरिक  क्षमतेनुसारच  ही  चढाई  करावी  हे  तितकच  महत्वाचं!अत्यंत  कठिण  असा  मार्ग  पण  सर्वाच्या  सोबतीने  गिरनार दर्शन  छान  झालं  !!!!



शब्दांकन —श्री.सतिश नानासाहेब  कोळपे

तांबेवाडी  ता.दौंड  जि.पुणे

पुष्कर  ....एक  वेगळा अनूभव!!!!


भारतातील  राजस्थानमधे   ब्रम्हदेवाचं  मंदिर  असलेलं  एकमेव  स्थान  पुष्कर!!!!!अरवली पर्वताच्या कुशीत ,निसर्गाच्या  सानिध्यात  वसलेलं  पुष्कर  धार्मिक  दृष्टिने  अतिशय  महत्वाचे!!!

राजस्थानच्या पहिल्या  ट्रिपच्या  वेळी  पुष्कर  या  ठिकाणी   लाॅजवर मुक्काम केला होता..सकाळीच  पुष्कर  तलावावर  स्नान करुन चार मुखी  ब्रम्हदेवाचे  मंदिर  पाहुन दर्शनही  घेतलं.परिसरही खुप मस्त.समोर  पुष्कर तलाव  ही  छान!! शेजारी  समोर  डोंगरावरही  ट्रेक  करत  जाऊन सुंदर पण  छोटीशी  मंदिरं  पहायला  सुंदर आहेत.तिथून  निसर्गाचा  आस्वाद  अधिक  चांगला  घेता येतो.  पुष्करचं  मार्केट पण खूप मोठं !!!उंटाचा  सर्वात  मोठा बाजार  आणि  पुष्कर  मेला  खूप  प्रसिद्ध!!!

अनेक  परदेशी पर्यटकही  आवर्जून  इथे  फिरायला  येतात..पुष्कर  खरोखरंच  सुंदर !!!!

       याच राजस्थानला  आम्ही  आठ  जण  मित्र  फोर व्हिलरने  फिरायला गेलो  होतो,तेव्हा नागौर वरुन  एका  राजस्थानी  मित्राकडे  पाहुणचार  अन  जेवणाचा बेत  करुन  रात्री नऊ वाजता  निघालो.मेडता  सिटी  वरुन  थेट  पुष्कर  गाठलं..!!

फोर  व्हिलर  असल्यामुळे  बाहेर  कुठंतरी  मंदिरात  मुक्काम  करायचा असंच  ठरवलं होतं.कारण  राजस्थान  ट्रिपचे  जवळ जवळ सगळेच  मुक्काम  ढाब्यावर  आणि  मंदिरात  केले होते.

पुष्करला  पोहोच  झाल्यानंतर शोधा  शोध  करुनही   निवांत  मंदिर  सापडेना  ...!! मंदिर  शोधत , शोधत  पुष्करच्या पुढे   तीन  चार  कि.मी.  वर  नवीन  बनवलेल्या अजमेरकडे जाणार्‍या  रस्त्याला  एक  छान  मंदिर  होतं.तिथे  दुकानंही चालु होती.मस्त  फरश्या  टाकलेली  जागा  होती.शेजारीच  बांधलेली  मोठी  बारव  ...!

पाण्यापर्यंत   जाण्यासाठी  संपुर्ण  चारही  बाजुंनी  छान  घाट  बांधलेले..उंचउंच  झाडे  आणि  परिसरही  अगदी  निवांत ..!

दुकानदाराशी  बोलून  गाडीतल्या  सतरंज्या  अन  रगी  काढल्या  अन  फरशी वर  अंथरुण  टाकून मस्तपैकी  गप्पा  मारत  बसलो..दिवस भरात  प्रवास  जास्त  झाला  होता.त्यामुळे  एक एक  करुन  सगळे  झोपी  गेले.

अगदी  गाढ..अन निवांत..!

  पण  अचानक  रात्री  बारा  साडे  बाराला  प्रचंड  किंचाळण्याचा  आवाज  झाला  अन  दचकुन  सगळेच  उठलो.इकडे  तिकडे  पाहिलं  तर  कुठंच  काही  दिसेना..!पुन्हा  सगळे  कुशीवर  झाले.तेवढ्यात  तो  दुकानदार  उठवायला  आला  म्हटला , आपका  नंबर  आ  गया  है  !!

मला  समजेना ? कशाचा  नंबर  ???..!!

दोनदा  झोप  मोड  झाल्यामुळे  झोप  येईना  ..म्हणून  उठून  बसलो..त्या  ठिकाणावर  हळु हळू  माणसांची  ये  जा  वाढली..किंचाळण्याचे  आवाजही  वाढले..पुजार्‍यांची धावपळ  सुरु  झाली..मग  मात्र  मला काही समझेना  काय  झालय ?  उठलो  अन  थेट  बारवे जवळ गेलो.चांगली  विस पंचवीस  माणसे तिथे होती.चार पाच  जणांना  बळेच  कपड्यासहीत  त्या  बारवेच्या  थंडगार  अन  हिरव्यागार  घाण  पाण्यात  बुचकाळत  होते..!!!ते  चार पाच  जण  मोठ्याने  ओरडत  होते  पण  इतरांवर कोणताही  परिणाम  नव्हता.!!

मी  अर्धा  तास  तिथेच  बसलो  होतो.गर्दी  खूप  त्यामुळे बारवेवर  किंकाळ्यांचा  आवाज  सारखाच  घुमत  होता..हळू हळू  काही  गोष्टी  माझ्या  लक्षात  यायला  लागल्या.जीप,बस,रिक्षा  करुन  लोक  इथे  येत  होते..प्रथम  पुजार्‍या कडे  जाऊन आणलेल्या  व्यक्तीला  पुढे बसवून  काय झालंय  हे सांगितलं  जात होतं.पुजारी  ऐकून  घेऊन  काही बाही  सांगत  होता.अन  व्यक्तीला  दगडी  मुर्तीसमोर  बसवून  मंत्र  म्हणत  होता..अशी  चार पाच  ठिकाणी  पुजा  होत होत  होती.दक्षिणा  प्रत्येक  ठिकाणी  द्यावी  लागत  होती. पुजा  झाल्यावर  बारवे च्या पाण्यात  बुचकाळले  जात  होते..अक्षरशा  नंबर  लागले होते  पुजार्‍याकडे  तेही अर्ध्या  रात्री..!!!,,.!

माझ्या  या  गोष्टी  लक्षात  यायला  फार  वेळ लागला  नाही . पण  मी  सगळ्यांचा  अंदाज  घेत  होतो.शेवटी  सगळ्या  मित्रांना  उठवलं  आणि  इथे  काय  घडतय  तो  सर्व  प्रकार  सांगितला  .सगळे  प्रथम  दचकले  की  आपण  चुकीच्या  ठिकाणी  झोपलोय..!

नंतर  मात्र  सगळ्यांनी  त्या  घडणार्‍या  गोष्टी  पहायला  सुरुवात  केली..कुणी  बारवेवर  ,कुणी  पुजार्‍यांजवळ  जाऊन  पहायला  सुरुवात  केली.दोन  तीन  जण  तर  एवढे  कलाकार  होते आमच्या  ग्रुपमधे  ते म्हणले  ,आपणच  भुताच्या  गावाला  (कुलधाराला ) जाऊन  आलोय  त्यामुळेच  बरोबर आणलेली  भुतं  काढायलाच  आपल्याला  इथं  मुक्काम  करावा  लागला  आहे..!!!!

आणि  काही फारसं मनावर  न घेता  दमल्यामुळे पुन्हा  झोपी  गेले..!

मी  मात्र  रात्रभर  जागाच  .!!नेमकं  काय  महत्व  या  जागेचं ? ही जाणून  घेण्याची  उत्सुकता  होती..!!त्यामुळे  वारंवार  इकडून , तिकडे  जाऊन  लोक  काय  म्हणतात.पुजारी  काय  बोलतात  या  सर्व  गोष्टी  ऐकत  होतो..आलेल्या  लोकांशी  मी  तिथलाच आहे असे भासवून  गप्पा  मारुन  माहीती  मिळवत  होतो..थंडी  वाढली ....म्हणून  तेथील  सफाई  कामगाराने  मस्त  लाकडे  टाकून शेजारीच  शेक  (जाळ)  केला  होता.!!,

कधी  तिथे  जाऊन शेकत  होतो.त्या  सफाई  कामगारा बरोबर  प्रथम  त्याच्या  घरच्यांविषयी  आपुलकीने  चौकशी  केली......त्याला  इथे  कायम  नाईट  ड्युटी  असते.हे सगळे प्रकार  तो  दररोज  पाहतो.त्यामुळे  त्याच्याशीच  जवळीक  साधली अन त्यालाच  बोलते  केलं...!

पुष्करचं  हे  ठिकाण  अनेक  वर्षांपासून  भुत  घालवण्यासाठी   ची   जागा  म्हणून  ओळखलं  जातं   .मध्यप्रदेश  ,राजस्थान,उत्तरप्रदेश,गुजरात  आणि  अजून  बाहेरच्या  राज्यांमधूनही  लोकं  इथं  येतात.ज्यांना  भुतांना  झपाटलेलं  आहे  अशा  व्यक्तींना  रात्री  बारा  नंतर  पुष्करच्या  बारवांच्या या  पाण्यात  स्नान  घातलं की  भुतं  पळून जातात  ही  श्रद्धा  असल्यामुळे  इथं  दररोज  खूप  गर्दी  होते..पुजार्‍यांचा  तर  धंदाच  ..!!!!

प्रत्येकाकडून  मनाला  वाटेल  तेवढा  आकडा  सांगून  पुजा  करतात  अन  प्रत्येक  छोट्या  छोट्या  मुर्त्यासमोर  नेऊन  मस्तक  टेकवून पैसे उकळले  जातात..!काही  बारवांवर  भुतांना  फटकेही  दिले  जातात...!!

रात्रीत  जवळजवळ  शे दिडशे लोकांना  या  बारवेवर  अंघोळ  घातली  जाते..इथंच  नव्हे तर  अशा  पुष्करमधे  अशा अनेक  बारवा   आहेत ... एका  रात्रीत  सगळीकडे  स्नान  करावे लागते  म्हणून  आलेल्या  लोकांची  आपला  नंबर  लागावा  म्हणून  धावपळही  असते  त्यामुळे  जास्त  पैसे देऊन  नंबर ही ठरवला  जातो..दूकानदाराने  आम्हांला  का  उठवले  ते  आत्ता  कळालं  होतं  मला  !!!!!

.त्यांचंही कमिशन  ठरलेलं  असतं.

अशी  ही  सगळी  हकीकत  ऐकल्यानंतर  जरा  चौकसपणे  मी  हे  सर्व  पाहू  लागलो..

इथे येणारे लोक  वारंवार  पुन्हा  येत  नाहीत  दररोज  नवीन  गिर्‍हाईक  असतं .!! इथल्या  पुजार्‍यांचा  त्यामुळे मिळेल तसे पैसे मिळवण्याचा  धंदाच..!

एकच  मंत्र वारंवार  म्हणणं आणि  भूत  जरा  भयानकच  आहे  असा  प्रत्येकाला  भीतीचा  संदेश  द्यायला  ही  हे  लोक  विसरत  नाहीत..!!!!

केस  मोकळे  सोडलेले,वेड्यासारखे  करणारे,दाव्याने  बांधून  आणलेले  ,आरडणारे,,

ओरडणारे  सगळ्या  प्रकारची  भुतंच  तिथं  आणली  जात  होती,,.अनेक प्रकारचे  उपचार करुन  शेवटी  इथं आल्याचं ही अनेकांकडून  कळालं.

आजच्या  जमान्यात  अशी  अंधश्रद्धा  आणि  भावनेचा  असा  बाजार  पुष्करला  मोठ्या  प्रमाणात  चालतो.

त्या व्यक्तीला  सायक्याट्रिस्ट कडे  न्यायचं सोडून  केवळ  ऐकीव  माहितीवर  दूरवरुन  लोकं  अशा  भुतं  लागलेल्या माणसांना इथं  घेऊन आलेली  होती.बरीच  लोकं  बरी  झाल्याचही  सांगण्यात   येत  होतं.पण  सगळं  सांगीवांगीच!!!!!!!

बर्‍याच  गाड्या  MP , UP,  RJ  ,GJ   पासिंगच्या  होत्या  .गाड्यांच्या  ड्रायव्हर  शी ही  बोललो  तर  महिन्यातून एक  दोन  वेळा तरी   त्यांच  येणं  होत  असतं. ड्रायव्हरला  सगळ्या  बारवा  माहित  असल्यामुळे  विचारावं  लागत  नाही...व  ड्रायव्हर लोकांना  भाडंही  मिळतं.

मी  बराच  वेळ  उभं  राहून पाहत  असल्याचं  पुजार्‍याच्या  लक्षात  आलं  आणि  त्याने  तिथून जायला  सांगितलं ..!! पण  मी  ठाम  होतो !!!.मै  यही  का  हुँ  ,

म्हणत  रेटून  नेलं  आणि  थांबलो,.यावर  पुजारी  शांत  झाला.रात्री  तीन  नंतर   गर्दी  कमी  झाली  आणि  सगळे पुजारी  शेकाजवळ येऊन  गिर्‍हाईकाची  वाट  पाहू  लागले  .त्यावेळी  मात्र  मी  आवर्जुन  त्या  पुजार्‍यांना  म्हणालो  ,सच  मे  भुत  भगाते  हो  क्या  ?  सच  मे सब लोग  ठिक  होते  है क्या ?

त्यावेळी  मात्र  बराच  वेळा पासून  मी त्यांच्यातच  असल्यामुळे  जरासा  साॅफ्ट  काॅर्नर  देत  लोगों के  पापो  की  सजा  है  ये !!  इसमें  हम  क्या  करेंगे  जो  हमें आता  है  उसी  तरह  से  पुजापाठ  करते  है  बाकी  सब  भगवान  के  हाथ  मे  है!!!!

असं  म्हणत  त्याने  झबाबदारी  झटकली..याबाबत  मी  अनेक  प्रश्न  फिरवून  फिरवुन  विचारले पण  पुजारी  शेवटी  देवाकडे  बोट  दाखवायचा..आणि पेट के  लिए  करना  पडता  है  !!!असंही  म्हणायचा.

या  सगळ्या  गोष्टींचा  खरंच  खूप  राग  आला  होता  पण  काय  करणार  ?

 मलाही  तिथे   जास्त  दिवस थांबायचं नव्हतं.

न  पटणार्‍या  गोष्टी  समोर घडत होत्या अन  मी मात्र  काहीच  करु शकत  नव्हतो. पहाटेच  सगळ्यां  मित्रांना उठवलं  .सगळे मस्त  फ्रेश  झाले  .सगळ्या  गोष्टींची  अन  रात्री घडलेले  सगळे  प्रसंग  याची  आठवण  करुन  निघालो.बरीच  चर्चा  सुद्धा  झाली  आमच्यात!!! त्यावेळी  पुजारी  आमच्याकडे पाहून  गालातल्या  गालात  हसत  होता.त्याचे  हसू  बळंच  हसण्याचा  आव आणण्याचे  होतं  ते  मला  लगेच जाणवलं.!!!!

असा  हा  पुष्करचा  नवीनच  अनूभव  यावेळी  आला.  पण  तो  मनाला खूपच  त्रासदायक  होता...!

रात्रीचा  तो सगळा  खेळ  आठवला  की  आजही  चीड  येते...!पुष्कर  पहायला  खूप  सुंदर  पण  तो  रात्रीचा सगळा   खेळ  पाहून  पुष्करचं  नवीनच  रुप  मला  त्यावेळी  पहायला  मिळालं...!!!!

आपल्याकडेही  अशी  खूप  ठिकाणं  आहेत  पण  मी  पाहिलेला  पुष्कर चा   तो  रात्रीचा  खेळ  भयंकर  असाच!!!!!!!



शब्दांकन—

श्री.सतिश  नानासाहेब कोळपे

तांबेवाडी  ता.दौंड  जि.पुणे

प्रवासातल्या    ....अदभूत   गोष्टी!!!!!!!


आज  पर्यंत  अनेक  वेळा  भारत  भ्रंमती  करण्याचा  योग  आला  .या  सगळ्या  प्रवासामधे  काही  अशा  गोष्टी  नजरेस  पडल्या  जिथे  विज्ञानाने   सुद्धा  हात  जोडले..!  अंधश्रद्धा  म्हणावी  की  दैवी  चमत्कार  पण  हे सत्य  आहे  !!!! 

जे  मी  पाहिलं  ते  अदभुत   होतं  याच्या  पलीकडे  काहीही  नाही...!!!

  संपुर्ण   भारतात  फिरत  असताना  अशा  गोष्टी  कधी  पहायला मिळतील  याची  अजिबात च कल्पना  नव्हती.प्रथम  राजस्थान  घेऊया ....,!

बुलेट  बाबा  मंदिर..

पाली  जोधपुर  हायवेवर  असणारं  ठिकाण  ..

राजस्थानला   जाणारा  पर्यटक  इथे  गेला  नाही  असे  होत  नाही.  अनेक  वर्षापुर्वी   एक  अॅक्सीडेंट  झाला ,व्यक्ती  गेला पण  आजही  त्याच्या  बुलेटची  पुजा  नित्यनियमाने  सुरु  आहे..कुठेही    न्या  ,ती  परत  इथेच  येथे  अशी  सर्वाची  भावना..!!!राजस्थानमध्ये  खुप  प्रसिद्ध  असलेलं अन   लोकांच्या  भावना  असलेलं  मंदीर..मंदीर  साधचं  पण  लोक  पहायला भरपुर!!!

बुलेटबाबा  नावानं  प्रसिद्ध  असलेलं  हे  मंदिर  रस्त्यावरचे  जाणारे सगळेच  प्रवासी  इथे  थांबुनच  पुढे  जातात..कथाही  भरपुर  सांगितल्या जातात  पण  खरं,खोटं  देव  जाणे!!!!!

पण  बुलेट  बाबाचे  मंदिर  भारतात आहे  हे मात्र तितकच  खरं!!!

दुसरं ठिकाण  कुलधारा  ...

भुतांचा  गाव  म्हणून  प्रसिद्ध  असलेलं...!

सायं  . पाच  नंतर  येथे  कोणालाही  थांबू  देत  नाहीत...

सर्व  पडलेल्या  स्थितीत  असणारं  मोठं गाव  ,पण उजाड  ..! पाच  नंतर इथे  भुतं येतात  असच  समझतात  सगळे  .!!!!

विज्ञानाच्या  कसोटीवर  बर्‍याच वेळा प्रयत्न झाले  पण  तेथे  अदभुत  शक्तींचा  आवास असल्याची  त्यांची  खात्री..!!!

या अदभुत  शक्ती  जाणवतात पण  अजून  कोणालाही  त्रास  झालेला  नाही  हे ही  तितकच  खरं..!

वातावरणात  झालेला  बदल  आम्ही  अनूभवला  आहे.भर दुपारी उन्हात मंदिरासमोर  इतकं  थंड  वातावरण की  गारठा  असावा  इतकं..!!असे ही  अनेक  अनूभव  इथे  येतात.

अजूनही  लोकं  मानतात  हे विशेष..!

या  गावात  रहायला परवानगी  नाही,..खजिना  मिळेल  या  भोळ्या  आशेने  अनेकांनी  उकरा उकर केली  हे ही  सत्य ...पण  विषाची  परिक्षा  कोण  घेणार?

जिथे  अंधश्रद्धा  वाले  अन वैज्ञानिक  गप्प  तिथे  आपण  काय  करणार ..!

पण गाव अदभुत आहे  हे ही  तितकच  खरं!!

तिसरं  आहे  ...करणी  माता  मंदिर  

उंदराचे  मंदीर.!  हो तेच  ..!ज्याबद्दल  मी या  अगोदर लिहिलय!!!

सगळ्या  मंदिरात  उंदराचा  सुळसुळाट  पण  लोक  त्यांना  आपले पुर्वज  समजून पुजा करतात..!

पांढरा  उंदीर दिसणं  शुभ  समझलं जातं.!!!!

उंदरांनी उष्ट  केलेलं  दुध  आणि  शिरा  लोक  प्रसाद  म्हणून खातात  अन  सर्वांना खाऊ  ही  घालतात.मंदिराच्या  परिसरात  बाहेर  कुठेही  उंदिर आढळत   नाहीत...!

लोकांच्या  भावनेचा  गंभीर  विषय...!  

काहीही म्हणा  पण  हे खरं  आहे..!

आता  जाऊया  हिमाचल प्रदेश  ला.....!


ज्वालामुखी  देवीचं  भव्य  असं  मंदीर  ..त्यातुन  बाहेर  पडणार्‍या  निळसर  ज्वाळा.त्यांचीच  पुजा  ज्वालामुखी  देवी  म्हणून  केली  जाते.अनेकांनी  पाणी  ओतून  विझवण्याचा प्रयत्न करुन  पाहिला पण  यश  आले  नाही.वैज्ञानिकांनी  जमिनीत  शोध घेतला तर  गॅसचा  साधा  स्त्रोतही  आढळला  नाही ..तरी  वर्षानुवर्ष  ज्योत  तेवत आहे  ...!खुप  मोठं  मंदीर  अन  कळस  सुद्धा  सोन्याचा..!

तिथेच  असलेलं   गोरख  डिब्बी  ....!

पाणी  उकळणारं पण  मंत्र म्हणून  हात  घातला की  पाणी  बर्फासारखं  थंडगार..!

इथेही  प्रयत्न  खूप झाले पण  देवाचीच  करणी  म्हणावी  अन  दुसरं  काय..!

पाणी  समोर  उकळताना  दिसतय  अन  हात  घातला तर  गार  हा अनूभवही 

मी  घेतलाय,.!


काहीही म्हणा  पण  अदभुत  अशीच जागा..!

त्यानंतर  जाऊया  मनालीत   वशिष्ट  कुंड  म्हणजेच  गरम  पाण्याचा स्त्रोत.शेजारी  बर्फ  अन  तिथूनच  जमिनीतून  निघणारा  हा  स्त्रोत  निसर्गाचा  अदभुत  चमत्कार च  म्हणावा  असाच !!,,

 मोठा  स्त्रोत   मणिकरण  ला  देखील  आहे,,..एवढ्या  थंड  प्रदेशात  असणारे  हे  गरम  पाण्याचे  कुंड  म्हणजे  पर्यटकांसाठी  आनंदाची  पर्वणीच.!!!यथेच्छ  गरम  पाण्यात  डुबण्याची  मजा...!!

उत्तरांखंडमधे  ही  गंगोत्री,यमुनोत्री,,बद्रिनाथ  आणि  केदारनाथला  गौरीकुंडला  सुद्धा  असेच  गरम  पाण्याचे  स्त्रोत ..!त्यातल्या  त्यात  यमुनोत्रीचा  स्त्रोत  जास्तच  गरम  !!!अशा  या  चारधाम  यात्रेत  इथे  स्नानाचा  आनंद ही खूप  भारी..! 

अदभुत  म्हणा  किंवा  अजून  काही पण या  ठिकाणंच  वेगळेपण  ही  लगेच  लक्षात  येण्यासारखं..मनुष्य  निर्मित  गोष्टी  जशा  स्टॅच्यु  आॅफ  युनिटी,,सिमल्याचा  भव्य  हनुमान  पुतळा  त्याची  भव्यता  आहेच पण निसर्ग  निर्मित  आश्चर्य  पहायला  मनाला  एक  वेगळाच  आनंद  मिळतो..!अनेक  गोष्टी  जशा  खिंचनला  एकाच  प्रकारचे  हजारो  पक्षी  दरवर्षी  येणं, कोकणात  अचानक  गंगा  अवतरणं  ,सगळ्या  गोष्टी  अकल्पनीय  अशाच..! ऊज्जैनच्या  भैरवनाथाच्या  मंदिरात  मदिरेचा  प्रसाद  देव  घेतो  .खरंच  अविश्वसनीय  गोष्ट  पण  खरी..!!!पाण्यावर  दगड  तरंगू  शकतो?  पण  ते ही खरं  रामेश्वरला  हे  मी स्वःताच्या  डोळ्यांनी  पाहिलय!!! व ते सर्वांना पाहता  येतं.

अशा  अनेक  गोष्टी  इथे  लपलेल्या  आहेत  त्या  शोधून  पाहायला  हव्यात..!आणि  अनूभवायलाही  हव्यातच..!वैष्णोदेवीच्या  मंदिरात  पिंडीजवळ वर्षभर  वाहणारं  पाणी  असो  किंवा   पुष्करला  रात्री  बारा  विहिरीवर  चालणारा   खेळ.. (खेळच  म्हनेन  कारण  तो  मी  स्वतः  पाहिलाय  रात्रभर  जागं  राहून) 

असो  सगळंच  अगदी   विचार  करायला  भाग  पाडणारं..!

असे  अनेक  अनूभव  स्वतः  अनूभवलेत  म्हणूनच  वाटतं  शोध  लागतील  ,खरं  खोटं  कळेल,विज्ञान  सिद्ध  करेल  पण  आज  मात्र या सगळ्या  जागा  आपलं  लक्ष  वेधून  घेतात  अन   याची  देही , याची  डोळा , प्रचिती  घ्यायला  भाग  पाडतात..

सुंदर  भारतात  असलेली  ही  सुंदर  ठिकाणं  पाहताना  जी  मनाला  शांती  मिळते  ना  तो  खरा  आनंद...!

अदभुत  ,अविश्वसनीय,

अकल्पनीय अशा अनेक  गोष्टी  या  भारतात  आहेत ज्या  रहस्य  बनून  राहिल्यात. पण  या पहायला  मात्र  भारीच!!!!!!


शब्दांकन—

 श्री.सतिश  नानासाहेब   कोळपे

तांबेवाडी  ता.दौंड  जि.पुणे

रामदरा......!!!!


पुण्यापासून  अगदी  जवळ  हाकेच्या  अंतरावर  असणारं रामदरा  हे  अतिशय  रमणीय,   निसर्गरम्य  ठिकाण..!!सोलापूर  हायवे  वर  लोणी  काळभोर  पासुन  दक्षिणेला  सहा  कि.मी. अंतरावर  असणारे  डोंगराच्या  कुशीत वसलेलं  निसर्गाच्या  सानिध्यात  असलेलं  रमणीय  स्थान...!  प्रभु  रामचंद्राचं  तळ्यात  असलेलं  सुरेख  मंदिर  आणि  परिसर  खूपच  छान!!!

   परिसरातील  लोकाचं  श्रद्धास्थान   आणि  निसर्ग प्रेमी  साठी  पर्वणीच..!

लहान  होतो  तेव्हापासून  रामदरा  ठिकाण पहायची  उत्कंठा  लागून  राहिली  होती..!

    तेव्हाच  पहिला  योग  आला..मकरसंक्रांतीचा  दिवस  होता..या सणाच्या  दिवशी  एखाद्या  प्रसिद्ध  मंदिरात  जाऊन मग ते  मोरगाव,थेऊर,जेजूरी  अशा  ठिकाणी  जाऊन  ओवासण्याचा  महिलांना  भारी  छंद..!  

आमच्या  गावातीलही  अनेक  महीला  ओवासण्यासाठी  दूरदूर पर्यंत  जायच्या..या  वर्षी  सगळ्यांनीच  रामदरा  येथे  जाण्याचा  निर्णय  केला..आई  ही  जाणार  असल्यामुळे  मी  ही  येणार  म्हणून  आईकडे  हट्ट  धरला.परंतु  घरापासून खामगाव  फाटा  सहा  कि.मी. व  लोणीकाळभोर  येथून  सहा  कि.मी.  रामदरा  आणि  परत  असाच  चोवीस  कि.मी.  चा  पायी प्रवास  त्यावेळी  करावा  लागायचा.. तु दमून  जाशील  ! या  कारणाने  आई  न्यायला  तयार  होत  नव्हती..पण  माझा  निर्णय  बदलेना  शेवटी  आईने  मला  बरोबर  घेतलं  आणि  सर्व  महिला आणि आम्ही  चार पाच  जण  मुलं. सगळ्यांनीच  उत्साहाने  खामगाव  फाटा  गाठला.पुर्वी  वाळूच्या  ट्रकच्या  मागे  वाळूवर  बसून प्रवास  करावा  लागायचा..आम्हीही  ट्रकला  हात  केला  अन  सगळे जण ट्रक  मधे  मागे  बसून  निघालो.सकाळची  वेळ असल्यामुळे  ऊन  ही कमी  होतं.लोणीकाळभोरला  उतरलो अन  रामदर्‍याच्या  दिशेने  चालायला  सुरुवात  केली. ऊन  डोक्यावर  यायला  लागलं होतं.गावाच्या  मधून  जाणार्‍या रस्त्याने  

डोंगराच्या  दिशेने  कच्य्या  रस्त्याने  चालायला  सुरुवात  केली.रस्ता  उरकत  नव्हता..चालून  चालून  दमून  गेलो.पण  रामदरा  काही  जवळ  दिसेना  .नवीन  कॅनाॅल  व  रेल्वे  रुळ  ओलांडला  आणि  एका  झाडाखाली  सगळे  निवांत बसले.रस्त्याने येणारे  जाणारे  बरेच  जण .त्यांना   सारखं  सारखं  विचारुन  आपण  जवळ आल्याचे  कळलं  अन नवीन  हुरुपाने  चालायला  सुरुवात  केली..समोरचा  मोठा  चढ  पार  केला  अन  दिसली  ती  हिरवीगार  दाट  झाडी!!!!मंदिर  कुठंही  दिसत नव्हतं. चालत  चालत  झाडातून  जाणार्‍या  वाटेवरुन  चालत पुढे  गेलो  अन  दिसलं ते  तळ्यात  असलेलं  सुंदर  रामाचे  मंदिर.जवळ  गेल्यानंतरही  मंदिर  दिसत  नाही..!!!

रामाचे  सुंदर  मंदिर  .पुर्वी  उजाड  असं  माळरान  ,पण  एक  सिद्ध पुरुष  धुंदीबाबा  नावाचे  गृहस्थ  हिमालयातून  इथे आले  अन  त्यांनी  या  माळरानावर  रामाच्या  मंदीराची  स्थापना  केली..डोंगरावरुन  येणारं  पावसाचे  पाणी  अडवलं बंधारा  बांधला  अन  आपली   पुजा  अर्चना  सुरु ठेवत  आजूबाजूला  परिसरात  वेगवेगळी  झाडे  लावली..

हळूहळू  परिसर  फुलुन  गेला  आणि  मग  ग्रामस्थांच्या  सहकार्यातून  मंदिराचं  बांधकाम  झालं. सुशोभिकरन,वृक्षारोपन  आणि  मठाचं  बांधकाम  झालं.आणि  या  रामदर्‍याचं  स्वरुप  बदलून  गेलं.धुंदीबाबांच्या  प्रयत्नातून  माळरानावर  पेरुच्या  बागा  बहरल्या..!अन  उजाड  माळरान  एका  सुंदर  हिरवळीत  बदलून गेलं.

मोठ  मोठे  यज्ञ त्यावेळी  इथे  झाले  अन  रामदरा  परिसर  सर्वाचा    आवडता  बनला.गर्दी  वाढु  लागली.तसतसे रामदर्‍याचं  वैभव  बदललं..!!!

रामदरा  पर्यटकांचा  आकर्षणाचा  केंद्रबिंदु  झाला. इथूनच दिसणारा सोनोरी  किल्ला  पाहण्यासाठी  ट्रेकिंग  करणारांची  गर्दी  वाढू  लागली..अन  रामदरा  हे ठिकाण  सर्वाच्या  पसंतीला  उतरलं.

या  ठिकाणी आम्ही  प्रवेश  केला.अन  प्रथम  एन्र्टी  गेटमधून  आत  गेल्यावर  होम कुंडाचे  दर्शन  घेतले .तेथे समोरच  वयस्कर  असणारे  धुंदीबाबा  बसायचे.चोपाळ्यावर  बसलेले  बाबा  त्यांच्या  शेजारी  अनेक  गुबगुबीत  झालेल्या  मांजरांची  भरपुर संख्या.आजूबाजूला  वावरणारी  हरणं  .!!!बाबांचे  दर्शन  घेतलं  अन  राम  मंदिरात  गेलो.प्रशस्त  आणि  सुंदर  अशा  मंदिरात  दर्शन  घेतले. मंदिरासमोरील  पाण्यात  पाय सोडून  बराच  वेळ बसलो.अतिशय शांत  आणि  निसर्गरम्य  वातावरण..!महिलांचा  कार्यक्रम  आटोपला  अन  पुन्हा पायी  लोणी काळभोर  तेथून  ट्रकने  खामगाव  फाटा  व  पुन्हा  पायी घरी  परतलो.

  आज  मात्र  या  रामदर्‍याचा  जाणारा  रस्ता  अगदी  छान  झाला  आहे.झाडंही खुप  मोठी  झालेली  आहेत,.मंदिरा जवळ  वाहनं  जातात..

काळाच्या  ओघात  रामदर्‍याचं  वैभव  वाढत  गेलं  अन  माळरानावर  छान  हिरवीगार   झाडे  फुलली.आजही  येथे  अनेक  पर्यटक  फिरायला  येतात  पण  तरीही  इथल्या  परिसरात मनाला  शांतता  मिळते.ट्रेक  करणारे  ,शहरातील फिरायला  येणारे  नागरिकही  भरपुर..नाष्टाची  उत्तम  व्यवस्था  येथे  आहे.अशा  या  सुंदर  रामदर्‍यात  नंतर  बर्‍याच  वेळा जाण्याचा  योग  आला..रामदर्‍याजवळ  असणारा  डोंगर  ,दर्‍या  सर्वांना  खुणावतात.असा  निसर्गरम्य परिसर  सर्वानी  पहावा  असाच!!!धुंदीबाबांच्या  नंतर  या  स्थानाचं  महत्व  थोडसं  कमी  झालं  पण  निसर्ग प्रेमीसाठी मात्र  ही  नेहमीच  आवडती  जागा  राहिली.

पुणे  शहराच्या  जवळ असल्याने  शनिवार  रविवार   इथे  खूप  गर्दी  असते.विशेष करुन  पावसाळ्यात  इथला  निसर्ग  पाहण्यासारखा!!!!


शब्दांकन— 

श्री,सतिश  नानासाहेब  कोळपे


तांबेवाडी  ता.दौंड  जि.पुणे

टाॅय  ट्रेन  .......सिमला!!!!!


झुक..झुक,  झुक...झुक आगनगाडी  धुरांच्या  रेषा  हवेत  काढी  पळती  झाडे  पाहुया......!!!!  गीत  सर्वांना  आठवलं  असेलच..!!

या  सुंदर  अशा  गाण्याची  खरी  मजा  घ्यायची  असेल  तर  तुम्हांला  सिमल्याला  जावंच  लागेल.

बालगीताची  ओळ  सत्यात  उतरावी  अन  त्यात  बसून  आपण  प्रवास  करावा..खूपच  गमतीशीर .!!! हो ना ?

असाच  सुंदर  अनूभव  आम्ही  घेतला  तो  सिमल्याला!!

सिमला  ,कुल्लु,मनाली  ची  ट्रिप  करुन  आम्ही  मित्र  मनाली हुन   सिमल्याला  परत  मुक्कामी  आलो  ते  केवळ या  टाॅय  ट्रेनच्या  प्रवासासाठी..,!

सिमल्यात  जुन्या  बसस्टॅडच्या  समोर  असणारं  आसरा  हाॅटेल ला  आम्ही  थांबलो  होतो..!गुरुद्वारा  च्या  अगदी  जरासं  पुढे  असलेलं  हाॅटेल ही मस्त  होतं.रात्री  जेवण  करुन  आराम केला  कारण  आज  मनाली  ते  सिमला  तीनशे कि.मी. चा  प्रवास  झाला  होता..!!

  सकाळी  सात  वाजता  कालका ला  जाणारी  ट्रेन  सुटणार  होती..पहाटे  उठून  लवकरच  सगळ्यांनी  आवरलं  आणि  बॅगा  खांद्यावर  अडकवून  रेल्वे स्टेशनकडे  निघालो..साधारणपणे  एक  दिड  कि.मी.अंतर  असेल.!

चालतच  रोडने  निघालो.सकाळची  वेळ  ,सुंदर  रस्ता  अन  वातावरणात  गारवा  होता.

रेल्वे  स्टेशनच्या  जवळ  आलो तरी  सिमला  स्टेशन  कुठंच  दिसेना..रेल्वेरुळ  दिसत  होते  पण  स्टेशन  मात्र  रस्त्यावरुन  दिसत  नाही. शेवटी  तेथील  स्थानिक  व्यक्तीला  विचारले.तेव्हा  थोडंसं  उतरत  गेलो  की  पर्वताच्या  अगदी  खेटून  असलेलं  सिमला  स्टेशन  दृष्टीस  पडलं.देवदारच्या  दाट  झाडीत लपलेलं  सुंदर असं   इंग्रजांच्या  काळातलं  बांधकाम  असलेलं  स्टेशन.!!

सिमला  स्टेशन  छोटसंच पण  अतिशय  सुंदर  .प्रवासी पण  थोडेच....!मीटरगेज  असलेलली  रेल्वे  लाईन.!सिमला  हे  इंग्रजांनी  त्यांच्या  काळात  सुट्टीसाठी  वसवलेलं  हिल  स्टेशन..आणि  इथे  येण्यासाठी  पर्वताच्या  मधून  आणलेली  रेल्वे  लाईन..!

सिमला  ते  कालका  असा नव्वद  कि.मी. चा  रेल्वेमार्ग  पुर्ण  पर्वतामधून  काढलेला  आहे..अनेक  बोगदे  ,पुल  तयार करुन  अतिशय  सुंदर  रितीने  तयार केलेला  हा  मार्ग..डिझेलच्या  इंजिनावर  चालणारी  ,संथ गतीने  धावणारी, अन  मनमोहक  अशी  ती  टाॅय ट्रेन..! यातला  प्रवास  करायचाच  हे  ठरवूनच  आज  सगळ्यांनी  रेल्वे स्टेशन  गाठलं होतं.

साडे सहा ला  तिकीट  काउंटरला  पोहोचलो..कालका  पर्यंत ची  सर्वाची  तिकीटे  काढली. अन  प्लॅटफाॅर्मवर  लागलेल्या  गाडीत  मस्त  खिडकीजवळची  जागा  पकडली..  !  इन  मीन  सहा  डब्याची  छोटीशी  पॅसेंजर  ट्रेन  ...!इंजिन  नंतर  दोन  डबे.,एक  पुर्ण  ओपन  डबा  ,पुन्हा  दोन  डबे  अन  शेवटी  गार्डचा  डबा...!अशी  रचना  मधल्या  मोकळ्या  डब्यात  सामान  ठेवण्यासाठी  जागा..!!पहाडात  बरंचसं  साहित्य  पुर्वी  याच  डब्यामधून   जायचंं..!!

वर्ल्ड हेरिटेजचा  दर्जा  असल्यामुळे  ही  ट्रेन  दररोज  खास  पर्यटकासाठी  धावते..!

आम्हीही  गाडीत  बसलो  ते  या  सामानाच्या  डब्याजवळच..!!

कालका  पर्यंत  गाडीला  तिकीट  आहे ,प्रत्येकी  चौदा  रुपये  अन  वेळ लागतो  सहा  तास  ,अंतर  नव्वद  कि.मी. मग  विचार  करा  कशी  धावत  तसेल ही ट्रेन..!

बरोबर सात  वाजता  गाडीने  हाॅर्न  दिला  अन  गाडी  सुरु  झाली..अगदी  जत्रेतल्या  ट्रेनने  प्रवास  करावा  अशी  छान सुरुवात..!झाडामधून  वळणं घेत  रेल्वे  निघाली.हळूहळू  सिमल्याच्या  सर्वात टाॅपवर  येऊन  गाडीने  खाली  उतरायला  सुरुवात  केली..पर्यटकांचा  जोश  अन  उत्साह  भारीच  होता..काही जण  खाली  उतरुन  गाडीबरोबर पळण्याचा  आनंदही  लुटत  होते.या  रुटवर  बरीच  स्टेशनही  निर्माण  केलेली  आहेत..तिही  डोंगराच्या  कुशीतच..!

हिरवा गार परिसर,उंच उंच  देवदार  ची  झाडं,  डोंगरातून  पाझरणारं पाणी  आणि  त्यातून  जाणारी  ही  ट्रेन  खरंच  स्वप्नातल्या  सारखा  फिल  येत  होता..,!!गाडी  बोगद्यातून  जाताना  शिट्यांच्या  आवाजाने   बोगद्यात  खूप  मज्जा  येत  होती..आरडणे,ओरडणे  वेगवेगळे  आवाज  काढणे  अशा  हर प्रकारे  प्रत्येक  जण  याचा  आनंद  आप आपल्या परिने  घेत  होता,.विटांनी  बांधलेले  पुल  ,अगदी  खेळण्यातल्या  सारखे  पण  भक्कम..!त्याखालून  वाहणारे पर्वतातलं  पाणी  त्या  निसर्गाची  शोभा  आणखीच  वाढवीत  होतं!!!!!.या  मार्गात  अनेक  बोगदे  अन  पुल  बनविण्यात  आले  आहेत.सिमला  ट्रेन  म्हणजे  इंजिनिअरींचा  सर्वोच्य  मानबिंदू  म्हणूनही  ओळखला  जातो.एवढ्या  दुर्गम  भागातून  तयार  केलेला  हा  मार्गच  खर्‍या  अर्थाने  भन्नाट..!

गाडी  एक एक  स्टेशन  करत  उतरत  होती.स्टेशन  आल्यावर  आम्हीही  खाली  येऊन  निसर्गाचा  देखणा  अविष्कार  पाहून  ऊत्साह  वाढवित  होतो.नंतर  सामानाच्या  ओपन  डब्यात  उभा  राहुनच   तो  प्रवास  केला.!!!किती  भारी  तो  प्रवास   , अनुभवल्याशिवाय  कळणार  नाही..अशी ट्रेनची  मजा  सिमल्यालाच.!!!!!

दोन  स्टेशन पर्यंत  खूपच  गर्दी  झाली  या  डब्यात  ..!डबाही  या  सर्वाच्या  मुळे  हालत  होता  म्हणून  गार्डने  सर्वानाच  पुन्हा डब्यात  बसवले...!

हा  निसर्गरम्य  प्रवास  अनुभवताना   काळजी  ही घ्यावी  लागते..कारण खोल  दर्‍या  खोर्‍यातुन  जाणारी  ही गाडी  वळणांवर  वाकुन  पाहताना  झाडे  अगदी  खेटून असल्यामुळे  जरा जपुनच  .!!,,.त्यात  दरवाज्यामधे  पळत  पळत  चढणारी  तरुणाई  ही  भरपुर..!

विनोदी  स्टाईलने  पळत  गाडी  पकडणारे  तरुण  पाहिले  की  हसू आल्याशिवाय  राहत  नाही.अशा  गमती  जमतीचा  प्रवास  खरंच  मजेदार..,!!!

सिमल्याची  ही ट्रेन एक  वाजता   कालका  स्टेशनवर  पोहोचली..कालका  मोठं स्टेशन   .!!!.इथंपर्यत  मोठ्या  गाड्याही  येतात..स्टेशनवर  उतरलो अन  स्टेशनच्या  बाहेरुन  चंदिगड मधील  राॅक गार्डनला  भेट  दिली..इथुन  रिक्षा  उपलब्ध  आहेत..सुंदर अशी  चंदिगडची गार्डन पाहुन  बस स्टॅडला  गेलो..चंदिगड  अतिशय  सुंदर  शहर,इथले रस्ते  खूप  मोठे ,कुठेही अतिक्रमण  नाही..सेक्टर नुसार  लावलेली  एकाच  प्रकारची  आंब्यांची,चिकुची  झाडे  भरपुर,!!,,,सेक्टरवाईज  बस स्टँड  तेही  अगदी  प्रशस्त.!!!.आपली  चार चार  स्टँड  बसतील  एवढी  मोठी,.!दुकाने  रस्त्यापासुन  दुर  आतमधे..पार्किगला  जागा  भरपुर.अतिशय  सुटसुटीत  आणि  नियोजन बद्ध  पद्धतीने  वसवलेलं  शहर..!!!

तेथुन  अंबाला  कॅन्टला  बसने  आलो  अन  परतीचा  प्रवास  केला..म्हणतात  ना  ज्यासाठी  केला  होता  अट्टहास.....!!ती  मनातील  इच्छा  पुर्ण  झाल्याचा  आनंद  काही  वेगळाच.!!

सुंदर  असा हा टाॅयट्रेनचा  प्रवास  खूपच  भारी  होता.पहाडामधे  पठाणकोट  ते  सुंदरनगर  हाही  प्रवास  अशाच  गाडीने  मी  केलेला  आहे.तोही  खूप  छान प्रवास .अशीच  छान  ट्रेन  दार्जिलिंगला  सुद्धा  आहे.

सिमल्याची  ही  टाॅयट्रेन म्हणजे सिमला  फिरायला  आलेल्या पर्यटकासाठी  परमोच्य  आनंद  देणारा  क्षण..!आवर्जून  प्रवास  करावा  असा  रेल्वे  प्रवास...वेळ  जास्त  जातो  पण  इथल्या आनंदा  पुढे  ते  काहीच  नाही..!

असा  हा  टाॅयट्रेनचा  भन्नाट  प्रवास करायलाच  हवा....!


शब्दांकन—

श्री.सतिश  नानासाहेब कोळपे

तांबेवाडी  ता.दौंड  जि.पुणे

फ्लेंमिंगो.....!!!!!!


काय  ? आश्चर्य  वाटलं  नावाचं.!!! अहो  नवीन  नाही  हे!!!!

एका सुंदर  अशा  पक्ष्याचे  नाव  आहे  ते!!!!!फ्लेंमिंगो!!!!

2000  साली  इंदापुरला  उजनी  धरणाच्या  काठावर  असलेल्या  निनांत  सुंदर  अशा  अगोती  नं 1  या  गावात  सर्व्हिस  जाॅईन  केली  .दररोज  अंघोळीलाच  आम्ही  धरणाच्या  बॅक वाॅटरला  जायचो...!भीमानगरच्या  भिंतीपासून   सिद्धटेक  गणपती  असं  जवळ जवळ   शंभर   कि.मी. चं  बॅकवाॅटर  असणारे  सर्वात   मोठं  धरण.साठाही  अगदी  115  TMC .कायम  पाण्याने  भरुन  गेलेले   धरण  उन्हाळ्यात   रिकामं व्हायला  सुरुवात  व्हायची  मग  आम्ही  सगळे  मित्र  आवर्जून    नदीकाठच्या  निनांत सुंदर  अशा  हिरवळी वरुन  चालत    पुर्वी  पाण्याखाली  गेलेल्या  गावांना  आवर्जून  भेटी  द्यायचो..पडलेली  घरे  ,मंदिरे     विहीरी  यांच्या  खुणा  येथे  स्पष्टपणे  जाणवतात..पाहण्यासारखी  खूप  ठिकाणं  या  पाण्याच्या  आत  दडलेली  आहेत..!मासेमारी  करणार्‍या  होड्या  ,तिथला  सुर्यास्त   नेहमीचाच   झालेला..!!अशा  निसर्गसंपन्न  भागात  पक्षांची  तर रेलचेल..!वेगवेगळी बदकं,खंड्या,राघू,बगळे,

पेंटेंड  स्र्टोक,सुरैया,पाणकोंबड्या   ,अशा  वेगवेगळ्या प्रकारचे  पाहिलेले  ,न  पाहिलेले  असंख्ख  पक्षी  दररोजच   पहायचो..त्यात  उठून  दिसायचा  तो  फ्लेंमिंगो!!!!

पांढरा  शुभ्र,

आकाराने  मोठा,पाय  लांब,पंखाखाली  गुलाबी  रंग,चोच  बाकदार,त्याच्या  चालण्याचा  डौल  लक्ष  वेधून  घ्यायचा.हवेत  उडताना  तर  गुलाबी  वातावरण  झाल्यासारखं....!म्हणून  त्याला  अग्नीपंख  सुद्धा  म्हणतात.  पण  त्यावेळी  सहजतेने  दिसणारे  पक्षी  आणि  त्याबद्दल  एवढी  माहीती  नसल्यामुळे  विशेष  असं  काही  वाटत  नव्हतं.

नंतर  मात्र  डाॅ.सलीम  अली,व  इतर पक्षी  प्रेमींची  पुस्तके  वाचनात  आली  अन    पक्ष्यांविषयी  एक  वेगळीच  ओढ  निर्माण  झाली.कावळा,चिमणी,पोपट,कबुतर  या व्यतिरिक्त  हजारो  पक्षी  या  दुनियेत  संचार  करतात.अन  त्यातला  एक  देखणा  पक्षी  म्हणजे  फ्लेंमिंगो!!!

हे जेव्हा   वाचनात आलं  तेव्हा  त्याला  पाहण्याची  इच्छा  निर्माण  झाली.बदली  होऊन  मी  गावाजवळ  सर्व्हिसला  आलो  होतो.फ्लेंमिंगो  हमखास  पहायचे  असतील  तर  दिवाळी  नंतर   मार्च   एप्रिल  पर्यंत   ते  उजनी  च्या    बॅकवाॅटरला  पहायला  मिळतील   म्हणून  चार  पाच  मित्र    खास  पक्षी  पाहण्यासाठी   भिगवणला  गेलो..अनेक  वेळा या रस्त्याने प्रवास होतो..बॅकवाॅटरही  दिसतं.पण  पक्षी  पहायचे  असतील  तर  जरा  आडवाटेने  आत  जावं  लागतं. आणि  जरा  धीर  धरावा  लागतो.आम्ही  भिगवनला  पोहोचलो  .भिगवन  पासुन  पुढे  राशीन  रोडने डिकसळ  चा इंग्रजांच्या  काळातला  दगडी  पुल  आहे.तिथे  गेलो.अनेक  पक्षी  तिथे  पहायला  मिळाले..पाणी  खूप  होतं  धरणात,अगदी  पुलाला  लागलेलं.!!!

इथुनही  बोटीत  जाऊन  पक्षी पाहण्याची  सोय  आहे.जेवनासाठी   साधी सी  हाॅटेल  सुविधा  सुद्धा  उपलब्ध  आहे..पण  तेथे  फ्लेंमिंगो  दिसले  नाहीत  तेव्हा  चौकशी  केली  तर  या  पक्ष्यांचा  ठराविक  ठिकाणी  ठराविक  वेळेत  येण्याचा  नित्यक्रम  ठरलेला  असतो.कधी  या  तीरावर  तर  कधी  त्या  तीरावर!! असे त्यांचे  दिवसभर  येणे जाणे  चालूच  असते!!पण  पक्षी  पहायचेच  असतील  तर  कुंभारवळण   अगदी   मस्त ठिकाण.आम्ही  माघारी  भिगवनला  आलो.  सोलापुर  हायवेने   चार पाच  कि.मी.गेलो  की,बिल्ट  कंपनीच्या  अलीकडून चढालाच  डावीकडे  टर्न  मारुन  कुंभारवळण  ला  जायला  फाटा  फुटतो.रस्ता  खराबच  आहे..सहा  सात  कि.मी. अंतरावर  वसलेलं   धरणाच्या  पाण्याशेजारी  वसलेलं  गावही  खूप   छान.गावाच्या  पुढे  मंदिर  या  मंदिराजवळ  थांबलो.मस्त  झाडांच्या  कुशीत  वसलेलं  मंदिरही  खूप  छान  आहे.परिसर  निसर्गरम्य  असा!!!,

मंदिराच्या  शेजारुनच  एक  रस्ता  पुढे  जातो . एक  कि.मी अंतरावर  डावीकडे  टर्न मारला  की  मस्त  बांधकाम  केलेलं  हाॅटेल  दृष्टिस  पडतं..इथे  पार्किंगची  पण  छान  सोय  .नदीकडेला  गाडी  पार्क  केली..तिथे  विचारपुस  केली..पक्षी  पाहण्यासाठी  स्थानिकांनी  एकत्र  येऊन  छान  सोय  केलेली  आहे  इथे..!

बोटसाठी  परहेड  शंभर रुपये  व  सेपरेट  बोटीसाठी  हजार  रुपये  शुल्क  आकारुन  हे  लोक   बॅकवाॅटर  ला  मस्त  फिरवून  आणतात..पक्षी  कुठेही  असोत   पक्षी  दाखवल्याशिवाय  हे  लोक  माघारी  आणत  नाहीत  . 

हे  मात्र  खरं.!!!

आम्ही  शेअरिंगमधे  बोट  ठरवली,लाईफ जॅकेट  येथे  कंम्पलसरी घालायलाच  लावतात.लाईफ जॅकेट  घातले  अन  आमची  बोट  निघाली  प्रथम  पक्षी  पाहत  धरणाच्या  कडेने  ,काही  बेटाजवळ  असंख्ख  पक्ष्यांची  जत्राच  भरली  होती..सुर  मारुन  मासे पकडणारे  पक्षी  पहायला  मजाही  येत  होती...!!बेटावर ,झाडावर  आराम करणारे  पक्षीही  भरपुर  !!!लोकांचीही  सवय  झाल्यामुळे  पक्षी  जराही  बिचकत  नाहीत.भिगवण  बाजुकडे  गेलो  तरी  फ्लेंमिंगो  दिसेना..!!!बोटवाले  एकमेकांना  पक्षी  कोणत्या  भागात  आहेत  याची  इत्यंभूत  माहीती  फोनवर  देतात..आमच्याही  बोटीवाल्याला  माहिती  मिळाली  .लगेच  बोट  त्याने  पलीकडच्या  तीरावर  असणार्‍या  पक्षांकडे  न्यायला  सुरुवात  केली..इथे  काही  बोटी   इंजिनवर  चालणार्‍या  सुद्धा  आहेत  त्यामुळे  पटकन  पोहोचता   येतं.आमची  बोट  वल्ह्यांची  असल्यामुळे  निवांत  चाललेली  होती..निसर्गाचा  तो  सुंदर  नजारा,पाण्यावर  उठणार्‍या  लहरी

अन  पक्ष्यांच्या  कसरती  पाहत  आम्ही  पक्ष्यांजवळ  पोहोचली.अनेक  बोटी   तेथे  पोहोचल्या  होत्या. 

समोर   पाण्यात   चोच  बुडवुन  खाद्य  शोधणारे  असंख्य  फ्लेंमिंगो  तिथे  होते..उंच  पायावर उथळ  पाण्यात  उभे  राहुन  चालणारे  पक्षी  पहायला  एवढं  भारी  वाटतं होतं  की  शब्दच  सुचेनात!!!!पक्ष्यांची  संख्खाही  न  मोजण्या  इतकी  !!!

इकडे  तिकडे  पळताना   गुलाबी  रंगाची  छटा   दिसत  होती..चाहुल  लागली  की  लगेच  पक्ष्यामधे  घबराट  व्हायची  ,ते  पळायचे.पुन्हा  शांत  होऊन  खाद्य  शोधण्याचा  क्रार्यक्रम  सुरु .!! गेली  अनेक  वर्ष  हे पक्षी  इथे येतात  राहतात,विणीचा  हंगाम  संपला  की दुर देशात  निघूनही  जातात.अन  पुन्हा हिवाळा  सुरु  झाला  की  उजनीवर  हमखास  येतात.उजनीच्या  शेजारचे  मोठे वृक्ष,,इंदापुर  तहसील  कार्यालयातील  जुनी  झाडे,,तलावांमधील  काटेरी  उंच  झाडे  हे  त्याचे  आश्रयस्थान  बनतं,पक्ष्यांना  बर्‍यापैकी  निसर्गनिर्मित  निवारे  उपलब्ध  होतात  अन  मग  हे  पक्षी  अगदी  बिनधास्तपणे  इथे  राहतात..!!! फ्लेंमिंगो  पक्षी  जरा  लाजरा  बुजरा  पक्षी .!!!! त्यामुळे  गोंधळ  ,आवाज,न  करता  पाहिल्यास  बराच  वेळ  निरीक्षण  करता  येतं.!!!लाँग  लेन्स चे  कॅमेरे,दुर्बिण  असेल  तर  उत्तमच..!खूप  पक्ष्यांची  दुनियाच  इथे  वसली  आहे..सैराट  फेम  चित्रपटातही  याच  धरणातील  गावं  आणि  इथले  हवेत  उडणारे  पक्ष्यांचे  थवेच्या  थवे  शुट  करण्यात  आले  आहेत..पाण्यातलं  पळसनाथाचं  मंदिरही  खूप  प्रेक्षणीय  !!,, पाणी  कमी  झालं की  सगळं  मंदिर  उघड  होतं  आणि पळसदेव  पासुन  रस्त्यावरुन सुद्धा  हे  मंदिर  आपलं  लक्ष  वेधून  घेतं..मंदिरालाही  भेट  देता  येते..आवर्जून  पहावे  असं हे  मंदिर!!! पक्ष्यांची ही  आगळी वेगळी  दुनिया  पाहून  आनंदाने  परतीचा  प्रवास केला.

!!

अनेक  पक्षीप्रेमी  आवर्जून  या  उजनी  धरणावर   पक्षी  पहायला  येतात..तसेच  एक  दिवसाचा  ब्रेक  म्हणूनही  भिगवणचा  हा  परिसर  पर्यटकांसाठी  खूप  छान  पर्याय  निर्माण  झाला  आहे..त्यात  भिगवण ची  स्पेशल मच्छी   भारीच!!!चवही  अगदी  खास,कडक,मसाला,पिवळे  अशा  हर  प्रकारचे  मेनू,त्यात  बाजरीची  भाकरी म्हणजे  जेवनाचा  बेतही  फक्कडच!!!!अशा  या  सुंदर निसर्गाच्या  सानिध्यात  पक्षी  आणि  खास  करुन   फ्लेंमिंगो  पाहण्याची  मजाच  न्यारी.!!!


शब्दांकन—श्री.सतिश  नानासाहेब  कोळपे

तांबेवाडी  ता.दौंड  जि.पुणे


हरिद्वार....!


असाच  एकदा   परिसरातील  दहा  जणांच्या   ग्रुपबरोबर  दिल्लीला  फिरायला  गेलो  होतो..गावातीलतही   दोन  तीन  जणं  होती.दिल्ली  फिरुन  झाली  अन  सायंकाळी  जेवताना   हरिद्वार  ला  जायचं  ठरलं.एकच  दिवसाचा  कालावधी  असल्यामुळे  आज  रात्री  प्रवास  करायचा   उद्या  दिवसभर   फिरायचं  आणि  रात्री   परत  यायचंं  नियोजन   केलं.

रेल्वे  स्टेशन  जवळ   जाऊन  हरिद्वार  साठी  सुमो  जीप   ठरवली.पॅसेंजर  दहा   जण   पण  गाडीमालकाने  अॅडजेस्ट  केलं  आणि   आम्ही  पण  अॅडजेस्ट   केलं.

रात्री जेवण  करुन   प्रवासाला  सुरुवात  केली.बारा  साडेबारा  वाजले  असतील.दिल्लीतुन   गाडी   चालली  होती..दिल्लीत  रात्रीही  रस्त्यावर  बर्‍यापैकी  गर्दी  होती..

यमुना  नदी  पार  करुन  पुढे  हरिद्वार  रोडला  आलो.रात्र  झालेली.ड्रायव्हर शेजारी मी  अन   वाडीतील  एक  जण  असे  दोघेजण   बसलेलो  होतो..

गाडी  मुझ्झफरनगर,मेरठ,देवबंध,खतौली,करत  पहाटे  पहाटे हरिद्वारला  पोहोचलो.  सकाळीच  गंगेच्या  पवित्र  पावन  नदीत  स्नान  केलं .पाणी  इतकं  थंड  पण सगळ्या  मित्रांच्या  मज्जा  करण्यात  अंघोळ  मस्त  झाली.तेथील  स्थानिक  मुलं  तर  गंगेच्या  जोरदार  प्रवाहात  उड्या  मारुन  बाहेर  निघायला  खूप  दूरवर  जात  होती..पण  वेगवान  पाण्यात  पोहायची   इच्छा  असूनही   पोहण्याचा  मोह  आवरता  घेतला  अन  साखळीला  धरुनच  चार पाच  पायर्‍या  उतरुन  गंगेत  डुबक्या  मारल्या  .पाणी  एवढं  थंडगार  की  अंग  गारठून  गेलं.!!!

नदी शेजारील  गंगा  माता  मंदिरात  दर्शन  घेतलं आणि  चहा, नाष्टा  केला..मनसादेवीच्या  मंदिराकडे  सगळेच  चालत  निघालो.  रस्ता  मस्त  बांधलेला...शाॅटकट  ही  आहेत  पण  घसरडे!!!त्यामुळे  थोडसं  लांबुन  पण   बांधकाम  केलेल्या  रोडने  वरती  जात  होतो..दम  लागल्यावर  थोडासा  आराम  करुन  तासाभरात  वरती  पोहोचलो..अतिशय   रम्य  असं  ठिकाण..मनसा  मातेचे  मंदिर .. मुर्ती  लक्ष  वेधक  अशीच!!!पांढरी  शुभ्र  चमक  असलेली  ती  मनसा  देवी!!!

दर्शन  घेऊन  तिथून  दिसणारे  हरिद्वारचं विलोभनीय  दृश्य  खूपच  सुंदर!!!

बराच   वेळ  फिरुन  खाली  उतरायला  सुरुवात  केली..खाली  येताना  मात्र खूप  पटकन  खाली  आलो..तिथून  हर  की  पैडी  च्या  ब्रिजवरुन  पलीकडील  पार्किग जवळ गेलो..रुषीकेशला  जायचं  ठरलं.  25 कि.मी.वर  असणार्‍या  रुषीकेशला  पोहोचलो.दाट  झाडी  ,जंगलातुन   जाणारा  तो  रस्ता.निसर्गरम्य  परिसरात  वाहणारे  छोटे  मोठे  ओहोळ  फारच  सुंदर  दिसत  होते..

रुषीकेशला  पोहोचलो..तिथून  चालतच   गंगा  नदिवरील  लक्ष्मण  झुला  पार  केला..खूप  मजा  येते  इथे  चालायला..पावला गणिक  हालणारा  ब्रीज, खाली वेगाने  वाहणारी  गंगा,, दृश्य  अगदीच  रमणीय.पलीकडे  जाऊन  नदिपात्रात  नवीन  बांधलेल्या    शंकराच्या  मुर्ती समोर  नतमस्तक  झालो.अतिशय  भव्य मुर्ती.उंची  पण  भरपुर.!!!

त्यावेळी  च  आमचा  विषय  झाला  होता..या नदिचं  पाणी  जर  मुर्तिच्या  डोक्याला  लागलं तर  किती  अफाट  वेग  असेल  पाण्याचा!!!आणि  त्यामुळे  किती  नुकसान होईल  ,किती  घरं  वाहुन  जातील  यावर  आम्ही  चर्चा  केली  होती!!!!

अन  ते  खरं  ठरलं  जून  2013 ला  आलेल्या  केदारनाथ   आपदेच्या  वेळी  एवढं  प्रचंड  पाणी  आलं  की   रुषीकेशची  ती  सुंदर  शंकराची  मुर्ती   बघता  बघता  डोक्यापर्यंत  पाणी  आल्यावर  दिसेनासी  झाली..

टि.व्ही.दाखवलेले  ते  दृश्य  डोळ्यासमोरुन  जात  नाही..आजही  यु ट्युबला  सर्च  केल्यावर  पुर परिस्थितीच्या  माहितीत  ही मुर्ती  दाखवली   जाते.खूप  वाईट  वाटतं!!!!

पलीकडील  तीरावरील  पराधर्म  आश्रम,  सात  मजली  असलेलं  शिव मंदीर  फारच  छान!!

तिथे  नदीच्या  काठावर फिरुन  मार्केटमधे  बरीच  खरेदी  ही  झाली.परत  सायंकाळच्या  आरतीला पराधर्म  आश्रम  च्या  समोर  संगीतमयी  गंगा  आरती,भजने  ऐकली..इथली  गंगा  आरती सुद्धा  मस्त  असते.वातावरण  एकदम  भक्तीमय  असं.!!,

 सायं  परतीचा  प्रवास  करायच्या  अगोदर  हरिद्वार  मार्केट  मधे  गेलो..शाली,ब्लॅकेट  इथे  छान  मिळतात.इथलं  मार्केट  खूपच  मोठं  आहे.,!!!!

रात्री  जेवण  करुन  परतीचा  प्रवास  सुरु  झाला .मस्त  रमत गमत  प्रवास  चालला  होता..!!!

पण  अचानक  मेरठ  शहराच्या  चार  पाच  कि.मी..पाठीमागे  आमच्या  गाडीसमोर  रस्त्यातच  काहीतरी  पडलेलं  मला  दिसलं.एखादा  प्राणी  किंवा  अजून  काही  तरी  पांढर्‍या  गोण्या  त्यावर  टाकलेल्या  त्यामुळे  काय  आहे  हे  समझलंच  नाही.तोपर्यंत  गाडी  पार  जवळ  आली  होती..मी  ड्रायव्हर  शेजारी  असल्यामुळे  जागाच  होतो.मी  मोठ्याने  ओरडलो अरे  पुढं  बघ  काय  आहे?  पण  तो पर्यंत  वेळ निघून  गेली  होती.आमची  सुमो  त्याच्यावरुन  गेली.गतीरोधकावरुन  गाडी  उडावी  तशी  उडाली.,कडकड  आवाज  झाला.सगळे  गाडीतले  खाडखन  जागे  झाले . काय  झालय  विचारायच्या  आतच  ड्रायव्हरने  गाडीचा  बॅलन्स  सांभाळला.सगळे  खूप  घाबरलेले ..का  कोण  जाणे  पण   अनामिक  भीतीने  मी  टणटण  उडत  होतो  !!!सगळे  विचारायचे  काय  झालं?  मी  जेव्हा  सगळी  हकीकत  एका  दमात  सांगितली  आता  सगळेच  घाबरायला  लागले  न  जाणो  ...दुसरंच  काही  असलं  तर  !!!!

ड्रायव्हर  तर  प्रचंड  घाबरलेला  त्याने  सुमोचं  स्पीड  वाढवायला  सुरुवात  केली..तुफान  वेगाने  तो  गाडी  पळवत  होता..या  परिसरापासून  दूर  जाईपर्यत  आम्हीही  त्याला  कुणीच  टोकलं  नाही,,..

मेरठ  शहरात  मुख्ख  पेठेत  गाडी  आली .रात्रीचे  एक  दोन  वाजलेले होते.रस्त्यावर  कुणीच  नव्हतं,मधे  डिव्हायडर  होता  त्यामुळे एका  बाजूने  गाडी  पुढे  वेगाने जात  होती.  अचानक  मधे  एका  पोलिस  व्हॅनला  आमच्या  ड्रायव्हरने  कट  मारला.पोलीस व्हॅन  डिव्हायडर  मधून  वळत  असताना  ड्रारव्हर  ला ती  दिसली  नाही. अन  तीला  वाचवायच्या  प्रयत्नात  कट  बसला.कट  एवढा  जोरदार  की  आमचीच  गाडी  दुसर्‍या  बाजूला  धडकता  धडकता  वाचली.. पण  खेळ  तर  खरा  आता  सुरु  झाला  होता..त्या  पोलीसांच्या  जीप्सीने  आमच्या  गाडीचा  पाटलाग  सुरु  केला.आमचीही  गाडी  तुफान  वेगाने  ,.!आम्ही  सगळे  घाबरलेलो  !!,, मघाचा  प्रसंग  डोळ्यासमोर  सारखा  येत  होता.यांना  कळले  की  काय? ही  भीती  मनात  घर  करुन  राहीलेली..पोलीसव्हॅन  सुद्धा  वेगाने  मागे  येत  होती.अगदी  सिनेस्टाईल  पाठलाग!!!!पण  आठ दहा  कि.मी.आमच्या  ड्रायव्हरने  ताकास  तुर  लागू  दिला  नाही..मग  मात्र  जीप्सीचा  वेग  वाढला  अन  करकर  ब्रेक  दाबत  गाडी  आमच्या  जीपच्या  समोर  उभी  राहीली!!!

आमच्या  ड्रायव्हरनेही  गाडी थांबवली..उत्तरप्रदेश  पोलीस  खाली  उतरले  अन  पहिला  तडाखा  ड्रायव्हरला  दिला,आम्ही  सगळे टणटण  उडत  होतो.पुढे  काय  अजून  वाढून  ठेवलय  कोण  जाणे? या  अनाहुत संकटाचा  सामना  धीराने  करायचं  ठरवलं.सगळ्यांनी  झोपेतुन  उठल्यासारखे  आळोखे  पिळोखे  दिले. अन  पोलीसांच्या  बंदोबस्तात  आमची  गाडी  पोलीस  स्टेशन  समोर  मोकळ्या  जागेत  उभी  केली..पोलीसाने  ड्रायव्हर ला दम  देऊन  कहाँ से आए  हो?  कहाँ  जा  रहे हो?इतनी  स्पीड  से  क्यो  जा  रहे हो?  हमको  मारनेवाला  था  क्या?इतने पॅसेंजर  गाडी  में  क्यो  बिठाऐं?

असे  अनेक  प्रश्न विचारुन  भांडावुन  सोडलं.आम्ही  मात्र  गाडीच्या  बाहेर येऊन  सगळा  संवाद  गप्प राहून ऐकत  होतो.माझे  लक्ष  मात्र  गाडीच्या  टायरला  रक्त  लागलय का? आणखी  कुठे  काही  तुटलय  का?याकडे  होते.मी  राहुन  राहुन  या गोष्टी चेक  करत  होतो.पण  कुठेही  रक्त  नव्हतं  ना  डाग!!गाडीचा  कुठलाही  भाग  तुटलेला  नव्हता...अर्धा  तास  झाला  तरी  पोलीसांचा  बडीमार  तन ड्रायव्हरला  फटके  सुरुच  होते..एकंदरीत  अंदाज  घेतला  की  फक्त  जोरात  कट  मारला  एवढ्या  कारणावरुन  गाडीचा  पाटलाग  त्यांनी  केला  होता  .मी  स्वतःला  सावरलं  अन  एका  मित्राला  घेऊन  पोलीस स्टेशन मधे  प्रवेश केला.साहेबांच्या  समोर गेलो.साहेबांनी  कुठून  आलात?कुठं  चालतात?अशा प्रश्नांची  सरबत्ती  सुरु केली.

मी  म्हटलं  ,साहब  हम  महाराष्र्ट से  गंगा जी  मे  स्नान  करने  आये  है,,रात  को  बहुत  देर  हो  गयी  थी  .! सुबह  पुना  जाने  के  लिए  गाडी  दस  बजे  दिल्ली  से है!इसलिए  जल्दी  पहुचने  के लिए  इस  गाडी  मे  सफर  करना  पडा!!!

आता सगळा  राग  ड्रायव्हर वर  काढल्याशिवाय  सुटका  होणार  नाही  हे  मी जाणलं  होतचं. त्यामुळे मी  साहेबांना  म्हटलं  साहब  ये ड्रायव्हर  बहुत  तेज  गाडी  बघा  रहा  है,हमने इसको  बहुत  समझाया  धीरे चलो  ,लेकीन  ये सुनता ही नहीं.आप  ही  इसको  बोलो  गाडी  धीरे चलाओ!!!

यावर  मात्र  साहेबांना  दया  आली  अन  गंगा  नहाने  आये  हो  क्या? असं म्हणत  ड्रायव्हरला  म्हणाले!,अरे  हरामखोर,ये लोग  इतनी  दूर  से  गंगा  नहाने  आए  है,और  तु  साला  इनको  मारने  पे तुला  है. !!!इससे  आगे  धीरे  से  जाना  और  सहीसलामत  दिल्ली  पहुचाना.!!!

माझ्याकडे  पोलीसाने  फोन  नंबर देत  ,अगर  इसने  कोई  परेशानी  दी  तो  मुझे  फोन  करना  बाद  मे  इसे देखता  हुँ!!असे म्हणत  गाडी  सोडली  अन  आमचा  सगळ्यांचाच  जीव  भांड्यांत  पडला.तिथून  लगेच  बाहेर  पडलो.ड्रायव्हर  मात्र  मस्तवालच  होता,  बाहेर  आला  अन  पोलीसांना  दिल्ली  पर्यंत  शिव्याच  देत  होता...!सकाळी  दिल्लीत  पोहोचलो  अन  दहाच्या  ट्रेनने  पुण्याला  रवाना  झालो.  


अशा  या  प्रवासात  घडलेल्या  प्रसंगाने   एक  शिकलो  की  कठीण  प्रसंगात  सुद्धा  जर  वातावरणाचा  अंदाज  घेऊन   बोललं ,वागलं  तरच  भीती  कमी  होऊन  मार्ग  निघतो.बरीच  वर्ष  झाली  या  गोष्टीला  पण

पण  ती  रात्र  मात्र  आमच्या  चांगलीच  लक्षात  राहिली.!!!!


शब्दांकन—श्री.सतिश  नानासाहेब  कोळपे

तांबेवाडी   ता.दौंड  जि.पुणे

पायी  ज्योत  सोहळा....सप्तश्रृंगी  गड   नाशिक.!!!!!!


नवरात्र  ऊत्सव  म्हणजे  आमच्या  गावातील  चैतन्याचा   ऊत्साहाचा  सोहळा..चौदा  वर्षापुर्वी  आम्ही  गावातील  तरुणांनी  एकत्र  येऊन  ज्योत  सोहळा  सुरु  केला..पहिल्यांदा   कुंरकुंभ  ता.दौंड  येथून पायी   ज्योत  आणून  सुरुवात  केली..त्यानंतर  दरवर्षी  टप्पे  वाढवत  नेले  ..मांढरदेवी,राशीन,

मोहटादेवी,कोल्हापुर,तुळजापुर,येडेश्वरी,अंबाजोगाई   अशा  प्रसिद्ध  ठिकाणाहुन  ज्योत  आणण्याचे  धाडस  तरुणांनी  केलं..गावातील  लोकांचं,महिलांचं  भक्कम  आर्थिक  पाठबळ  होतचं !! तरीही  टेम्पो,,छोटा  हत्ती,टु— व्हिलर,डिझेल,जेवन  यासाठी  ही  अनेक  दानशूर  व्यक्ती  तयार  होत  गेल्या.

यासाठी  सामाजिक  कार्यात  अग्रेसर असणारे  डाॅ.संदिप  खेडेकर,,नवनाथ  चोरामले,मिरवडीचे  गावचे  जालिंदरभाऊ  शेंडगे,रघुनाथ  पिंगळे,दादासाहेब  कोळपे.,लखन  पवार ,गोकुळ  जगताप, यांनी  वाहनांची  व्यवस्था  दरवर्षीच  अगदी  मोकळ्या मनाने  उपलब्ध  करुन  देऊन  या  सोहळ्याला  भक्कम  पाठबळ  दिलं.

चार पाच  वर्षापुर्वी  घटस्थापनेच्या दिवसापर्यंत    रक्कम  गोळा  होईना!!ज्योत  च  नियोजन  तर  वणी  वरुन  आणायचं  ठरलेलं!!!काय  करावे  समझेना??

सायं.  सात  वाजता  तरुणांची  मिटींग  मंदिरात  बोलावली..दुसर्‍या  दिवशी  जायचे  असल्यामुळे सर्व  जण  गोळा  झाले  ..आजपर्यत  जमा  झालेली  रक्कम  ,व्यवस्था  याची  सर्व माहिती  मित्रांना  दिली..पुढे  काय करायचे  असे  विचारले  ..ज्योतसाठी  अजून  पन्नास  हजार रु.कमी  पडत  होते..शेवटी  सारसार  चर्चा  करण्यात आली.अन  सर्वानीच  मनावर  घेऊन  प्रत्येकी  पाचशे  रुपया  प्रमाणे  शंभर मुलांनी  दोन  तासात  पन्नास  हजाराची  रक्कम  जमा  केली  अन सप्तश्रृंगी  गडावर   जायचंच  हा  निर्धारही  केला..,,,,!!!!,

आतापर्यतचं  सर्वात  जास्त  अंतर  तांबेवाडी  ते  नाशिक  दोनशे पन्नास  कि.मी.व तेथुन  सप्तश्रृंगी  गड  ऐंशी  ते  पंच्याऐंशी  कि.मी.   असा  तीनशे  चाळीस  कि.मी.चा  प्रवास  रनिंग  करण्याचे  नियोजन  झालं.  

सकाळीच  एका  टेम्पोत  स्वयंपाकाची  भांडी,गॅस,किराणा  टाकून  घेतला.मोठ्या  टेम्पोत,छोटा  हत्तीत  व टु  व्हिलरवर  एकूण  ऐंशी  जण  निघाले   .काही  जण  शेवटच्या  दिवशी  आडवे   येण्याचं  ठरलं.शिक्रापुर,,पाबळ,

नारायणगाव  करत  सिन्रर  पर्यंत   अंधार  पडला..खूप  दूरवर   असल्यामुळे  वेळ  लागत  होता..सिन्नरच्या  पुढे  एके  ठिकाणी  मंदिरात  पाण्याची  सोय  पाहून  स्वयंपाक  बनवला.,रात्रीचे  साडेनऊ  वाजले  होते,,.तिथुन  नाशिक  करत  वणी  रोडने  नांदुरीत  पोहोचलो.गाड्या  आगेमागेच   होत्या  .रात्री  बारा  साडेबाराला  सप्तश्रृंगी  गडावर  पोहोचलो..तिथे  मस्त  एक  हाॅल  भाड्याने  घेतला.व  मुक्काम  केला.दोन  दिवस  अन  एका  रात्रीचे पळण्याचे  नियोजन  होतं.पण  वळणांचे  रस्ते  ,,दूरवरचं  अंतर  !!!पाहून  आमच्यातल्या  काही  जेष्ठ  मंडळीच्या  म्हणण्यानुसार  पहाटे  निघावे    असे  ठरले .पहाटे  सगळ्यांनी अंघोळी उरकल्या  लवकरच  मंदिरात   गेलो..दर्शन घेतलं.,पुजार्‍यांकडून   देवीची  ज्योत  पेटवून  घेतली..आणि  वाजत  गाजत  खाली  उतरलो..रात्रीच  दहा दहा  जणांचे  ग्रुप  पाडले  होते.कुणी  दिवसा  पळायचे,कुणी  रात्री  पळायचे  हे  नियोजन  सर्वाना  सांगितलं  आणि  ज्योतीचा  प्रवास  सुरु  झाला. पळणार्‍या  व्यक्तीच्या  पायात  मोजे   दिलेले  होते.अंधार  असल्यामुळे  डोक्याला  बॅटरी  होती..अंधार  असतानाच  घाट  उतरुन  पायथ्याला  नांदूरी  गावापर्यंत  आलो..दिवस  उजाडला..आणि  पळणार्‍या  तरुणांनी  गती  घ्यायला  सुरुवात  केली..पुढे  वीस कि.मी.अंतरावर  नाष्टा  बनवायला  सांगितला  होता..जेवण  बनवणारे  अन   त्यांच्या  मदतीला  दोन  तीन  जण  असं नियोजन  केलं.साडेआठ  वाजता  नाष्ट्याच्या  ठिकाणी  ज्योत  पोहोचली.तिथून  पुढे  दुसर्‍या  ग्रुपचा  नंबर  होता..मस्त  पोह्यांचा  नाष्टा  करुन  निघालो.नाशिक  रोडच्या  पुढे   गेल्यावर  जाऊन  जेवन  बनविण्याच्या  सूचना  देऊन  स्वयंपाकाचा  टेम्पो  पुढे  पाठवला..अन  आम्ही  नियोजनात  बदल  केला.पळणारी  मुले  पिक अप  जीपने    ने पुढे   नजरेच्या  टप्प्यात सोडत  जायचं अन  पाठीमागे  छोटा हत्तीने  मुलांना  मागे  उचलत  चलायचं.पळण्याचं अंतर  थोडं  थोडं  असल्यामुळे  मुलांचा  पळण्याचा  वेग  वाढला  आणि  पाहता  पाहता  अंतर  झपाट्याने  कापलं  जाऊ  लागलं.बारा  वाजता   नाशिकमधे  ज्योतीची  एन्र्टी  झाली..ट्रॅफिकमुळे  मुलांचा  वेग  मंदावला.मोजे  फाटल्यामुळे  पाय   चरचर  भाजत  होते.पण  मुलांचा  जोश  कुठेही  कमी  पडत नव्हता.नाशिकमधून  पुन्हा  नवीन  मोजे  घेतले,दुपारच्या  कडक  उन्हात एक  वाजता नाशिक  रोडचा  रेल्वे  ब्रीज   पार केला.पुढे  चारपाच  कि.मी.अंतरावर   जेवण  तयार  झाले  होते..ज्योतचा  प्रवास  अखंड  चालू  होता.सगळ्यांनी  जेवन  उरकले  अन   पुढे  निघालो..आचार्‍यांना  पुढे  संगमनेर  मध्ये  चांगली  जागा पाहून रात्रीचे  जेवण  बनवण्याची  सूचना  देऊन  ज्योत  बरोबर  निघालो..सगळं  नियोजनानुसार  सुरु  होतं.नाशिकच्या  वीस कि.मी.बाहेर  आल्यावर  अचानक  आभाळ  भरुन  आलं,रिमझिम  पाऊस  आला  अन मुलांचा  उत्साह  आणखीच  वाढला.ज्योत  ने  सिन्नर  ओलांडले  अन  अंतराचा  अंदाज  घेऊन  सावकाश पणे  ज्योत  पुन्हा  ग्रुप  प्रमाणे   धावू  लागली..सायं  सहा  वाजता  संगमनेरला  प्रवेश केला  अन  तुफान  पाऊस  सुरु  झाला.ज्योत  वरती  छत्री  धरुन  चालतच  संगमनेर  शहरातून   शहराबाहेर  आलो..शहराच्या  बाहेर  उजव्या  हाताला  भव्य  असं  कार्यालय  आहे..त्या  कार्यालयाच्या  मालकांनी जेवण  बनविण्यासाठी  कार्यालय  उघडून  दिले होते.तिथपर्यंत  आलो.ज्योत  वाल्या  तरुणांनाही  पाऊस  उघडे  पर्यंत  थांबण्याच्या  सूचना  दिल्या.त्या  मोठ्या  निवार्‍यात  भोजन  समारंभ  पार पडला.पाऊस  सुरुच  होता..रात्री  दहा  वाजता पाऊस  कमी  झाला.रात्री एक  वाजेपर्यत  पळणार्‍या  ग्रुपवर  जबाबदारी  सोपवली.एक  वाजता   दुसर्‍या  टु व्हिलर  ग्रुपला  थांबण्याच्या  सुचना  दिल्या.मोठा  टेम्पो  बोटा  गावात  जायला  सांगून  आराम  करायला  सांगितलं.!!!

नियोजनानुसार  सर्व  सुरु  होतं पण पावसामुळे  रात्री पळताना  मुलांना  अडचण  येत  होती..त्यात  मोठ्या  गाड्यांची  वर्दळ  नाशिक  रोडवर  जास्त  त्यामुळे  सुरक्षित  अंतर ठेऊन  काळजी  घेऊन  मुलं  एक एक  करुन  घाट  रस्ता  पार  करत  होती.एक  वाजता  जिथे  मुलांना  थांबायला  सांगितलं  होतं  तिथे  कुणीच  नव्हते.पावसामुळे  मोबाईल  लागेना  .हा  ग्रुपतर  घाटामुळे  दमलेला.काय करावे  समझेना?  शेवटी   छोटा हत्ती ताब्यात  घेऊन  रात्रीचंच   बोटा  गाठलं.तिथं दुसर्‍याच  ग्रुपला  उठवलं  तेही  पळायला  लगेच  तयार  त्यामधे  आण्णाभाऊ,आप्पा  डुबे,जयवंतदाजी  यांचा  सकाळी  पळणारा  ग्रुप  पण  त्यांना  रात्रीच  माघारी  नेलंं.ज्योत  त्यांच्या  ताब्यात  दिली.पाऊस  थांबला  होता,.त्यांनी  ज्योत  पळवायला  सुरुवात  केली  अन  पहाटे  पहाटे   पावसामुळे  तिथेच  बाजुच्या  एका  मंदिरात  झोपलेला  रात्री  पळणारा  ग्रुप  जाॅईन  झाला  अन  मग  काय  हा  हा  म्हणता  म्हणता  दिवस  उगवायला   ज्योत  बोटाऐवजी  नारायणगावला  पोहोच  झाली,.नारायणगाव मधे  मस्त  चहा  बनवला  सगळे  फ्रेश  झाले. अन  दहा  वाजता  नाष्ट्याला  ज्योत  पाबळमधे  पोहोचली.तिथेही  पावसाने  हजेरी  लावली.छोटा हत्तीच्या  पाठीमागे  ताडपत्री धरुन ज्योतचा  प्रवास  काही  अंतर  झाला.पाऊस  उघडल्यानंतर  तरुणांनी  पुन्हा  एकदा  टप्पे  टप्पे  करत  रनिंगचा  वेग  वाढवला.अंतर जवळ येईल  तसा  ऊत्साह  वाढतच  राहिला . दुपारी  एक  वाजता  भीमा  नदिच्या काठावर  विठ्ठलवाडी  येथे  दुपारचा  जेवनाचा  बेत  मस्तच  झाला  होता..आता  इथुन  पुढे  अंतर  अगदी  थोडच  राहिल्यामुळे  न पळता  चालत चालतच  ज्योत  खामगाव  वरुन  पाच  वाजता गाडीमोड  या  ठिकाणी  पोहोचली.,सगळा  गाव  चौकात  जमा  झाला  होता..तिथून  पुढचा  तांबेवाडी  पर्यंतचा   ज्योतचा  प्रवास  ज्या  उत्साहात  झाला  त्याचा  आनंद  अवर्णनीय  असाच!!!!

सायंकाळी  संपुर्ण  गावाला  वेढा  मारुन  ज्योत  मंदिरात  आणली.विधिवत  पुजन करुन  देवीची  स्थापना  करण्यात  आली..आणि  पुढचे  नऊ  दिवस  वेगवेगळ्या  कार्यक्रमांचं  आयोजन  करुन  नवरात्र  ऊत्सव  आनंदाने  पार पडला.

एवढ्या  दूर  जाऊन  जाऊन  ज्योत  आणल्याचा  प्रत्येकालाच  अभिमान  वाटत  होता,सगळे  खुश  होते..एकीच्या  जोरावर  एवढं मोठं  केलेले  धाडस  आणि  नियोजन , परफेक्ट  जमलं  होतं.,,,,!!!!,यामधे  काहींना  पाय  दुखीचा त्रास झाला  पण  आमचे  मित्र  डाॅ.संदिप  खेडेकर  यांनी  तरुणांना  मोफत  ट्रिटमेंट  दिली..तरुणांच्या  ऊत्साहाला    मोलाची  साथ  अन  प्रेरणा  देणारे  डाॅक्टर  कार्यक्रमाला  आवर्जुन  वेळ देतात.आणि  मुलांच्या  एकीचं  कौतुकही  करतात..

ऊन,पाऊस  अन रात्रीची पर्वा  न  करता  तरुणांनी  अतिशय  ऊत्साहात  हा  सप्तश्रृंगी  देवी  चा  ज्योत  आणण्याचा   मानस  पुर्ण  केला,..गावात  कितीही  राजकारण  असले  तरिही  ज्योतच्या  निमित्ताने  सगळे एकत्र  येतात..हे  ज्योत च  खूप मोठं  वैशिष्ठ  म्हणावं  लागेल,.सगळी  तांबेवाडीतील  तरुण  मुलंही  खूप  समझदार..!!!,

सांगितलेल्या  सुचना  सर्वजण  काहिही न बोलता  फाॅलो  करत  होते...कारण  नियोजन  एकाने  केले  तर  जुळते ., 

जास्त  जणांचे  नियोजन  असेल तर  नियोजन  बिघडू  शकते?!!!  

सर्वांनीच  जी  साथ  यावेळी दिली  त्याला  मनोमन  सलाम  करुन  मंदिरात  सर्वांचे  आभार  मानले.अन जे  जास्त  पळाले  त्यांचा  सन्मानही  केला.हा  सोहळा  तरुणांच्या  कायम  स्मरणात  राहिल  असाच  होता..!!!


शब्दांकन—

श्री.सतिश  नानासाहेब  कोळपे  

तांबेवाडी  ता.दौंड  जि.पुणे


पर्यटनातला  

ह्दयस्पर्शी     क्षण...!


एकदा  असाच  बद्रिनाथला  गेलेलो  असताना   बरेच  लोक  माझ्याबरोबर  होते.संजय महाराज  त्यांचे  आई  वडील,मामा  मामी ,बहिण ,दाजी,

महाराजांचे  बंधू  त्यांची  फॅमिली,मुले,शिवा,त्याच

बरोबर  करमाळ्याच्या  सरकारी  दवाखान्यातील  सिस्टर  कुरुलकर मॅडम  असे  बरेच  जण..!

रेल्वेने  हरिद्वारला  पोहोचलो.हरिद्वार वरुन  

बद्रिनाथला  जायच्या  गाड्यांची  कमतरता  होती..!!तीन  ,चार  दिवसानंतरचे   बुंकींग  मिळत  होते  पण  इतके  दिवस  काय करणार  म्हणून   दोन  जीप  करुन  बद्रिनाथला  जायचे  ठरले.जीप  ठरवल्या आणि  निघालो.बसपेक्षा  जीपमधल्या  प्रवासात  या  मार्गावर  छान  वाटतं.पाहिजे  तिथे   थांबता  येते..आमच्या  बरोबर असणार्‍या  महिलांना  या  घाट  रस्त्यात  मळमळायला  लागलं.काहीच्या  उलट्याही  झाल्या  पण  निम्म्या  रस्त्यात  आलेलो पुढे  जाण्याशिवाय  पर्याय  तर  नव्हताच...!

त्यांना  जोशीमठपर्यंत  इतका  त्रास  झाला  की  शेवटी  मागच्या  सीटवर  दोघींना  झोपवून  न्यावे  लागलं. त्या  अनूभवानंतर  एक  गोष्ट  शिकायला  मिळाली  ती  म्हणजे   ज्याला उलटीचा  त्रास  आहे  त्यांना  घेऊन या  पहाडी  भागात  प्रवास  करु  नये..!!!!इतका  त्रास  झाला  आम्हांला  की  विचारता  सोय  नाही.!!

बद्रिनाथ  धामला  गेल्यानंतर  मात्र  त्या  फ्रेश  झाल्यावर  मला  बरं  वाटलं.दोन  दिवस  मस्त  बद्रिनाथ धाम,माना गाव  फिरलो.बद्रिनाथच्या निसर्गाच्या  सानिध्यात  मन  रमून  जातं. 

पुन्हा  त्यांना  घेऊन  हरिद्वारला  येतानाही  तोच  त्रास  पुन्हा!!!!

हरिद्वारला  आल्यानंतर  हायसं वाटलं. 

संजय  महाराजांमुळे  एवढ्या  सगळ्यांची  सोय  निरंजनी  आखाडा   ,हरिद्वार  .या  ठिकाणी  झाली होती.

तुम्ही  आजपर्यत  अनेक  महाराज  पाहिले असतील.अंगाला भस्म  लावून फिरणारे, डोंगी, तपस्वीचा  आव आणणारे, स्वताची  टिमकी  मिरवणारे  ...!  पैशासाठी  हपापलेले,   फसवणारे...!

पण  संजय  महाराज  म्हणजे आमचे  परम मित्र  एक  जगावेगळं व्यक्तीमत्व,प्रेमळ माणूस...!

कधीच  गर्व न करणारा  स्वताच्या  मस्तीत  जगणारा,देवपुजा,योग  आणि  भटकंती  करणारा  एक  चांगला मित्र...!

महाराजा  सोबत  आजपर्यंत  अनेक  साधू  लोकांना  भेटण्याचा  योग  आला,अगदी  घर सोडून  आलेले,घराच्या  जबाबदारीला  वैतागून  आलेले,कुणी  परमेश्वराच्या  भक्तीत  तल्लीन  होऊन  आलेले,  बालब्रम्हचारी, नागा  साधू,  तपस्वी, अशा  अनेक प्रकारचे  ...!!!

मुळतहः  हि  सगळी  माणसंच ,!! पण  विरक्त  अवस्थेला  पोहोचलेली.

जेव्हा जेव्हा  या  साधूंना  भेटलो तेव्हा  तेव्हा  त्यांना  बोलतं  करुन  त्यांना  जाणून  घ्यायला  संजय महाराजांची  खूप  मदत  झाली..!!!!

मग  ते  ज्वालादेवीचे   कानफाटे  साधू असुद्यात  नाहितर  गंगोत्रीचे सिताराम महाराज.बद्रिनाथच्या  गुहेतील  तपस्वी  असोत  किंवा  तेलंगणाचे  महादेव स्वामी...!!खूप  वेगळ्या  वेगळ्या  गोष्टि  ऐकायला  मिळायच्या  पण  संजय  महाराज  अतिशय  हुशार  आणि  सावध  माणूस..!!सावध  या  अर्थाने की  बर्‍याच  वेळा  मोह  माणसांना  दुखाःत  टाकतो.महाराजांनाही  नर्मदा  तिरी, हरिद्वार ,काशी  ,बद्रिनाथ,या ठिकाणी  आश्रम  सांभाळण्याची  अन  ऐशोआरामाची  जिंदगी  जगण्याची  आॅफर  अनेक  बड्या  महाराजांनी  माझ्यासमोर  दिलेली  पण  हा  मित्र मात्र  आपल्या  गावातील  मंदिर  सोडून  जायला  कधीही  तयार  झाला  नाही..त्यांचे  असं म्हणणं होतं की  लोकांना फसवून  मी  कधीही  आनंदी  राहू शकत  नाही..आहे तसं  मनासारखं  स्वछंद  जीवन  जगायचे  कुणाच्याही  बंधनात  जखडून  जायचं नाही.

अशा  या  माणसा बरोबर  हरिद्वारच्या  निरंजनी  आखाड्यात  मुक्काम केला..! मठाधिपती  म्हणजे  वेगळीच  पावर असणारा  महात्मा..!

त्यांच्या  सांगण्यावरुन  आम्हांला  एकदम  पाॅश  अशा  रुम,  किचन उपलब्ध  करुन  देण्यात  आल्या ..!

हरिद्वारचा  आश्रम  खुप मोठा,गंगेच्या  काठावर चा  सर्वात  जुना  आश्रम..!असंख्ख  गाई  ,त्यांच्या  खाण्याची  व्यवस्थाही  मोठी.  सेवेकरी,  नवशिखे  तरुण  साधू  हे  सगळे  राबणारे..!!दिवसभर  आपलं नेमून  दिलेलं काम  बजावून  ध्यानधारणा  करणे  एवढंच  काम.सगळ्यांनी  एकत्रित  जेवन  करण्याची  मठाची प्रथा..!!अगदी  मठाधिपती  सुद्धा..!

आम्हाला  किचन मध्ये स्वयंपाकासाठी   लागणार्‍या  सगळ्या  गोष्टी  पुरवण्यात  आल्या  होत्या.भरपुर  दुध, गावरान तुप,ही  हवं तेवढं..!!

सायं .मठाधिपतीनी  संजय महाराजांना  बोलावणं केलं.महाराज  म्हटले  सर चला  तुम्ही पण  !!,अशा  मोठ्या  व्यक्तीशी  ते  सहसा  कुणाला  भेटू देत  नाहित..!

पण महाराजांमुळे  त्यांच्या बरोबर गेलो..आणि  पाहिलं तर  तीस  पस्तीस  वर्षाचा  तो  तेजस्वी मुलगा  पुढे बसलेला..!काय  तो  त्याचा  थाट..!एखाद्या  मंत्र्यालाही  नसेल असा  !!!त्यांचा  तो  हाॅल  म्हणजे  त्यांचा  महाल..!सेक्युरिटी   तर  पावरफुलच..!!!!,

सुक्या  मेव्याच्या  मोठमोठ्या  प्लेट भरलेल्या..!अगदी  ऐशआरामी  जीवन..!

पण  महात्म्याच्या  तोंडावरच  तेज  आणि  बोलण्यातला  गोडवा  काही   औरच.ते  बोलताना सतत ऐकत रहावं असं..!त्यांनी  माझी अन संजय  महाराजांची  विचारपुस ही अगदी  अदबीने केली.गुजरात ,कर्नाटक!मध्यप्रदेश  इथल्या  आश्रमांविषयीही  बरंच  बोलणं  झालं.खूप  इतंभुत माहिती ते  देत  होते..आश्रम कसा चालतो,पैसा कुठून येतो,खाद्य  कुठून  येत यावरही  माझ्या  प्रश्नांना  खूपच  छान  आणि  खरी  उत्तरही  त्यांनी  दिली...!!!

मठाधिपती  यांच्याबरोबर  झालेली  चर्चा ही   अगदी  मनमोकळी  !!!!

त्यांचा  निरोप  घेऊन  रुमवर  आलो.मठाधिपती  यांच्याशी  जवळचा  संबंध  असल्यामुळे  संजय महाराजांच्या  खातीर दारीत  इतर  साधू  नेहमी  पुढे पुढे  करतानाही  मी  पाहिले..त्यांच्या  सोबत  जेवतानाचा  आनंदही  घेतला..दोन  तीन  दिवसात  हरिद्वार,रुषीकेश  ही फिरलो.मठात  ते दोन तीन  दिवस  फारच  मजेत  गेले..!सर्व तरुण  साधूंनी  खुप काळजी  घेतली आमची...त्यातला  राजू  नामक   साधू  म्हणजे  नुकताच   घर सोडून  आश्रमामधे  आलेला.यापुर्वी  दोन वर्ष तो नर्मदातीरावरील  आश्रमात  होता..ऐन तारुण्यात  पत्करलेला  हा  साधू  होण्याचा  त्यांचा  मनसुबा ,सेवेसाठी  सतत तत्पर  असणारा  स्वभाव  सगळ्यांनाच  खूप  भावला..!साधुंचं दर्शन घेताना त्यांचा आर्शिवाद रिकाम्या हाताने न घेता   काहीतरी  दक्षिणा  ठेवावी  हा  पायंडा  असतो.पण  इथे  तो मला  कुठेही  जाणवला  नाही..तिन  दिवसांच्या  मुक्कामानंतर आम्ही  सगळे सकाळीच  पहाटे पाच  वाजता   

हरिद्वार स्टेशनला  चालत  आलो..!!गाडी  लागली  होती...!

तेवढ्यात  राजू  पळत पळत  धापा  टाकतच  आला.एवढ्या पळत  येण्याचं मी त्याला  कारण  विचारल  तर  त्याने  दोन तीन  हजार रुपये माझ्यासमोर  धरले.म्हटला  सर जी  ,  आप मे से किसी  का पैसा  रुम मे टेबल पर  पडा हुआ  मिला  ,मुझे  लगा  आपको  ट्रेन  मे  इसकी  जरुरत  पडी  तो  आप  क्या  करेंगे?  इसलिए  दौडते  हुए  आया!!!

मी  आमच्यातल्या  सगळ्यांना  विचारले  कुणाचे  पैसे  राहिले?! तर  कुणीच  माझे  आहेत  हे  सांगायला तयार  होईना !!आणि  राजू ही ते ठेऊन  घ्यायला  तयार होईना!!!!

त्यांची  पैसा  परत  देण्याची  तळमळ  मला  त्यावेळी  खरंच  हादरवून  सोडणारी  होती.!!!!पैसे  परत करायला  आणि ते  ही  सापडलेले !!!! सहसा  कुणीच  तयार नसत.!!!पण  त्याची  तळमळ पाहुन  मलाच  रहावेना   मी जरा  जोरातच  ओरडून,,  कुणाचे  पैसे आहेत ? म्हटल्यावर   कुरुलकर  मॅडमने  पैसे  त्यांचे असल्याचे  सांगितलं.मी  म्हटलं  कसे काय  विसरलात  ?   तेव्हा  कुरुलकर  मॅडमने  सांगितलं सर,गेले  तीन  दिवस  एवढी  व्यवस्था  या  लोकांनी  आपली  केली  ,ना  ओळख  ना  पाळख  पण  आत्मीयता  काय असते  मला  समझलं..!!राजूने तर  खूपच  सेवा केली,.मग  मला वाटल  या रुणातुन  मुक्त  होण्यासाठी  दोन तीन हजार रुपये  द्यावेत  म्हणून  मीच ठेवले  पैसे तिथे!!!

मॅडमचा  मुद्दा  मलाही पटला  पण  राजू  ऐकेना !!!एकही  रुपयाला  हात  न लावण्याची  त्याची  प्रतिज्ञा आठवली अन   शिवाने  आणि  मी  त्या  तरुण  राजूचे  रेल्वे  स्टेशनवरच पाय  धरले!!!

राजू  चा  तो  अनुभव  आम्हाला  साधूंच्या  या दुनियेत  विचार  करायला  लावणारा  ठरला.!अशी मनाचा  निग्रह ठाम असलेली बोटावर  मोजण्याइतकी  माणसं  आपल्यात  शिल्लक  आहेत  याचं  खरंच  कौतुक  वाटलं आणि  राजू चा  अभिमान सुद्धा!!!

एकही रु.न  घेता  राजू  आल्या पावली परत गेला.आम्ही  मात्र त्याच्या  पाठमोर्‍या  आकृतीकडे  पाहतच  राहिलो..अशा  अनेक  सुखद  गोष्टी  मला  या  भटकंतीत  अनूभवायल्या  मिळाल्या...!!!


शब्दांकन— 

श्री.सतिश नानासाहेब  कोळपे  

तांबेवाडी  ता.दौंड  जि.पुणे

भुलेश्वर.......!


पुणे  जिल्ह्यात  दौंड  आणि पुरंधर  तालुक्याच्या  सीमेवर  वसलेलं  भुलेश्वर  देवस्थान  म्हणजे  परिसरातील  सर्वांचे  श्रद्धास्थान...!

माझ्या  गावापासुन  चौदा  ते पंधरा  कि.मी.वर  महादेवाच्या  डोंगर रांगेत  वसलेलं  महादेवाचं  प्राचीन  शिवमंदिर...!

आम्ही  लहान  असताना  श्रावण  महिन्यात  या  शिवमंदिरात  परिसरातील  सगळेच  लोक  पायी  प्रवास  करत  जायचे.वाहनांच्या  सोई  उपलब्ध  नव्हत्या..!

त्यामुळे सकाळीच  लवकर  घरुन  सगळे निघायचे.बांधुन  घेतलेली  शिदोरी  सोबत  घेऊन  यवतपर्यंतचा  प्रवास   गाडरस्त्याने  म्हणजेच  शेतात  जाणार्‍या  चिखल  माती च्या रस्त्यातून  करावा  लागायचा. .येथूनच  सगळे आठवडे  बाजारासाठी  यवत  ला  चालत  जायचे  त्यामुळे  याला  बाजार रस्ता नाव पडलं  ते आजही  तसच  आहे.तेथून  पुढे   कच्चा  रस्ता  खडीकरणाचा.!दोन्ही  बाजूला  काटेरी  झुडपं.!!

भुलेश्वर  मंदिराच्या  पायथ्याला  पोहचले की  सगळे जण  मस्त  झाडाच्या  सावलीत  बसून  जेवण  करायचे.पायथ्याला असलेल्या  हनूमान  मंदिरात  दर्शन  घेऊनच  डोंगर चढायला  सुरुवात  करायचे.तीन  चार  कि.मी.  ची  चढण  चढताना  थकायला  व्हायचं पण  मंदिराजवळ पोहचलं की  सगळा  शीण  निघून  जायचा.!दुपार  व्हायची  तेथे.!!मंदिरात  दर्शन  घेऊन  पाण्याच्या  कावडी  खांद्यावर घेऊन  ढोल ताशांच्या  गजरात,हर हर महादेव  ची  गर्जना करत  कावड वरती  यायची..!टप्पे  टप्पे  करत वरती चढणारे  भाविक  पाहताना  सगळं  वातावरण  भावविभोर  होऊन  जायचं.देवाला  त्या  पाण्याचा  अभिषेक  झाला की  मग  सगळे  पुन्हा  चालत घाट  उतरुन  घरी  चालत यायचे.सायंकाळ  व्हायची..घरी  पोहोचायला !!!

पण  दरवर्षी  नित्यनियमाने  महिला,मुले  सुद्धा  या  यात्रेत  आनंदाने  सामील  व्हायची...!

मी  इयत्ता  सातवीत  असताना  च्या  अगोदरच  माझे  तेथे  फिरायला  जायचे  नियोजन  ठरलेलं  होतं.इतरांचे ऐकून  काय  काय  बरोबर न्यायचे,कुठून चढायला  सुरुवात  करायची,गर्दित चुकल्यावर काय करायचे  याचे  सर्व नियोजन  मी  केलेलं  होतं.!!अगदी लहान असताना,  कधी  गेलेलो नसतानाही  कसे जायचं हे इतरांना  विचारुन  ठरवलेले.जनरली  सातवीत  मुलं गेली की  घरचे सुद्धा  भुलेश्वरला  जायची  परवानगी  द्यायचे.!!

मी  तांबेवाडीतील  आमच्या  गावच्याच  शाळेत  सातवीत  गेलो  अन  श्रावण महिन्याच्या  यात्रेची  माझी  तयारी  चालू झाली.गावातली  अनेक  लोकं  चालायला  असायची  पण  आपआपल्या  ग्रुपने !!!मग  मी ही मित्रांचा  एक ग्रुप तयार केला..!!पुर्वी  आमच्या  शाळेची  चौथीची  परिक्षा  केंद्र स्तरावर  यवत स्टेशनला  व्हायची.परिक्षा  द्यायला  पायीच  गेलो  होतो.त्यामुळे  यवत स्टेशन पर्यत  चालत  गेलो  तरी  डेअरिंग  बर्‍यापैकी  वाढलेलं होतं.

श्रावण  महिना  उजाडला.आम्हाला  शेवटच्या  सोमवारी  सुट्टी  असायची.त्या दिवशी  जायचं  नियोजन  ठरलं  .!!

सकाळीच  लवकर  उठलो,अंघोळ  आटोपली  तो पर्यंत सगळे जण  भाकरी बांधून  तयार!!!

मी ही भाकरी  बांधून घेतली अन  आम्ही  लवकरच  बाजार रस्त्याने  चालायला  सुरुवात  केली..सगळे जण  आनंदाने  उड्या  मारतच  चालायला  लागले..बंधनातून  मुक्त  झालेल्या  पक्ष्यासारखा  स्वच्छंद  विहार  करत  सगळे  निघाले.!!!गाडरस्ताने  काटे  चुकवत  चालताना  एखाद्याला  टोचलेला  काटा   ,काट्यानेच  काढून  पुन्हा  पुढे  सरकत  होतो..!!!

यवत स्टेशन पर्यतचा  प्रवास केला.स्टेशनवरिल  रुळावरुन पलीकडे  जाऊन  मस्तपैकी  पोटभर पाणी  पिऊन तृप्त  झालो.स्टेशनबाहेर  पडून  यवत  पर्यतचा  प्रवास  काळ्या  दगडीतुन..!

प्रचंड  मोठमोठे  काळ्या  रंगाचे  दगड  खूप  मोठ्या  प्रमाणावर  तिथे  असल्यामुळे त्या  परिसराला नाव  पडले  काळी  दगडी..!येथे  चोर लपलात  अशी  ऐकलेली  कथा  त्यामुळे  सगळ्यांनी  भीतभीतच  काळ्या  दगडीचा  तो  टप्पा  पार  केला.यवतला  कॅनाॅल  शेजारुन  भुलेश्वर  रोडने  निघालो.चालणारांची  संख्खा  भरपुर.वाटेत  ,पाणी  ,केळी वाटप  ही  होत  होतं.मस्त  चालत  चालत  पायथ्याजवळ पोहोचलो.झाडांच्या  सावलीत  जेवन  केलं.हनूमान मंदिरात  दर्शन  घेतलं अन  पायवाटेने  डोंगर  चढायला सुरुवात  केली..दम  लागत होता तरी  ओम नमः शिवाय  म्हणत  वरती  चढत  जात  होतो..वरुन  दिसणारं दृश्य  पाहून  आपलं  गाव कुठं दिसतय  याचा  अंदाज  लावत  होतो.वरुन  दिसणारी  शेती  भारीच  दिसत  होती.!!

वर  जाऊ  तस तसा  वारा  वेगाने  वाहू  लागला.हवेमुळे  थकवा  जाणवत  नव्हता.मध्यभागी  शक्तीबाबांचा  आश्रम  आहे.तिथे  पोहचल्यानंतर  झाडांच्या  सावलीत  आराम  केला.तिथे मस्त  गोमुख  आहे.गोमुखातून  वाहणारं  पाणी  फारच  छान.इथून पुढचा  टप्पा  अगदी  तीव्र  चढ  असलेला.,घसरणीचा  रस्ता   .हात  टेकवतच  वरती  गेलो अन  मंदिराजवळ  पोहोचून  जिंकल्याच्या  आनंदातच  शंभू महादेवाचे दर्शन  घेतले.घाटातून  वरती  येणारी  कावड  डोंगरावर  बसून  पाहिली. मंदिर  अतिशय  पुरातन,हेमाडपंथी  पद्धतीचे  सुंदर  बांधकाम.!!दुरुन  पाहिल्यावर  घोड्याच्या  आकाराचे   प्रेक्षणीय  असं मंदिर!!पांडवानी  एका  रात्रीत  मंदिर  बांधल्याची  कहाणी  ,,जी  अनेक  ठिकाणी ऐकायला  मिळते  तशीच!!!!

मंदिरात  सुंदर  नक्षीकामाने  सुशोभित  दगडी  झरोके!

दगडी  सुंदर अशा  मुर्ती!!मंदिरात  जाण्याचा  मार्ग ही  अंधार्‍या  अशा  चकवणार्‍या  जागेतून  जाणारा!!!वरती  गेलं की समोर  दिसतो तो  भव्य असा  नंदी.सुंदर अशा  दगडी  महिरपात  बसलेला  भव्य  नंदी  !!!हाताला  अतिशय  गुळगुळीत  लागणारा  दगड  तिथे  वापरलेला..तेथील खांबावरही  छान नक्षीकाम..!मंदिरात  दगडांच्या  असंख्ख  कोरलेल्या मुर्ती  पण  कुणाचे  हात  ,कुणाचे  पाय तर  कुणाचे  शीरच  कापलेले.असं म्हणतात की,अफजलखानाने  प्रतापगडावर  जाताना  येथे  येऊन  या  मंदिराचा  विध्वंस केला.!तरिही  असलेल्या  मुर्ती  पाहण्यासाठी  अनेक  पर्यटक  आवर्जून  इथे  भेट  देतात..इतिहासाच्या  या  दृष्टीनेही  अत्यंत  महत्वाचे  ठिकाण!!!!

मंदिरात  गेल्यानंतर  गर्दी नसेल तर  पुजारी  आपण  आणलेले प्रसादाचे  पेढे  एका  डिशमधे  ठेऊन  पिंडीवरचा  गोल  दगड  बाजूला करुन  डिश  आत  ठेवतात.थोड्या  वेळाने  खडखड  आवाज  येतो  आपणही तो  ऐकू शकतो.आवाजानंतर  पुजारी  पुन्हा  डिश  बाहेर  काढतात तर  डिश  रिकामी  असल्याचे  दिसते.चमत्कारच  म्हणा  किंवा  अजून काही , पण  हा अनूभवही  मी  स्वतः घेतलेला  आहे.

मंदिराच्या  बाहेर  छान  झाडांची  दाटी  दिसते . असंख्ख  पक्षी  ही  इथे पहावयास  मिळतात.पडलेले काही  बुरुज  ही  दिसतात..इथे शिवरायांचा दौलत मंगळ  हा  किल्ला  होता.पण  त्याचे  काही  भाग  सोडले तर  काहीही  शिल्लक  राहिलेले नाही.किल्ला  पुरातत्व  खात्याच्या  ताब्यात  आहे..

कावड  पाहुन  यात्रेत  भरपुर  फिरलो  अन  दुपारनंतर  पुन्हा  पायवाटेने  खाली  उतरत  आलो.आता  मात्र  पायाचा  वेग  आपोआप  वाढला  होता.पायथ्याला  येऊन  यवत वरुन  पुन्हा  घराकडे  सायंकाळी  अंधार पडताना  परतलो..या  पायी  प्रवासाचा  आनंद  आम्ही  दहावीला  जाईपर्यत  1995 पर्यत  बर्‍याच  वेळा  घेतला.नवनवीन  गोष्टी  त्यातुन  शिकलो.त्यानंतर  सायकली  आल्या  आमच्याकडे.मग  सायकलवर  पायथ्यापर्यंत  व वरती  चालतच  जाण्याचा  नित्यनियम  बरीच  वर्ष चालला,.काळाच्या  ओघात  बसेस ,जीपची  संख्खा  वाढली तसा  पायी अन  सायकल प्रवास  कधीच  बंद  झाला.आता  मंदिरापर्यत  गाडी  जाते.प्रवास  सुखकर  झाला  पण  तरिही  भुलेश्वरला  गेल्यानंतर  मंदिर  पाहून  मन कधीच  भरत  नाही..फक्त  श्रावणातच  नव्हे तर वर्षभर  पर्यटक  या  ठिकाणी  येत असतात.

अतिशय  सुरेख  अन  सुंदर  मंदिर  पहायला  आता  आम्हाला  काळ,वेळ  लागत  नाही . कधी  रात्री तर  कधी दिवसा  आम्ही  आवर्जुन   भुलेश्वरला  जातो अन  ते  जुने  दिवस  आठवतो.!!!

लहानपणीची  ती  मजा  आताच्या  प्रवासात  येत  नसली तरी  मन मात्र  त्या  सुखद  आठवणी ने  प्रफुल्लित  होतं हे मात्र नक्की!!!आवर्जून  पहावे  असे  सुरेख  मंदिर  पुण्यापासुन  चाळीस  कि.मी.अंतरावर . पुणे  सोलापुर  हायवेला  यवतपासून  नऊ दहा  कि.मी.उजव्या  बाजूला  आहे.हायवे वरुनच  डोंगरावरील  मंदिर  आपलं लक्ष  वेधून  घेतं. !!!!आवर्जुन  पहावं  असं  देखणं  शिल्प ,भुलेश्वर!!!!!



शब्दांकन—

श्री.सतिश  नानसाहेब  कोळपे

तांबेवाडी  ता.दौंड  जि.पुणे


तिरुपती  बालाजी......!


मित्रामध्ये  गप्पा  मारताना   फिरायला  जायचे म्हटले की , खूप  पैसा  खर्च  होतो  या विषयावर  चर्चा  चालू होती..अचानक  मी  आलेला  पाहून  सगळ्यांनी  मला  बोलावलं अन म्हटले दादा,,फिरायला  खूप  पैसे  लागतात  ना  रे? तु  सांग  बरं यांना?

मी  अगोदर  परिस्थिती  पाहिली.सर्वावर  एक  मस्त  नजर फिरवून  पाहिले.,मित्रामध्ये  असे  अनेक  जण  होते  जे  फिरतही  नाहीत  अन  दुसर्‍याला  पण  फिरण्यापासून  परावृत्त  करतात..सगळी  परिस्थिती  ओळखून  ग्रुपचा  ताबाच  घेतला  म्हणा ना!!!!

कोण  म्हणतं  फिरायला  जास्त  पैसे लागतात?अशा  माझ्या प्रश्नावर  दोन तीन  मित्रांची  नाव  पुढे आली..आणि मग  त्यांना  मी  विचारले  हायस्कूलची  मुलांची ट्रिप दोन दिवस गेली  तर  किती  पैसे भरावे  लागतात.मित्रांचे  उत्तर  होतं ,हजार रु.लागतात.!!!

मग मी म्हटलं  दोन दिवसात  हजार  ना  मग  मी  तुम्हांला  एक हजार पाचशे रुपयात   दूसर्‍या  राज्यात  फिरवून  आणू  शकतो..मित्र म्हटले  शक्यच  नाही!!!!!

मी  चॅलेज  घेतलं अन सगळ्यांचे  दिड  हजारा  प्रमाणे  पैसे  गोळा  केले..2009  साली  नुकतीच  स्वाईन फ्लु ची  साथ  आली  होती.तरिही  जवळ  जवळ विस  मित्र जमा  झाले..मग काय  ?झालं नियोजन  सुरु  !!!

पुण्याला  जाऊन चेन्नई एक्सप्रेस चं रिटन  तिकीट  बुक केलं.आॅगस्ट  महिना  चालू होता..सगळ्यांची  तयारी झाली पण  स्वाईन फ्लु चा  प्रकोप  सुरुच  होता..त्याला  घाबरुन  तीन चार जणांनी   यायला  नकार दिला पण  आम्ही  ठाम होतो. जायचं  म्हणजे  जायचंच!!!!

त्यांचे बुकिंग  कँन्सल करुन पंधरा  सोळा  जणांना  घेऊन  दौंड  गाठलं.बर्‍याच  जणांनी लागणार्‍या वस्तूची खरेदी केली.अन सायं  मुंबई चेन्नई  एक्सप्रेसने  दौंडवरुन  प्रवासाला  सुरुवात केली..गाडीत सर्वाना  रिझर्वेशन  असल्यामुळे सगळे खुश होते.दंगा मस्ती ,गाण्याच्या भेंड्या,आणि चर्चाना  ऊत  आला  होता..भिगवण  स्टेशन पार केल्यानंतर  टि.सी. आणि  रेल्वे सुरक्षा बलाचे  जवान  खिडक्या  बंद  करायला  सांगत होते ,चौकशी अंती कळलं की,सिंगल  लाईन असल्यामुळे इकडे गाडी  सोलापुर पर्यंत बर्‍याच  वेळा  थांबते  अन  गाडीत  काही जण  चोर्‍या ,लुटपाट  करतात.प्रवाशांवर  दगडांचा हल्ला करुन लक्ष विचलित केलं जातं,अन चोरटे  डाव साधतात..आम्हीही खिडक्या बंद करुन घेतल्या,.बरोबर आणलेल्या  जेवणाचा  सर्वांनी  मिळून मस्त  फडशा  पाडला.एकत्रित  जेवणाची  मज्जाच  न्यारी!!!!!पोटभर जेवण करुन  मस्तपैकी  सगळे झोपी गेले.सकाळी सहा वाजता  गाडी  गुंदकल  स्टेशनला  थांबली होती,सगळे जण फ्रेश झाले चहा  झाला अन पुन्हा  गप्पाची  मैफल रंगली.बाहेर  निसर्गाचा  आनंद घेत  दगडांचे  ढिगारे,डोंगरावरील दगड  सगळा  भागच  निराळा.!सुंदर  अशा  त्या  भागातुन जाताना  कडाप्पा  आलं,,कडाप्पा  फरशी  ज्यामुळे नाव पडलं ते हे ठिकाण!!!

सगळीकडे  कडाप्पा  फरशीच्या  खाणीच  खाणी.कडाप्पा  ते  रेणीगुंठा  स्टेशन  दरम्यान  असलेलं  जंगलही  मोठं.

गाडी एक  वाजता  रेणीगुंठा ला पोहचली..रेणीगुंठा  स्टेशन  मस्त आहे.स्वच्छताही  खूप सुंदर.!!

स्टेशनच्या  लोखंडी  पुलावरुन चालत  स्टेशन  बाहेर आलो.महात्मा  गांधीच्या  पुतळ्या शेजारीच  तिरुमला  येथे  जाण्यासाठी  जीप  आणि बसेस लागलेल्या  असतात.रेणीगुंठाला  महाराष्र्टीय  हाॅटेलमध्ये  जेवण करुन  बस मध्ये बसलो.. तिकीट  होतं 33 रुपये..!तिकिट  काढलं अन  तिरुपतीत  पोहोचलो.एका गेटवर  गाडी  चेकींगसाठी थांबवण्यात  आली.सगळ्या  बॅगा  चेक  करण्यात  आल्यानंतर  गाडी पुढे  निघाली.इथून पुढचा  वीस किमी.प्रवास  सगळा  जबरदस्तच.!!

पुर्ण  डोंगरातुन  ,जंगलातून असलेला  वळणांचा  निसर्गरम्य  असा प्रवास!!

हिरवीगार झाडं,जंगल  निसर्ग  अगदी  मनमोहक  असा!!

रस्ते तर एवढे  भारी  की  विचारता  सोय नाही!!!

बालाजी  मंदिरावळ  स्टँडला  आम्हाला  सोडलं  .आम्ही  लगेच सेंन्र्टल बिल्डिंग ला गेलो  .दोघे जण  रुम बुक करायच्या लाईन लागलो.बाकी सर्वाना  बॅगा  जवळ  रस्त्याच्या  बाजूला  बसवलं.अर्धा  तासात  आमचा  नंबर आला.आम्ही  दोन रुम  बुक  केल्या.साडेतीनशे  डिपाॅजिट  आणि  पन्नास रु.भाडे अशी  रक्कम  काउंटरवर  जमा केली..बाहेर  आलो.रुम कुठे आहे याची  चौकशी केली  तर  जवळच  रुम  मिळाली होती.  रुम  अगदी  भारी.स्वच्छताही खुपच  छान  झाडांच्या  गर्दित  असलेली  रुम सर्वानाच  खूप आवडली.मस्तपैकी  अंघोळी करुन सगळे फ्रेश झाले. तोपर्यत  पाच  वाजले होते.सगळेच  लगेच  कल्याण  कट्ट्यावर  गेलो.दहा  रु.देऊन  लगेचच  केस काढून सर्वाचे  गुळगुळीत  टक्कल केले..इथे पैसे द्यावे लागत नाहीत  पण दिले नाहीत तर  मात्र वस्तर्‍यांचे  चार दोन वेळा ब्लेड  लागून रक्त  निघालच   समझा !!!तिथून  मस्तपैकी  देवस्थानच्या  भोजनालयाकडे   गेलो.प्रचंड  मोठं अन  तितकच  स्वच्छ!!!जेवणही  अगदी मस्त!!भात  सांबर आणि  तुपातली  लाप्सी  .जेवणाना  मित्रांमध्ये  जी  मजा  आली    ती  खरोखर  लक्षात  राहील  अशी कारण दक्षिण  भारतातील  लोकांची  खाण्याची  पद्धत  पाहून  सगळ्यांनाच  हसू  आवरत  नव्हते.फक्त  एकमेकांकडे  पाहिलं तरी हसायला  यायचं.पण आमचा  मित्र  तात्या  मात्र  दिलखुलास  पणे  जेवणाची  मजा  घेत  होता.जेवण करुन  फ्रि  दर्शनलाईन  ला गेलो.एका  मोठ्या   छानशा   हाॅलमध्ये  आम्हाला बंद करण्यात  आलं.स्र्किनवर  दर्शन   चालूच  होतं.इथे किती वेळ लागेल हे सांगता  येत नाही  पण सोईही  भरपूर..पण लवकरच  तीन  तासाच्या  प्रतिक्षेनंतर  आमचे  गेट  उघडले  गेले अन  जी  गर्दी  उसळली  नुसती  धावाधाव !!! स्पेसही  मोठा होता.!!दर्शन लाईन ने  फिरुन  मुख्ख  मंदिराच्या  जवळ आलो.मंदिरात  प्रवेश केला  पण  प्रचंड  गर्दी  अजिबातच  नियोजन  नव्हते.लहान  मुलांचे तर  प्रचंड  हाल  झाले.गाभार्‍यात  उजळलेल्या  दिव्यामध्ये दिसणारी  मनमोहक  मुर्ती  लक्ष वेधून  घेत  होती.गर्दितच  दर्शन  घेतलं.भव्य मुर्तीचा  तो  नजारा  डोळ्यात  साठवून मंदिरातून  बाहेर  पडलो.मंदिर परिसरात  दानहुडींत  दान  टाकून   लाडूचा  प्रसाद  घेतला...छान सोय आहे .भारतातील  श्रीमंत  देवस्थानची  हि सफर  मनाला  भावली.रुमवर  येऊन  आराम केला.सकाळी  फ्रेश होऊन  पुन्हा बालाजी  परिसर पाहण्यासाठी  निळ्या रंगाच्या बसचा  पंधरा रु.पास  काढून  पापविनाशम ठिकाणी  फिरलो.आकाशगंगा  या ठिकाणी  खाली उतरुन  वरुन पडणार्‍या पाण्याखालची  अंघोळ  मस्तच...!तिथून खालच्या बाजूला फिरुन आलो.तिथे  एका वर एक  लगोरी सारखे  रचलेली दगडांची दृश्य  दृष्टीस  पडतात,कारण  माहीती नाही पण  दिसले  मग आम्हीही  रचले दगड!!!!!माघारी येऊन रुम रेन्यु करुन घेतली. पुन्हा   जेवणाचा मनमुराद  आनंद घेतला .तिथं  असणारे छान संग्रहालय  पाहिलं.रथाच्या  बागेत  मस्तपैकी  फेरफटका  मारला.मंदिर परिसरात  भरपुर  फिरलो.पुन्हा  भोजन करुन  रात्री  दंगामस्तीत  सगळे उशीरा  झोपी  गेले.सकाळी फ्रेश होऊन आंध्रा बँकेच्या काउंटरवरुन  रुमचे  डिपाॅझिट परत घेतले  अन  एका  कमांडर  जीपने  दुसर्‍या रस्त्याने  जंगलातुन  खाली उतरलो.हा ही  रस्ता  मस्त  आहे..पायी  जाणारे  भाविक  याच  रस्त्याला  क्राॅस करुन  वरती  चढत  होते.परिसर अगदी  छानच..स्वच्छतेच्या  बाबतीत  बालाजी  मंदीर आणि परिसर इतकं  स्वच्छ  ठिकाण  दूसरं  नाही..!!!हरिप्रिया  या ठिकाणी  असलेल्या  कपलेश्वर  धबधब्यांचा  आनंद  घेतल्याशिवाय  ही  ट्रिप पुर्ण  होऊच  शकत  नाही.अतिशय  सुंदर धबधबा !!!तिथे  भिजण्याचा  अन  पुढे असणार्‍या  पाण्यात पोहण्याचा  आनंद  अवर्णनीय  असा!!!!मनसोक्त  पोहून  ट्रिपचे फोटो धूवुन घेतले .मस्तपैकी  अल्बम  तयार केला.रेणीगुंठा  येथे  येऊन महाराष्र्टीन  हाॅटेलवर  जेवण  केलं.अन  दुपारी  पुन्हा  परतीचा  प्रवास केला  .चार पाच  दिवसामध्ये  केलेली  ट्रिप सर्वाना  खूप काही  शिकवुन गेली.आणि खर्चाचं म्हणाल तर  पुणे टु पुणे रिटर्न 650 रु.बुकींगचे.नाष्टा,चहा,पाणी,रुमभाडे,बसभाडे,जेवण

,फोटोसह 550 रु.असा  एकूण  खर्च आला  1200 रुपये.तीनशे शिल्लक  राहिले म्हटल्यावर  सगळ्यांनी  100  रु.वाल्या  खालेल्या  आइसक्रिम  आठवतात.कारण  पैसे  संपवायचे  होते.पण तरीही  दोनशे रुपये सर्वांनाच  रिटन  दिले.कमी पैशात  बालाजीची  केलेली  ट्रिप  सर्वाना  आनंद  देऊन  जाणारी  ठरली.आणि  तिथून पुढे  मात्र  माझी  दिवाळी अन उन्हाळी सुट्टी आली की  कुणी ना  कुणी  माझ्याबरोबर फिरायला  यायला  सुरुवात  झाली.त्यानंतर वेष्णोदेवी,कश्मीर,वाघा बाॅर्डर,सिमला कुल्लु मनाली  ट्रिपमध्येही  बरेच  जण  सहभागी  झाले.  बालाजीलाही  जाण्याचे  योग  नेहमी जुळतात.फोर व्हिलरनेही  बालाजी  ला  गेलो येताना  कोल्हापुर  करुन  घरी..!या  ट्रिपमधे  मी,गंगाराम  तात्या,शंकर मोरे मामा  ,मथुआण्णा,हिम्मत

कोळपे,निलेश,दत्ताभाऊ,श्याम  ,

त्याचा मुलगा  प्रेम ,त्याचे दोन मित्र असे पंधरा  सोळा  जण  आनंदाने  सहभागी  झाले. असा धार्मिक  ठिकाणाचा  भेट  देण्याचा  आनंद  निराळाच  असतो.मनाला  शांतीचा  अनूभव करुन  देणारा!!!!!बालाजी इज बेस्ट द डेस्टिनेशन!!!!!!



शब्दांकन . — 

श्री.सतिश  नानासाहेब  कोळपे

तांबेवाडी ता.दौंड जि.पुणे


गोवा......!!!!


काय  ?  गोवा नाव  घेतलं  की  लगेच  सगळ्यांच्या  डोळ्यासमोर  येतात  ती  सुंदर  बीचची  दृश्य!!!!!फाॅरिनर  नागरिकांची  रेलचेल!!!!  गोव्याला  फिरायला  जायचं प्रत्येकाच  स्वप्न  असतच!!!काय  आहे  गोव्यात  एवढं  की  सगळे  गोवा ट्रिप म्हटलं  की  खुश  होऊन  जातात..!!!

ओरोसला  एकदा  अधिवेशन  ठेवलं  .अधिवेशनाच्या  निमित्ताने  गोवा  पाहता  येईल  या उद्देशाने  मित्राची  जीप  केली  अन  कोल्हापुर मार्गे  ओरोसला  दाखल झालो..कोकणात  प्रवेश  करतानाच   सुंदर  रस्ते  अन  घनदाट  झाडीने   निसर्ग मनमोहक वाटत  होता.!.हायवे मस्त  असल्यामुळे  अडचण  आली  नाही..रात्री मस्त  जेवणाची  अन  राहण्याची  सोय  झाली..दुसर्‍या  दिवशी  अधिवेशन  आटोपून  पणजीकडे  निघालो.  मित्रामध्ये असा  एखादा  मित्र  असतो  जो सर्वानाच  आवडतो.अशा काही करामती  करतो की  ट्रिपची  मजाच  न्यारी.असाच एक आमचा  अवलिया  मित्र  जीवन  ..स्वतः आनंद  घेऊन  इतरांना  आनंदित ठेवणारा,प्रचंड  धडपड्या,   आणि  प्रत्येक गोष्टीत  नाविन्य  शोधणारा जीवन  म्हणजे  खळाळतं चैतन्य!!!! जीवनने  ड्रेस  चेंज  केला  .बरमुडा  अन  त्यावर  चोळीच्या  कपड्याचा  शिवलेला मस्त  शर्ट.!! विचित्र  वाटलं ना? पण  खरंच  चोळीच्या  कपड्याचा  शर्ट..काॅम्बिनेशन  एवढे  सुरेख  अन  वेगळ  की  

लोंक  आवर्जुन  त्याला  पाहत  रहायचे...!हा  आमचा  मित्र जीवन  काय  आयडीया  शोधेल  हे  सांगता  येत  नाही...त्याने केलेली  हि अफलातून  शक्कल  सर्वानाच  खूप  भारी  वाटली.दूपारी  तीन वाजता  पणजीत पोहोचलो..मांडवी नदिचा  मोठा  पुल  ओलांडून गेलं की  लगेच  उजव्या  हाताला  टर्न  मारला..अनेक  गाइड  तेथे  थांबलेले  असतात..बरेच जण  यापुर्वी  गोव्याला  आले असल्यामुळे  गाईडची  गरज  पडली  नाही..गोवा  विधान भवनाच्या  मागच्या  बाजूला  अनेक  हाॅटेल्स  राहण्यासाठी  उपलब्ध  असतात..तेथे  रुम  बुक  केली अन  निघालो लगेच  बाहेर!!!मिरामार  बीच वर धमाल मस्ती  करत  पणजी  शहरातून  पोहोचलो  ते  दोना पावला  या  निसर्गरम्य ठिकाणी.अनेक  चित्रपटातून  पाहिलेला  स्पाॅट!!दोना  पावलाला  सुर्यास्त  पाहण्यासाठी  खुप  पर्यटक  येतात..वातावरण  अतिशय  भारी! उंचीवरच्या  ठिकाणी  जाऊन  समोर  दिसणारा  अफाट  समुद्र  आणि  तेथुन  दिसणारा  वास्को दि  गामा  चा नयनरम्य  परिसर  डोळ्यांचं पारण  फेडणारा.."एक  दुजे के  लिए " चित्रपटाची  आठवण  करुन देणारे  सीन  अन  त्यात  होणारा  सुर्यास्त  अगदीच  मस्त  होता.गोव्याचा  समुद्र  किनारा  अन  तिथली  निसर्गरम्य  ठिकाणं याचं  चांगले  संवर्धन  गोवा  शासनाकडून  केलं जातय..!!!पर्यटकांना  जे हवं ते  सगळं  गोव्यात  मिळतं!!!गोवा  छान  डेव्हलप  झालेला  आहे..दोना पावलावरुन माघारी  पुन्हा रुमवर  आलो.जेवन करुन  रात्री फिरण्यासाठी  बाहेर  पडलो.विधान भवनाच्या  समोरच्या  रस्त्यावरुन   फिरत  असताना  रोडवरच  मस्त  समुद्र किनारी म्युझिक  काॅनसर्ट  चा  कार्यक्रम  चालू होता.गोव्याच्या  गाण्याची  मैफल  पाहत  थांबलो.गायकांचे  आवाजही  छान  होते..नंतर  फर्माइशी  चालू झाल्या  आणि मग आमच्या मराठी  फर्माइशीने, लोकगीतांनी  इतकी  गर्दी  त्या  ठिकाणी  जमा  झाली  की  विचारता  सोय  नाही..!!!

नंतर अगदी  गायकांजवळ  जाऊन केलेला  डान्स  ट्रिपची  मजा  द्विगुणित  करणारा ठरला.,मराठी  लोकगीतांवर  केलेला  डान्स  अन  तोही  गोव्यात  भारीच  अनूभव  होता  आमचा!!उशीरा रुमवर येऊन  झोपलो.सकाळी  निवांत  उठलो.तयार  झालो अन मंगेशी  मंदिराकडे  निघालो .अतिशय  निसर्गसंपन्न प्रदेश,रस्ते  तर  भारीच  अन मोठे ही!!मंगेशी  मंदिर  खुपच  छान .परिसरही  छान.अतिशय  प्रसन्न  वातावरणात  दर्शन घेऊन  मंदिर परिसर फिरलो.  तेथून  गोव्याची  प्रसिद्ध  चर्च  पाहण्यासाठी  गेलो.पोर्तुगीजांच्या  काळात  बांधलेली  चर्च   मस्त  आहेत.परिसरही  भव्य!!नक्षीकामही  छान!!!चर्च  मध्ये  अनेक वर्ष  जतन  करुन  ठेवलेली  ममी   ही  पाहिली..!ममी  कशी  असते  याबद्दल  खूप  आकर्षण  होतं.ती ही  गोव्यात  चर्च  मध्ये पहायला  मिळाली.चर्च  पाहून  पुन्हा  पणजी  त  गोव्याचे  सुप्रसिद्ध  बीच  पाहण्यासाठी  कलंगुट  बीच वर आलो.पांढरी  रेती,स्वच्छ  लांबच  लांब समूद्र किनारा,हाॅटेल्स,पर्यटकांच्या  सोईसाठी  अत्यंत  चांगल्या  सुविधा..!!!पळतच  सगळे  समुद्रात  गेलो  पोहण्याचा  मनसोक्त  आनंद  घेतला .डाॅल्फीन राईड,स्पीड  बोट ,पॅराग्लायडींग  याचाही  आनंद  घेतला आणि  मग  मात्र  आमचा  मित्र  जीवनने  एक  आयडीया  शोधून  काढली.तिथे  ना  कोण  ओळखत  होते  ना   कुणाला  काही  इतरांशी  देणेघेणे  अशातच  त्याने  समुद्रकिनारी  खड्डा  खोदायला  सुरुवात  केली.पाणी  येतय  की  काय  म्हणून  आम्हीही  मदत  करु  लागलो.चांगला  अडीच  तीन  फुटाचा  खड्डा  झाला  ,सगळा  कोरडाच!!!

मग  मात्र जीवन ने  त्या  खड्यात  बैठक  मारली  आणि  आम्हाला  वाळू  रेटायला  सांगितली.डोके  वर  ठेऊन  सगळा  भाग  जमिनीत!!!

मग  काय  जो येईल  तो  त्याला  पाहून  हसायचा त्याच्याबरोबर  फोटो  घ्यायचा..त्याला  पहायला  बीचवर  फिरणारे  अनेक  जण  गोळा  होऊ  लागले..आमचा  हशा  तर  सगळा  परिसर  दणाणून  सोडत  होता.परदेशी पर्यटकही  फोटो  घेत  होते..त्याची  आवर्जुन  विचारपुस  केली  जाऊ  लागली.या  जीवनची  हि  आयडिया  सगळ्यांच्या  तोंडचा  विषयच  झाली..वेगळेपण  दाखवल्याशिवाय  तुम्हाला  कोणी  विचारत  नाही  हे  मात्र  नक्की...!!!

बराच वेळानंतर  त्याला  बाहेर  काढलं  त्यानंतर  बाघा   बीच  ,अर्जुना  बीचवर ही  खूप  धमालमस्ती!!!!गोवा  म्हणजे   खूपच  छान  पर्यटन स्थळ,,सुंदर  नजार्‍यांची  जणू  बरसातच...!सायं .सुर्यास्त  बीचवरच  पाहून  माघारी  आलो.

जेवणात  थोडीसी  हयगय  होते  पण  ठिक!!!

तेथूनच  संध्याकाळच्या  क्रुझ  राईडची  बुकींग  केली,गोव्यातलं  भारी   डेस्टिनेशन!!!!

सायंकाळी  क्रुझ  वर  निघालो..सुंदर  सजवलेली  बोट,,लाईट्सचा  जबरदस्त   इफेक्ट  .बोटवर  चढलो  अन  सुरु झाला  समुद्र सफरीचा  प्रवास   डान्स,तरुणांची  बेधुंद  मस्ती सारी  व्यवस्था  बोटवर  या प्रवासात  आपण   दुसर्‍याच  दुनियेत  असल्यासारखं  वातावरण.बोटीतुन  गोव्याचा  दिसणारा  नजारा  अफलातुन  असाच!!!किनार्‍यावर  असणार्‍या  लायटिंग  मध्ये  गोव्याचं  एक  वेगळच  रुप  समोर  दिसतं.क्रुझ  राईड  मजा  आणणारी  असते.त्याची  तिकीटे  संपुर्ण  गोव्यात  अनेक  ठिकाणी  बुक  करता  येतात..!गोवा  खरंच  सुंदर  आहे.सायं.रुमवर परतलो.हाॅटेलवर मस्त  आराम करुन  सकाळी  रिटन  निघालो.सावंतवाडीत  एके  ठिकाणी  जेवायला  थांबलो..प्रवासात काय  गमती  घडतील  ते सांगता  येत  नाही..हाॅटेल मध्ये  मस्त कोळंबी  फ्राय  बनवला  जात  होता  .आम्हीही  आॅर्डर  दिली.सगळ्या  जणांनी  खायला  सुरुवात  केली.आमचा ड्रायव्हरही आमच्याबरोबर  जेवायला   होता. जशी  आम्ही  जेवणाला  सुरुवात  केली  तसा  त्या  ड्रायव्हरने  कोळंबी  फ्राय  वर  ताव  मारायला  सुरुवात  केली तीही अगदी  यथेच्छ!!!टेस्टही  भारीच  होती. आमच्या  मित्राने  कोळंबी  फ्रायची  ती  मोठी डीश  हाताने  ड्रायव्हर  समोर सरकवली  अन अगदी  सहजच  ड्रायव्हरला  म्हटला,,खा,खा,आम्ही  दररोज  खातो.!!!!यावर  ड्रायव्हर  असा  काही  वरमला  की  आजपर्यत  त्याने  खाताना  एवढी  घाई  कधीच  केली  नाही.

या  वाक्यावर  एवढा  हशा झाला  आजही  सगळे एकत्र आले  की  खा  खा  आम्ही  दररोज  खातो ,! या  वाक्यावर  प्रचंड  हशा  होतो.

अशी  गोव्याची  सुंदर  ट्रिप  मनाला  खूपच  भावली!!!!गोवा  इज  द  बेस्ट  स्पाॅट!!!!!!


शब्दांकन—

श्री.कोळपे  सतिश  नानासाहेब

तांबेवाडी  ता.दौंड  जि.पुणे

बद्रिनाथ  धाम......!


असं  म्हणतात  की  ,जो  जाएगा  बद्रि , कभी  न  आयेगा  उदरी!!!!धार्मिक  दृष्टिने अतिशय  मोठं  तिर्थक्षेत्र..! कल्पनेच्या  पलीकडचा  सुंदर निसर्ग  पहायचा  असेल  तर बद्रिनाथ  सारखी  जागा  नाही...!केदारनाथला  गेल्यानंतर  तिथून   बद्रिनाथ  ला  जायचं बसचं  बुकिंग केलं.गुप्तकाशी ,गोपेश्वर  वरुन  चमोली  अतिशय  निसर्गसंपन्न असा भाग .वाटेत  गावांची संख्खा  अतिशय कमी.या रोडवर  वर्दळही  कमीच  असते..अरुंद  रस्ता अन  पुर्ण  पर्वतामधून असलेला ,जंगलातील  वळणांचा  घाटरस्ता  त्यामुळे  बरीच  वाहने  रुद्रप्रयाग  मार्गे  बद्रिनाथला  जातात..केदारनाथ  वरुन  निघालो.गुप्तकाशी   पासून पुढे  गेल्यावर उखीमठजवळ एका टर्नवर  बसचा  पाठा  तुटला..गॅरेज जवळच  असल्याने  लगेच  ड्रायव्हरने  गाडी गॅरेजला  लावली.जर ही घटना  आधी मधी  कुठं घडली असती तर  अवघड  झालं असतं.दोन तासाच्या  प्रयत्नानंतर  गाडी  ठिक झाली अन पुढचा प्रवास सुरु झाला..अत्यंत दाट झाडीतून,उंचउंच  देवदार वृक्षामधून  जाताना  

" ये हसी  वादियाँ" 

गीताची आठवण येते.याच  भागात  कस्तूरी मृग  आढळतो.चोपता  अतिशय  रमणीय  ठिकाण  जेवणाची  सोय येथे उपलब्ध  आहे..वर्दळीपासुन  अतिदुर्गम भागात असलेलं चोपता  पाहण्यासारखं ठिकाण.जेवणाच्या  वेळेत तेथील  रम्य परिसर व मंदिर  पाहता येतं.चोपतापासुन पुढे  घनदाट झाडी व  शार्प  टर्न असलेला  दुर्गम रस्ता..जंगलात  टेन्ट  मध्ये  राहण्यासाठी  उत्तम सोई असलेली  ठिकाणं  आहेत.जंगल कँम्प  साठी  अतिउत्तम  परिसर..!चोपता ते चमोली  हा  रस्ताही  खूपच  सुंदर.गोपेश्वर  खूप  मोठं शहर.चमोलीला  पोहोचलो की पुन्हा ट्रफिक  सुरु  होतं.चमोली ते  जोशीमठ  अति रमणीय  रस्ता  .घाट रस्ता  वरती  चढत  जाणारा..इलेक्र्टीक  हायड्रो  प्रोजेक्टचं  सर्वात  मोठं  ठिकाण  इथं दृष्टिस पडत.बोगद्यामधून  पडणार्‍या  पाण्याचा  प्रवाह लक्ष वेधून  घेतो.जोशीमठ  उंचीवरचं  ठिकाण.पर्वतशिखरावर वसलेलं दाटीवाटीचं शहर.जोशीमठ  मध्ये राहण्यासाठी उत्तम  सोई  आहेत.जोशीमठ पासुन  खाली  उतरत  नदी पर्यत यायचं.नदी  क्राॅस करायची  अन  पुन्हा  अलकनंदा  नदीच्या  काठाकाठाने  असलेला  बद्रिनाथचा  प्रवास  डोळ्याना  सुखद  गारवा  देणारा.अति खोल दर्‍या  ,वेगाने वाहणारा  नदीचा प्रवाह ,वाटेत  रस्त्यावर आलेला  बर्फ  ,तो वितळून  रस्त्यावरुन वाहणारं पाणी  सुंदर   प्रवास..!!!धोकादायक  पण  तितकाच रमणीय  अनूभव!!बद्रिनाथला  गाडी  पोहोचली.छान  सपाट  अन भरपुर  जागा.!!अनेक  आश्रम,धर्मशाळा,हाॅटेल ही भरपुर.स्टँडवरुन  पुढे जात  रुम घेतली.साहित्य रुमवर ठेवलंं.सायं झाली होती .फ्रेश होऊन  मंदिरात दर्शनासाठी  गेलो.अगदी निवांत दर्शन झाले .विष्णूची छोटीशीच मुर्ती ,मंदिर अतिशय देखणं.नजरेत  ठसावं असं.!!रुमवर येऊन  एका लंगरला  मस्त जेवणाचा  आस्वाद  घेतला.रात्री आराम केला.तेलंगणाचे  भेटलेले  महादेव  स्वामी  पहिल्यांदाच  आमच्याबरोबर  आलेले  .त्यांचे तेलंगणा  स्टेट मध्ये खूप मोठं  प्रस्थ पण  माझ्याबरोबर  प्रवास  करताना  त्यांनाही  खुप  आनंद झाला.अतिशय  शिस्तबद्ध  जीवन जगणारे  महादेव महाराजांची  भेट  दिल्लीत झाली.त्यांना  हरिद्वार  पासून पुढे माहिती नव्हती.संजय महाराजांमुळे  ते  आमच्याबरोबर आले  आणि  एका  सुंदर संगतीत  प्रवास करण्याचे  भाग्य मला लाभले. सकाळी उठून  पुन्हा मंदिराजवळील तप्त पाण्याच्या कुंडात स्नानाचा  आनंद अवर्णनीय असा!!!!पाणी खूपच  गरम  !!स्नान आटोपुन  पुन्हा  भगवान विष्णुचं दर्शन घेतलं.सगळा परिसर बर्फाने   आच्छादलेला.पर्वतावरचं बर्फ  उन्हामुळे  सोन्यासारखं  चमकते.पिवळेधमक दिसणारे  ते  दृश्य  खरंच  कल्पनेच्या पलीकडचं.बद्रिनाथ धाम वरुन  चालत  पुढे  निघालो.भारताचे  अंतिम गाव"  माना " ला.    माना  गाव  पर्वताच्या  कुशीत  वसलेलं सुंदर गाव.अनेक पर्यटक  येथे  फिरायला  आलेले.सैनिकांचा  कँम्पही  येथे आहे..माना गावात  बसकी घरं.छतावर स्लब तर काही घरांवर पत्रे अन  त्यावर   फरशीसारखे  मस्त  दगड  अंथरलेले.!!आम्ही  थेट गेलो ते गणेश गुफा,महाभारताचं लेखन झालेली  जागा.नतमस्तक  होऊन वरच्या  बाजूला असलेली  व्यास  गुफा  पाहण्यासाठी  गेलो.महर्षी  व्यासाची  ती  गुफा  प्रशस्त  अशी..येथील पुजारी  एकत्र बसवून  छान  माहिती  देतात.!..माना गावचं  आकर्षक  म्हणजे  भिमपुल  आणि  सरस्वती  नदिचा  उगम..प्रचंड  वेगाने  पर्वताच्या  खालून निघणारं पाणी  मनात  भीती  उत्पन्न करतं.थोडीसी पुढ जाऊन  ती अलकनंदेत  जाऊन मिळते.याच  सरस्वती  नदीवर  पांडवांना  स्वर्गरोहणाला  जाताना  अडचण आली  म्हणून भीमाने एक  मोठा  दगड  नदिवर आडवा  टाकला  तोच  भीमपुल  आजही  आहे.अशी आख्यायिका  सांगितली जाते.भिमाची  पावलंही  दाखवली  जातात.उगम स्थळाजवळच  सरस्वतीचं छोटसं  मदिर..मस्त  आहे!,,.इथलं  वातावरण  प्रसन्न  असतं,हवाही  अगदी  थंडगार..स्वर्गरोहणाच्या  रस्त्यावर  चालत जाण्याचा  आमचा  निर्णय  झाला  अन  पुढे चालत  निघालो .आम्ही दमलो होतो तरिही  खुप दूरवर  चालत गेलो.तिथला  निसर्ग   खरंच  मस्त  आहे.बराच  वेळ घालवून पुन्हा  माघारी  माना  गाव ला  आलो.स्वर्गरोहिणी  चा ट्रेक करण्यासाठी  तीन चार दिवस  हवेत..!!

आम्ही या  निसर्गाने  प्रभावित  होऊन कितीतरी वेळ हे नजारे  पाहत होतो.सुंदर निसर्गाची  साथ  येथे  आम्हाला मिळाली.,!पर्वतावरचं बर्फ पाहताना  मन हरखून जातं.आजुबाजूला असलेली  हिरवळ  त्याला  चार  चाँद  लावते..!परत  चालतच बद्रिनाथला  आलो.पुन्हा  मंदिरात दर्शन  घेतले.आणि  परतीचं बसचं बुकिंग केलं.

      सकाळी  लवकरच  परतीचा  प्रवास सुरु केला...आणि  परत माघारी  हरिद्वारला  आलो..

त्यानंरतच्या  वेळी  जोशीमठ जवळील  औली  हिलस्टेशन  पाहण्याचा  योग  आला  .रोपवेचा  अनुभव  भारीच.बर्फाचे  प्रमाण  कमी  होतं.पण इथून  दिसणारे निसर्गाचे नजारे  खासच.!!!औलीवरुन दिसणारी  पर्वत शिखर पाहण्याचा  आनंद  काही  वेगळाच.जोशीमठ जवळ  जाताना  इतकं  सुंदर ठिकाण येथे आहे याची कल्पनाच  येत  नाही..,!!म्हणून खासगी  जीपने  प्रवास करताना   आवर्जून हे  ठिकाण  पहावे..बद्रिनाथ  वाटेवर  असणारा  गोविंदघाटचा गुरुद्वारा  मस्त  आहे..गोविंदघाट पासुन पुढे  हेमकुंड साहिब  व फुलों की  घाटी  ला  पायी  चालत  जावे  लागतं  .अजून  तिथे मला जायला जमलं नाही.  

काहीही म्हणा  पण  हिमालयातलं  हे  सुंदर  ठिकाण  बद्रिनाथ..,!!!!  खरंच  पाहण्यासारखं  अत्यंत  रम्य  असं  ठिकाण!!!!


शब्दांकन—

श्री.सतिश  नानासाहेब  कोळपे 

 तांबेवाडी  ता.दौंड   जि.पुणे

यमुनोत्री.....!

  पुणे  दिल्ली  रेल्वेने  दिल्लीत व  तेथून हरिद्वारमधे  फिरुन  रुषीकेशला आलो.कारण  यमुनोत्री अन  गंगोत्रीला  जाणार्‍या  जास्त  गाड्या  रुषीकेशवरुन  सुटतात.हरिद्वार  मधूनही  असतात  पण  कमी.!!रुषीकेशच्या  स्टँडवर  बुकिंग  केलं.मुक्काम केला.पहाटे साडेपाच  ची  गाडी  मिळाली .इथल्या  गाड्या  राइट टाइम  निघतात  कारण  रस्त्यात  किती वेळ लागेल  कोणीच  सांगू  शकत  नाही.चंबा  या  ठिकाणाला  गाडी  नाष्ट्याला  थांबली.दाल रोटी परोठा इथला स्पेशल  आयटम!!!!चारधामला  हेच  जेवण  सगळ्या  रस्त्यांवर!!!!

मस्त  पोटपूजा करुन  गाडी  टिहरी  डॅम च्या  डाव्या  बाजूने  चालली  होती.निसर्गाचा  आस्वाद  घेत  प्रवास  सुरु  होता.धरासू बेन्डला  गाडीने  यमुनोत्री  कडे  टर्न  मारला  .इथुन दोन फाटे फुटतात एक  गंगोत्री अन  दूसरा  यमुनोत्री!!!यमूनोत्रीचा  रस्ता  इथुन पुढे  छोटाच!!मस्त  निसर्ग!पर्वतावरील  घनदाट  झाडी अन  दर्‍यामधून  होणारा  प्रवास  मनमोहक  असाच!!!रस्ता  खराब  होता,बरेच  खड्डे  पण  निसर्ग  पाहताना   हेच  तर  हवं असत  अगदी  संथ  गतीने  प्रवास  ..पाच  वाजता  गाडी  पोहचली  हनुमानचट्टीत  मुक्काम  केला..इथून पुढचा  प्रवास मात्र  पायी  करावा  लागणार होता..सुंदर अशा निसर्गरम्य परिसरात  मुक्काम तर हवाच.रुम  घेतली.अगदी सहाशे रुपयात मस्त रुम..मित्रांची  धमाल मस्ती सुरुच  होती.जेवण करुन रात्री  उशीरा  झोपलो..सकाळी मात्र लवकर  उठून  सगळे फ्रेश झालो अन सगळ्यांनी  यमुना  मैया कि जय म्हणत  यमुनोत्री च्या दिशेने  निघालो.!! फुलचट्टि पर्यत  गाडीची  सोय  आहे..तिथुन  पुढे  सात कि.मी.च  अंतर  पायी प्रवास करताना  थकायला  होतं  पण  मित्रांच्या  गराड्यात  शीण  वाटत  नाही.इथे  हातात  एक  काठी  घेतली.हिमालयात  चालताना आधारासाठी  टेकवत चालण्यासाठी अत्यंत  गरजेची  गोष्ट..!फुलचट्टीपासुन बसत उठत  यमुना नदिच्या कडेने  आम्ही  टप्पे  पार  करत  वरती  चालतच  चढत  होतो..घोडा,दंडीकंडी,चीही  सोय  उपलब्ध  आहे.चालणार्‍या  प्रवाशांना  त्यांचाच  त्रास  जास्त..!!वाटेत  पाऊस  सुरु  झाला..थंडगार  वार्‍यांनी  अंग  गारठून गेलं.हिमालयात  कधी पाऊस  होईल  सांगता  येत  नाही म्हणून  रेनकोट  जरुर  जवळ  असावा..बर्‍याच  वेळानंतर पाऊस थांबला  आम्ही  पुन्हा एकदा जोशात  वरती  चढायला  सुरुवात  केली पण पावसामुळे  रस्त्याची  अवस्था  वाईट.घसरण जास्त  त्यामुळे  बराच  वेळ जपूनच  चालावं  लागलं.जसजसं  मंदिर  जवळ  आलं तसा  तसा  आमचा  ऊत्साह  शिगेला  पोहोचला.एवढ्या  वरती  चालत  आल्याचा  शीण  निघून गेला..मंदिर  परिसर  मोठा ..!!इथे  आल्यानंतरप्रथम  आम्ही सगळ्यांनी गरम पाण्याच्या  कुंडात  स्नान केले.गरम पाण्यात स्नान करुन  थकवा  निघून  जातो.पण  जास्त वेळ पाण्यात  राहिल्यावर  चक्कर सुद्धा  येते  म्हणून  जरा  जपूनच..एवढ्या  वरती  गरम  पाण्याची  ती  कुंड  म्हणजे  निसर्गाचा  अदभुत  चमत्कारच  म्हणावा..!!!कुंडात  थंड  आणि गरम  पाणी एकत्र  करुन  स्नानासाठी  मस्त  व्यवस्था  केली  आहे!!!!तप्त कुंडातील पाणी  उकळतं  आहे.पाणी  इतक  गरम  की  रुमालात  बांधून  तांदूळ  टाकले तर काही  मिनिटात  भात  तयार  .हाच प्रसाद  मंदिरात  चढवला  जातो.कालींदी पर्वत शिखराच्या  कुशीत वसलेलं यमुनोत्री मंदिर  फारच     छान  आहे .राणी  गुलेरिया  हिने  आताचे  मंदिर बांधल्याचा  उल्लेख  आढळतो.वरुन  येणार्‍या यमुना  नदीचा  प्रवाह  भारीच..पुर्वी  मंदिरापर्यत  बर्फ  असायचा  नदिचा  उगमही  इथेच  पण  वाढत्या  उष्णतेमुळे  बर्फ  वितळत  जाऊन पर्वतावर  दोन किमी  अंतरावर   उगम  स्थळ  पोहचलेलं  आहे ,.असे  सांगण्यात येते.!!!वरुन  खाली  येणारी  यमुनेची  धार  पहाण्यासारखी  आहे.येथे  उगमापर्यत  आपण  जाऊ शकत  नाही  त्यासाठी  अनूभवी  ट्रेकर्स  पाहिजेत..!मंदिरात  पूजा  करुन  माथा  टेकवला  अन  एवढ्या  दूरवर  येऊन  मस्त दर्शन  झाल्याचा  आनंद  झाला..यमुनोत्रीचं  मंदीर  छान  आहे.निसर्गाच्या,

हिमालयाच्या   भव्यतेचा  नजारा  इथे  पहावयास  मिळतो.अतिशय  सुंदर  असा  हा  यमुनोत्रीचा  प्रवास  ,!!!!

उत्तराखंडच्या   चारधामपैकी  एक  असे  यमुनोत्री  म्हणजे  यमुना  नदीचं उगम स्थान.दिल्लीतून  वाहणारी  यमुना   हि  तीच!!!!परिसरात  बराच  वेळ फिरुन  परत  माघारी निघालो. निसर्गाचं ते अनोखं रुप पाहत  मन  हरखुन जातं. किती  ही  वेळ  पाहत रहावं अशी  सुंदर  दृश्य.!!!  माघारी  रुमवर  आलो.येऊन  जाऊन  चौदा  कि.मी. प्रवासाने  पाय  दुखत  होते..पायाला  मस्त  मालीश  करुन  घेतली..रुमवर  मालीशवाले  येतात.पन्नास रुपये घेऊन  मालीश  करतात..!!हनुमानचट्टी,स्थाना चट्टि व  जानकीचट्टीत  राहण्याच्या  सोई  उपलब्ध  आहेत.आपल्याला  सोईचे  वाटेल  तिथे  मुक्काम  करता  येतो.पण  माघारी  लवकर रिटन  यायचे  असेल  तर  हनुमान  चट्टी   बेस्ट   !!!!

हिमालयातला  हा  प्रवास  खूपच  सुंदर  असा!!!!आवर्जून  भेट  द्यावी  असे हे  ठिकाण!!!


शब्दांकन  —

श्री.सतिश  नानासाहेब  कोळपे

तांबेवाडी  ता.दौंड जि.पुणे

एक  अनूभव  असाही.....!


1999  सालची  गोष्ट काॅलेजच्या  परिक्षा  संपल्या अन  निवांत  झालो.सुट्टिला  जातानाच  आमचा  एक आदिवासी  भागातला   मित्र जयवंत   गावीत.जो नंदुरबार  ला  राहतो.त्याची फार इच्छा  सर्वानी  माझ्या  गावी  यावं.कारण  काॅलेजला  असताना  नगर,पाथर्डी,कळवण,

नाशिक, संगमनेर  अशा  मित्रांच्या  घरी  जाणे  झाले होते त्यामुळे त्यालाही  वाटायचे  माझ्याही  घरी  यावं.पण परिक्षा संपली अन  सगळे आपआपल्या  कामात  दंग  होऊन गेले.पत्रव्यवहार  व्हायचा  तेवढा  नियमित.!!एक  दिवस  गावीतच  पत्र आल  सगळ्यांनी  एक  दिवस या.लॅन्डलाईन  सर्व मित्रांना  फोन केले पण  खूप  लांब  असल्यामुळे  आणि  कामं असल्यामुळे  कोणीही  तयार होईना..!मित्र  तर  जिवाभावाचा  काय करावे!!त्याला तर खूप  वाईट  वाटेल  म्हणून  मी  एकट्याने  त्याच्याकडे  जाण्याचा  निर्णय  घेतला.या  भागात  कधीही  गेलो  नव्हतो,अनोळखी  भाग   पण  आपला  मित्र तिथे  आहे  या  एकाच  गोष्टिवर निघालो..त्याला  पत्र पाठवून मी  केव्हा  येणार आहे? .तु स्टँडवर कधी ये.?या सगळ्या  गोष्टीची  तयारी  करुन  मी  पुण्याला  आलो.शिवाजीनगर  एस.टी.स्टँडवर  आलो.नंदुरबारला  जाणारी  बस  रात्री  आठ  वाजता  निघाली  होती.बस  पुण्याहून  निघाली. शिरुर  मार्गे  नगर  करत बस राहुरीला  जेवणासाठी  थांबली  होती..जेवण  झाल्यानंतर शिर्डी  करत बस निघाली.झोप  लागली  ते  थेट सकाळी  सहा वाजता  धुळ्यात  जाग  आली..धुळ्यावरुन  नंदूरबारला  पोहचलो.सकाळीच  मित्र  येऊन  थांबला  होता.मला  पाहताच  कोण  आनंद  झाला  त्याला!!!!गळाभेटच  घेतली  गड्याने..!!नंदुरबार  मधून   दहा एक  कि.मी.अंतरावर  झराळी  नावाचा  त्याचा  तो  पाडा..मुख्ख रस्त्यापासुन  दोन  एक  कि.मी.आत.....एस.टी.ने  फाट्यावर  पोहचून  चालतच  त्याच्या  घरी  पोहोचलो.त्याचे  आई वडील,भाऊ  यांनाही  खूप  आनंद  झाला..विस पंचवीस घरांची  वस्ती  ती.!!!पण  घरांची  स्वच्छता  वाखाणण्यासारखी.तांदळाची  एक  चक्की.सर्वाच्या  घरासमोर  भरपूर  गुरं,जनावरे..

झराळी  त  वस्तीच्या  खालच्या  बाजूला  भला  मोठा  ओढा  अन  त्या  ओढ्यात  सगळे  स्वच्छ  पाण्याचे  झरे!!!म्हणून  गावाचं नाव पडलं झराळी.!लोक  जरी  आदिवासी  असले तरी  शेतीत  केळीच्या  बागा  बहरलेल्या  होत्या.राहणीमानात मात्र  बदल  नव्हता  तरुणांची  फॅशन  मात्र  फॅशनच  होती.!!!!आमचा  मित्र  तेवढा  त्यातून  निवडून  निघालेला..आपल्या  जयवंत चा  मित्र  पुण्यावरुन  भेटायला  आलाय म्हटल्यावर    सगळी कडे  आपुलकीने  विचारपुस  होत  होती.बर्‍याच  वेळा भाषेचा  प्राॅब्लेम यायचा  पण  मित्र निभावून  नेत  होता..ऐरणी  भाषा  फारच  मस्त.मला  तर येत नव्हती  काही  काही  शब्द  तेवढे  समझायचे..पण प्रेमाच्या  त्या  भाषेला  कशाचीही  गरजच  नव्हती..सजवलेली  घर  पाहुन  आदिवासी  भागात  येऊन एक  शानदार  गाव  मला  पहायला  मिळाला  होता..रात्री  मस्तपैकी  जेवणाचा  बेत झाला..आणि  मित्र  आलाय  म्हणून  आदिवासी  नृत्याचा  अन  आदिवासी  पद्धतीने  स्वागताचा  आनंद  मिळाला.मी  पेंगत  होतो  तरीही  या लोकांचा  ऊत्साह  काही  कमी  होत  नव्हता.उशीरा कार्यक्रम संपला अन  झोपायला  गेलो..शेणामातीने  सारवलेलं  मस्त  घर  ..!झोपही  छान  लागली.बर्‍यापैकी  शब्द  मला  कळायला  लागले  होते. सकाळी  मस्त  नाष्टा  करुन  नंदुरबारला  फिरायचा  प्लॅन  केला.झराळी  गावच्या  दोन कि.मी.अंतरावर  एक  बंधारा आहे  तिथे सगळ्या  झर्‍यांचं  पाणी एकत्रित  येते  आणि  तिथूनच  अनेक  गावांना  पाणीपुरवठा  करण्याची  सोय   आहे.तिथे  मस्त  मोठामोठाली  झाडे  आहेत.तिथंच  बस  येते.आजूबाजूच्या  पाड्यावरची  मंडळी  सकाळच्या  एस टि.ने  नंदुरबार ला  जातात  एवढीच  ती  काय  सोय.!!!बर्‍याच  वेळानंतर   खडखड  करत  एक  एस.टी.आली.खिडक्या सगळ्या  तुटलेल्या.मागून पुढून  सर्वत्र  तुटलेल्या  अवस्थेत फक्त  कलर वरुन  ओळखायचं एस.टी.आहे.गाडी  थोडा वेळ थांबली.अन  पुन्हा चालूच  होईना   ,किती  प्रयत्न  केले पण  ती काय  चालु व्हायचं  नाव घेईना!!शेवटी आम्ही  कंटाळून पुन्हा चालत  चार कि.मी.रोडवर आलो.दुसर्‍या एसटी  ने नंदुरबारला  आलो.नंदूरबार  शहर  नवीन  जिल्हा  झालेला.सर्वत्र  पत्र्याची  शेड.बरिच  घरंही  पत्र्याचीच..मार्केटमध्ये  फारच  गर्दी.भरपुर फिरलो  त्यावेळी.!नंतर  नंदुरबार मध्ये  असणारं  उंचीवरचं  प्रेक्षणिय ठिकाण अन दर्गा .तिथुन दिसणारे  नंदूरबार  छोटच  नजरेत  मावणारे  .उंच  बिल्डींग  नावालाही  नव्हती..वरती  चालत  जाऊन  आलो.छान  अनूभव!!!!अजून बराच  वेळ होता म्हणून  एका  टाॅकिजध्ये  चित्रपट  पाहिला.टाॅकिजच  नाव  नाही  आठवत  पण  मार्केट मध्ये  असल्यामुळे  खुप गर्दी  होती.गरम  व्हायचंं  खूप  !!!त्यावेळी  चित्रपट पहायचं खूप  वेड  होतं.सायंकाळच्या  एस टी  ने  पुन्हा  झराळीत...रात्री  पुन्हा  जेवणाचा  बेत..टेस्ट  तर  खुपच  भारी...!रात्री आराम करुन  दुसर्‍या  दिवशी  झरे पहायला  .!!!!.!सगळा  परिसर  फिरलो..त्याचबरोबर  गावीतच्या  सगळ्या  मित्रांनी  तुरिच्या  काड्या  म्हणजेच  तुर्‍हाट्या  गोळा  करुन ढिग  केला.केळीचे  दोन तीन  घड  तोडले अन  तुर्‍हाट्यावर  टाकून  ती  पेटवली..काय  चाललय  समझत  नव्हतंं  फक्त  फिस्ट  आहे असंच  म्हणायचे,..!तुर्‍हाट्या  संपल्यावर  सगळ्यांनी  ती   जळालेली  केळी  बाहेर  काढली  आणि  वरची  जळालेली  त्राल  सोलून खायला  दिली.सगळे जण  आरडा  ओरडा  करत आवडीने भाजलेली  केळी  खात  होते  .मी ही  थोडी  खाल्ली.शिजवलेल्या  बटाट्यासारखी  लागणारी  तिची  चव  पाहून  मी  जरा  खाण्याचा  मोह  आवरला.कशीबशी  एक केळी  खाल्ली अन बस्स.!!!सगळ्यांनी  मात्र  यथेच्छ  फिस्ट  केली..केळी  खाण्याचा  नवीनच  प्रकार  पहायला  मिळाला आज.!.   गावात  जनावरं खूप  पण  चहा  कोराच ,चौकशी  केल्यावर कळल  इथे एकही गाय  दूध  देत  नाही.इथली  माणसं म्हणे  गाय  उडवतात  म्हणजे  एखाद्याने  गाईकडे  पाहिलं की  गाय  दूध देत  नाही..किती खरं किती खोटं ? पण  झराळीत  एवढ्या  गाई  पण दूध  नव्हतच!!!!त्याचबरोबर  अनेक  लोकांना , तरुण  मुलांना  रातआंधळेपणा  ...!!आहाराच्या  कमतरते  मुळे   किंवा  त्यांच्या  मतानूसार  पाण्याचा  दोष..!पण  समस्या  गंभीर...!

मित्राच्या  घरचा  यथेच्छ  पाहुणचार  करुन  तीन चार  दिवसांनी  पुन्हा  परत  आलो..पण  तिकडचे  अनूभव  आणि  मित्रांच्या  घरच्यांनी   दिलेला  स्नेह   मी  कधीही  विसरु  शकत  नाही...!काळाच्या  ओघात  पुन्हा  त्याच्याकडे  जाता आले  नाही  पण  त्यावेळचं  नंदूरबार   मला  खुपच  आवडलं साधस  जीवन  अन  तितकीच  प्रेमळ  माणसं सुद्धा!!!!!!


शब्दांकन—श्री.सतिश  नानासाहेब  कोळपे 

तांबेवाडी  ता.दौंड  जि.पुणे


गंगोत्री  ....!!!


राम  तेरी  गंगा  मैली  हा  चित्रपट  मी  किती  वेळा पाहिला  असेल  याची  गिनतीच  नाही..कारण  त्यातील  गंगोत्री  अन  हरसील च  मनमोहक  लॅन्डस्केप  .पहायला  खूप  मस्त  वाटायच  अशा  ठिकाणी  जायलाच  हव  असा  नेहमी  मनात  विचार  यायचा..अन  तो  योग  आला. माझा  जिवलग  मित्र  दत्ताभाऊ  आणि मी  गंगोत्रीला  जायचा  बेत  केला.संजय महाराजांना  यायचे  का  विचारले  तेही तयार  झाले..आणि  रेल्वेचा  प्रवास  करुन दिल्लीला  न उतरता  अंबाला कँन्ट ला  उतरलो.इथून हरिद्वारला  जाण्यासाठी  अनेक  बसेस व  जीप ची  व्यवस्था  उपलब्ध  असते..हि सेवा रात्र दिवस  चालू असते.आम्ही मात्र  रेल्वेने  जाण्याचा  निर्णय घेतला.कारण  रोडने  यमुनानगर  जवळ  रस्ता  इतका  खराब  होता की  नको  इतका  त्रास  झाला होता  गेल्या वेळी!!!!म्हणून पहाटेच्या  पंजाब मेलने  हरिद्वारला सकाळी  आठ  वाजता  पोहोचलो..पण  तोपर्यंत  गंगोत्रीला  जाणार्‍या  सर्व गाड्या  निघून गेल्या  होत्या.रुषीकेश वरुन गाडी  सापडेल या  आशेने रुषीकेश ला  पोहोचलो तर तिथेही गाडी मिळाली नाही.शेवटी सायं.बस चं बुकिंग करायचे ठरवून  रुषीकेश मध्ये  बस स्टँन्डजवळच   रुम  घेतली.दुपारपर्यत  रुषीकेश  मुनी की रेती  इथं मस्तपैकी फिरुन आलो.अन  तीन वाजता बस बुकींगसाठी  गेलो.बस माघारी पोहचेपर्यत  बुकींग होणार नाही अस बुकींग क्लर्क  ने सांगितले.साडेचार वाजता  बस पोहचली अन  गंगोत्रीचं  बुकींग  चालू झालं.बुकिंग  केलं रुमवर आलो तर माझं डोकं दुखायला  लागलं ,अंगात ताप भरला  .काय करायचं  आता..आजारी असताना  पुढे जाणे धोकादायक  त्यापेक्षा  मी परत माघारी जातो तुम्ही दोघे  जाऊन या गंगोत्रीला..अस मी दोघांना सांगितल  .पण दोघेही  ऐकेनात शेवटी रुषीकेशच्या एका  दवाखान्यात  गेलो.इंजेक्शन घेतलं ,गोळ्या घेतल्या  ,रुमवर येऊन  आराम  केला..रात्री नऊ वाजताच  फ्रेश वाटायला  लागलं..आपण  सगळेच  जाऊया असं मी म्हटल अन दोघांच्याही  चेहर्‍यावर हास्य  फुललं.!!सकाळी  लवकर उठून फ्रेश झालो , बस बसस्टँडवर गेलो .बस लागलेली  होती.बॅगा  गाडीत टाकल्या  अन बस सुरु झाली. रुषीकेश सोडलं की  लगेच  घाटरस्ता  सुरु होतो.गंगोत्री तीनशे कि.मी. अंतर!!!आठ वाजता  नाष्ट्याला  गाडी  थांबली  नाष्टा  केला..आता  मला  बरं  वाटत  होतं..टिहरी  डॅमकडे  जाणार्‍या  रस्त्याला  वळसा  घालून  गाडीने  उत्तरकाशी कडे  धावायला  सुरुवात केली..वाटेत  टिहरी  डॅमच्या  कडे कडेने  गाडी  जात होती.गंगेवर बांधलेलं मोठं धरण म्हणजेच  टिहरी  डॅम!!!खोल  दर्‍या  अन  हिमालय  पर्वताच्या  घाटरस्त्यातून  बस  जात होती.वाटेत  दरित  कोसळलेली  काही  पुर्ण  डॅमेज  झालेली  वाहने पाहुन  काळजात धस्स  होत  होतं.कुणीच वाचले नसेल या अपघातात  हा विचार करत  करत  प्रवास  चिन्यालसोंड पर्यंत  आला.मोठ  शहर  गंगोत्री हायवेवरचं!!पुढे  धरासू बेंडवरुन यमुनोत्री कडे जाणारा रस्ता पण  आम्ही  गंगोत्रीला  निघालो असल्यामुळे  दुपारपर्यंत  गाडी ऊत्तरकाशी त  पोहोचली.दोनशे कि.मी. अंतर पार करायला  गाडीला  आठ नऊ तास  वेळ गेला  होता..घाटात  गाडीच  स्पीड  जेमतेम  तीस कि.मी.प्रति तास..!!उत्तर काशीत जेवण केलं अन गाडी गंगोत्री कडे  निघाली.उत्तरकाशी  पासुन  नव्वद  कि.मी.रस्ता  अवघड  घाटाचा,वळणं  खुपच  शार्प!!!रस्ताही  छोटा  त्यामुळे समोरुन वाहन  आलं की  थांबा  ,मागे घ्या  ,पुढे  घ्या  करत  प्रवास.वाटेत  सफरचंदाच्या  बागा  खूप  ,!!!!!निसर्गरम्य  अशा घाटातला  प्रवास  म्हणजे  डोळ्यांची  दिवाळीच!!!समोर  पर्वतावर  बर्फ  दिसायला  सुरुवात  होते  अनेक  छोट्या  नद्या  गंगेला  मिळतात..,थंडी  जाणवायला सुरुवात  झाली  होती..आम्ही  हर्षिल ला  पोहोचलो..अन चहा  घ्यायला  गाडी  थांबली.काय  तो  निसर्ग  ?!!!!शब्दात वर्णन न करण्यासारखा!!!चित्रपटात  पाहिला  त्याही  पेक्षा  काकणभर  सरसच!!!!कोसळणारे  नदीचे  प्रवाह,सफरचंदाच्या  बागा,,घनदाट  झाडी,हेलीपॅड,,आणि  त्यातून  वाहणारी गंगा  अगदी स्वप्नातली  दुनिया  जशी  असते  तशी!!!!पर्वतावरील बर्फ  समोर  चमकत  होता,सफरचंदाच्या  झाडाला  हिरवी हिरवी  छोटीशी  सफरचंद  लगडलेली..आणि  ती  हर्सिलची   थंडगार  हवा  !!!किती  वर्णन करावे  या  ठिकाणाचं.!!!पाच  वाजले होते  गाडी  अरुंद  रस्त्याने पुढे निघाली.आता तर  खूपच  अवघड  आणि  पोटात  गोळा  आणणारे  रस्ते!!!जशजशी  गंगोत्री जवळ आली  तसतसा  अंधार पडू लागला.सायं  आठ वाजता  ट्रफिकमुळे  थांबत थांबत  गंगोत्री स्टँडवर  पोहोचलो..अगदी  छोटिसी  जागा  अगदी  मोजुन  आठ दहा  बस लागतील एवढीच  जागा..!!दुकांनाच्या  गर्दिमधून  वाट  काढत  मंदिरा शेजारील  लोखंडी पुल  पार करुन  मंदिराच्या  अगदी समोर  नदिच्या पलीकडे  रुम  घेतली.रुम ही मस्त होती..इथे हवा अतिशय थंडगार.!!!बिसलेरी  बाॅटलला  फ्रिज ची  गरजच  नाही...अशी!!रुममध्ये  रात्री आराम केला..सकाळी निवांत उठलो.पुलावरुन पलीकडे  जाऊन  गंगोत्री मंदिराच्या  मंदिराच्या  समोर  अफाट  वेगाने  वाहणार्‍या  पाण्यात  अंघोळ करायची  म्हणजे  एक  दिव्यच!थंडगार  बर्फासारखं  पाणी  ,वेग तर  इतका  की  साखळीला  धरल्याशिवाय  तुम्ही  पाण्यात  उतरुच  शकत  नाही..!!साखळीला  धरलं अन  हर हर गंगे म्हणत  पाण्यात  डुबकी  मारली.वर आलो तर  प्रचंड गारठलेलो काही वेळ तर काही  सुचतच  नव्हतं  इतकं  थंडगार  पाणी  होतं  ते!!!!स्नान करुन  गंगोत्री मंदिरात दर्शनाला गेलो.अतिशय रम्य परिसर,भरपुर जागा ..मंदिरात जाऊन दर्शन  घेतलं अन बाहेर आलो.मंदिराच्या  समोरच  एक  धुनी  अखंड  पेटलेली  असते  अगदी  बाराही  महिने..त्या  धुनिगृहात  दोन साधू  होते  त्यांच्याशी  चर्चा केली.त्याच्यावर  ही जबाबदारी  दिलेली  असल्यामुळे बर्फाच्या  वेळी  सुद्धा  ते इथेच  थांबत असल्याचं सांगण्यात आलं.दोन पर्वताच्या  मध्ये  असलेलं  गंगोत्री मंदिर आणि परिसर   खुपच  मस्त  आहे..गंगेच्या  काठावर  जिथे  सपाट जागा  मिळेल तिथे छोटेसे  घाट बांधले  आहेत.अनेक  चित्रपटांचं  शुटिंग  ही  इथे होत असतं.जागा  कमी अन घरं दुकानं जास्त प्रमाणात  येथे  आढळतात..पिवळे पाय अन  लाल चोचीचा   कावळा इथे  हमखास दृष्टीस  पडतो.आपल्या इकडे असतो तसाच  फक्त  पायाचा  अन  चोचीचा रंग  वेगळा!!!गंगोत्री पासुन  अठरा कि.मी .अंतरावर  गोमुख  आहे.इथे जाण्यासाठी  दोन तीन दिवस तरी  हवेत  .!!!आम्ही पोहोचलो त्याच्या  आदल्या दिवशी  गोमुख  मार्गावर दरड  कोसळली होती त्यामुळे कोणालाही  वरती  जाऊ  देत नव्हते..सैनिकांचे रेस्क्यू  आॅपरेशन सुरु  होतं.आम्ही तिथून पुढे एक कि.मी.अंतरावर  असणार्‍या बर्फाखालून निघणार्‍या गंगेच्या प्रवाहाजवळ गेलो.अगदी  गोमुख  सारखा  फिल!!!डोंगरावरुन नदीत घसरत  आलेले बर्फ  घट्ट झालेलं आणि  त्यावरुन अलीकडे पलीकडे सुद्धा  जाता येत होतं.निसर्गाची  अदभुत  किमया पहायची  असेल तर गंगोत्री बेस्ट!!!दुपारपर्यंत  फिरुन रुमवर  आलो.जेवण केलं अन  निघालो  पांडव गुहेकडे  .दोन कि.मी.खालच्या बाजुला असणारी  ती  गुहा  पहायला  जातानाच  दिसतो तो ... धबधबा.!!!!गंगोत्रीच्या  शिरपेचातला  आणखी  एक  तुरा!!राम तेरी गंगा  मेली  चित्रपटात पाहिलेला  जसाच्या तसा.पिवळ्या  लालसर दगडातुन  वेगाने वाहणार  गंगेचं ते  रुप  पाहताना भान  हरखून  जातं.इथे  धबधबा  पाहण्यासाठी बसण्यासाठी  उत्तम  व्यवस्था  आहे.परिसर  अगदी  शांत.!!तिथुन पुढचा प्रवास काय  वर्णावा!!गालिच्यावर  चालावे  तसा  देवदार वृक्षांच्या  पानांच्या  सड्यावर  चालतानाचा  अनूभव  अगदी  चप्पल  काढून  चालावासा  वाटणारा  तो रस्ता  मस्तच!!!एक प्रचंड मोठा दगड  वरुन  खाली  पडलेला.त्यातच  ती  छोटीशी  पांडव गुहा..आत  जायला  छोटासा  रस्ता..आत गेल्यानंतर  आतील महंत सिताराम महाराज  म्हणजे  ज्ञानाच  भांडारच!एरवी  जास्त कोणाशी  बोलत नाहीत पण माझ्याबरोबर संजय महाराज  असल्यामुळे  त्याचा  ओम नमो  नारायणा  हा त्यांचा  शब्द ऐकल्यावर  सिताराम  महाराजांनी  त्यांच्या  सेवेकर्‍यास  आसन व्यवस्था  करायली  सांगितली.आम्ही  दिलखुलास पणे  गप्पा  मारु लागलो.गुहेत पुर्ण अंधार समोर  पेटलेली धुनि अन एक समईचा  प्रकाश  एवढाच  उजेड...सिताराम  महाराजांनी  स्वताच्या  हातांनी बनवलेली  काॅफी  आम्हाला  अमृतासमान  होती.,काॅफी  घेऊन इतर  एवढ्या  गप्पा मारल्या की  दोन तास कसे गेले कळलेच नाही..अगाद  ज्ञान असणार्‍या  त्या  महारांजाची  भेट झाली  अन धन्य  पावलो!!!!त्यांना  उष्णता  सहन होत नाही  ,सहा महिन्या साठी  लागणार्‍या  सर्व वस्तू ते  आणून ठेवतात फक्त कूंभ मेळ्यालाच  बाहेर .... तरीही  गावापासुन ,देशस्तरावरचा,जागतिक स्तरावरचा सामाजिक,आर्थिक,राजकिय ,धार्मिक या  सर्व  विषयाचा त्यांचा  गाढा अभ्यास !!!!तेथुन त्यांचा  निरोप  घेऊन सायंकाळी  पुन्हा मंदिरात  दर्शनासाठी  गेलो.मंदिरात  फारशी  गर्दी  नव्हती.अगदी दर्शन घेतल अन मंदिरात  बराच  वेळ  ध्यानस्थ  बसलो.,मनाला  जी  शांती  मिळाली  तिचं वर्णन  करणे  शक्य  नाही.ती  प्रत्येकाने अनुभवावी  अशी!!!!!गंगोत्री हे ठिकाण तसं अत्यंत  धोकादायक  अशा  ठिकाणी  वसलेलं  आहे..दोन अति उंच  पर्वतामध्ये  अरुंद  जागेत  स्थापन  केललं  मंदिर खुपच  छान!!!वरुन  ढासळणार्‍या  दगडामुळे  मात्र ते धोकादायक  बनलेलं आहे..!!!!रात्री बसचं  बुकिंग केल  आणि  सकाळच्या  बस ने  रुषीकेश कडे  परतीचा प्रवास सुरु केला.हर्षिल च्या  पुढे  आल्या नंतर  एका  धोकादायक  वळणावर  गाडी  थांबली..समोरुन  आलेल्या बसला  रस्ता  नव्हता..आम्ही  वरुन खाली  येत  असल्यामुळे  समोरच्या  बसने  पर्वताच्या  बाजूला  आत  कडेला  गाडी  घेतली..आमची  गाडी  मात्र  दरिच्या  अगदी  कडेने  जात  होती.मी  खिडकीतुनच  पाहत  होतो..रस्ता अन दरी  यामधे   फक्त  दोन फुटांचे  अंतर  बसचा  टायर  साईड पट्टीवर  रुतत  होता.मी  मोठ्याने  ओरडलो.ड्रायव्हरने  ब्रेक  मारला.मी  पटकन  दरवाजा  उघडला  बसला  धरुनच  पटापट  सगळी  बस खाली  केली..ड्रायव्हर  म्हणायचा,घबराओ मत  बैठे रहो.पण  आम्ही  ऐकलं  नाही .सगळ्यांना  खाली  घेऊन  मग  अगदी  हळू हळू  गाडी  घसरतच  रस्त्यावर  आली.सगळ्यांनी  सुटकेचा  निश्वास  सोडला.जिवावर  आलेलं  संकट  टळलं.इतका  भयानक  अनुभव.थोडी जरी  गाडी  अजून घसरली  असती तर  अनर्थ  घडला  असता,पण गंगा  मैयाचा  आर्शिवाद  !!!!!दैव  बलवत्तर  म्हणायचंं  आमचं.!!!


परत  रुषीकेशला  पोहोचलो.वाटेत  ड्रायव्हर   गाडी कशी मस्त  बाहेर  काढली  याचं  वर्णन करत  होता पण  त्यावेळी  त्याला सुद्धा  भयंकर थंडीत  घाम फुटला  होता!!!!असो.एक  नवीन  ठिकाणाचा  अनुभव  घेऊन रुषीकेश.... तिथून हरिद्वार करुन पुन्हा अंबाला  वरुन  रेल्वेने  परतीचा  प्रवास केला..

त्यानंतर बर्‍याच  वेळा  जाण्याचा  योग आला  .पण ते  ठिकाण पाहिलं की तो प्रसंग  डोळ्यासमोर  उभा  राहतो.

उत्तराखंड मधील  चारधामपैकी  एक  ,गंगेचे उगमस्थान  गंगोत्रीचं नेत्रदिपक  असं  रुप  मनाला  नेहमी मोहीनी घालून  खुणावतं.!!!असा  हा सुंदर  निसर्ग  अनुभवावा  मगच  हिमालयाचं   सौंदर्य   काय  आहे   हे  कळतं.!!


शब्दांकन— श्री.सतिश  नानासाहेब  कोळपे

तांबेवाडी  ता.दौंड  जि.पुणे

शिवथरघळ.......!


भोर  मध्ये  1997-98  ला  काॅलेजला  असताना  सगळ्या  काॅलेजमधे  शिस्तीत  एक  नंबरचं  काॅलेज.प्राचार्याचं  नाव  निघाल  तरी  सगळे  घाबरायचे  कारण  प्राचार्याची   शिस्त  जरा  कडकच.कधीही  हसलेले  त्यांना  पाहिलं नव्हतं.थोड्याशा चुकीत,भोरमधे  विनाकारण  फिरताना  दिसला  की  सरांच्या  कॅबीन ची भीती  सगळ्यांनाच  असायची.!!सर जर बोलायला  लागले तर  डोळ्यातून  घळाघळा  पाणी  यायचं  किंवा  सर  डायरेक्ट  पालकांनाच  शाळेत  बोलवायचे  तो पर्यंत  काॅलेजला  प्रवेश  नव्हता.त्यामुळे सगळे जण  भिऊनच  असायचे  सरांना!!!!

मी  समाजकल्याण  होस्टेल  ला  रहायला  होतो.  भोर  पासून  दोन ,तीन  कि.मी.वर असणारे वेनवडी  होस्टेल  म्हणजे  जगावेगळं  समाजकल्याणचं होस्टेल.!!!पोल्टीचं शेडमध्ये  असलेल  दोन वर्षासाठीचं आमचं घर.कधी लाईट असायची तर कधी नसायची,तिचा दररोजचा  खेळ.पाण्याची तर कायम  बोंब..विचित्र गडाच्या  पायथ्याला  असलेल गाव सुंदर ,परिसर तर  लय  भारी.पण  आमच्या  होस्टेलची  पाण्याची  समस्या तितकिच  गंभीर.होस्टेलवर  संबंध  एक  लेख  लिहावा  एवढे  अनुभव!!!!दररोज  ग्लास  अन  ताटल्या  घेऊन एक  किलोमीटर वरच्या  झर्‍यावर  हात धुवायला,ताटे धुवायला  अन  पाणी प्यायला पण  झर्‍यावरच.आम्ही मुलं मात्र जीव मुठीत धरुन  दोन वर्ष होस्टेलला  राहिलो.जेवणाची  तर तर्‍हाच वेगळी!!आम्ही  बर्‍याचदा  उपोषण  करुनही  जेवण  बदलल नाही.आमच्याकडेही  दुसरा  पर्याय नव्हता  त्या  वेळी.

माझी फिरण्याची आवड मला  गप्प बसू देत नव्हती.रविवारचं  पायी  विचित्रगडावर ,कधी मांढरदेवी,तर  कधी  वाघजाईचा  निसर्ग  फिरायचो.मुळातच  भोरच  वातावरण  प्रसन्न,त्यामुळे  फिरताना  मजा  यायची

 त्यावेळी..,!!

एका रविवारी  असाच  बेत ठरला सहा सात  मित्र  शनिवारी  एकत्र जमलो अन शिवथर घळ  पहायला  जायचा बेत केला.ठिकाण कुठे आहे माहित नव्हतं,कसं जायचं माहिती  नाही.फक्त माहिती एवढच  की  महाडला  जाताना  घाट सुरु झाला  की  एका वळणावर  शिवथरघळ कडे  असा  बोर्ड लावलेला  मी एक  दोन वेळा कोकणात  जाताना  पाहिलेला..सगळे रविवारी तयार होऊन  भोरच्या स्टँडवर आलो.कोकणात  जाणार्‍या  अनेक बस इथूनच  जायच्या..आम्हाला  एका बस मध्ये जागा  मिळाली.पावसाळ्याचे  दिवस होते.पण  आज मात्र पाऊस नव्हता.वातावरण एकदम मस्त होतं.भोर वरुन बस निघाली.आमचे  होस्टेल ओलांडून  महाड  रस्त्याने  बस  जात होती.परिसर एवढा  सुंदर की अगदी  निसर्गाची  किमया काय वर्णावी.!!सगळीकडे  हिरवेगार डोंगर,हिवरीगार  झाडं,भाताची  डोलणारी शेती अन  त्या  शेतातून खळखळ  वाहणारे  पावसाचे  पाणी..!!रस्ता  डांबरी  पण खराब झालेला.खिडकीतुन  वाकून  डोकावून  निसर्ग  न्याहाळत  निरा देवघर धरणाचे काम त्यावेळी नुकतच  चालु झालेलं  होत.त्याच्या  कडेने  वरंधा  घाटाच्या  टाॅपला  आलो..पावसाळ्याच्या  या  दिवसात  येथील  सौंदर्याचे  वर्णन  करणे  कठिण  इतका  देखणा   तो  घाटरस्ता अन  परिसर..वाघजाई  देवीच्या  मंदिराजवळ  स्टाॅप असायचा.सगळे ड्रायव्हर  दर्शन घेऊनच पुढिल  प्रवास करायचे  कारण  घाट  अतिशय  धोकादायक असा.!!!वाघजाई मंदिराजवळ  ढग  जमिनीला  टेकलेले,धबधबे  पाहत  आम्ही  त्याच  घाट रस्ताने उतरायला  सुरुवात केली.त्या वातावरणात  चालण्याची  गंम्मत  खरंच  भारी!!!.एक दिड कि.मी ,.अंतर चालून गेलो अन दिसला  बोर्ड,शिवथरघळ कडे.!!!आपण बरोबर मार्गावर चालत जात  असल्याचे  लक्षात  आलं  आणि मग काय  अगदी  जोशातच  शिवथरघळ  कडे  निघालो.रस्ता सगळा उताराचा  .पळत  निघाल्यासारख्या  स्पीडने  आम्हि टप्पे टप्पे  पार करत होतो.वाटेत  ना घर  ना साधा  एखादा  माणूस!फक्त  आम्हीच.चोहोबाजुंनी जंगल,वाहणारे झरे,ढगांची  सोबत  होतीच.जवळ  आलय असं एकमेकांना  सांगत  किती चाललो  तरी  शिवथरघळ  कुठेच  दिसेना.!!!पाच सहा  कि.मी.पायपीट  झाली होती आता  दमलो होतो सगळे जण!!वर माघारी जाणं  जीवावर  आलं  होत  त्यामुळे  खाली  उतरत  जाण्याशिवाय  पर्याय  नव्हता.खडीकरण  केलेला  रस्ता  संपता  संपेना.आम्ही  छत्रपती  शिवाजी  महाराज की जय,!!जय  जय जय जयभवानी ,जय  शिवाजी  महाराजांच्या  घोषणांनी  परिसर  दणाणून सोडला  .नवीन ऊत्साह अन चेतना  घेऊन  खाली  उतरायला  सुरुवात केली.खोल खोल दर्‍या  अजून खुप दुर  दिसत होत्या.कोसळणारे धबधबे,ढगांची दाटी  अन  सह्याद्री  पर्वताचे  ते  काळे  पाषाण  निसर्ग  किती  महान  आहे  याची जाणीव करुन  देत  होते.चालताना  पाय  दुखू  लागले  पण  शिवथळघळ पर्यंत  जायचच  हा  निश्चयही  तितकाच  पक्का!!!हळूहळू  धबधब्याचा  आवाज  यायला  सुरुवात  झाली.पण  झाडामुळे  दिसत  नव्हता.आपण  जवळ  आलोय  याचाच  आनंद खूप  मोठा,.!!  जस जस  खाली  आलो  तसा  सपाट  भाग  सुरु झाला.दोनचार  घरंही  दिसली .एका  म्हातार्‍या  व्यक्तीला  विचारलं  बाबा,शिवथरघळ  कुठे   आहे.तर  ते  बाबा  म्हटले  शिवथर  ना   ?जवळच  रस्त्याने  सरळ  चालत  गेला  कि  रस्ता  संपतो  तिथे  शिवथर!!!!आम्ही पुन्हा   निघालो  एका  गावात  तो रस्ता  पोहोचला.मेन रस्त्याला लागलो  तशी वाहने  दिसायला  लागली.डावीकडे  वळून  पुढे चालत  गेलो  तन  समोर  दिसला  तो  शिवथर चा  खूप  उंचीवरुन कोसळणारा  प्रचंड  धबधबा  ..पावसामुळे  पाणी  खूपच  जास्त  .प्रचंड  वेगाने  कोसळणारे  पाणी  मनात  धडकी  भरवत  होतं.हळुहळू  चालत शिवथरघळीत  प्रवेश  केला.डोंगराच्या  कपारित  असलेली  गुहा..सुंदर!!!!निसर्ग रम्य  परिसर  आणि समर्थ  रामदासांची   भुमी ...!!गुहेत  दर्शन  घेऊन बाहेर  पडलो.समोर  कोसळणारा  धबधबा  कानडळ्या  बसवित  होता.अनेक  पर्यटक येथे  फिरायला  आलेले..!धबधब्याखाली  भिजण्याचा  आनंद  घेत होते.मग  आम्ही पण  धबधब्याखाली  भिजण्याचा  आनंद  घेतला.पावसाळ्याच्या  दिवसात  शिवथरघळीचं सौंदर्य  मनात ठसतं..!वातावरण  एकदम  शांत  गजबजाटापासून  दूर ..असलेलं  अतिशय रम्य  ठिकाण.तिथल्या  निसर्गाच्या  या  अनोख्या  रुपाचं  दर्शन  पावसाळ्यात  घ्यायलाच  हवं.धबधब्याजवळ  प्रचंड  घसरण,जरा  जपूनच  पाण्याच्या  धारेच्या  आतपर्यंत  गेलो  तो  अनुभव  न  विसरता  येण्यासारखा.. (नंतर  काळाच्या  ओघात  अनेक  अप्रिय  घटना  तेथे  घडल्यामुळे  धबधब्याजवळ  जाण्याचे  रस्ते  जाळ्या  लावून  बंद  केले  आहेत.. )

नऊ  दहा  कि.मी.पायी  प्रवासाने  प्रचंड  दमलो  होतो.चालण्याची  अजिबात  इच्छा  नव्हती  ,तेव्हा  तिथे  चौकशी  केली तर कळले की इथून  जीप प्रवासी  वाहतुक करुन  महाड  पर्यत  जातात..मग  आम्ही पण  जीपने  प्रवास करुन  नदिच्या  काठाने  भोर  महाड  रस्त्यावर  असणार्‍या  गावात  उतरलो. शिवथर  घळ कडे  जाणारा  एवढा सोपा  मार्ग पण माहिती नसल्यामुळे ज्या  अवघड  वाटेवरुन  आम्ही  शिवथर  घळ  ला चालत  आलो  तो  प्रवास   अत्यंत   रोमहर्षक  असाच!!!  सोप्या  रस्ताने  प्रवास केला  असता  तर अशा  आडवाटेने  केलेला  प्रवास  आणि  ते  निसर्गाचे  रौंद्र  आणि  मनमोहक  रुप  आम्हांला  अनूभवता  आलं नसतं. इथलं  सौंदर्य  पावसाळ्यात  अवर्णनीय  असते.!!उन्हाळ्यात  जरा  रखरखीत  आणि  धबधब्याचे पाणीही  कमी  असा अनूभव म्हणून  निसर्गाचे  हे  सुंदर रुप  पहायला  पावसाळा   असायलाच  हवा!!!!सुंदर  अशा  या  ठिकाणाला  भेट  देऊन  परत माघारी  होस्टेल ला  आलो.



शब्दांकन—

श्री.सतिश  नानासाहेब  कोळपे

तांबेवाडी  ता.दौंड  जि.पुणे

स्वर्गद्वार  ..... हरिद्वार...रुषीकेश..  .!!!!


हिंदूचे  पवित्र  पावन  शहर हरिद्वार  .इथूनच  पवित्र  पावन  गंगा  मैदानी प्रदेशात  प्रवेश  करते  आणि  उत्तर  भारताची  जीवनदायिनी  बनून  उत्तरप्रदेश,बिहार,प.बंगाल या  राज्यातून प्रवास करत  बंगालच्या  उपसागराला  जाऊन  मिळते.सौदर्यांची  सुरुवात  काय  असते  हे हरिद्वार  ला  गेल्याशिवाय  कळणार  नाही.

2000  सालातली गोष्ट  आम्ही  पाच मित्र  एका  कार्यक्रमाच्या  निमित्ताने  दिल्लीला  गेलो  होतो.कार्यक्रम  आटोपला  अन  दिल्ली दर्शन  झाले.दोन दिवस  निवांत  वेळ होता  .काय करायच  यावर बराच  खल झाला  .सगळे प्रथमच  दिल्लीला  आलेले.चर्चे अंती  दोन ठिकाण  निश्चित झाली  एक  हरिद्वार  अन  दुसरं  अमृतसर .दोन टोकाला  दोन .कोणतं तरी  एक  पाहुया असे ठरलं.शेवटी निर्णय झाला  अन   हरिद्वार  ला  जायचं  ठरलं.  कुणीही ते ठिकाण  पाहिलेले नव्हते. फक्त चित्रातुन  अन  वाचनातुन   हरिद्वार  नाव  ऐकलेलं..सकाळीच  एक  सुमो  गाडी  भाड्याने  ठरवली  आणि  निघालो .दिल्ली  शहरातुन   बाहेर पडल्यावर  छान  बागायती  शेती ..रस्त्याच्या दुतर्फा असलेली  दाट  निलगीरी  ची  झाडे अगदी  हरिद्वार  पर्यंत..!खूप  जूनी  अशी ती  झाडं.सुंदर  निसर्ग रम्य परिसर..!आम्ही बर्‍याच  वेळा  वाटेत थांबून  शेतात  जायचो..ड्रायव्हर पण मस्त  होता...!नुकतच  उत्तरप्रदेश  मधून वेगळं राज्य  निर्माण  केलेल  उत्तराखंड  राज्यात  आम्हाला  जायचं  होतं. उत्तरप्रदेशात  शेती  सगळी  बागायती ..ऊसाचं पीक  आम्ही  आवर्जून  थांबून  पाहत  होतो..त्या  रोडवर  गुर्‍हाळांची  संख्खाही  भरपुर..थांबून रस प्यायला , गुळ अन  साय  खायला  भरपूर वेळ गेला...ऊस  क्षेत्र आपल्याकडे  ही  असल्यामुळे  फारच  भारी  वाटत  होतं.छोट्याशा बोर मधून चाललेल्या दहा  एच पी   च्या मोटारी ,भरपुर  अन  मुबलक  पाणी.अनेक  ठिकाणी  कॅनाॅल..!  सगळा परीसर भारीच..!मेरठ ,देवबंध,खतौली वरुन  पुढे  हरिद्वार हद्दित  प्रवेश केला .दिल्ली ते  हरिद्वार अंतर दोनशे  कि.मी. पण   आम्ही थांबत थांबत गेल्यामुळे  दुपार झाली  होती, हरिद्वारला  पोहोचायला.!अलीकडेच  नदिचे ओहोळ,पांढरे  दगडी  गोटे  , सुंदर निसर्गाची  ओळखच  करुन देत  होते,.हरिद्वार  शहराच्या अलीकडेच  उजव्या  हाताला  रामदेव बाबांचं  मोठं पतंजली  योग पीठ.अनेक आश्रम,धर्मशाळा  दिसायला  लागल्या.हरिद्वार शहरातुन पुढे जात नदी पार्किंग  जवळ  गाडी  लावली  अन  ड्रायव्हरने  सांगितल्याप्रमाणे  नदीवर गेलो. हेच  हरिद्वार  म्हणजे  उत्तराखंड  मधील  चारधाम  यात्रेचे  प्रवेशद्वार!!! गंगा  ,भारताची  पवित्र नदी   समोर.!!! तिचं अफाट  पात्र नजरेत  मावत  नव्हत.चालतच  गंगा  घाटावर गेलो.अतिशय रम्य परिसर  त्यातुन  वेगाने  वाहणारे  नितळ  स्वचछ  पाणी.त्याचा  खळाळता  आवाज  मनाला ऊत्साहित  करत होता..नदीवर  गंगा  स्नानाचा  पहिलाच  अनुभव

.घाटावर  तीन पायर्‍या  सोडून  लावलेले  लोखंडी खांब अन त्याला  लावलेल्या  मजबूत  साखळ्या..!!मी  विचारत पडलो हे का??

जेव्हा  कपडे  काढून  पाण्यात  पाय ठेवला अन  सगळ्या  अंगात  करंट  बसल्यासारख्या  प्रचंड  मुंग्या  आल्या  सार्‍या शरिराला.   पाणी  एवढं थंड  की  विचारता  सोय नाही..!अगदी  बर्फासारखं.!स्वच्छ  निळाशार  पाण्यात  काकडतच  साखळीला धरुन  हर हर गंगे  म्हणत  दोन तीन डुबक्या  मारल्या  अन  अंघोळ केली.नदीचं इतकं थंड पाणी पहिल्यांदा  अनुभवलं.बराच  वेळ काकडत  होतो..अंग पुसले अन  नदीवरील  मंदिरांचे  दर्शन  करुन  बराचसा  घाट  फिरलो.हरिद्वारला  माणसांची  गर्दी ही कायमच  असते .अखंड  भारतातून  तसेच  परदेशातूनही  पर्यटक आणि  भाविक  गंगा  स्नानासाठी  हरिद्वार  येतात.सगळे घाट  फिरायचे  म्हटल  तर  दिवस  अपुरा   पडेल  एवढा  परिसर  मोठा.!!!सुंदर  डोंगराच्या  कुशीत  वसलेलं  एक  सुंदर  शहर हरिद्वार..!!शेजारुन वाहणारी  गंगा  मैया  ,काठावर  असणारी  दाट  झाडी  अन  त्यातुन  वाहणारी  भारताची  जीवनदायीनी  गंगा  नदी..सुरेख  योग  जुळून आलाय  या  हरिद्वार मधे.!!पुर्वी  पासुनच याला   स्वर्ग  द्वार  म्हटलं  जातं  आणि  ते  खरंय..,!  इथला  निसर्ग  मनाला  वेड  लावील  असाच  सुंदर..!  खळाळून वाहणारी  निर्मळ  नदी  आणि  त्याच  नदीवर बॅरिकेट्स  टाकुन  तयार  केलेला  कॅनाॅल.चार पाच ठिकाणी   बॅरिकेट्स  टाकून  पाणी  वळवण्यात   आलंय.!आणि  धरण  न  बांधताच  पाणी  कॅनाॅल  मध्ये  शिफ्ट  केलय.प्लॅन अगदी  पाहण्यासारखा.नदीमध्ये असलेले  पांढरे शुभ्र  गुळगुळीत  झालेले  दगड,त्यातुन  वाहणारं  स्वच्छ  पाणी ,भलं  मोठं  नदीचं पात्र.अगदी  चित्रातल्या सारखा  सुंदर  निसर्ग.तेथुन दिसणारा  निसर्गाचा  नजारा  भारीच.!नदीवर फिरुन  अनेक  आश्रम  फिरुन पाहिले.सुंदर मंदिरांचे  शहर,नदीकाठी  असलेले  ते  आश्रम  लोकांच्या  सुखसोईसाठी  उभारलेले..!पाण्यावर  तरंगणारे दगडही  येथील अनेक  आश्रमात  ठेवलेले  आहेत.रामेश्वरची  आठवण  येथे  नक्किच  येते.सुंदर रचना  असलेलं  वैष्णोदेवी मंदिर  पाहण्यासारखंं आहे. नदी पुलावरुन स्टँडकडे  जाणार्‍या  रस्त्यावर  रुम  घेतली.इथे  हाॅटेल,धर्मशाळा  भरपूर   आपल्या  बजेट  नुसार  उपलब्ध  आहेत. सायं. गंगेची  आरती  पाहण्यासाठी  हर की  पौडी  या  ठिकाणावर  आलो.इथे  प्रचंड  गर्दी  असते.घड्याळ असलेल्या  टाॅवर  शेजारी  आम्हाला  जागा  मिळाली.घाट नुकताच  धुवून  स्वच्छ  केलेला..तिथे  बसण्यासाठी  बस्करं  मिळतात.ती घेतली अन  जागा  धरली.हळूहळू   माईक वर आरतीच्या  सूचना  देण्यात   येऊ  लागल्या,समोरच्या  पैलतीरावर  मोठमोठ्या  ज्योती  घेऊन  उभे  असलेले  पुजारी  सगळ्यांचं  लक्ष  वेधून  घेत होते.सायंकाळच्या  आरतीला  जमणारा  प्रचंड  जनसमूदाय हे  हरिद्वारच्या  गंगा  आरतीचे  वैशिष्ठ  म्हणावे  लागेल.अगदी  शिस्तीत  सगळे  बसलेले  असतात.आरतीला  सुरुवात  झाली  अन  वातावरण  एकदम  भारुन  गेलं.सुंदर  वातावरणात  आरती  पार  पडली.लोकं  हळूहळू  पांगू  लागली  , आम्ही  गंगेच्या  पात्रात  पानावर  पेटवलेले  दिवे  सोडले.सगळीकडे पाण्यात वाहत्या  दिव्यांचा  प्रकाश  पाहताना  खूप   मस्त  ..!!नदीवर फिरुन  मस्त   एका हाॅटेलवर  जेवण  करुन  पुन्हा नदिच्या  पलीकडील  काठावर  गप्पा  मारत  बराच  वेळ बसलो.त्या  बाजूने  हरिद्वार  शहर  पाहण्याची  मजा  भारीच!!!!रात्री  चालतच   रुमवर  आलो व आराम केला.सकाळी  पुन्हा  नदीवर  स्नान  करुन  तयार  झालो..हरिद्वारचं  प्रसिद्ध  मनसा  माता  मंदिर  पाहण्यासाठी..इथे  रोप वे  आहे.वरच्या  एका  टप्य्यावर  गेल्यावर  पन्नास रु.घेऊन   टू  व्हिलर  वालेही  मंदिरापर्यत  सोडणारी  अनेक  मुलं  इथं असतात.आम्ही  चालतच  जाण्याचा  निर्णय घेतला.चालताना  दमछाक  होते  .बसत उठत  मंदिरापर्यंत  पोहोचलो.उंच  डोंगरावर असलेलं  मंदीर  खूप  सुंदर  आहे..मंदिरात  मनसा  देवीचे  दर्शन  घेऊन   तिथुन  दिसणारं  हरिद्वारचं  निसर्ग  सौंदर्य  फारच  छान!!!हरिद्वार  शहराचं  विहंगम  दृश्य  कितीतरी  वेळ  आम्ही  पाहत  होतो..पुन्हा  खाली  उतरलो.जीपने  पुन्हा  चंडी  देवी  मंदिराकडे  गेलो.तिथेही  चालतच  गेलो.या मनसा  देवी  अन  चंडी  देवीच्या  मंदिराच्या  मध्यातुन  वाहणारी  विस्तीर्ण  नदीचं  पात्र .फारच  विलोभनीय,!!!!चंडी  देवीचे दर्शन घेऊन  जीप जवळ आलो  आणि  राजाजी  नॅशनल  पार्क मधून  जाणार्‍या  उबड  खाबड रस्त्याने  जंगलातुन   कॅनाॅलच्या  कडेने 25 कि.मी. वरील   रुषीकेशला  पोहोचलो.जंगलात मोरांचे  दर्शन  सहजपणे  होतं.रुषीकेशला  पार्किंग  वर  गाडी  लावून  नदीतुन  बोटीने  मस्त  प्रवास रुषीकेशच्या  परमार्थ  आश्रमात गेलो  .सुंदर आश्रम  त्याच्या  पुढे वाहणारी  वेगाने वाहणारी गंगा  .वातावरण  एकदम  प्रसन्न  असं.!!!!तेथे  फिरुन  लक्ष्मण झुला  पायी  पार केला.लक्ष्मण झुला  रुषीकेशची  खास ओळख  नदीवर बांधलेला  वायरुपचा  मोठा  पुल.तो  पायी  पार करणे अन  वरुन  नदीचं ते  लोभस दृश्य  आम्ही  कितीवर  वेळ  न्याहाळत  होतो..पुन्हा  जीपने  दोन कि.मी.वर असणारा  राम झुला  .पलीकडील  खुप सुंदर  असलेली  मंदीरं,पुल  पाहुन   पलीकडुन  चालतच  पुन्हा   लक्ष्मण  झुला  येथे  आलो.तिथे  चालण्यासाठी  अनेक  जण  असतात.रुषीकेशला  राफ्टिंगची  सोय  आहे..पाण्यात  वाहणार्‍या त्या  बोटी  पाहताना  आपणही  ही  सैर  करावी  असे  वाटल्यावाचून  राहत  नाही..रुषीकेशला  फिरुन सायं.परतीचा  दिल्ली  प्रवास  केला..


काळाच्या  ओघात  हरिद्वार रुषीकेशला  दहा  पंधरा  वेळा  गंगोत्री, यमुनोत्री,केदारनाथ,बद्रिनाथ  ला  जाताना जाण्याचा  योग  आला..रस्ते  बदलले  चारपदरी  नवीन  हायवेमुळे  रस्त्याच्या  कडेची  निलगीरीची  झाडे  केव्हाच  इतिहास  जमा  झाली.शहर  वाढलं तसं  गर्दिही  वाढली  ..वरती  पहाडीत  होणारी  बोगद्याची काम,आणि प्रदुषण  यामुळे  हरिद्वारच्या  गंगेचे  पाणी  आता  निव्वळ  न  राहता  गढूळ  झालय  ..देवप्रयागला  दोन्ही  नद्यांचा  स्वच्छ  पाण्याचा  संगम  पाहताना  खुप  भारी  वाटायचं पण आज एका  बाजूने  येणारं स्वच्छ  आणी  दुसर्‍या  बाजूने  येणारं गढूळ  पाणी  नदीला  पुढे  गढूळ करुन  जातं.हरिद्वारला  नदित असणारी  शंकराची  विशाल  मुर्ती  अन  तेथून  दिसणार्‍या  नदीचे  घाट  पाहण्याची  मजा  काही  औरच  काळ बदलला  तरी हरिद्वार आणि  रुषीकेशचा  मस्त  निसर्ग  मनाला  वेडावतो.शेजारी  असलेल्या  राजाजी  नॅशनल  पार्क  मध्ये  सुंदर अशी सफारी  करता  येते.इथुन  जवळच असलेलं मसुरी ,डेहराडुन  एका दिवसात  फिरता  येतं.देवभुमी  हरिद्वार  आणि  रुषीकेश  पवित्र  पावन स्थानं.पहायला  मस्त  आहेत...!!!अजूनही  जेव्हा जेव्हा  हरिद्वार ला  जातो  तेव्हा  मनसा  देवीला  पायीच  जातो.त्याचबरोबर  रुषीकेश  हरिद्वार  नवीन  हायवे  जो  राजाजी  नॅशनल  पार्क  मधून  बनवलाय  तो  उत्तमच!!नदी आणि  कॅनाॅल च्या  शेजारुन  जंगलातुन  जाणारा  रस्ता  निसर्गरम्य!!!!काही  ठिकाणी नदीला  पुल  बनवलेले नाहीत.  हिवाळ्यात  पाण्यातून  जाण्याचा  अन  उन्हाळ्यात  कोरड्या  पात्रातून  जाण्याचा , थांबण्याचा  अनूभव  भारीच.!!या  मार्गावर  शक्यतो  रिक्षा  भाड्याने  करावी व रिक्षावाल्याला  रस्त्यातील  परिसरात  थांबून  काही  गोष्टी  पहाण्याबद्दल  अगोदरच  कल्पना  द्यावी.कारण  जंगल  भाग  असल्यामुळे  वनविभागाचे  कर्मचारी   वाहने  जास्त  वेळ  रस्त्यावर  थांबू  देत  नाहित.पण  या  रस्त्याची  सैर  जरुर करावी  अशीच!!!! खुप  छान  वाटतं.गंगेचं ते  पावन रुप मनाला  ऊर्जा देऊन जातं..!!!


शब्दांकन—श्री.सतिश  नानासाहेब  कोळपे 

तांबेवाडी  ता.दौंड जि.पुणे

अदभुत  सफर........!!!!!


राजस्थान  जस त्याच्या  संस्कृती,परंपरा,आणि  कलेला  प्रसिद्ध  अशाच  काही  अदभुत गोष्टि  तिथे  पहायला  मिळतात..

आम्ही चार मित्रांनी  बसमध्ये  फिरुन  अख्खा  राजस्थान  पालथा  घातला!!!त्यामध्ये  जैसलमेर  शहरात  दोन  प्रसिद्ध  अशा  हवेल्या  .त्या  काळचे  प्रसिद्ध  व्यापारी  पटवा  आणि  नथमल   ...!!!या  व्यापार्‍यांनी  आपल्या साठी  ज्या  हवेल्या  बांधल्या  त्या  आजही  जैसरमेल मध्ये  दिमाखात  उभ्या  असलेल्या  दिसतात.सॅन्ड  स्टोन  पासुन  केलेले  अप्रतिम  नक्षीकाम  डोळ्यांचं  पारणं  फेडणारं.त्यातील  एका हवेलीत  अजूनही  त्यांचे वंशज  राहतात.खरंच  राॅयल  लाईफ  स्टाईल!!नथमल  हवेली  खुप मोठी.  गर्दित  असल्यामुळे   इदिरा  गांधी  पंतप्रधान असताना  परदेशी पाहुण्यांना  हवेलीचे   सौंदर्य  दाखवण्यासाठी  त्यातील  एक हवेली पाडुन  मोकळी जागा  तयार करण्यात  आलेली  आहे.चार पाच  मजले असलेली  सुंदर हवेली  ,त्यातील  अतिशय सुंदर कलाकुसर  पाहण्यासारखी  आहे.तिथेच  आपल्याला  भेटतो  धन्नाराम..चार  पाच  फुटांच्या  मिशा  घेऊन  वावरणारा धन्नाराम  सगळ्यांचे लक्ष  वेधून घेतो.त्यांच्या वडीलांच्याही  मिशा  मोठ्या  होत्या..अगदी गिनीज बुकात नोंद घेतली आहे त्याच्या वडीलांची.वडीलांचाच  वारसा पुढे चालवत धन्नारामने  मिशा  ठेवल्या !!धन्नाराम  दररोज हवेली जवळ   असतो.येणारे जाणारे देशी विदेशी पर्यटक  आवर्जून  त्याला भेटतात ,फोटो काढतात अन दहा वीस रुपये आवर्जून  हातावर टेकवून  एक सुंदर आठवण  बरोबर  घेऊन  जातात.मिळालेल्या  पैशातच  या  धन्नारामचा  प्रपंच चालतो.खूप फेमस असला तरी  त्याची परिस्थिती  बेताचीच.खुप गप्पा  मारतो  हा  धन्नाराम..!!!नथमल हवेली  हे  त्याचे   पैसे  कमवायचे  ठिकाण..आपल्या  मिशांची तो खुप  काळजी ही घेतो....,!या  धन्नाराम ला  जैसरमेल मध्ये  जरुर भेटावे  असा  मस्त  माणूस..!

जैसलमेर वरुन रामदेवरा मार्गे   बिकानेर  कडे  प्रवास करत असताना  अनेक  खाणी  आपल्याला  दिसतात.राजस्थान मध्ये खनिज संपत्तीही  भरपुर..बिकानेर च्या  आजूबाजूचं वाळवंट पाहण्यासारखं.बिकानेर  किल्लाही  छान आहे.बिकानेर स्वीटची  दूकाने महाराष्र्टात  जास्त  आपण  पाहतो पण  बिकानेर  शहरात  मात्र ती  आढळत  नाहीत  हे  विशेषच..!बिकानेर पासुन  जीपने 23 कि.मी.वर असणार्‍या ,खास प्रसिद्ध  करणी माता  मंदिराकडे  गेलो.बिकानेर नागौर  मार्गावर असलेलं  करणी माता  मंदिर  बरंच  मोठं आहे .स्टॅडवरुन चालत  जाताना  अजिबात  जाणवत नाही की  या मंदिरात  काही  विशेष असेल,!!पण  खरी गंम्मत सुरु  होते  इथुन  मंदिर परिसरात  पाऊल ठेवलं की  भव्य  सभाद्वारातुन  आत  एन्र्टी केली  की सगळी कडे  दिसतात  ते  उंदीरच  उंदिर..! या मंदिरात उंदरांना खुपच  महत्व  आहे.त्याच्यासाठी  खास  मंदिर बांधकाम करतानाच   बीळे  ठेवलेली  आहेत...!एक ना  दोन  हजारो  उंदिर  आपल्याला  या करणी माता मंदिरात  पहायला  मिळतात  जिकडे पहावे तिकडे  उंदिरच!!!त्यांच्यासाठी  खास  मोठमोठ्या  पराती भरुन  दुध  ठेवले  जाते  आणि हे महाशय  न घाबरता  बिनधास्तपणे  ते  पित असतात.मंदिरात चालताना जपुन च  चालावे लागते..कधी  पायात हे  उंदिर घोटाळतील  सांगता येत नाही..आपण  आणलेल्या  पेढ्याचा  प्रसाद  ,फुटाणे  हे  उंदीर  खाताना  सगळीकडे  दिसतात.लहान मोठे   उंदिर यांना या  मंदिरात खुपच  पवित्र मानतात त्यांना  कुणीही  त्रास देत नाहीत.अगदी  मोठमोठ्या  कढायामध्ये  बनवल्या  जाणार्‍या  प्रसादाच्या  शिर्‍यामध्येही  यथेच्छ  वावरणारे  उंदिर  येथे  दिसतात..!या मंदिरात  पांढर्‍या  रंगाचा उंदिर पाहणे  (त्याला  काबा  म्हणतात  ) भाग्याचे समझले  जाते.राजस्थानी  लोकं उंदरांनी उष्ट केलेलं,दुध  आणि  शिरा  भगवंताचा प्रसाद  मानून   पितात  अन  शिरा  खातात सुद्धा!!आश्चर्य  वाटलं ना? पण हे  शंभर टक्के  खरं आहे..,!त्यानंतर दोन वेळा जाऊन आलो  पण आम्हाला तो  काबा  काही  दिसला नाही.उंदराचं मंदिर म्हणूनच  ते  प्रसिद्ध  झालंय!!बाहेर आजूबाजुला कुठेही  उंदिर  दिसत नाहित  पण  मंदिरात  त्यांची  संख्या  अफाटच...!!

तिथला  प्रसाद  न  खाताच  बाहेर पडलो.रोडवरुन  लगेच  पुष्करला  जाणारी  बस मिळाली..मी बस ड्रायव्हर  शेजारीच  बसलो.माझी सवय च आहे..!!सरळ  जाणारा  राजस्थान मधील रस्ता  ना वळण  ना  ,ना  अडथळा.रस्त्याच्या  आजूबाजूला पसरलेलं वाळवंट,रेताड जमीन  अन  खुरटी झुडप  हेच  राजस्थानचं  निखळ  सौंदर्य.!!!नागौरला  पोहचे पर्यंत सायं .झाली  होती.मी सीटवर जाऊन  बसलो.पुढे  मेडता  सिटीत  गाडी  थांबली  होती..आम्हीही खाली  उतरलो तर  एका  दुकानात  ड्रायव्हर  मला  दारु  पिताना  दिसला..मी त्याला  विचारले  ,ये क्या  पी  रहे हो? तर तो म्हणाला  कुछ नही  साहब  ,कोकाकोला  पी रहे है.!तिथून  उशीर झालेला  थांबायचं कुठ  ?आणि  गाडीत जायच तरी कस ?ड्रायव्हर  दारुडा.!पुष्कर अजून दूर .शेवटी निर्णय झाला  जाऊ बसनेच!जीव मुठीत धरुन  बसमध्ये  बसलो.आमचं चौघांचही लक्ष  फक्त  ड्रायव्हर कडे...मेडता  सिटितुन बाहेर आल्यावर एका टर्नवर  बसवाल्याने  टु व्हिलरला  ठोस दिली.मोठा आवाज  झाला.सगळे घाबरले .पटकन खाली उतरले.समोर पाहतो तर टु  व्हिलर पडलेली,एक माणूस धडपडत  उठला  असा  ड्रायव्हरच्या  कानाखाली  खाडकन  आवाज  काढला.बसमधले  सगळे  प्रवासी सुद्धा  ड्रायव्हरला  शिव्या  द्यायला  लागले.बरीच  माणसं गोळा  झाली.पोलीस आले.त्या  माणसाला  लागलं नसल्यामुळे  व गाडी  सरकारी  असल्यामुळेही  पोलिसांनी  दोघांचीही समझूत घालत  प्रकरण मिटवले. सगळे जण ड्रायव्हर  दारु  पिल्याचे  सांगत असताना  सुद्धा  पोलीसांनी  ड्रायव्हरचीच  बाजू घेतली अन  गाडी सोडली,.शेवटी  मी  बसमध्ये  लिहिलेल्या फोन नंबर वर फोन  लावून  तक्रार दिली...पण  तोपर्यत आमचा  स्टाॅप  पुष्कर  आला  होता..जीव भांड्यात  पडला  आणि  खाली उतरलो..असे  अनुभवही  प्रवासात पुढे  काळजी  घेण्याची  शिकवण  देतात.पण परराज्यात  असा  प्रवास करताना  खरंच  काळजी घेणं गरजेच आहे!!!!मुक्काम पुष्करलाच  केला.सकाळी  पुष्कर तलावावर  स्नान करुन  ब्रम्हदेवाचे  सुंदर मंदिर  पहायला गेलो.चार मुख असलेली मुर्ती छान  आहे .समोरुन तीन मुखं  दिसतात  अन  मुर्तीच्या  पाठीमागे  मोठा  आरसा  लावला  आहे  त्यात  चौथं मुख पाहता  येतं.पुष्करचा  निसर्ग ही खुप  छान  डोंगराच्या कडेला वसलेलं  पुष्कर पवित्र ठिकाण  म्हणून  ओळखल  जातं.उंटाचा  बाजार  हे  इथल  आणखी  एक  वैशिष्ठ  !!!राजस्थानच्या  सगळ्या  भागातुन  उंट  विक्रिसाठी  इथे  आणले  जातात.उंटगाडीतील  फेरफटका  मारण्याचीही  सोय  येथे  आहे.ते  निसर्गरम्य  पुष्कर सरोवर आणि परिसर खुप छान .या पुष्कर  सरोवराला  प्रदक्षिणा  मारली.इथल  मार्केट  खुप  मोठं आहे,राजस्थानी  वस्तु खरेदी  करण्यासाठी  सुंदर  ठिकाण.बसस्टँडवर येऊन  जवळच  दहा  कि.मी.वर डोंगरापलीकडे असणार्‍या अजमेरला  निघालो..डोंगरातुन   घाट चढत  जायचं अन  खाली उतरलो  की  अजमेर!!!अजमेर मध्ये प्रसिद्ध असलेल्या  मोईनुद्दिन चिश्ती  दर्ग्याजवळ  चालतच  गेलो.परिसर खुप मोठा..गुलाबांची फुले,अंतराचा  घमघमाट सगळीकडे  .दर्गा  खुप मोठा.कायम  गर्दी  असलेलं  ठिकाण  .कबरीवर  चादर  ओढण्यासाठी   दर्ग्यात सेवा  करणारेच  जास्त.इथे  पैसे  दिल्याशिवाय  माथा  टेकवु  देत  नाहित..पैसेही  मागितले  जातात  अगदी  बिनधास्त!!!!!वाईट वाटत  अशा गोष्टिं  पाहिल्यावर  !!!असाच  वाईट अनुभव  जम्मूच्या  रघूनाथ  मंदिरात..भावनेचा  बाजार क़रुन  तेहतीस कोटी देवाच नाव घेऊन  सर्रास लूट केली  जाते..!!असो!!!

 अजमेरचा  तलावही  खुप छान  गार्डन छोटिच  पण  तलावाच्या जवळ  असल्याने  सुंदरच!!!राजस्थानी  लोकांची  वाद्य  वाजवण्याची कला येथे हमखास पहायला  मिळते  .आणि  यांना  मात्र  आपण  स्वतःहुन  खिशात हात  घालून  पैसे  द्यावेसे  वाटतात,.किती   फरक  दोन्हीतला!!!!!  अशी  हि सफर  छान अनुभव देणारी....या  ट्रिपमध्ये मी, शिवदास  खेडेकर,रंननाथ वेदपाठक,पांडुरंग  खेडेकर  असे चौघे  जण  होतो..राजस्थानची ही अदभुत सफर  बरंच  विचार करायला  लावणारी  .अन तितकीच  मनाला  भावलेली...!!


शब्दांकन—

श्री.सतिश  नानासाहेब  कोळपे

तांबेवाडी  ता.दौंड  जि.पुणे

कोकण...एक  नयनरम्य  सफर...!


सागराची  ,लाटांची  ओढ,नारळी पोफळीच्या  बागा,लाल दगडांची  सुंदर घर,आंब्याची ,फणसाची  झाडे   सर्वांनाच  आपल्याकडे  आकर्षित  करतात.शाळेच्या  सहली  वेळी  कायमच  कोकण  दर्शन  ट्रिप  असायची..शाळेची  सहल  मी  कधीही  चुकवली  नाही.!  .2002-2003च्या  उन्हाळी  सुट्टित  मित्राला  बरोबर  घेऊन  पुन्हा  एकदा  कोकण  पहायला  बाहेर  पडलो..शाळेच्या  वेळी  1)अलिबाग  मुरुड,जंजिरा,,2),रायगड  हरिहरेश्वर  श्रीवर्धन दिवेआगार,,,,3)पाचगणी महाबळेश्वर  दापोली

4)गणपतीपुळे  पावस  कोल्हापुर  रुट  ठरलेले  असायचे.  अनेक  वेळा  या  ठिकाणी  जाऊन  आलो..पण  सर लोकांच्या  शिस्तीत!!!.

पण  जरा  बिनधास्त  फिरायचे  ,वाट्टेल  तिथं थांबायचं ,मनाला  वाटेल तिथं मुक्काम करायचा असं ठरवुन  नवीनच  घेतलेल्या  टु व्हिलर वरुन  निघालो..पुण्यावरुन  लोणावळा,खंडाळा  मार्गे  प्रथम गेलो खोपोली वरुन महड ला पोहोचलो.अष्टविनायकापैकी  एक  तळ्याच्या  काठावर  असणारं सुंदर मंदिर,मंदिरात  जाऊन  गणपती  बाप्पांचं  दर्शन  घेतले.तळ्याच्या  किनारी  चक्कर  मारली.अन  पाली कडे  निघालो  .त्यावेळी  पेट्रोल  तीस रु.लीटर  प्रमाणे  मिळायचे.पेट्रोल पंप दुर अंतरावर असायचे  म्हणुन  टाकी फुल करुन  घेतली होती.बरोबर छोटसी  बाटली  पिशवीत..बिसलरीचे पाणी  त्यावेळी  जास्त  बोलबाला  नव्हताच  मिळेल  तिथे  बिनधास्त  पाणी  प्यायचं. ना आजारी,ना सर्दी.पालीला  जाताना मस्त झाडांच्या  छायेखालुन  जाताना  चा  मस्त फिल  घेत  आम्ही प्रवास करत होतो..पाली चा गणपती  बल्लाळेश्वर  अष्टविनायकापैकी एक  .सुंदर भव्य मंदिर.आजच्या  सारखी  मंदिरामध्ये  गर्दी नसायची.मनमोकळं दर्शन  .!!!बाप्पाच्या पुढे  मस्तक  टेकवून  आम्ही  अलिबागकडे  निघालो.चार वाजुन  गेलेले  होते .त्यात  कोकणातील रस्ते  खराबच!!!!सायंकाळी  अलिबाग ला  पोहोचलो..सायं.मासे  खरेदी केले  अन एके  ठिकाणी बनवायला  दिले .मनसोक्त जेवण  करुन  अलिबागला  मुक्काम  झाला..सकाळी   अरबी समुद्राच्या  त्या  मस्त  लाटांमध्ये कंटाळा  येईपर्यत  पोहलो.पाणी  भरलेलं असल्यामुळे  नावेने  समुद्रात असलेल्या  कुलाबा  किल्ल्यावर  गेलो.किल्ला पहायला  छानच!!मजबुत दगडी  बांधकाम,,सागराच्या  तुफान  लाटांशी झुंज  देत  आपले  अस्तित्व  टिकवुन आहे.किल्ल्याची  मजबूत तटबंदी  आणि  त्यावर समुद्र पाहत  सभोवार फिरण्याची  मजा  निराळीच..किल्ला  पाहुन  दरवाज्यात  येईपर्यत  पाणी  कमी  झालं होतं,तिथुन  थोड्याशा  पाण्यात  चालतच  किनार्‍यावर  आलो.मजेशीर  अनुभव  पाण्यातुन  चालण्याचा..,!!

अलिबाग  वरुन  निघालो  ते  दक्षिणेकडे . रस्ता  विचारत  ,नारळांच्या  बागेत  ,आंब्याच्या झाडाचे  आंबे  खात   मस्तपैकी  मुरुडला पोहोचलो..चौपाटीवर  जाण्या अगोदर  गेलो राजपुरीला..जंजिरा किल्ला  ,पहायला !!!जंजिर्‍याच्या  तार्‍या  माशाची  आठवण  आल्यावाचून  कशी  राहिल!!(असाच  शाळेच्या  ट्रिपबरोबर  जंजिर्‍यावर  सहलीला  गेलेलो,,सगळा  किल्ला  गाईड  आणि सरांबरोबर  पाहिला पण  आमचे  काही मित्र  मागच्या  दरवाज्याने  तारा  मासा  पहायला  समुद्र  किनारी  उतरले  आम्ही  बोटीने  माघारी  आलो.बसमध्ये बसलो .सरांनी मुले  मोजली  चार जण  कमी सरांनाही  घाम फुटला  मुलं गेली कुठं...?  शेवटी दुसरी  बोट करुन सर पुन्हा  गेले  किल्ल्यावर!हे सर्वजण  दरवाज्यात!!!सर काहीच  म्हटले नाहीत त्यांना माघारी आणलं  आणि बसमध्ये बसवून  जे तारे मासे त्यांच्या  कानाखाली काढले  आजही  तो प्रसंग    आठवतो.मित्रांच्यात  तार्‍या माशा  वरुन जोरदार हशा  हि होतो.)  

बोटीने किल्ल्यावर गेलो  मस्तपैकी  किल्ला पाहिला.बालेकिल्ल्यावर जाऊन आलो.अगदी अभेद्य  असा  हा जलदुर्ग!!बोटीने  परत राजपुरी  ला  आलो  तेथुन मुरुड.मुरुडला  चौपाटीवर  समुद्रात  पोहलो.मुरुडवरुन सायं.सुर्यास्त  पाहताना  भारी  मजा येते .हळूहळू  सुर्य पाण्याखाली जाताना सगळी  धावपळ,गर्दी  वातावरण  भारलेलं असतं.सायं निघालो.मुंबई हायवे कडे,रात्रीचा  किर्र अंधार  त्यावेळी टु व्हिलर ही  फारस्या  नव्हत्या  ,रस्त्यावर  चिटपाखरुही  नव्हतं.अशा या  काळोखात प्रवास करताना भिती तर वाटतच  होती पण  त्यापेक्षा  आनंद  जास्त  होता  फिरण्याचा!!!कोकणातील इंदापुर जवळ  मुक्काम केला .पुर्वी  राजपुरी वरुन  दिघी ला  जायची  सोय नसल्यामुळे  हा प्रवास  करावा  लागला.मंदिरात मस्त पैकी अंथरुण टाकले  अन  झोपी गेलो..सकाळी ऊठून  हरिहरश्वरकडे  प्रवास .वळणाचे रस्ते छान ,वाटेत गर्द झाडी ,प्रवास आनंद देणारा..!!दहा वाजता  हरिहरेश्वरला पोहचलो.मंदिरात गेलो दर्शन झाले.तेथुन पायर्‍यांनी  वरती  जाऊन  निसर्गाचा  अदभुत  चमत्कारच म्हणावा  तशी  ती  कित्येक  वर्ष  सागराच्या  पाण्याने  धडका  देऊन  दगडावर  तयार  झालेली  सुंदर शिल्प  पाहुन  मन  आनंदुन  गेले.पाणी  कमी असल्यामुळे  निवांत  ती  पाहता आली.तसच पुढे डोंगराला  वेढा  मारुन समुद्र  चौपाटीवर  पोहण्याचा  आनंद  घेतला,.अतिशय  रमणीय  ठिकाण  हे  ठिकाण  माझ्या खुप  आवडीचं!!अनेक  वेळा  इथे जाण्याचा  योग येतो..घरं बदलली पण  निसर्ग  अगदी तसाच   सुंदर!!!हरिहरेश्वर वरुन महाडला  परत  आलो  ..प्रवासाने  दमलो होतो तरीही  चिपळूनला  मुक्कामी  गेलो..एका गावात मस्त सोय झाली.ग्रामस्थांशी बोलल्यावर  जेवण ही  मिळाले..खुपच  चांगली  माणसं  कोकणात.कोकणात  पाहुणचार  मस्त झाला  तोही ओळख नसताना.!जेवणानंतर  जो  काही गप्पांचा  फड रंगला तो  पहाटे पर्यंत.तिथलं जेवण,खाण्याच्या सवयी ,शेती,धार्मिक ,

राजकिय,शैक्षणिक सगळ्या गोष्टिंचा  त्यात समावेश होता.असे  कमी प्रसंग  येतात कि अचानक एखाद्या  ठिकाणी जायचे अन मनमोकळ्या  बिनधास्त  गप्पा  झोडत  बसायचंं!खुप भारी वाटल त्या दिवशी.सकाळी  लवकर  निघालो,एका नदिवर मस्त अंघोळ उरकली अन  आंब्याचं झाड शोधलं भरपुर  आंबे  खाल्ले,मनसोक्त  अशी  आंब्यांची  झाडे  रस्त्याने  खुप असायची.आता  मात्र  कुंपन ,नवीन रस्ते  यामुळे प्रमाण  कमी  झालय!!!पुढे  थेट  गाठला  तो  गणपतीपुळे  चा  समुद्र  किनारा  !गणपती बाप्पांचे  दर्शन घेऊन  लोभस,सुंदर आणि  अति आवडीचा  नयनरम्य समुद्र किनारा..या समुद्र  किनार्‍याचं  वर्णन  अफलातुन  असं करता येईल.सुंदर  तितकाच  धोकादायक  सुद्धा  .त्या  निळ्याशार  पाण्यात  भरपुर  पोहलो..नारळाचे पाणी  अन  भाजलेलं  मक्याचं  कणीस  अप्रतिम.येथील  निसर्ग  खरंच  सुंदर  असा! दुपारी तेथुन जवळच असलेल्या केशवसुतांच्या  जन्मस्थळाला  भेट  दिली.जुनच घर पण  छान  जतन करुन  ठेवलेले..माघारी  परत  रत्नागिरी..मुक्कामाची  सोय  शहरापासुन  दुरवर असलेल्या  रेल्वे स्टेशनला!!कोकण  रेल्वे  चालु झालेली  ,शहर  सहा  सात कि मी. दुर  .तुरळक  घरे  म्हणून निवांत जागा  शोधली  रत्नागिरी  रेल्वे स्टेशन!!थंडगार  हवा  ,वातावरण  भारी होतं.शहर  वाढलं  तस  हे स्टेशन सुद्धा  इतर  स्टेशन सारखं गर्दित  हरवून  गेलय  आता  !! शांत वातावरणात  मस्त  झोप  लागली..सकाळी  फ्रेश  होऊन  रत्नागिरी  चा  किल्ला  पहायला  गेलो.गावातल्या  सुंदर  अरुंद  रस्त्याने  किल्ल्यावर  पोहोचलो.किल्ला  छोटाच  पण मस्त  आहे..पश्चिमेकडून  दिसणारा  समुद्र  अतिशय  छान!!अतिशय  स्वच्छ  पाणी  पण  तेथे  चौपाटी  नाही..तेथुन रत्नागिरीचे  बंदर  पहायला  गेलो.मासेमारी  करणार्‍या  अनेक  नौका,तेथील  कोळी बांधवांशी  खुप गप्पा  मारल्या,.वेगवेगळ्या  प्रकारचे  मासे  आम्हाला पहायला  मिळाले  ते  येथेच!!बोंबील,सुकटीचा  वास,,वाळत घातलेले  बोंबील  नजारा  मस्तच!!!बसस्टँड जवळ  भरणारा  बाजार  आणि  तेथे  खरेदी  करुन  खाल्लेले  हापुस  आंबे  आजही  आठवतात..तेथून  आरेवारे  बीचवर .. आज  जेवढा  फेमस  आहे  तितका  त्यावेळी  नव्हता.झाडाच्या  आडुन  दिसणारा  लांबच लांब  समुद्र  भारी  आहे.येथे  पोहण्याचा  आनंद घेतला व त्याच रस्त्याने  पावस  गाठले .स्वरुपानंदाचा  छान आश्रम  .झाडात गणपती आकार घेऊ  लागलेला  ते  स्थान  वैशिष्टपुर्ण  आहे.मंदिरात दर्शन घेतले.तिथे  राहण्याची सोय ऊत्तम पण आम्ही मात्र निघालो  पुन्हा  रत्नागिरीला.रत्नागिरीवरुन  कोल्हापुर ला  जाणार्‍या  फाट्यावर  आलो.कोणत्या  बाजूने  प्रवास करायचा  निश्चित  होत नव्हते  एवढ्या लांब  आलोच  आहोत  तर  सिंधुदुर्गला  जाऊयात  असा  विचार  करत  बराच  वेळ गेला  .शेवटी  निर्णय ठरला  अन आम्ही  कणकवली कडे  निघालो.कणकवली त पोहोचलो तेव्हा  अंधार चांगलाच  पडला  होता.तेथे मंदिरात   मुक्काम करुन सकाळीच  वाटेत नदीवर अंघोळी करुन  सिंधुदुर्ग  किल्ल्यावर पोहोचलो..शिवरायांनी  बांधलेल्या  या प्रचंड अशा  मजबूत,किल्ल्यावर भरपुर फिरलो,.अतिशय सुंदर  जलदुर्ग.जय भवानी  जय शिवाजी च्या  घोषणा  देताना  फिरायला  आलेल्या  पर्यटकांनी  आमच्या  सुरात  मिसळलेला  सुर  शिवरायांची  स्तुतीच  गात  होता.मस्त किल्ला  आहे  ..तेथुन पुन्हा  आम्ही  कणकवली  वरुन  राधानगरी  डॅमच्या  बॅकवाॅटर    वरुन  धरण भिंतीवर आलो  .तिथला  जलविद्युत  प्रकल्प  पाहिला.अगदी आत  जाऊन.तिथल्या  व्यक्तीनी खुप  सहकार्य केलं.मुक्कामी  कोल्हापुरला  आलो..सकाळी फ्रेश होऊन  मोतीबाग  तालीम,अंबाबाई मंदिर पाहुन  रंकाळा  तलावावर चक्कर  मारली..तेथुन  पन्हाळा  किल्ला व ज्योतीबा  मंदिर  पाहुन परतीचा  प्रवास करुन  रात्री  घरी  पोहचलो..!!!

माझ्या  हिरो होंडा  CD100SS वर  केलेला  तो  सुंदर प्रवास  खरंच  खूप  सुंदर  झाला..गाडीवर  फिरायला  आलेत  याचं  अप्रुफ  अनेक  स्थानिकांना  त्या वेळी  वाटायचं.लोकही  खुप  सहकार्य करायचे.गाडीने  पंक्चर  होणे ,पेट्रोल संपणे  असा त्रास  ट्रिप मध्ये  एकदाही  दिला  नाही..अगदी  मस्त फिरुन  घरी परतलो.कोकण  ट्रिप छान झाली...कोकणातला  बांगड्याचा  रस्सा,सुरमई,पापलेट,खेकडा  फ्राय,कोंळंबी  फ्राय,ओले  बोंबील  आणि  मालवण  मधलं  मालवणी  जेवण कोकणातील  प्रवासाचा  शीण   घालवतात. जेवणासाठी  भरपुर   व्हरायटी  पण  कोकणात  भात  आणि  मासे  एक  नंबर!!!!!ओरोसच्या  अधिवेशनावेळी   बीचवर  जाऊन स्कुबा  डायव्हिंग  चा  अनुभव ही  घेतला.खुप सोयी  झाल्यात  आता  आपल्याकडे  ..पुर्वी  फक्त  गोव्याला   समुद्र  राईड,डाॅल्फिन राईड,मोटरबोट ,पॅराग्लायडींग  असायचं.आता  आपल्याकडेही  अनेक  ठिकाणी  या सुविधा  झालेल्या  आहेत..भारी  मज्जा  येते  अन  भीतीही  वाटते.एकंदरित  कोकण   मनाला  वेडावून  टाकते.


त्यानंतर बर्‍याच  वेळा  अधिवेशनाच्या  निमित्ताने  या  ठिकाणी  फिरण  झालं पण  गाडीवरची  ती  मजा  काही  औरच!गाडीवर  आतापर्यत  नांदेड,औढा  नागनाथ,अक्कलकोट,

पंढरपुर,आळंदी,भिमाशंकर,

अष्टविनायक,औरंगाबाद .,

पैठण,मोहटादेवी,नाशिक,

त्र्यंबकेश्वर,वणी  ,सुरत  पर्यत  प्रवास केला.प्रत्येक  वेळचे  अनुभवही  वेगवेगळे  !!शिर्डी आणि  शनि शिंगणापुर   तर  जवळजवळ दहा वर्ष  दर  महिन्याला  गाडीवर  !!!पगार  झाला  कि  निघालोच  शिर्डीला!!शिर्डी  माझं आवडतं देवस्थान.साईंच्या दरबारात  मनाला  प्रसन्न वाटतं.नवीन झालेली  बांधकामं ही  माझ्या  या प्रवास काळात  झालेली.पुर्वी  अगदी सहजतेने दर्शन व्हायचं..लाईन  ही  फार  नसायची!! त्यावेळी  फोर व्हिलर  गाडीचं खुप अप्रुफ वाटायचं.मोबाईल  आपल्याकडे  असावा  ,गाडी असावी  आपण दुर दुर फिरावे  एवढी  साधीसी  स्वप्न!!!काळाच्या  ओघात  या  सगळ्या  गोष्टी  प्राप्त  झाल्या  पण  फिरण्याचा   छंद  तसाच  राहिला!!! 

गेल्या  दोन वर्षापुर्वी  पुण्यावरुन  नांदेडला स्प्लेंडर  गाडी घेऊन निघालो असताना  मोहटादेवी,भगवानगड  पाहुन  नवीन झालेल्या  मस्त  हायवेने  बीड  हायवेला  आलो  तर गाडी  बंद पडायला  लागली,नवीन प्लग  टाकला,गाडी चालु झाली  माझलगाव  कडे जाताना  गाडीने पुन्हा त्रास द्यायला सुरुवात केली.अनेक वेळा प्रयत्न करुन ती  चालु व्हायची.दोन तीन किमी  अंतर गेल की  पुन्हा बंद..पेट्रोल भरपुर,प्लग नवीन  ,रात्र झालेली काही सुचेना !!! माझलगाव  च्या  बायपासने पुढे निघालो  .गाडी पुन्हा बंद .कशीतरी  गाडी चालू झाली  अन  पाथरीच्या अलीकडे  गोदावरी नदीच्या  जवळ  गाडी  बंद पडली  ,रात्र झालेली!.गाडी  कितीही  प्रयत्न केले तरी चालू  होईना.शेवटी  पाथरी तील  एका  मित्राला  फोन केला  तो लगेच  एक  रस्सी  अन  टु व्हिलर  ऐवजी  फोर व्हिलर  ब्रीजा  गाडी  घेऊन आला.माझी  गाडी  शेजारीच  हाॅटेल वर लावून  सकाळी न्यायची असा त्याचा  विचार  .पण पुढे मला उशीर होईल म्हणून शेवटी मी  ब्रीजा  गाडीला  दोरीने  टु व्हिलर  बांधली  अन  जो  वीस कि.मी .प्रवास केला  त्याचे वर्णन  करणे  अवघड.ब्रिजा  हळूहळू  चालवली  तरी  टु व्हिलर नेताना  जो  त्रास झाला तो अनुभवल्याशिवाय  कळणार नाही.थोडस  गाडीचे स्पीड कमी जास्त झाले तरी बसणारे झटके,अन  तोल सांभाळत  गाडी  चालवण्याची  कसरत  कायम  स्मरणात राहिल  अशीच!!पाथरीला  पोहोचलो .सकाळी  गाडी  फिटरकडे नेली तर काॅईल गेली  होती.त्या वेळेत  साईबाबांची  जन्मभुमी  पाहण्याचा  योग  आला!!

अशा  अनेक  अनुभवांची  शिदोरीच  मिळालीया प्रवासात...प्रवास करत असताना  प्रत्येक  क्षणांचा  आनंद  घेता  आला  पाहिजे  यासाठी  नजर  तेज  आणि  डोळे सतत  नवीन  काहीतरी  शोधणारे असेच असले पाहिजेत.

आजही प्रवास करत असताना  टु व्हिलर  वरची  त्या वेळ सारखी  मजा  राहिली  नाही.रस्त्यावर ट्रफिक खुप झालय..दुरवरचा  टु व्हिलर प्रवास हल्ली  बरेच जण  टाळतात..

पण मी अनुभवलेले  ते  प्रवासाचे  मंतरलेले  दिवस  आजही  मनाला  आनंद   देऊन   जातात. ज्या  गाडीवर एवढा  सगळा प्रवास  केला  ती  माझी  पहिली HERO HONDA SS  मी  आजही  घरी  वापरतो  आहे,.माझी  MH 12 AP 883  मस्त गाडी.कधीही प्रवासात बंद न पडलेली ,त्रास  न  दिलेली व एकदाही  अक्सिडेंट  न करता  चालवलेली  गाडी!!!अन  त्या  गाडीवरचा  प्रवास  भन्नाटच!!!!!


शब्दांकन—श्री.सतिश नानासाहेब  कोळपे

तांबेवाडी  ता.दौंड  जि.पुणे

मेळघाट....!!!!!!

  मेळघाट  म्हटलं  की  आठवतो  तो  निसर्गसंपन्न  प्रदेश ,  थंड  हवेचे  ठिकाण   चिखलदरा   आणि  व्याघ्र  अभयारण्य.    पण  सत्तावीस  अठ्ठावीस   वर्षापुर्वी   एकाच  वर्षात  एकाच  गावात  23  कुपोषित  बालकांचा  मन  पिळवटुन  टाकणारा  मृत्यू  झाला.आणि  समोर  आला  तो  मेळघाटातला  महा भयानक  आरोग्याचा  प्रश्न!!!बालमृत्यूचा  आणि कुपोषणाचा  मेळघाट  हि ओळख  तयार  झाली. 

अमरावती  जिल्ह्यात  धारणी  आणि  चिखलदरा  हे  दोन  तालुके  !!!!निसर्गाचा  वरदहस्त  लाभलेले,सुंदर जंगलानी  वेढलेले, प्राण्या— पक्षांच्या  अस्तिवाने  प्रफुल्लित  झालेला  मेळघाट  ..! मग  असं अचानक  काय  झालं ? एवढे  बालमृत्यू  का? 

याचं  उत्तर  शोधण्याची  जिज्ञासा ठेऊन  मेळघाट  मध्ये  जाऊन  पहायचं ठरवले.पण  जाणार  कुठं? विचारणार  कोणाला?

प्रश्न  होतेच...पण  समोर  प्रश्न  उभे राहिले  की  विचारचक्र  सुरु  होते त्या  ऊत्तराच्या  दिशेने  पावलं पडायला  लागतात. असाच  लेख  लोकमत  पेपरच्या  आॅक्सिजन  पुरवणीत  आला  होता..सहज  नजरेस पडला.बातमी  होती  मेळघाट  धडक  मोहीमेची..मैत्र  टिमच्या वतीने  मेळघाटात बरीच  वर्ष  कुपोषण   व  बालमृत्यू  रोखण्यासाठी  प्रयत्न  केला  जातोय. 2012  सालच्या  धडक  मोहिमेचं वेळापत्रक  आणि काय  काम करायचय व  काय करायच  नाही.यासाठी dhadakmohim.in या वेबसाईटवर  माहीती  दिलेली होती..ती वाचली अन ठरवलं यात सहभागी  व्हायचच!!!

आॅनलाईन  फाॅर्म भरला  .आणि बस दोन महिने गेले ना  रिप्लाय , ना  हालचाल..मैत्र च्या  कुणाही  कार्यकर्त्याची  ओळख  नव्हती.  त्यामुळे फोन ही नाही..आणि अचानक  मी फाॅर्मवर जी  बॅच  निवडली होती होती त्याच्या  अगोदर चार दिवस आॅफिसवरुन मधुभाऊ ने फोन केला.तुम्ही  येणार  आहात  का?  मी हो  म्हटलं.कुठुन  कसे यायचं याबद्दल  बोलणं झाल अन धारणीमध्ये  चंदु तुम्हाला भेटेल असं सांगण्यात आलं.नवीन प्रदेश ,माहिती नाही,काम कसं असेल कल्पना नाही पण  मनातला  निश्चय ठाम  होता .काहीही  असो,मला  मेळघाट  पहायचाय..पुणे  नागपुर गाडीचं  अमरावती पर्यंत  बुकिंग  केलं.आॅगस्ट महिना असल्यामुळे  रिझर्वेशन मिळाले,तिथुन बसने परतवाडा,आणि तिथुन  धारणी असा  प्रवास करायचा. नियोजन  करुन रात्री  निघालो.पहाटे जाग आली तेव्हा  गाडी  शेगावला थांबली होती.गाडीत बसल्यानंतर  पुढच्याच डब्यात बसलेला  पत्रकार मित्र  विशाल देशपांडे ही असाच एकटाच  मेळघाटच्या धडक  मोहिमेला  निघाला होता.त्याची  ओळख झाली.त्याने  अमरावतीपेक्षा  अकोला वरुन  छोट्या ट्रेनने  डाबका  ला जायचे व तेथुन  धारणी असा प्रवासाचा मार्ग  सांगितला.आणि  मी ही त्याच्याबरोबर अकोल्याला  उतरलो..

अकोल्यावरुन  निघणारी मीटर गेज रेल्वे म्हणजे रतलाम पॅसेजर.सकाळीच  सात वाजता रेल्वे  निघाली.छोट्या  गाडीतला प्रवास मस्तच!!अकोट वरुन पुढे गेलं  की  सातपुड्याच्या  पर्वतरांगा  सुरु  होतात.पावसाळ्याचे  दिवस असल्यामुळे  हिरवीगार  झाडं,नद्यांना भरपुर पाणी,जंगलातुन फुल भरुन वाहणारे  छोटे  छोटे  प्रवाह अगदि नयनरम्य  प्रवास.दाट झाडीत ,जंगलात असलेलं गाव कुठतरी  दृष्टीस पडायचं.सातपुडा  पर्वत  पार करुन गेलं की पहिल स्टेशन  डाबका..डाबका  स्टेशन  साधचं ,अगदी  प्लॅटफाॅर्म  पण  नाहित.तिकिट  काढण्यासाठी  छोटीसी रुम .बाकी काहीही  नाही..डाबक्यात  उतरलो,गावात आलो तेथुन काली पिली  जीपने  प्रवास करत  धारणीत  पोहोचलो.बस स्टॅडजवळ   असलेल्या  बेसकॅम्पवर गेलो  .चंदुभाऊ  ची  गाठ पडली..माझ्याअगोदर  बरेच जण  आलेले होते.सर्वाची  ओळख  एका मस्त खेळातुन  झाली..बाटली  ताटावर फिरवुन  टोपन ज्या बाजुला  जाईल त्याला  प्रश्न विचारायचे व त्याने उत्तर द्यायची.बराच  वेळ खेळ  चालला .ओळखी झाल्यानंतर  जेवणाची सोय केलेली होती.जेवण केले  तोपर्यत  आणखी  काही जण हजर झालेले होते.जवळ  जवळ  शंभर जणांनी  त्यावेळी  मोहिमेसाठी  नोंदणी  केलेली  होती..सायं चार वाजता  सगळ्यांचे चिठ्ठ्या टाकुन ग्रुप पाडले अन  आठ आठ  जणांचे ग्रुप केले. धारणी  तालुक्यातील अनेक  गावात  आरोग्याचे प्रश्न  गंभीर आहेत  त्यातल्या त्यात  दुर्गम  भागात  जास्तच!! बर्‍याच  दुर्गम  असलेल्या  भागात  जीपने आम्हांला पोहोच   करण्यात  आले..मला  हिराबंबई  नावाचं गाव मिळालं  होतं.धारणीपासुन  पस्तीस  चाळीस कि.मी.वर  असलेलं गाव  सुसर्दा  वरुन आम्ही सायं .गावात प्रवेश केला.मुसळधार  पाऊस  कोसळत  होता.या  धडक  मोहिमेसाठी  महाराष्र्टाच्या  कानाकोपर्‍यातून  मुलं आली  होती.त्यात  डाॅक्टर होते,पत्रकार  होते,MSW  चे काही विध्यार्थी  होते.सगळी मुलं तरुण  काही तरी  नवीन करायचयं  हि उर्मी घेऊन  मेळघाटात  दाखल  झालेली..हिराबंबई  त आमची राहण्याची व्यवस्था  एका  कोरकु  व्यक्तीच्या  घरी  मैत्र टिमने     केलेली  होती..मेळघाटात  कोरकु व बिलाला  ह्या  दोन प्रामुख्ख्याने  आदिवासी  जमाती..रात्री  आमच्या  अगोदरच्या  ग्रुपने  गावाबद्दल    कुपोषित बालकांबद्दल , त्यांच्या  आहार, तसेच ईथे  काय करु  नये  याबद्दल  सविस्तर  सांगितले.डाॅक्टरांनी  औषधांविषयी  माहिती दिली..व  आजुबाजुची  पाच गाव  जी  पुढचे  दहा  दिवस आम्हाला  काम करायच  होती ती , त्या विषयी  व जाण्या येण्याच्या ,काळजी घेण्याच्या  सुचना  देण्यात  आल्या..टिम लीडर सर्वाची  काळजी घेत होते.सकाळी उठून  दोन  कि.मी.दुरवर असणार्‍या  धबधब्यावर  अंघोळीला  गेलो.अतिशय मनमोहक  असा  परिसर.खळखळ वाहणारं पाणी.,धबधबा  फारच सुंदर.मन अगदी प्रसन्न झालं.गावात आलो,बॅग  भरली  माझ्या  जोडीला डाॅ.गौरी,आणि  संयोगिता मॅडम  होत्या..बॅगेत  औषधे,उकडलेली अंडी,वही,पेन घेऊन प्रथम  कुपोषित असणार्‍या  रितेश  आणि  प्रिया  यांच्या घरी  व्हिजीट केली.अतिशय कृश झालेली  ती  बालकं पाहुन मन विषन्न  झालं.घरचे लोक  त्यांची  काळजी  करतच नव्हते अस  एकंदरीत चित्र!!.संयोगिता मॅडमने त्या  चार वर्षाच्या रितेशला अंघोळ  घातली.मी त्याला  अंडी  चारली.गौरीने औषधे दिली.प्रियाच्या  घरीही  तीच  भीषण दाहकता!!!सारा गाव हाऊस टु  हाऊस सर्वे केला  कोण आजारी  ,किती माणसं आहेत,त्यांच्याबरोबर चर्चाही  भरपुर..आजारी असणारांना डाॅ.गौरीने  औषधे दिली.शाळेत पट मोठा,हजर कमी,बाकिची  मुलं दुर जंगलात  गुरांपाठीमागे,...कुणी  लहान भावंडं सांभाळायला,अनेकांना  फोडे  ,फुंगसीचे  आजार !सगळं समजून घेण्यात

दिवस पुरला  नाही,वेळ कसा गेला कळलेच नाही.नवनवीन माहिती समोर  येत होती..तस  तसा मला  बर्‍याच  गोष्टिंचा  रागही  येत होता.पण बंधन होते  बोलायचं  नाही..काही करायचं नाही,जेवढं  सांगितल ंतेवढंच  करायचं.

दहा  दिवस  असेच  कामात  निघुन  गेले.या दहा  दिवसात जो  मेळघाट मी  अनुभवला  तो  कल्पनेच्या  पलीकडचा.ईथे  शिक्षणाचा  अभाव त्यामुळे अंधश्रद्धा  ठासुन  भरलेली  आहे.अगदी  दवाखान्यात  जायचे म्हटले  तरी येथील  लोकांच्या  जवळ पैसे नाहित.पावसाळ्यात  पाऊस,ऊन्हाळ्यात  कडक ऊन अगदी पन्नास टेंम्परेचर..पाण्याचे स्त्रोत आटतात.दुरवरुन पाणी  आणावं लागतं.कुंटुंब नियोजन  नसल्यामुळे  एका एका  कुटुंबात  सात आठ मुलं हमखास.शेतातले उत्पन्न कमी.त्यामुळे  मुले जशी जगतील तशी जगतील हि भावना! रोजगार संधी  अजिबात नाहि.फक्त रोजंदारी व शासनाच्या  योजना यावर  अवलंबुन  .आरोग्याची प्रचंड गंभीर समस्या..ॅडाॅक्टर कडे जाण्याची  मानसिकता   नाही..घरं साधीच,वर पत्रे  ,त्यावर लाकडे  ठेवलेली.घराला  पाया असा नाहिच,त्यामुळे घरात  ओलसर पणा  कायमच..स्वच्छता हा प्रकार  कमीच!!!!येतील  तेवढ्या पैशात भागवायचे हि मानसिकता.साठवून ठेवणे संकल्पनाच  नाही..

अंधश्रद्धा एवढी की  साधं ताप आला  ,डोकं दुखलं तरी  भुमका  व परिहार  या  गावातल्या  देवरुषींकडे  जायचं  व ते सांगतील ते करायचं. गावात एक व्यक्ती  तर असा  होता की त्याच्या  शरिरावर  सगळे  डाग  दिलेले ,बोट ठेवायला  पण  जागा  शिल्लक  नव्हती.तेव्हा कळलं की  पोट दूखलं ,हात दुखला,डोकं  दुखलं की  इथे  डम्मा  दिला  जातो..डम्मा  म्हणजे  विस्तवात  खुरपे  गरम करुन चटका  देणे.हि प्रथा  सार्‍या  मेळघाटात  पहायला  मिळते..साप चावला तर त्या व्यक्तीला  पाच दिवस गुरांच्या  गोठ्यात  ठेवल जातं ,दवाखान्यात  नेत नाहित.खायला प्यायला  गोठ्यातच.साप  बिनविषारी  असेल तर  बरं नाही तर मृत्यू ठरलेला.अशा  अनेक प्रथा  मेळघाटात  आजही  आ  वासून  उभ्या  आहेत..गावात मंदिर नसते.मंदिर गावच्या बाहेर..गावात एखाद्या  लिंबाखाली चार पाच मोठे  दगड  मांडुन  पुजा केली जाते.गावठी मोहाची दारु सर्रास प्रत्येक  घरी  काढली जाते.व महिला सह  सगळे जण  बिनधास्त  पित असतात.,नविन तरुण मुलं,कुठंतरी बिगारी म्हणुन शहरात  कामाला जातात घरी परत आली की  सुधारणेचं सोडुन पुन्हा इथल्या  भाऊगर्दित  सगळं विसरुन  येरे  माझ्या  मागल्या!!!!मोबाईलवर  गाणी  मोठ्या  आवाजात  वाजविणे  म्हणजे  इथली  फॅशनच  जणू!!!लहानपणीच  लग्न,अॅनिमिया, सकस आहाराची  वाणवा,,आरोग्य सेवेचा अभाव,यामुळे  जन्माला येणारं मुल सुदृढ  कसं असेल?सरकारी  यंत्रणा  खुप  करतेय पण समाजाची मानसिकता  बदललेली  नाही..

खुपच  भयानक वास्तव याचाच परिणाम  कुपोषित मुलांचे प्रमाण सगळ्या  मेळघाटात  जास्त  आहे..1993  साली  याच  हिराबंबई  गावात तेवीस  बालमृत्यू झाले .प्रशासन खडबडुन जागे झाले.मुख्खमंत्री इथे गावात आले .गावाला रस्ता झाला  !,पाण्याची टाकी,आरोग्य केंद्र  झाले..वेळ जशी जशी  निघुन गेली तसा  दवाखाना  ओस पडला, मेळघाटातल्या समस्या जैसे थे  च   झाल्या..टाक्या उभ्या राहिल्या पण पाणीपुरवठा  बंद पडला..सगळा  मेळघाट पुन्हा  पोरका  झाला.!!घरातच  जनावर बांधणे  ,त्यांना सांभाळणं,जंगलातील लाकुड फाटा,मोहाची फुले,फळे,गोळा करुन हे आदिवासी  आजही जगताहेत..सुविधा दिल्या पण  अज्ञान असल्यामुळे त्या टिकवता  आल्या  नाहित.अनेक मुलं शिकलेली आहेत पण  नोकरी नाही..नोकरी मिळेल तर एस. टि .चा  जातीचा  दाखला  नाही.  दाखला  आहे तर व्हेरिफिकेशन नाही.त्यामुळे येथील जनतेत प्रचंड असंतोषाचे वातावरण!!!या समस्या  सामाजिक,धार्मिक,आरोग्य,शैक्षणिक अशा  अनेक गोष्टित एकमेकांशी  गुंतलेल्या  आहेत.मेळघाटमधे  सगळीकडे कोरकु भाषा  बोलली  जाते..मराठी त्यांना  अजिबातच...समझत  नाही.काही लोकांना हिंदी  समझते.त्यामुळे मराठीचं पुस्तक  हिंदीतुन शिकवावे  लागते..असो.संवाद  फक्त  हिंदी  किंवा  कोरकु..दहा  दिवसात  बरेच  कोरकू  शब्द  शिकलो..


मेळघाटचं भयाण वास्तव रुप पाहुन मी मला काय करता येईल  हा विचार करुन , शाळेत स्वच्छतेच्या सवयी शिकवु लागलो.व दररोज अपडेट घेऊ लागलो..लोकांमध्ये मिसळुन त्यांच्याशी चर्चा ,करुन बचत गटाविषयी  माहिती व ते सुरु करण्याचे मार्गदर्शन ही करु लागलो.छोट्या छोट्या  गोष्टितुन  शेती,आरोग्य या विषयी  माहिती  देऊ लागलो अंधश्रद्धेवर   गोष्टि सांगुन  विचारात बदल करण्याचा  प्रयत्न केला..मी  सांगितलेल्या  गोष्टि  लोकांना  पटत  होत्या  म्हणुन  च  वारंवार  लोक  माझ्याशी बोलायला  येत होते.नविन  जाणुन  घेण्याची त्यांची  मानसिकता  आहे.जेवढा  जास्त वेळ लोकांना  देता  येईल तेवढा  देण्याचा  प्रयत्न मी  केला..कारण  मला  माहीत आहे.इतक्या  वर्षाचा  असलेला  पगडा  दुर  करण्यासाठी  या  मेळघाटात लगेच जादुची कांडी  फिरवल्या सारखा  बदल लगेच होणे  शक्य  नाही. खुप  काम करण्याची  गरज  आहे..सुरुवात  तर केली  आहे .बदलही  घडेल , हि  आशा ठेऊन या दहा  दिवसात  जे  जे  करता  आलं ते काम अगदी मन लावुन केलं.या बांधवांच्या  विरुद्ध  जाउन जर  काम केलं तर  या  गावात  काम करणे  अवघड  !!!म्हणुनच  ,त्यांच्यात  मिळून  मिसळून या  गोष्टि बदलणे  शक्य आहे..मैत्र टिमने हे ध्येय ठेऊनच  काय करा  आणि काय करु  नका  हे अगोदरच  सांगितलं होतं.मेळघाटात  काम करत असताना  दुर जंगलात घरोघरी दररोज किमान दहा कि.मी. तरी चालावेच  लागते.नद्या ,ओढे  यांना  पाण्यातुन ओलांडुन कारण पुल नाहित.त्यात पाऊस झाला तर अचानक पुराची भीती तसेच जंगली प्राणी,वाघ,अस्वले यांची  भीती  मनात ठेऊन  सावधपणे  आपल काम करणे खुप जोखमीचंही  आहे.दारुड्या  व्यक्तिंचा  त्रास  खुप.त्याचबरोबर  अनेक  संस्था  इथं काम करतात, त्यामुळे ऐतं  खाण्याची  प्रचंड सवय  इथल्या  लोंकांना लागली  आहे..आपल्या  घरात  कुपोषित  बालक  असेल तर शासन,,येणारी  लोक  खुप काही  देतील व त्यातच  प्रपंच  चालेल हि  प्रचंड  संताप  आणणारी  मानसिकता..आपण  मनापासुन  काम करतो  पण  काहीना  वाटत  हे  पैसे  घेऊन  इथं  काम करतात . कुपोषित वाल्यांना  देतात मग  आम्हाला  का  नाही ?! हि  लोकांची मानसिकता  उद्वेग  आणते..लोकांना सुधारणेसाठी  ,त्यांच्या  विचारात  बदल  करण्यासाठी   खुप  काम  करावे लागेल,प्रयत्न  करावे  लागतील.हिराबंबईच्या  घटनेला  सत्तावीस वर्ष झाली तरी  मेळघाटात  अजुनही कुपोषण  समस्या  भयानक  रुप  धारण करुन आहेच.लोक  येतात ,मदत करतात पण  मैत्र टिम  होम  ग्राऊंडवर  आपलं काम तळमळीने  करताना  मला  ईथे  दिसली.अडचणींना  सामोरे जात,काही जणं  घरदार  सोडुन  सेवा करण्यासाठी  मेळघाटात  राहिली..कारण फक्त कागदोपत्री कुपोषण  कमी  दाखवली  तरी  वास्तव विदारक  परिस्थिती आहे  हे  नाकारता  येणार  नाही.मैत्र टिमने  ही  तरुणांची  ऊर्जा अतिशय  चांगल्या  कामाला  लावली आहे.कोरकुंच्यात मिसळुन त्यांना  आपलसं करुनच  समाज मन परिवर्तन करावे  लागेल..हे नक्कि!!!त्यांच्या  चालीरिती ,परंपरा यांना धक्का न लावता  बदल होणे  अपेक्षीत  कारण  या  आदिवासी  भागात  नक्षलवादी  अजुन तरी  नाहित  पण  या  लोकांना समजुन  घेऊन  कार्यवाही  करावी  लागेल,  कारण इथे  कधी नक्षलवाद फोफावेल  याचीही भीती  आहेच!!.अनेक संस्था  चांगले काम करताहेत,महान सारख्या संस्थेचा घरोघरी परसबाग  हा उपक्रमही  छान आहे  . ताज्या  भाज्या  आरोग्यासाठी  आवश्यक  आहेत..हा उपक्रम मेळघाटात अनेक गावात दिसतो..असा हा मेळघाट  मला  नवीन जगण्याची  दिशा  देऊन गेला. जीवन जगण्याचा  एक  नवा  मंत्रच  मिळाला  म्हणा  ना?समाज्याकडे  पाहण्याचा  दृष्टिकोन बदलला..आणि  इतरांसाठी  जेवढि  मदत  करता येईल तेवढी  मदत  करायची  हा  पायाच  रचला  गेला..स्वतः कष्ट घ्यायचे पण  इतरांना  त्रास होऊ नये म्हणून  झटण्याची  सवयच  जडली ,ती  या  मेळघाटमुळेच..!!!या  कामात मला पत्रकार  विशाल देशपांडे,डाॅ.गौरी भुले,संयोगिता मॅडम,शितल मोरे (साळवे),डाॅ.दिव्यमाला  पाटिल, डाॅ.घाडीगावकर  (सध्या रुषीकेशला  असतात,,) MSW  चे प्रशांत,निर्मला मॅडम,प्रिया  मॅडम,.आश्विनी मॅडम,.श्रीकांत ..कासमार  कॅम्पला भेटलेला  डाॅ.पवन,सिमा  मॅडम,  राम,  वसुधा मॅडम .,

कुंभार काका ,काकु...चुनखडी  कॅम्प चे  धुरंधर अहेर  आणि  मित्र राजुभाऊ केंद्रे  सर्वानी  ऊत्तम  काम करुन  सहकार्याची  एकजुटिने  काम करण्याची  नवी ओळख करुन दिली..सर्वच जण म्हणजे  कामाची प्रचंड आवड असणारे हिरे जणू!कधी कंटाळा नाही . सतत काम  .,काम,आणि  कामच....!असाच एक अवलिया  म्हणजे राजुभाऊ केंद्रे प्रचंड  कामाबद्दल  निष्ठा असणारा  ऊत्तम टिम लीडर.याचा  ऊत्साह  भारीच!सध्या तो  कर्जत  जामखेडला  पारधी बेड्यावर  काम करतोय...सगळा  आटापिटा  इतरांसाठी!!!  बुलढाण्याचे घरदार सोडुन दुर  मागासलेल्या  लोकांसाठी  झटणार्‍या  या  राजुभाऊ  ला  सलाम!!!!मैत्रीच्या या  कामाचे  आऊटपुटही  छानच  .बालमृत्यु दर घटतोय  हि  चांगली  जमेची  बाजू  सर्व  व्हालिंटियर्स  ना  ऊत्साह  देऊन जाते.काम  संपलेले  नाही अजून खुप  गोष्टि,आरोग्याच्या,श्रद्धेच्या,सामाजिक  ,आर्थिक,

शैक्षणिक  पुढे  उभ्या  आहेत..त्या  मिटवण्यासाठी  गरज  आहे  आपल्या  सर्वाची  ,त्यांना  मदत करण्याची!!!मधू भाऊ खुप  ऊत्साहाने  काम करतात  पण  वेळे अभावी  ,कामामुळे  सगळ्या  व्हाॅलिंटियर्स  बरोबर  संपर्क  साधणे  त्यांना  शक्य  होत नसेल  पण  व्हालिंटियर्स  या मोहिमेला  आणि  त्यात  मनापासुन काम करणार्‍या  अगणित  लोकांना  कधीही  विसरणार  नाहित..!!सर्व जण भारी भेटले होते  कॅम्पला!!आयुष्यात कधीही हरायचं नाही  फक्त  सतत पुढे जात रहायची  हि ऊर्जा येथे या सर्वाना नक्किच  मिळाली असेल!!!आयुष्याच्या  या  वळणावर जीवन जगण्याचे सुंदर  बाळकडूच  येथे सर्वाना मिळते ज्याचा उपयोग आयुष्यात  प्रत्येक ठिकाणी होताना  दिसतो..येथे  येणे म्हणजे  फिरणे आणि  पाहणे हा भ्रम पहिल्यांदा काढून टाका . स्वः खर्चाने येणे, जेवणाचे पैसे अगोदर भरणे,  फक्त  औषधे  येथे दिली जातात .ती फक्त  या लोकांना  पोहचवायची असतात,,औषध देणे  हा  उपाय नाही तर या लोकांना जाणून घेणे  आणि त्याच्यांत बदल करण्यासाठी  तुम्हांला जे काही करायचय  त्यासाठी केलेली  अफाट प्रयत्नांची साखळी असते  ती तुटु न देता  एकाने ग्रुपने दुसर्‍या ग्रुपला विश्वासात घेऊन  मन लावून काम करत रहायचे.सुट्टि काढुन काय फायदा ,तोटा,याचा विचार न करता समाज बांधवांसाठी फक्त काम करायचं एवढाच उद्देश ठेऊन परिस्थितीशी दोन हात करुन या अंधार्‍या जीवनात प्रकाश आणण्याचे काम करण्यासाठी ही मेळघाट धडक मोहीम.या  कामासाठी साठी पण मेळघाट मधे आढळणार्‍या वाघासारखं वाघाचं काळीज  असावं लागतं. वर्षभर  या  लोकांच्या कष्टाला तोड नाही मधुभाऊ,चंदु,राजाराम भाऊ अशी अनेक  मंडळी या कार्यात आपले तन, मन ,धन अर्पुन  काम करताहेत  आणि ते अविरत सुरुच आहे.वर्षभर औषधे गोळा करणे,स्वःत खर्च करुन,दहा दिवस सुट्टी टाकून या दुर्गम भागात काम करणारे स्वयंसेवक शोधणे,काम निश्चित करणे,ते पुर्णत्वास नेणे  याची जबाबदारी ही सगळी मंडळी पार पाडतात.आपण आपला  खारीचा वाटा उचलायचा!!!अजुनही चुनखडी सारख्या गावात वीज नाही,कावडाझिरी  सारखं दुर्गम गाव . तिथे असणार्‍या निसर्गाचा  अजुन बोलबाला नाही.व्याघ्र प्रकल्प असल्याने  वाघाची भीती  कायमच मानगुटीवर बसलेली..अशा या मेळघाटात  काम करुन जीवनकौशल्याची  शिकवण  मिळतेच मिळते....!लिहिण्यासारखं भरपुर आहे...अनुभवही  खुप.....!!!!पण  हा  महाराष्र्टातला दुर्लक्षित मेळघाट  एकदा  तरी अनुभवावा......म्हणजे आपण किती  बोलतो यापेक्षा आपण काही करु शकतो..का? यावर विचार  करायला  लावल्याशिवाय  चैन पडणार नाही..!!!मेळघाटात  पहिल्या  कॅम्प नंतर  वेळ मिळेल तसा  जाण्याचा  प्रयत्न  करतोय  आणि     जातोय  सुद्धा!!!!!ती ही  सुट्टि टाकून  आणि खरंच बदल  दिसायला  लागलेत!!!!नवीन जीवन जगण्याची  प्रेरणा  घेऊन  अनेक  मित्रही  मिळवले  ते या  मेळघाटात...!अजून  सुरुवातच  आहे बदलाची . आपणही या मोहिमेत  सामील होऊन  समाज कार्यासाठी  वेळ द्यावा,जगत तर सगळेच  आहोत पण  हटके  जीवन  जगण्यासाठी  मेळघाट  तुम्हांला  खुणावतोय.....!सर्वानी  या  आपले  स्वागतच  आहे  येथे....!!मेळघाटमध्ये चिलाटी येथे  मैत्री चे  कायम स्वरुपी आॅफिसही  आहे...अधिक  माहितीसाठी  वेबसाईड  वर  सर्व माहिती  उपलब्ध  आहे.फोन नंबर्स  आहेत.....!!  या मग  नक्किच  मेळघाटला....!जीवन जगायला  आणि  जगवायला  सुद्धा!!!!!!!!


शब्दांकन — 

श्री.सतिश नानासाहेब कोळपे  

तांबेवाडी  ता.दौंड जि.पुणे

इंदौर उज्जैन ओंकारेश्वर.......


टु व्हिलर वर महाराष्र्ट भर  भटकलो. फोर व्हिलर  गाडी घेतल्यानंतर  दुसर्‍या राज्यात जायचं ठरवलं. संजय महाराज  ,शिवा आणि  मी तिघेच जायचा प्लॅन बनवला.सकाळी निघुया म्हटले तरी निघता निघता  दहा वाजले.शिरुर,अहमदनगर मार्गे  शिर्डी त पोहोचलो.दुपार झाली होती.साईबाबांचे दर्शन घेऊन   जेवण केले अन पुढे निघालो.गाडी दोघांनाही येत नव्हती.त्यामुळे संपुर्ण प्रवासात गाडी मलाच  चालवावी  लागणार होती.शिर्डी पासुन पुढे मालेगाव पर्यत रस्ता जुनाच व खराब .खड्डे जास्त होते .त्यामुळे मालेगावला पोहचायला  दिवस मावळत आला होता.मालेगावपासुन चार पदरी हायवे .गाडी स्विफ्ट vdi ,चालवायला कंटाळाच येत नाही .मग काय धुळे पास करेपर्यत  अंधार पडला होता.पुढे महाराष्र्ट बाॅर्डर पार करुन मध्यप्रदेश मध्ये प्रवेश केला.रात्री रोडलाच  हाॅटेलवर  आराम करायचा  ठरवला.ढाब्यावर मस्त जेवण  करुन  आराम केला.सकाळी निवांत 

उठून  इंदौर चा अहिल्याबाई होळकर यांचा राजवाडा,एअरपोर्ट अशी निवडक ठिकाणे पाहुन  ऊज्जैन ला पोहोचलो.संजय महाराज अनेक वेळा या भागात आले असल्यामुळे रस्ते  चुकण्याचा व रस्ता  विचारण्याची  गरज पडली नाही.प्रथम डायरेक्ट  क्षिप्रा नदिवर गेलो.या पवित्र पावन नदीत  अंघोळ करुन हरसिद्धी मंदीरात दर्शन घेतले.मनाच्या सर्व इच्छा पुर्ण करणारी देवी असा हिचा लौकिक!!

तेथुन उज्जैन च्या  महांकाळेश्वर मंदिरात  दर्शनासाठी  गेलो.मंदिर खुप भव्य .दर्शनाची लाईन खुप मोठी .पण पटपट दर्शन होत होते.तासाभरात  मंदिरात  पोहोचलो.मंदिर गाभारा ही खुप मोठा.समोरील मंडपातुन शंभर  लोक सहजपणे  दर्शन घेतील अशी पायर्‍या पायर्‍यांची दर्शन व्यवस्था खुप छान.अगदी गर्दी न करता निवांत दर्शनाची सोय .मंदिर खुप मस्त आहे.जागाही भरपुर.दर्शन घेऊन  बाहेर पडलो.तेथे  प्रसाद म्हणुन भांग पिण्याची गळ घातली  जाते.जरा जपुनच  !!!.भांग  कशी असते व कशी बनवली जाते यावर वेगळं लिहावं लागेल. मार्केट फारच छान आहे.तिथे भरपुर फिरुन  ऊज्जैन च्या जवळ सात आठ कि.मी. वर असणार्‍या कालभैरव मंदिराकडे .मंदिर परिसरात पोचल्यानंतर पार्किंगला गाडी  लावली.पार्कीग  परिसरात पुजा साहित्याची दुकाने. प्रत्येक  दुकानात  देवाला चढवण्यासाठी  दारुच्या  बाटल्या  मांडलेल्या!!!प्रत्येक   ब्रॅन्डच्या  देशी विदेशी  ,स्वस्तापासुन  महागापर्यत  सर्व  प्रकारच्या दारु उपलब्ध..मी आजवर अनेका कडुन फक्त ऐकलं होतं ऊज्जैनला  दारु पिणारा देव आहे.तो कसा आहे   हे पाहण्याची ऊत्सुकता होतीच!! पुजेची थाळी घेऊन मंदिरात प्रवेश केला..सगळीकडे  दारुचा उग्र  दर्प येत होता.पुजारी अगोदर सर्व  भक्तांच्या  बाटलीचे टोपन उघडत होता.माझाही  नंबर आला .पुजार्‍याने अर्धी  बाटली  एका डीश मध्ये ओतली  समोर  काळभैरवाची  मुर्ती  ..तोंडाला  खाच  आहे  .म्हणजेच  मुर्तीचे तोंड  थोडेसे उघडे,पुजार्‍याने  डिश मुर्तीच्या तोंडाला लावली अन  सारी डिश रिकामी झाली,अगदी माझ्या समोर!!!देव दारु पितो हे पाहिलं पण एवढी सगळ्यांची दारु(प्रसाद) जाते कुठ? हा प्रश्न   आजही आहे.कारण त्यानंतर तेथे अनेक आख्यायिका  ऐकल्या.अंधश्रद्धा  निर्मुलन वाल्यांनी कसे jcb  लावुन बाहेर आजुबाजुला खोदकाम केले .पण निष्कर्ष काहीच  निघालेला नाही.खुपच  चमत्कारीक  गोष्ट!!!मंदिर परिसरात  अनेक दारुच्या बाटल्यांचा  खच पडला होता.तेथुन पुन्हा  ऊज्जैन मध्ये फिरुन परत निघालो.तर   महाकाळेश्वरचा  प्रसाद  पावला.सायं.पर्यत  गाडी लावुन झोपी गेलो.सायं. सहा वाजता उठुन  इंदौर मार्गे  ओंकारेश्वर कडे.ओंकारेश्वर जवळच  बडवाह च्या अलीकडे  घाटात छान मंदिर आहे.ढाबा असल्यामुळे जेवणाची उत्तम सोय .रात्रीचा मुक्काम तिथेच केला.पहाटे गारठा खुप जाणवला.सकाळी लवकरच गाडीला स्टाटर मारला अन बडवाह वरुन  ओंकारेश्वर.दुर जंगलझाडीत लपलेलं सुंदर ठिकाण.!ओंकारेश्वरला गाडी पार्क  करुन नर्मदा नदीच्या नवीन पुलावरुन पलीकडे गेलो.नर्मदेच्या  पाण्यात मस्तपैकी पोहलो.स्वच्छ पाणी .वरती लगेचच धरण असल्यामुळे वाहते पाणी!!!अंघोळी करुन ओंकारेश्वराचे दर्शन घेतले .बारा ज्योर्तीलिंगापैकी एक सुंदर देवस्थान.गर्दी कमी.त्यामुळे प्रसन्न वातावरण..नंतर  होडीतुन  फेरफटका  भारीच!!परत झुलत्या पुलावरुन जुन्या मंदिरात दर्शन घेतले.मार्केट छान आहे खरेदीसाठी..दुकानामध्ये  मोठमोठ्या  शाळीग्राम च्या  पिंडी  मन वेधुन घेत होत्या..मी ही एक शाळीग्राम खरेदी केला.धरण  भिंतीवर जाऊन फिरुन आलो .मस्त अनुभव.दाट जंगल,नदी,अथांग पाणी ,ओंकारेश्वर मंदिर परिसर खुप छान वाटला.ओंकारेश्वर करुन महेश्वरला  आलो..अगदी जवळ आलो तरी वाटत नाही कि इथं काही पाहण्यासारखं असेल!!

आम्ही महेश्वर किल्ल्याच्या समोर गाडी पार्क  केली .किल्ल्यात प्रवेश केला.सगळी घरंच  आत.यात काय नवल.पण नवल तर पुढं होतं.!!मंदिरापर्यत चालत गेलो .देवदर्शन केल.आणि विचारले ,किल्ल्यात एवढच पाहण्यासारखं आहे का?एक जण म्हणाला ,तुम्ही गाडी कुठे लावलीय?पहिल्यांदा  आलात का?मी  हो  म्हटलं  तो म्हटला समोर जा ..आणि बघा!!!!!मी पहिल्यांदाच महेश्वरला  आलो असल्यामुळे मुळे माहिती नव्हती...

मंदिरापासुन सरळ पुढे गेलो डावीकडे टर्न मारला  तर  विश्वास बसत नव्हता..सुंदर राजवाडा,पुण्यश्लोक अहिल्याबाई होळकर यांचा पुतळा ,कोरीव काम अन नक्षीकाम केलेला  राजवाडा , बुरुज,मंदिरं,,समोर  नर्मदेचा अथांग  जलाशय!!अतिशय  सुंदर,रमणीय,मनमोहक दृश्य!!!!पुण्यश्लोक  अहिल्याबाई होळकर यांच्या पुतळ्याला नतमस्तक  होऊन  राजवाडा,दरबाराची जागा  अगदी जुन्यानुसार जतन करुन ठेवली आहे. महाराष्र्टातील  एका कन्येचा  धनगर बांधवांच्या  अस्मितेचा इतिहास तिथे डोळ्यासमोर उभा राहिला..ट्रिपमधलं अतिशय सुंदर ठिकाण  मला  आज  पहायला मिळालं अन तेही  अगदी  अचानक  न ठरवता,.!!

नदीवर  मनसोक्त फिरलो.सुंदर असे  बांधलेले एक  कि.मी.पर्यतचे घाट..सुंदर नक्षीकाम..नदीच्या बाजुने ते राजवाड्याचे  सौंदर्य  अगदी मन मोहुन टाकणारे!!

अनेक सहली ,पर्यटक येथे आवर्जुन येतात.नितांत सुंदर  ठिकाण  महेश्वर,!!पुण्यश्लोक अहिल्याबाई होळकर यांनी आपली राजधानी  इंदौर वरुन येथे आणली होती.शंकराचे  सुंदर बांधकाम असलेलं मंदिर..त्याचबरोबर   अहिल्याबाईंचे  समाधीस्थळ..त्या स्थळावर  डोके टेकवले अन सार्थक  झाल्यासारखे  वाटायला लागले..सुंदर अशा या ठिकाणाला भेट देऊन परतीचा प्रवास केला .वाटेत शिर्डी जवळ मुक्काम केला  अन  शनिशिंगणापुर करुन घरी  आलो.

ट्रिप छान झाली.पण  सर्वाना  पुन्हा एकदा  आवर्जुन सांगतो   ऊज्जैनला  भांग  कुणीही  किती हि आग्रह केला तरी एक घोट सुद्धा  घेऊ  नये.गाडी मुळे  ट्रिपची  मजा  आणखीच द्विगुणित झाली..!!!!ट्रिप  चार दिवसात मस्त  करता येते.


पुण्यनगरी तीर्थक्षेत्र  काशी.....

  सर्वाना घेऊन  फिरायला जायचा  बेत केला अन रेल्वेने   वाराणशी  ला निघालो.सकाळी सकाळी गाडी इटारसी जवळ पोहोचली तिथुन  गाडी  करेली  मार्गे  जबलपुर करत निघाली  .गाडी अतिशय स्लो चालली होती.सायं.चार वाजता गाडी  अलाहाबाद  आताचे  प्रयागराज च्या जवळ पोहोचली.यमुनेचा  खुप मोठा रुंदी खुप जास्त असलेल्या  पुलावर गाडी आली.नदित खुप पाणी होते.नदिच्या  पात्रात  कुठला तरी मोठा सोहळा होणार होता त्यामुळे  सगळीकडे टेन्ट ,तंबू,लावलेले होते.नदिच्या पुलावरुन ते दृश्य मनमोहक  वाटत होतं.पुलावरुन गाडी अतिशय हळू चालली होती.नदिच्या पलीकडेच लगेच प्रयाग!

प्रयाग ला थोडा वेळ थांबुन गाडी निघाली ती .वाराणशी च्या दिशेने गंगा ,यमुना यांच्या संगमाजवळ असलेल्या  भल्या मोठ्या पात्रातुन आणि भल्या मोठ्या पुलावरुनच  गंगा मैयाचा जयजयकार केला.रात्री गाडी  वाराणशी स्टेशनवर पोहोचली.वाराणशी स्टेशन खुपच  छान स्टेशन आहे.स्टेशनची  रचना  अतिशय छान.वाराणशी स्टेशनपासुन काशी विश्वनाथ मंदिरापर्यंत जाण्यासाठी सोय उपलब्ध आहे.राहण्यासाठी  अनेक धर्मशाळा व हाॅटेल्स उपलब्ध  आहेत .मंदिराच्या जवळच  रुम घेतली अन आराम केला.सकाळी उठुन चालतच  गंगा  नदिच्या किनार्‍यावर गेलो.अनेक  लोक स्नानासाठी  इथे आलेले होते.हर हर गंगे  म्हणत  नदीत डुबकी मारली.गंगा नदीत पात्रात त्यावेळी मारलेली डुबकी  आणि तीही  काशी मध्ये न विसरणारी  गोष्ट.इतकं मन प्रसन्न झालं की तिथुन पुढे अंगात नुस्ता  ऊत्साह संचारला होता.अंघोळ व नदिची पुजा आटोपुन  काशी विश्वनाथ मंदिरात  दर्शनासाठी गेलो.अतिशय गर्दीत असलेले मंदिर फारच पुरातन असं आहे.पोलीसांचा  मोठा बंदोबस्त कायमच तेथे असतो.सकाळी सकाळी  गर्दी कमीच होती.अगदी निवांत दर्शन घेता आले.परकिय आक्रमणांनी  उद्ध्वस्त झालेल्या मंदिराचा  जिर्णोधार  पुण्यश्लोक अहिल्याबाई होळकर  यांनी केला आहे.मंदिराचे  शिखरावर पुर्ण  सोन्याचे  आवरण बसवण्यात आलेले आहे.मंदिर परिसरात असलेल्या  अन्नपुर्णा  देवीचे दर्शन घेऊन  बाहेर पडलो.रूमवर परत येऊन  जेवण आटोपुन  फिरण्यासाठी  बाहेर पडलो.प्रथम रिक्षाने सारनाथला  गेलो.गयेतील बोधीवृक्षाची  फांदी  या ठिकाणी लावण्यात आलेली आहे.वृक्ष खुप मोठा.मंदिर फारच छान.तेथील बुद्धांची पवित्र मुर्ती चे दर्शन घेतले.जुन्या विहाराला भेट देऊन संग्रहालय पाहण्यासाठी गेलो..जी राजमुद्रा आपण सगळीकडे पाहतो ती येथीलच  चार सिंहांच्या  असलेल्या कलाकृतीतुन घेतलेली आहे.थोडेसी  तुटलेल्या अवस्थेत जशीच्या तशी जतन करुन ठेवलेली  आहे.सुंदर पाहण्यासारखे ठिकाण आहे.तेथेच  बनारसी साड्या  तयार करण्याचे अनेक घरगुती छोटेछोटे  हातमाग  आहेत. पुन्हा  गंगेच्या  काठावर येऊन नदिपात्राची सैर करण्यासाठी बोट ठरवली.अनेक घाट बांधलेले आहेत.सुंदर जुनी   बांधकामं ,नदिपर्यत पायर्‍यांची सोय करण्यात आलेली आहे.रेल्वे पुलापर्यत पलीकडच्या तिरावरुन दिसणारे वाराणशीचे  विलोभणीय दृश्य फारच छान. विशेष म्हणजे इथे गंगा नदीत  डाॅल्फीनसुद्धा पहायला मिळतात.हरिश्चंद्र घाटावर  मेलेल्या माणसांना जाळण्याची सोय.राजा हरिश्चंद्राची गोष्ट इथं आवर्जुन सांगितली जाते.दुरवरुन लोक इथे अग्नीसमाधी देण्यासाठी इथे आणली जातात.सायं झाली तशी नदिवर गर्दि जमा होऊ लागली.सायं सात होणारी आरती वाराणशीची खास ओळख बनली आहे.गंगेची आरती गंगोत्री,हरिद्वार,व वाराणशीला दररोज न चुकता दररोज सायं .केली जाते.छानशा  पोशाखात आलेले पुजारी येईपर्यत भजनाचा कार्यक्रम  सुरु असतो.पुजारी आले की मंत्रोच्चाराने वातावरण  बदलुन जाते.आरती वेळी पुजार्‍यांच्या  हातातील दिवे व ते फिरवण्याच्या पद्धतीमुळे एक वेगळीच  जाणीव तयार होते.आरती पुर्ण झाल्यानंतर पाण्यात सर्वानी  लावलेले दिवे सोडले.कित्येक वेळ ते दिवे पाण्यावर तरंगत असतात.काशीत हि आरती कोणीही चुकवु नये अशी असते.मन प्रसन्न होऊन जाते. त्या दिवशी मुक्काम करुन दुसर्‍या दिवशी अयोध्येकडे प्रयाण केले.प्रभु रामचंद्रांची जन्मभुमी .शरयू नदिच्या काठावर असलेल्या  जन्मभुमीचे दर्शन मनाला  उभारी देऊन जाते.इथे प्रचंड बंदोबस्त असतो.मंदिरासाठी लागणारे कोरीव घडवलेले दगड येथे ठिक ठिकाणी तयार करुन ठेवण्यात आलेले आहेत.नंतर शरयु नदिच्या काठावर बराच वेळ फिरलो.निघालो ते प्रयाग ला.प्रयाग मुक्कामी राहुन त्रिवेणी संगमावर स्नान करुन कुंभमेळा जिथे भरतो त्या ठिकाणाला भेट दिली.अनेक जुनी मंदिरं पाहिली.व परतीचा प्रवास केला.एका अर्थी धार्मिक ट्रिप मनाला सुखावह व शांतता देणारी ठरली. मनाला प्रसन्न,प्रेरणा आणि ऊत्साह देणारी ट्रिप सर्वानी करावी अशीच!!!

त्यानंतर बर्‍याच वेळा काशीला जाण्याचा  योग जुळुन आला.पण कधीही गंगा आरती चुकवली नाही.गंगेच्या होणार्‍या गंगोत्री,हरिद्वार व वाराणशीच्या आरत्या बर्‍याच वेळा पाहण्याचा  योग आला.

गंगा  आरती न विसरता येणारा देखणा सोहळाच जणू,!!!


शब्दांकन — श्री.सतिश नानासाहेब  कोळपे

तांबेवाडी ता.दौंड जि.पुणे

हंम्पी.....

अधिवेशनाच्या निमित्ताने दहा दिवसाचा  सुट्टिचा काळ.आमच्या सारख्या भटकणार्‍यांसाठी सुवर्णसंधीच.अधिवेशन  ठरल आणि  आम्ही निर्णय घेतला .फोरव्हिलर गाडीने  रात्रीच सर्वाना गोळा केलं  आणि  निघालो थेट विजापुरकडे.रात्री  भिगवणला  जेवण  करुन नाईट ला ड्रायव्हिंग करत मोहोळ मार्गे  पहाटे चार वाजता  विजापुरला पोहोचलो.बसस्टॅड जवळ एक रुम घेऊन  आराम केला.सकाळी फ्रेश होऊन  विजापुर शहर फिरण्यासाठी  बाहेर पडलो. प्रथम शहरातील  अनेक ठिकाण बांधकामं पाहुन विजापुरचा  गोल घुमट पहायला गेलो.अगदी जवळ गेलो तरी हा  समोरुन दिसत नाही अशी रचना.एवढा भव्य असुनही जराही दृष्टीस पडत नाही.आम्ही आत प्रवेश केला.पाहण्यासारखी  वास्तुकला  गोलघुमटच्या  प्रत्येक कोपर्‍यातुन वर जाण्यासाठी  पायर्‍या आहेत .भव्य असा गोल घुमट  सुंदर वास्तुकलेचा  अदभुत  नमुनाच जणू! वरच्या मजल्यावरुन कितीही हळू बोलले तरी कोणत्याही  कोपर्‍यात स्पष्ट  ऐकू येते अशी रचना केलेली  आहे .घुमट भव्य असुन मधे कुठेही पिलर नाही.खास इमारत.इथुन थेट गेलो ते   विजापुरची शान म्हणजे सर्वात मोठी तोफ पाहण्यासाठी .हि तोफ पुर्वी अहमदनगर वरुन विजापुरला नेण्यात आली.प्रचंड मोठी तोफ.किल्य्याच्या पडलेल्या बुरुजावर आजही ती तोफ पहावयास मिळते.हि  मुलुख  मैदानी तोफ म्हणजे विजापुरची शान होती.अनेक मुलुख गाजवले म्हणुन मुलुख मैदान हे नाव पडल्याचे गाईड सांगतात.विजापुर दर्शनानंतर निघालो ते  अलमट्टि डॅम कडे!  कृष्णा नदीवर बांधलेले सर्वात मोठे धरण म्हणजे अलमट्टी होय.अगदी वर पर्यत गाडी घेऊन गेलो .गार्डन चे काम चालु झालेले होते त्यावेळी !अलमट्टीत पाणी ही भरपुर होते .मुख्ख भिंतीजवळ धरणाचे दरवाजे उघडुन पाणी सोडण्यात आले होते.अतिशय सुंदर नजारा.भितींच्या खाली मेनरोडवर एका हाॅटेलमध्ये जेवणासाठी थांबलो.मासे छान मिळतात इथे!  कडक वाळवलेल्या भाकरी अन मासे बेत छानच!कर्नाटक राज्यात ज्वारीच्या अतिशय पातळ वाळवलेल्या भाकरी प्रत्येक हाॅटेलमधे मिळतात. 

नंतर गेलो ते कुडाळसंगम  या ठिकाणी.अतिशय सुंदर ठिकाण.नदिच्या काठावर वसलेलं हे ठिकाण कुणीही चुकवू नये असच.!

सुंदर मंदिर परिसरही छान राहण्याची उत्तम व्यवस्था .जुने मंदिर पाडुन हुबेहुब मंदिर बांधले आहे.जुन्या पाण्यात गेलेल्या मंदिराला रिंग  टाकुन खाली उतरण्यासाठी सुंदर रचना केलेली आहे .पायर्‍या उतरत जाऊन पाण्यातील शिवलिंगाचे दर्शन घ्यायचे व परत वरती यायचे.सर्व बाजुनी  पाणीच पाणी.वरती येऊन एका बोटीतुन पाण्यात फिरण्याचा व जुन्या मंदिराला प्रदक्षिणा  घालण्याचा फारच जबरदस्त अनुभव.! 

तिथे मुक्कामी न राहता पुढे निघालो .वाटेत इरकल ला भेट दिली.हातमागावर तयार होणार्‍या इरकल साठी प्रसिद्ध  असणारे गाव.प्रत्येक घरी इरकल साड्या तयार केल्या जातात.वेगवेगळ्या प्रकारच्या भरपुर व्हरायटी कशा तयार होतात ते प्रत्यक्ष पाहता आले.खरेदी ही भरपुर झाली.मुक्काम आपण करायचा कुठे हे न ठरवता गाडी थेट हंम्पी कडे निघालो.वाटेत किष्किंधा  नगरीची माहिती मिळाली.व मुक्काम येथेच करायचा हे ठरवुन गाडी चालवत राहिलो.रात्रीचे नऊ वाजलेले मेन हायवे सोडुन बराच वेळ झालेला शेवटी एका गावात मस्त राहण्याची व जेवणाची व्यवस्था झाली.मुक्काम करुन शेजारी तुंगभद्रा नदिच्या भल्या मोठ्या डाव्या कॅनाॅलवर अंघोळीसाठी गेलो.बराच मोठा कॅनाॅल.मनसोक्त पोहुन नाष्ट्यासाठी छोट्या हाॅटेल वर गेलो.इडली सांबर,उत्तपा ,मसाला डोसा अगदी पोटभर खाल्ला.बीलही अगदी कमी.सात आठ जणांचा नाष्टा तोही सर्वोत्तम आणि बील कमी शेवटी मीच  शंभर रुपये जास्त देऊन त्या हाॅटेल मालकाचे आभार मानले.माणसं खरंच खुप चांगली!

तेथे किष्किंधा नगरीचा रस्ता विचारत विचारत विचारत दुर डोंगरात वसलेल्या त्या नगरीत पोहोचलो.तेव्हा कळलं सध्या तेथे एक रिसाॅर्ट बनवण्यात आलेला आहे .आत जाऊन पाहण्यासारखं असं नवीन काहीच नव्हतं.शेवटी फिरुन बाहेर आलो.गेलो ते थेट हंम्पीला.विजरनगरचे समृद्ध असे एके काळचे साम्राज्य!दुरवरुनच डोंगरावर असणारे मोठाले दगड आपले लक्ष घेऊन वेधुन घेतात.हंम्पी दहा कि.मी.परिसरात  वसलेली त्या काळची समृद्ध नगरी!आजही त्याचे अवशेष आपणास तेथे पहावयास मिळतात.मुख्ख मंदिर खुप छान .त्याचे प्रवेशद्वार खुपच भव्य आहे.इथे परदेशी पर्यटकांची संख्खाही  भरपुर  असते.तुंगभद्रा नदिच्या काठावर वसलेली हि नगरी खरंच खुप सुंदर होती.राजवाड्याचे अवशेष ,अनेक मुर्त्या,हत्तींची जागा अजुनही शाबुत आहे .अजब गजब दुनिया पाहताना मन हरखुन जाते.सुंदर निसर्गाची साथ या नगरीला लाभलेली आहे.येथील विठ्ठल मंदिर खुप छान!त्यांच्या डांन्सिंग हाॅल मध्ये तर प्रत्येक दगडी खांबामधुन निरनिराळे स्वर  बाहेर पडतात.खुपच सुंदर !!!

तिथूच असलेला दगडी रथ  लक्ष वेधुन घेतो.अनेक पुस्तकामध्ये याच दगडी रथाचे चित्र छापलेले असते.तुंगभद्रा  नदी इथुन जवळच  .पाणी अतिशय स्वच्छ होते.तेथुन दिसणारे मारुतीचे जन्मस्थान दुर डोंगरावर .तिथे अंजनीमातेचे मंदिर आहे.पलीकडे जाण्याची काहीही व्यवस्था नसल्यामुळे   पलीकडे जाता आले नाही.विजरनगरचे ते साम्राज्य ,हंम्पी पाहण्यासारखे नितांत सुदर ठिकाण!!!

सायंकाळी परत निघालो,.एका मित्रांच्या मामाच्या घरी यथेच्छ भोजनाचा बेत झाला.तेथुन थेट बदामी. रात्र झाली होती.एका मिरवणुकीत त्यांच्या आग्रहावरुन  खुप नाचण्याचा आनंद घेतला.मंदिरे ,गुहा पाहता आली नाहीत.कारण दुसर्‍या दिवशी अधिवेशनस्थळी पोहचायचे होते.म्हणुन रात्री प्रवास केला.मस्त मंदिरात मुक्काम करुन परतीचा प्रवास केला.छोटीच ट्रिप पण  मस्त झाली.


शब्दांकन—

श्री.सतिश नानासाहेब कोळपे

तांबेवाडी ता.दौंड जि .पुणे




मनमोहक  पक्षी अभयारण्य..........

केवलादेव  राष्र्टिय पक्षी  अभयारण्य


दिल्ली कडे जाताना अनेक वेळा रेल्वेतुन  कालीबंगन  नावाच्या स्टेशनजवळ  आसपास  बरेच  मोठे पक्षी  पहावयास मिळतात.त्या पक्षांबद्दल जाणून घेण्याची  उत्सुकता लागुन  राहिली होती.बर्‍याच वेळा कालीबंगन ला उतरुन शेतात  जाऊन पक्षी पहायचे ठरवले.पण शक्य झाले नाही.तेव्हा  हे पक्षी पहायचे  असतील तर  एखादे पक्षी अभयारण्यात नक्की पहायला मिळतील.हा बेत करुन आम्ही चार मित्र जयपुर वरुन बसने  भरतपुरला  निघालो.भरतपुर  राजस्थान  उत्तरप्रदेश बाॅर्डरवर असलेले  मोठे शहर.याच भरतपुर मध्ये  जयपुर आग्रा  हायवेवर  उजव्या हाताला कियावलदेव  राष्र्टिय अभयारण्याचा  मोठे गेट आहे.भरतपुर मध्ये रात्रीचा मुक्काम करुन सकाळीच आठ वाजता  गेटवर हजर झालो.तिकीट काऊंटर सुरु झाल्यानंतर  तिकीटे काढली.व आत मध्ये प्रवेश केला. तिथे संपुर्ण अभयारण्य फिरवुन आणण्यासाठी अनेक सायकल रिक्षा उभ्या होत्या .अनेक जण पायी निघाले होते.संपुर्ण अभयारण्य फिरण्याचा बेत असल्यामुळे आम्ही ती सायकल रिक्षा घेतली  .सोबत गाईड आणि मोठी दुर्बिण  ही घेतली.सायकल रिक्षात बसुन अर्धा कि.मी. वरच गेलो असेल की लगेचच अनेक कोल्हे  मस्तपैकी बिनधास्त चालत चालत रस्त्याच्या  पलीकडे गेले.प्राणी पाहण्याची सुरुवात झाली.सुरुवातीलाच  महाराष्र्टाचा  राज्यपक्षी  हरियाल  दिसला.हरियाल ची संख्खा इथे भरपुर.महाराष्र्टाचा राज्यपक्षी असुन सुद्धा तो मला महाराष्र्टात कधीही दिसला नाही.हरियाल म्हणजेच हिरवे कबुतर आकार कबुतरा  एवढाच पण रंग हिरवा.तेथुनआडवाटेने आतपर्यत गेलो.पाणथळ जागा ,मुबलक  पाणी ,भरपुर झाडे,फळांची, फुलांची ,उंचच झाडे.सगळा भाग हिरवागार.या पाणथळ जागेत अनेक प्रकारचे पक्षी पहायला मिळाले.परदेशी पक्ष्यांचे तर हे आवडते ठिकाण.खुपच छान छान पक्षी इथे होते.त्यांची संख्खाही  अगदी  भरपुर.अनेक पक्षी दुर्बीण लावुन  पाहिले.पुन्हा अभयारण्याच्या मेनरोड वरुन  आत जाऊ लागलो  पाहतो पर काय पक्ष्यांचा  प्रचंड किलबिलाट.!!

अनेक प्रकारचे पक्षी इथे आहेत.त्यांच्या संपुर्ण वसाहतीच येथे त्यांनी थाटल्या आहेत.ग्रे हेराॅन,खंड्या,बदकं,कबुतर,पारवे,बगळे,पेंटेंड स्र्टोक न मोजण्या इतपत.पक्ष्यांची शाळाच भरली होती तेथे जणू,!!!!

तळ्याच्या काठावर  विसावलेली कासवे,पाण्यात शिरुन  गवत खाणारी नीलगाय.कुठलीही भीती नाही अगदी बिनधास्तपणे वावरणारी हरणं.अगदी एखाद्या  स्वप्नातल्या सारखं ,!!!!

इतकं शांत जंगल मी पहिल्यांदा पाहिलं इथे फक्त प्राणी आणि पक्ष्यांची  सुवर्णमयी दुनियाच.भरपुर उपलब्ध खाद्य ,मुबलक पाणी त्यामुळे बिनधास्तपणे वावरणारे जीव .केवलादेव राष्र्टिय अभयारण्यात पर्यटकांसाठी नियम खुपच कडक.आरडाओरडा नाही,प्लॅस्टीक नाही,आवाज नाही,गोंधळ नाही ,गोंगाट नाही.फक्त शांतपणे  निरीक्षण करणे.डाॅ.सलीम अली  यांचा  प्रेरणेतुन स्थापन झालेले अभयारण्य पक्षी प्रेमीसाठी  जणु स्वर्गच.अनेकपक्षी पाहिले पण जे पक्षीआम्ही पहायला एवढ्या दुर आलो ते मात्र अजुन दिसलेच नव्हते.गाईडला पक्ष्याबद्दल विचारले तर तो फक्त दिख जायेंगे सब्र रखो!एवढंच उत्तर द्यायचा त्यामुळे  आमची ऊत्सुकता आणखीनच ताणली जात होती.अभयारण्याच्या  मध्यभागी  सलीम अली यांच्या नावाने संग्रहालय आहे.अनेक पक्ष्याचे टिपलेले फोटो,भुसा भरुन ठेवलेले पक्षी.,प्राणी.संग्रहालय पाहुन तेथेच कँन्टिनला जेवण  करुन पुन्हा पुढे झालो.तळ्यातल्या पाण्यात  मोठमोठ्या खडकावर पसरलेले  मोठमोठे अजगर त्यांची बीळे  दृष्टिस पडली. एवढे मोठे अजगर तर पुण्याच्या  कात्रज प्राणी संग्रहालयात सुद्धा नाहीत.त्यांचे ते रुप मनात भीती उत्पन्न करत होतं.अचानक एक नीलगाय आमच्या समोरुन  जोरात पळाली.तिच्या पाठोपाठ आणखी दोन नीलगाय.तळ्यातल्या पाण्यात त्यांची  लढाई सुरु झाली.इतरत्र कोणी आहे हे विसरुन फ्रि स्टाईल लढाई बराच वेळ चालली.शेवटी एक नीलगाय पळुन गेल्यावर  ती शांत झाली.अनेक गोष्टी जंगलात शिकायला पहायला मिळतात त्याही अगदी सहजपणे.!!!

तेथुन दुरवर असणार्‍या एका दुसर्‍या साकयल रिक्षा वाल्याचा फोन आला.सारस दिख गए है!आम्ही लगेचच त्या दिशेने निघालो.एक कि.मी.च्या अंतरावर  गेलो आणि समोर पाहिल तर विश्वास बसत नव्हता.जवळ जवळ पाच ते सहा फुट उंचीचे सारस पक्षी जोडीने एका ठिकाणी शांतपणे विहार करत होते.सारस  पक्षी  संपुर्ण  पांढर्‍या रंगाचा  असतो.मान उंच,चोच टोकदार अन मोठी,गळ्याभोवती लाल  रंगाची  झालर,डोळ्याभोवती  लालसर झटा,पाय मजबुत आणि उंच देहयष्टी , दणकट  असा हा  देखणा  पक्षी.त्यांच्या हालचाली  मनमोहक होत्या.नयनरम्य दृश्य दुर्बीणीतुन त्यांची अंडी,लहान पिल्लु पाहता आले.खुपच गोंडस होतं ते!.आकार इतका मोठा असुनही हे पक्षी हवेत सहजपणे झेप घेतात.सारस पक्ष्यांची संख्खा या भागात जास्तच आहे.हमखास दृष्टिस पडतात.पक्ष्यांचे बराच वेळ निरीक्षण केलं.अन एकदम झटक्यात त्या पक्ष्यांनी आकाशात झेप घेतली.जबरदस्तच.मोठ मोठाले पंख त्यांचा आवाजही   जाणवत होता.हे सारस पक्षी पक्षी नेहमी जोडीने राहतात.उत्तरप्रदेश आणि राजस्थान मध्ये या पक्ष्यांना शुभ मानले जाते.त्यामुळे त्यांना कोणीही त्रास देत नाही.काही अंतरावरच आणखी तीन चार जोड्या पहायला मिळाल्या आणि ज्या साठी इतक्या दुरवर आलो.ते सारस पक्षी सहजपणे वावरताना पाहुन दिलखुश झाला.खरंच हे पक्षी सर्वानी पहावेत.एवढे मोठे पक्षी आपल्याकडे आढळत नाहीत कारण त्यांना संरक्षण नाही.महाराष्र्टात गोदिंया जिल्ह्यात आढळतात असे ऐकले व वाचले आहे.पण प्रत्यक्ष पाहिले नाहित.खुप सुंदर अभयारण्य.आवर्जुन पहावे असे !

निसर्गाच्या सानिध्यात गेल्यानंतर निसर्गाशी एकरुप होऊन खरंखुरं जंगल अनुभवलं आम्ही त्या दिवशी .केवलादेव अभयारण्य डोळ्याचं पारणं फेडणार्‍या अभयारण्यापैकी एक आहे.पक्षी प्रेमीसाठी खुपच मस्त जागा.अभयारण्याचा अनुभव सुद्धा भारी.पुन्हा योग आलाच तर आवर्जुन जाईन असे मस्त ठिकाण.!!!


शब्दांकन—

श्री.सतिश  नानासाहेब  कोळपे

तांबेवाडी ता.दौंड जि.पुणे

निसर्गसंपन्न वरदान  लाभलेली  देवभुमी  दक्षिण.  भारत..........

पद्मनाभस्वामी  मंदिरात  खजिना सापडला हि  बातमी आली अन  येथे जायचा  बेत बनवला.दिवाळी सुट्टीचे नियोजन केले. सतरा जणांचा मोठा ग्रुप तयार झाला.बालाजी पर्यंत गेलेलो होतो.त्यापुढे  जायचं बर्‍याच वेळा ठरवल होत पण शक्य झालं नव्हतं.यावेळी मात्र  मुंबई नागरकोविल  एक्सप्रेसची तिकीटे बुक केली  आणि  निघालो. सोलापुर , यशवंतपुर  मार्गे मदुराई ला  रात्री आठ वाजता उतरलो.वाटेत निसर्ग त्याचबरोबर वातावरणही  छान.अनेक सुबक मंदिरे ,नक्षीकाम केलेली मंदिरे दाक्षिणात्य पद्धत लगेच लक्षात येते.नारळाची  भरपुर झाडे.नद्यानाही  खुप पाणी.मदुराई ला पोहोचल्यानंतर  स्टेशनवरुन  बॅगा घेऊन चालतच मिनाक्षी मंदिर येथे पोहोचलो.मंदिराशेजारी  अनेक धर्मशाळा  व हाॅटेल  आहेत .आम्ही हाॅटेलमध्ये रुम बुक केली.व जेवणकरुन निवांत  आराम केला.सकाळी  लवकर  उठून  फ्रेश झालो आणि  मंदिरात दर्शनासाठी गेलो.मिनाक्षी मंदिर खुपच भव्य असुन  त्याची गोपुरे  आठ मजल्याएवढी उंच तीही  चारही दिशांना  .मंदिरात   सुंदर नक्षीकाम .दगडात बांधलेले हे मंदिर खुपच छान आहे.एवढे मोठे दगड एकावर एक रचत हे भव्य मंदिर उभारणार्‍या कारागीरांना सलाम.मंदिरात एकूण चौदा गोपुरे त्यातील दक्षिणेकडील गोपुर सर्वात उंच  आहे.प्रथम शिवाचे दर्शन घेऊन  मिनाक्षी मंदिरात दर्शनासाठी गेलो.मंदिरात तुप दिव्यांची दिपमाळेत मुर्ती फारच छान दिसत होती.दक्षिणेकडील मंदिरात सर्व मंदिरात गाभार्‍यात  दिव्यांची  दिपमाळ लावायची पद्धत आहे.त्याचबरोबर दर्शनाला जाताना लुंगी  गुंडाळून दर्शनाला  मंदिरात प्रवेश  दिला जातो.बर्‍याच मोठ्या जागेवर  बांधलेले हे मंदिर खरंच नेत्रदिपक.!!!

एवढं मोठं मंदीर मी पहिल्यांदा पाहिलं.पार्वती चा अवतार असलेले  हे  मानाक्षी मंदिर म्हणजे दक्षिणेतील वास्तुकलेचा  सुंदर नमुनाच म्हणावा लागेल.मंदिर परिसरात असलेले गोल्डन लोटस तळंही खुप सुंदर .तळ्यात भरपुर पाणी मधोमध गोल्डन लोटस च फुल.खालीपर्यत  उतरण्यासाठी पायर्‍या आहेत.या मंदिरातही अनेक बंद केलेल्या  खोल्या  .अंडरग्राऊंड  भुयारं असल्याचे  एका पुजार्‍याने  माहिती दिली. येथे मंदिरात हत्ती  सगळीकडेच  असतात. डोक्यावर सोंड ठेऊन जणु आर्शिवादच देतात.भारी अनुभव.बराच वेळ मंदिर परिसर फिरुन मंदिर मन लावुन  पाहिले. मंदिराला पुर्ण प्रदक्षिणा  मारुन  निघालो रामेश्वर कडे.अंतर एकशे  तीस कि.मी.रस्ता खुप छान अडीच तासात रामेश्वरला पोहोचता येते.रस्ता एकदम मस्त वाटेत समुद्रावर बांधलेल्या पंबन ब्रीज वरुन  रामेश्वर बेटावर  प्रवेश करायला एकच मार्ग आहे.सुंदर निळाशार समुद्र  शेजारी रेल्वेचा पुल. रस्ता पुल  खुप उंचीवर आहे.मधोमध जहाजांना ये जा करण्यासाठी रेल्वेचा  फोल्डींग पुल.मस्तच. रामेश्वर स्टंडवर उतरलो .तेथुन  दहा रु.रिक्षाला देऊन थेट मंदिरासमोर उतरलो.पांढरी शुभ्र पण  जुनी पुरातन मंदिराची गोपुरं लक्ष वेधुन घेत होती.तिथेच देवस्थानचे रुम बुकिंग आॅफीस आहे .आम्ही रुम बुक केली.सर्व साहित्य रुममध्ये ठेऊन  निघालो रामेश्वर दर्शनला .प्रथम समुद्र स्नान केले.पाणी जरा जास्तच गढुळ होतं.समुद्रात पोहुन ओल्या अंगानेच  मंदिरात प्रवेश केला.मंदिरात एकुण बावीस कुंड आहेत.प्रत्येक पाण्याची चव वेगळी .शेजारी समुद्र आणि इथे कुंडात मात्र गोड पाणी.निसर्गाची किमया दुसरं काय?प्रत्येक कुंडावर बादलीने पाणी काढुन डोक्यावर ओतायची मग पुढे जायचे.शेवटी रामेश्वरच्या मुख्ख मंदिरात जाऊन शिवप्रभुचे दर्शन घेऊन बाहेर आलो.तेथे मस्त संग्रहालय आहे त्यालाही  भेट दिली.मंदिर खुप पुरातन असुन  बंगालच्या उपसागराच्या कडेला दिमाकात  उभे आहे.मंदिर परिसर मोठा आहे.आजुबाजुला भरपुर फिरलो.रात्री जेवन करुन आराम केला.सकाळीच लवकररिक्षा भाड्याने ठरवल्या व लोकल साईड सीन साठी बाहेर पडलो.प्रथम गेलो रामचरण पादुका मंदिर .रामेश्वर बेटावरचे सर्वात उंच ठिकाण येथुन रामेश्वर बेट संपुर्ण दिसते.नंतर लक्ष्मण मंदिर .तेथे  पाण्यावर तरंगणारे दगड अजुनही आहेत.वरुन कितीही दाबले तरी पाण्यात बुडत नाहीत.मस्तच.समुद्रकिनारी असलेलं एकांतात वसलेलं बिभिषण मंदिर पाहुन गेलो ते धनुषकोडी.रामसेतु इथुनच बांधला.समुद्रकिनारा अतिशय स्वच्छ.मासेमारी करणारेही भरपुर.समुद्रात पोहण्याचा भरपुर आनंद घेतला.उंच टाॅवरवरुन रामसेतु कुठे आणि कसा होता याचा अंदाज लावायला खुप गर्दी.तेथुन आपल्या भारताचे माझी राष्र्टपतीडाॅ.ए पीजे अब्दुल कलाम यांचे निवास स्थान कलाम हाऊस पाहिलेआणि आलो ते पंबन ब्रीजवर .रेल्वेचे टायमिंग  स्थानिकांना परफेक्ट माहित त्यामुळे समुद्रातील पुलावरुन  जाणारी रेल्वे  पुल कसा फोल्ड होतो हे  पाहता आले.सुंदर नजारा.पंबन ब्रीजचा समुद्र ही खुप चांगला आहे. मन बराच वेळ इथं रेंगाळत राहतं.मनसोक्त भटकंती करुन स्टँडवर  आलो .एक वाजता  तिरुनेलवेली ला जाणारी बस होती.अंतर 230 कि.मी.आहे.एसटीचे तिकीट 83  रु. स्वस्तात मस्त प्रवास म्हणजे तामिळनाडुची बस. बस निघाली समुद्राच्या कडेकडेनेहोणारा प्रवास अनुभव खुपच आनंददायी.रेताड प्रदेशातुन तो केलेला प्रवास .जागोजागी घेतलेला टि ब्रेक  लक्षात राहिल असाच.रात्रीआठ वाजता तिरुनेलवेली बस स्थानकावर पोहोचलो.बस स्टँड इतक मोठं आहे की विश्वास बसत नाही.इतकं मोठं बस स्थानक पहिल्यांदा पाहिलं.रात्रीचा मुक्काम रेल्वे स्टेशनवरच  केला पहाटेच्या गाडीने सकाळी सकाळीच कन्याकुमारी ला पोहोचलो.वाटेत भरपुर पवनचक्क्या  लक्ष वेधुन घेत होत्या.रेल्वेस्टेशनवरुन  थेट कन्याकुमारी मंदिरापाशी उतरलो.हाॅटेल सुविधा परवडतील तशा आहेत.रुम बुक केली  .फ्रेश होऊन निघालो.दोन दिवस हवामान खराब असल्यामुळे विवेकानंद स्मारकापर्यंत जाणार्‍या बोटी बंद होत्या.पण आम्हि गेलो त्या दिवशी वातावरण एकदम फ्रेश.बोटी चालु झाल्या.बोटचे बुकींग करुन बोटीने विवेकानंद स्मारकापर्यत आलो.तिन्ही समुद्राच्या पाण्यात उभे राहिलेले ते स्मारक खुपच छान आहे.ध्यान मंदिरात बराच वेळ  घालवला.मंदिर परिसर छानच.स्वच्छता ही भारी.शेजारीच एका खडकावर उभा असलेला तिरुवल्लुवर यांचा पुतळाही खुप भव्य .पुतळा सर्वाचे लक्ष वेधुन घेतो.पुतळ्यापर्यंत जाण्याची सोय नाही.लांबुनच  पहावा लागतो.स्मारक फिरुन बोटीने पुन्हा  किनार्‍यावर आलो.कन्याकुमारी देवीचेदर्शन घेतले .सुंदर नक्षीकाम असलेले मंदिर पाहण्यासारखे आहे.इथेही लुंगी लावुनच  दर्शनाला  जावे लागते. शेजारी असलेला समुद्राचा त्रिवेणी संगम  अतिशय छान.समुद्रात मनसोक्त पोहलो.अगदी स्वच्छ समुद्रकिनारा  .कन्याकुमारी  खरंच  पाहण्यासारखं  आहे. तेथील समुद्र संग्रहालय त्यातील मासे ,खेकडे विविध प्रजाती पाहिल्या.उंच टाॅवरवरुन दिसणारा  सुर्यास्तही मनाला  भावतो.जिथं  समुद्रातुन उगवणारा आणि मावळणारा असे दोन्ही सुर्य पाहण्याचा आनंद वेगळाच.भारतातील एकमेव ठिकाण जिथं सुर्योदय व सुर्यास्त समुद्रात होतो.मस्त ठिकाण आवर्जुन पहावे असे.जेवणासाठी माश्याची  खास व्यवस्था .खव्वयासाठी मस्त सोय.रात्री विवेकानंद आश्रम पाहुन आलो.परिसर मस्त आहे. सकाळी सकाळच्या गाडीने निघालो ते तिरुअंनतपुरम ला अरबी समुद्राच्या कडेने होणारा तो प्रवास दाट झाडी ,नारळाच्या बागा ,नागरकोवील, त्रिवेंदम करत गाडी तिरुअनंतपुरम ला पोहोचली.स्टेशन शेजारीज राहण्यासाठी उत्तम व्यवस्था आहे.तेथुन  रिक्षाने पद्मनाभस्वामी मंदिराजवळ उतरलो.खुप गर्दित शहराच्या मध्यभागी हे मंदिर त्रावणकोर राजाने बांधल्याचे कळाले.अतिशय पुरातन मंदिर  गोपुर रुंदीला इतर मंदिरापेक्षा जास्तच.फक्त लुंगी अगदी बनियन सुद्धा नाही अशा वेशात मंदिरात प्रवेश केला.मंदिर परिसर बराच मोठा.बांधकाम जुनेच आहे.मंदिरासमोरच  सोन्याचे मोठे तुळशी वृदांवन चमकत होते.पुर्ण सोन्याचे.सगळीकडे दिपमाळा च दिपमाळा.मुख्ख मंदिर तीन विभागात विभागले आहेत.समोर तीन पिलर दगडात बांधलेले आहेत.पहिल्या  दरवाज्यातुन श्री विष्णुचे मुख,दुसर्‍या दरवाज्यातुन पोटाचा भाग,वशेवटी पायाचा भाग दिसतो.जवळजवळ वीस फुटांची  उंच साहा ते सात फुट अशी शेषशाही विष्णुची  संपुर्ण मुर्ती भरीव सोन्याची आहे.मग राजाने असे बांधकाम का केले?तर त्यावेच्या परकीय शत्रुनी  सोन्याची मुर्ती नेण्याचा प्रयत्न केला तर ती त्यांना काढता येऊ नये म्हणुन पुर्ण विचार करुन मंदिर बांधले आहे.सोने  न्यायचे म्हटले तरी सर्व मंदिर पाडल्याशिवाय मुर्ती उचलणे शक्य नाही.मंदिर पाडले तर जनता विद्रोह करेल म्हणुनच ज्या इग्रजांनी सगळा भारत रिकामा केला त्यांनी मात्र जनतेच्या विद्रोहाला घाबरुन पद्धनाभस्वामी मंदिराला हात लावला नाही.दर्शन आटोपुन मंदिराच्या  बाजुलाच जिथे खजिना सापडला तेथे गेलो .तिथे जाळीचा दरवाजा त्याला भलंमोठं कुलुप .दरवाज्याच्या आत खाली उतरण्यासाठी पायर्‍या आहेत येथुन गेल्यावर च त्या बावीस खोल्या आहेत त्यातील फक्त काहिच उघडल्या तर एवढा खजिना सापडलाय की मोजदात करता येत नाही.सोने,रुपे,माणिक,मोती,हिरे,जुने दागिने असा मौलिक अनमोल धनदौलत.अजुन अनेक खोल्या उघडायच्या बाकी आहेत.मंदिर परिसरात लुंगी लावलेले उपरणे घेतलेले अनेक पोलीस बंदोबस्ताला होते.कमरेला लावलेला रिव्हाॅलवर वरुन ते लगेच ओळखता येत होते.मंदिरात च देवस्थान तर्फे जेवणाची सोय उपलब्ध आहे.जुनी इमारत व्यवस्था जरा अशीतशीच कुणी म्हणणार नाही हे सर्वात श्रीमंत देवस्थान आहे.तेथील पोलीसांशी गप्पा मारल्यानंतर अनेक  गोष्टिचा उलगडा झाला.त्यावेळी नुकताच खजिना सापल्यामुळे अनेकांची जाणुन घेण्याची इच्छा होती.सगळेजण विचारील  तो मनमोकळेपणाने  अभिमानाने सांगत असल्याचे जाणवत होतं.मंदिर परिसर फिरुन  बाहेर आलो.केरळचा प्रसिद्ध बीच  कोवळम.इथे जाण्यासाठी अंतर तेरा कि.मी.मंदिराच्या समोरील रोडवरुन ए सी बसेस ची व्यवस्था  आहे.बीच जवळ गेल्यानंतर दुकानांच्या गर्दितुन वाट काढत बीच जावे लागते .अतिशय सुंदर बीच.परदेशी पर्यटकांची येथे नुसती भरमारच.स्वच्छ पाणी आणि मोठ्या येणार्‍या लाटा तरीही तळ अगदी स्पष्टपणे दिसणारा समुद्र किनारा.पोहण्याची मजा तर खरी इथे.!! बीचवर पोहुन ,फिरुन परत प्राणीसंग्रहालय,विधानभवन,राजवाडा येथे फिरुन मुक्काम तिरुअनंतपुरमलाच  केला.सकाळी लवकर उठुन पथनमथिट्टा कडे रवाना झालो.हे केरळ मधील जिल्ह्याचे ठिकाण .वाटेत गर्द झाडी,नारळी पोफळीच्या बागा,रबराची झाडे.,भाताची शेती.सर्वच केरळच हिरवागार.येथील बरेच लोक परदेशात राहतात त्यामुळे अतिशय समृद्ध असा प्रदेश.निसर्गाचं वरदान लाभलेला केरळ खरंच सुंदर.रस्तेही भारी.कुठेही खड्डा शोधुन सापडणार नाही.शहराच्या बाहेरच्या स्टाॅपवर उतरलो कारण इथुनच आम्हाला शबरीमला ला बस मिळणार होती.एक वाजता बस निघाली शबरीमला रामायणातील शबरी च्या वास्तव्यामुळे आपणास माहीत.सत्तर कि.मी.चा तो प्रवास पुर्ण जंगलातुन च वाटेत मोठ मोठे वृक्ष,रबराची झाडे ,वळणाचे वळणाचे रस्ते प्रवासाचा शीणच  येत नाही.शबरीमला येथे उतरलो.सगळीकडे निवांत.दुकाने हाॅटेल काहीही नाही.फक्त थोडीसी घरं.गणेशाचे एक मंदिर अय्यप्पास्वामी देवस्थानचे भले मोठे आॅफीस,राहण्यासाठी गोडाऊन सारख्या  पत्र्याची शेड.   व्यवस्था अशी नव्हतीच .चौकशी केल्यावर कळाले की अय्यप्पा स्वामी चे मंदीर फक्त भक्तांसाठी डिसेंबर जानेवारीत उघडतात.पाच कि.मी.अंतरावर दुर जंगलात असल्यामुळे इतर वेळी कोणालाही तेथे जाऊ देत नाहित.शबरीमलात तेथुनच दर्शनासाठी हात जोडले अन त्याच बसने जी एरमेली या ठिकाणी मुक्कामी जाणार होती.तिथे गेलो.एरमेली मध्ये व्यवस्था छान होती.केरळ मध्ये झाडांचे प्रमाण खुप जास्त आहे.एरमेली मधुन सकाळीच कुंबळी या हिलस्टेशनला निघालो .घाटरस्ता चढुन  वरती टाॅप वर कुंबळी आहे.एका बाजुला केरळ आणि दुसर्‍या बाजुला तामिळनाडु.कुंबळी खुप गजबजलेलं  हिलस्टेशन .इथुन गाडी भाड्याने करुन साईडसीन केले त्यामधे धबधबे,हत्ती निवास,मसाल्याची शेती,टेबललॅन्ड ,आणि काॅनमेरा चहाचे मळे .सुंदर अशी चहाची शेती तिथं पहायला मिळाली.चहाची पाने कशी तोडायची इथपासुन फॅक्टरीत कसा आणला जातो,काय प्रक्रिया करतात,बाॅयलर,ड्रायर,आणि शेवटी चाळण लावुन ग्रेड.सर्व प्रक्रिया पाहिल्यानंतर कळलं आपण सर्वात मोठी चहा पत्ती घेतो तो नुसता चोथा असतो.जी बीरीक पावडरसारखी  असते त्यात खरा रस असतो पानांचा.काॅनमेराचा चहा काॅफी खरेदी करुन कुंबळीला माघारी आलो.व सायं.मदुराईला पुन्हा त्याच हाॅटेलवर मुक्कामी आलो.कुंबळी ते मदुराई .110 कि.मी.अंतर आहे.दुसर्‍या दिवशी बसने कोडाई कॅनाॅलला गेलो .अप्रतिम सौंदर्याचे अनोखे हिलस्टेशन .अगदी प्लनिंग करुन वसवलेलं,चहाचे मळे ,दाट जंगल ,खळाळत वाहणारे झरे,गार्डन अप्रतिमच.एक सुंदर असं ठिकाण.कोडाईकॅनाॅल दिवसभर फिरुन परत मदुराईला आलो.रात्री ट्रेन होती .रेल्वेने पुन्हा परतीचा प्रवास केला.देवभुमीतुन केलेली हि लाँगटर्म ट्रिप बरंच काही शिकवुन गेली.समुद्र किनारे,केरळची भुमी ,देवस्थाने!,निसर्ग सौंदर्याने नटलेला भुप्रदेश पाहणे म्हणजे स्वर्गसुखच  म्हणावे लागेल.या ट्रिपचे 

वर्णन करावे तेवढे थोडेच.अनेक गोष्टी त्यामध्ये कन्याकुमारी,बीच,पद्मनाभ स्वामी मंदीर, रामेश्वरम,मदुराई ,शबरीमला या अनुभवाबद्दल वेगळं लिहावं लागेल.ट्रिप खुपच मस्त झाली.आजही अनेक मित्र पुन्हा तीच ट्रिप करण्याची  गळ  घालतात.ट्रिपचे नियोजन त्यावेळी ...भारीच झालं होतं!!!!!!


शब्दांकन—

श्री.सतिश नानासाहेब कोळपे

तांबेवाडी ता.दौंड जि.पुणे

ज्योत सोहळा  70  तास , 60 तरुण आणि 600 कि.मी. चा अविस्मरणीय प्रवास⚡⚡

      दौंड तालुक्यातील तांबेवाडी ता.दौंड जि.पुणे येथील तरुणांनी 70 तासात 600 कि.मी.अंतर पार करत माहुरगड ते तांबेवाडी असा ज्योत प्रवास पायी पुर्ण करत नवा इतिहास घडवला.तांबेवाडीतील  नवराञ उत्सवाच्या यावर्षीच्या नियोजनानुसार देवीची ज्योत साडेतीन शक्तिपीठांपैकी एक   माहुरगड  जि.नांदेड येथुन आणण्याचे नियोजन करण्यात आले होते. गेल्या 13 वर्षापासुन देवीच्या वेगवेगळ्या ठिकाणाहुन ज्योत आणुन तिची नऊ दिवस पुजा करण्याची  परंपरा तरुण मंडळाने सुरु केली आहे.एक महिना आधीपासुनच नियोजन व तयारीची सुरुवात करण्यात आली होती.येणार्‍या खर्चाची  तजवीज करण्यासाठी दानशूर व्यक्तिना भेटुन निधी मिळवण्याचा प्रयत्न केला .त्याचबरोबर प्रत्येक तरुणाने आपआपल्या परीने योगदान दिले.आणि नियोजनाप्रमाणे 3 पिकअप 12 टु व्हिलर या साधनांनी सर्वजण माहुरगड येथे दि.7/10/2018 रोजी पोहोचल्यानंतर दर्शन घेऊन सायं.7 वा रेणुकादेवीच्या मंदिरात ज्योत पेटवून सर्वजण निघाले. फक्त 60  जण ,एवढे अंतर ,मनात थोडी धास्ती होती कि आपण एवढे मोठे ध्येय पुर्ण करु की नाही?

पण 60 जणांच्या ऊत्साहापुढे आणि प्रचंड अशा इच्छा शक्तीच्या जोरावर

माहुरगड ते तांबेवाडी  600 कि.मी.चे अंतर  आम्ही सर्वानी 70 तासात  पुर्ण करुन एक आगळावेगळा विक्रम केला.60 तरुणांच्या जिद्ध,चिकाटी ,अफाट उत्साहामुळे  हे अंतर  सहजपणे पार करु शकलो .पायी ज्योत च्या या सोहळ्यामुळे आपल्या राज्याची भौगोलिक,सामाजिक परिस्थितीही या तरुणांना अनुभवता आली. आजचा तरुण एकी  असेल तर काहीही भव्यदिव्य कार्य करु शकतो याचा आदर्शच  तांबेवाडीच्या या तरुणांनी सर्वासमोर  उभा केला. तांबेवाडी ही कायम धार्मिक,सामाजिक कार्यात अग्रेसर  आहे .जुन्या पिढीचा आदर्श डोळ्यासमोर ठेऊन अनेकविध उपक्रम तरुणांनी राबवायला सुरुवात केली. गेली 13 वर्ष अखंडपणे तरुणांनी सामाजिक उपक्रम राबवुन आपली वेगळी ओळख निर्माण  केली आहे.यावर्षीच्या ज्योत सोहळ्यामुळे आपले आरोग्य व क्षमता प्रत्येक तरुणाला जोखता आली.  ज्योत हा अनुभव हा अतिशय  आनंद देणारा व उत्साह देणारा अनुभव हे 60 तरुण आपल्या संपुर्ण आयुष्यात कधीही विसरणार नाहीत. ज्योत रनिंग चे नियोजन करताना 15 तरुणांचा एक एक असे चार गट करुण प्रत्येक गटाला रनिंग टारगेट फिक्स करुण दिले होते.प्रत्येक जण आपल्याआपल्या क्षमतेनुसार   आपल्या ग्रुपच्या ध्येय पुर्ण करण्यासाठी प्रयत्न करताना दिसत होता.गाड्या ,जेवणाचे नियोजन,पाण्याची व्यवस्था आदि सर्व गोष्टिचे उत्तम व्यवस्थापन लाटोबा तरुण मंडळाच्या वतीने करण्यात आले होते.60 तरुणांनी 70 तासात 600 कि.मी. अंतर पार करुन एकीचा एक इतिहास घडवला.या सोहळ्यात नियोजनाची जबाबदारी पार पाडताना सर्वानी खुप सहकार्याची व समजुतदारपणाची भुमिका घेतली. असे अनेक उपक्रम इथुन पुढच्याही काळात राबवण्याचे ध्येय या तरुणांनी  आपल्या मनात बाळगले आहे.ज्योत सोहळ्यासाठी आलेल्या अनेक अडचणीचा ,कडू गोड आठवणींचा सामना करुनही माहुरगड ज्योतीचे ध्येय पुर्ण केल्याचा आनंद सर्व तरुणांच्या  चेहर्‍यावर झळकताना दिसत होता.कुठेही थकवा न जाणवता सर्वानी केलेले श्रम व या सर्वाना ग्रामस्थांनी दिलेली प्रेरणा ,केलेले आर्थिक सहकार्य यामुळे हे शक्य झाले.हे यश केवळ तांबेवाडी ग्रामस्थ, तरुणांची अफाट जिद्द,उत्कृष्ट नियोजन व्यवस्था यामुळेच आम्ही पुर्ण  करु शकलो अशा भावना तरुणांनी व्यक्त केल्या. 

     राञी रनिंग करणारा ग्रुप म्हणजे आमचा प्रेरणास्ञोतच. राञीत 100 ते 120 कि.मी.प्रवास हे तरुण पार करुन दिवसा रनिंग करणार्‍या मुलांना मोलाची साथ देत होते. पायाला टोचणारे खडे,प्रचंड उष्णता,याची कुठलीही तमा न बाळगता केवळ देवीवरील श्रध्देमुळे हा इतिहास घडवला. एवढ्या कमी मुलात  ज्योत कशी न्यायची या प्रश्नावर "जिथे मानवी प्रयत्न संपतात तिथे दैवी शक्ति मदत करते" यावर विश्वास ठेऊन सर्वानी हा विश्वास सार्थ ठरवला. 600 कि.मी.प्रवासानंतर ग्रामस्थांनी ज्योतीचे भव्य दिव्य असे स्वागत केले.नवराञ उत्सवात पुढचे नऊ दिवस विविध उपक्रम आयोजित केले जातात. यावर्षीचा ज्योतचा अविस्मरणीय अनुभव कायम,प्रेरणा देत राहील.

          शब्दांकन....,.

श्री.सतिश नानासाहेब कोळपे (सर)

म्हारो रंगीलो राजस्थान

      राजस्थान कितीही पाहिले तरी कमीच .2012 साली आम्ही चार मित्रांनी 13 दिवसाची हि ट्रिप रेल्वे, व बसने पुर्ण केली होती. यावेळी मात्र सगळ्यांनी स्वताची  गाडी घेऊन जायची असं ठरलंआणि ठरल्याप्रमाणे दोन स्वीप्ट कार मध्ये आठ जण जाण्याचं निश्चित झालं.तयारी केली,अंथरुणासह सर्व गोष्टिची तयारी करुन नोव्हेबर 2018 च्या दिवाळी सुट्टीत निघालो.गाड्या व्यवस्थित सर्विसिंग करुन घेतल्या होत्या.दुपारी 1 वाजता घरुन निघालो.शिक्रापुर,

नारायणगाव ,संगमनेर करत 5 वाजता नाशिकला पोहोचलो .सायं.7 वाजता सापुतारा  पोहोच.सापुतार्‍यात दिवाळी मुळे गर्दि खुपच होती. थोडसं थांबुन पुन्हा पुढे मुक्कामी 10   वाजता गुजरात मध्ये मित्राच्या नातेवाईकाकडे पहिला मुक्काम केला .सोय फारच छान केली होती पाहुण्यांनी.!तेथे मुक्काम करुन पहाटे पाच वाजता च त्यांचा निरोप घेऊन उनई या गरम पाण्याच्या कुंडावर गेलो.मस्तपैकी अंघोळी करुन फ्रेश झालो.दर्शन घेतले अन कुच केले ते सुरतकडे .दिवाळीच्या दिवसात पाच दिवस सुरत बंद असते हे माहित नसल्यामुळे खरेदी न करताच  पुढे अंकलेश्वरला माझे साडु राहतात त्यांना फोन करुन जेवणाची व्यवस्था केली. आम्ही तासाभरात अंकलेश्वरला पोहोचलो .जेवण करुन निघालो ते थेट या ट्रिपमधील आमचे महत्वाचे ठिकाण अन ते म्हणजे सरदार सरोवर डॅम.

नुकताच दोन दिवसापुर्वी जगातला सर्वात उंच पुतळा याचे उध्घाटन झाले होते .ते पाहण्यासाठी   आम्ही निघालो अंतर 100  कि.मी.होते तेथुन .3 वाजता तेथे पोहोचलो .तर प्रचंड गर्दी.सात आठ कि.मी.बाहेर पार्किग.गाडी पार्क केली.त्यांच्या बसने पुतळ्यापर्यत जाण्याची व्यवस्था केलेली होती.पण तिकीटाची रांग दोन कि.मी.अन बसमध्ये बसायची रांगही दोन कि.मी.होती.आम्हाला तिकीट मिळणार नव्हते.सगळे जरा नाराज झाले.पण या अगोदरही मी सरदार सरोवर डॅम पाहिला असल्यामुळे डेरिंग ने पुढे चालत गेलो.सेक्युरिटीला विचारले.तर तो म्हणाला एक ही आॅप्शन है आपके पास .मी म्हटल,क्या? तो म्हणाला पैदल जाना पडेगा.आम्हाला हा पर्याय आवडला आणि आम्ही सर्वजण चालतच आठ कि.मी .वर असणार्‍या व लांबुनच डोळ्यानी दिसणार्‍या पुतळ्याकडे निघालो.वाटेत चालणारे कुणी नव्हतेच आम्हीच आठ जण.चारपदरी रस्ता तोही मोकळा मग काय मजल दरमजल करत दिड दोन तासात पुतळ्याजवळ पोहोचलो.प्रचंड उंच पुतळा पाहुन आम्ही तर सगळे खुशच.अगदी वरती जाऊन गॅलरीतुन फोटोशेशन केले.सरदार वल्लभभाई पटेलांचा येथे अगदी छोटा पुतळा होता.आज मात्र जगातील सर्वात उंच पुतळा येथे तयार करण्यात आला आहे.व्यवस्था ही खुप छान होती.आपण जो निर्णय घेतला तो बरोबरच होता हेही पटलं.गर्दी खुप होती.पुतळ्यावरुन नजर हटत नव्हती .सायंकाळचा सुर्यास्त तेथेच पाहुन परत निघालो.तोपर्यत माघारी जाण्यासाठी रिक्षा सुरु झाल्या होत्या.रिक्षाला प्रत्येकी वीस रुपये देउन पार्किग पर्यत आलो.गाड्या सुरु केल्या त्या थेट वडोदरा.वडोदर्‍यावरुन अहमदाबाद. वाटेत जेवणाचा प्रोग्राम आटोपला अन अहमदाबादच्या बाहेर रात्री बारा वाजता रोड च्या शेजारी असणार्‍या एका मंदिरात सतरंजी टाकली अन झोपी गेलो.अहमदाबाद मध्ये दिवाळी च्या मुळे साबरमती नदी किनारी खुपच गर्दी होती.सकाळी उठुन थोडासा प्रवास केला अन अन मेहसाना च्या अलीकडे एका ढाब्यावर अंघोळी करुन नाष्टा केला.मेहसाना करत निघालो ते थेट राजस्थान मध्ये.प्रथम माउंटअबु ला जाण्यासाठी निघालो.गाडीत बिसलरीचे दोन जार घेतलेले होते.ते रिकामे झाल्यामुळे स्टेशन परिसरात एका आरओ वर भरुन घेतले.घाटाला सुरुवात झाली अन ट्रफिक जाम .वर पर्यत पोहोचायला तीन तास लागले.अंतर फक्त .20 कि.मी.आहे.माउंटअबु ला पोहोचल्या नंतर नक्की झील ,अर्बुदा देवी,जैन मंदिरे ,बाजारपेठ,ओम शांती पार्क सर्व फिरुन सायं. पाच ला परत फिरलो.ट्रफिक पुन्हा जाम .खाली यायला आठ वाजले.तेथे चहा घेउन निघालो.कुठं थांबायचं याच निश्चित प्लनिंग नव्हते .गाडी चालवायचा कंटाळा आला की थांबायच असं साधं गणित.वाटेत जेवण करुन पालीच्या जवळ एका मंदिरात मुक्काम केला. सोय उत्तम होती.सकाळीच तेथील पुजार्‍याने अंघोळीसाठी मोटर चालु करुन दिली.चहा बनवला.इथले लोक खुप सहकार्य करतात.छोटा रुणेचा धाम नावाच ते मंदीर खुप छान .दर्शन घेउन निघालो. 30 कि.मी.अंतरावर असणार्‍या प्रसिद्ध अशा बुलेटबाबा मंदिराला भेट दिली. रस्त्याच्या कडेला असणारे हे बुलेटबाबाचे मंदिर पाहण्यासाठी येणारे जाणारे खुप लोक आवर्जुन थांबतात.या मंदिराची अख्यायिका तेथील पुजार्‍याकडुन ऐकली.अनेक प्रश्न मित्रांनी उपस्थित केले.बरीच माहिती मिळाली.असो प्रत्येकाच्या भावनेचा प्रश्न असतो.तेथुन थेट गेलो ते जोधपुला .वाटेत सर्व उजाड ,ओसाड प्रदेश.पण वाळु मात्र अभावानेच दिसते.जोधपुर मध्ये मेहरानगड वर गाडी डायरेक्ट जाते.गाडी पार्क करुन तिकीट घेतले .मी किल्ला पाहिला असल्यामुळे गाईडची गरज पडली नाही.किल्ला पुर्ण फिरुन झाला .अतिशय व्यवस्थित जतन केलेला तो किल्ला पाहुन आपल्याकडे असे किल्ले का ठेवले नाहित.असे वाटल्यावाचुन राहत नाही.किल्ला खरंच डोळ्याचं  पारणं फेडतो.किल्ले राजस्थान मध्ये अजुनही खाजगी मालकीचे आहेत.त्यामुळे देखभाल व्यवस्थित केलेली आहे.परिसर ही खुप छान आहे. तेथुन गेलो ते पॅलेस पहायला .छोट्याशा टेकडीवर असलेला राजाचा पॅलेस अप्रतिम.जुन्या गाड्या,वस्तु यांचे संग्रहालय पाहण्यासारखे आहे.निम्म्या भागात फाईव स्टार हाॅटेल केले आहे.तेथे प्रत्येक ठिकाणी पन्नास ते शंभर रु.एट्री फी आहे.हा पॅलेस पाहुन चार वाजता आम्ही निघालो ते जैसरमेलला .राजस्थानचे व गुजरातचे रस्ते अप्रतिम आहेत.सगळे फोर लेन.खड्डे अजिबात नाहीत .रस्त्यावर टु व्हिलर फार तुरळक .ट्रफीकचा विषयच नाही.अगदी तासात ऐंशी किलोमीटर सहज जाता येते.आम्ही सहा वाजता पोखरण जवळील प्रसिद्ध रामदेवरा या ठिकाणाला भेट दिली.रामदेव बाबा हे राजस्थान मधील लोकांचे आराध्य दैवत.अनेक लोक लांबुन लांबुन चालत येउन दर्शन घेतात.आम्ही दर्शन घेतले .व तेथेच असणार्‍या डालीबाई का कंगण मधुन सरपटत पलीकडे गेलो.एक अनोखी प्रथा तेथे पहावयास मिळाली.येथे हाॅटेल ,धर्मशाळा सोय अतिशय मस्त आहे.आम्ही पोखरण जवळ एका हाॅटेलमधे मुक्काम केला.भाडे प्रती रुम एक हजार रु.होते.सकाळी फ्रेश होऊन जैसरमेल ला पोहोचलो.वाटेत परमाणु स्फोट केलेली पोखरण ची जागा,तसेच सेना संग्रहालय आहे.वाळवंटी प्रदेश आताशी कुठे दृष्टीस पडत होता.प्रथम गेलो ते घडीसर तलावावर .तेथे बोटींग चा आनंद घेतला .तळ्यात भरपुर पाणी होते.नंतर जैसरमेलचा सोनार फोर्ट  पाहिला.उत्तम स्थितीत असलेला एक सुंदर किल्ला म्हणुनच याचे वर्णन करावे लागेल. लोक अजुनही किल्ल्यात राहतात.गर्दी खुप होती.बराच वेळ किल्ला पाहिला.नथमल हवेली व अशा अनेक हवेल्या इथे पाहण्यासारख्या आहेत. तेथुन दुपारीच निघालो ते भुताचा गाव म्हणुन प्रसिद्ध असलेल्या कुलधारा कडे.सम ला जाताना पाच कि.मी .अंतरावर असलेलं उजाड गाव,जिथे आजही सायं .पाच नंतर कोणीही थांबत नाही.सर्वत्र पडलेली घरे.मंदीर सुद्धा ओस पडलेलं.पण मनात भिती वाटत होती.एक शापित गाव म्हणुन त्याची ओळख आहे.सगळा गाव पालथा घातला.भुयारे पाहिली.अनेक घरं प्रत्यक्षात भेट देउन पाहिली.पाच वाजता सर्वाना या गावातुन बाहेर काढले जाते. कुलधारा गाव एक रहस्य बनुन राहिलय हे नक्की! तेथुन गेलो ते सम ला.  संपुर्ण वाळवंट ,वाळुच्या टेकड्या .इथं आल्यानंतर खरं वाळवंट जाणवतं.भुरभुर उडणारी वाळु,त्यातुन चालताना होणारा वाळुचा मऊ स्पर्श !वा!

तेथे उंटाच्या सफरीचा आनंद लुटला ,सुर्यास्त तेथेच पाहिला.खुप गर्दी होती समला. अंधार पडल्यानंतर राजस्थानी लोकनृत्याचा आनंद घेतला.खुप मजा आली.तेथुन पुन्हा माघारी जैसरमेल वरुन फलौदी जवळ एका ढाब्यावर मस्त बाजेवर ताणुन दिली.खुपच मस्त अनुभव होता तो!

सकाळी तेथेच हौदावर अंघोळी करुन खिंचन ला गेलो.पक्षी पाहण्यासाठी याअगोदरही मी येथे आलो होतो.तेथील माझा मित्र सेवाराम ची भेट झाली.डोमासाईल क्रेन हजारोच्या संख्खेने दरवर्षी येथे येतात.गावच्या मधोमध एका एक एकर परिसरात काही हजार पक्षी एकत्रित सकाळी अकरा वाजेपर्यत दाणे खायला येतात.खुपच आनंद देणारी गोष्ट.पक्षी ही खुप मोठे.आवर्जुन पहावी अशी ही जागा.तेथुन निघालो ते थेट नागौरचा किल्ला पहायला.खुप गर्दित पण खुपच प्लनिंग करुन बांधलेला तो किल्ला .संपुर्ण वाळवंटात एसी सारखी रचना असणारा हा किल्ला खरंच खुप भारीय.पाण्याच्या व्यवस्थापनाचा उत्तम नमुना म्हणुन हा किल्ला पाहिला जातो.तेथुन बुटाटी धाम या पॅरॅलिलीस पेशंटवर वर उपचार करणार्‍या मंदिरात दर्शन व आरती करुन आलो.अनेक लोक तेथे बरे झाल्याचे आम्ही स्वत पाहिले.तेथुन पुष्करजवळ मुक्काम केला.रात्रीअचानक बारा वाजता सगळे एका आवाजाने जागे झाले .पाहतो तर काय !राजस्थान मध्ये ज्यांना भुत लागले आहे अशांना त्या विहीरीवर आणुन रात्रीचीच अंघोळ घातली जात होती.पुजार्‍यांचा मंत्रोच्चार चालुच.मित्र सगळे दमल्यामुळे झोपले होते.मी मात्र रात्रभर शेकत बसलो आणि येणार्‍या लोकाबरोबर बोलुन त्यांचे विचार जाणुन घेत होतो.पुष्करमध्ये अशा बर्‍याच विहीरी आहेत.त्या सर्व विहीरीत त्यांना अंघोळ घातली जाते.फरक काय माहित नाही पण पुजार्‍याचा व्यवसाय मात्र लय जोरात.

सकाळी उठुन जयपुरकडे प्रवास सुरु केला.वाटेत एका हाॅटेलजवळ बोअरवर फ्रेश अंघोळ झाली.जयपुरमध्ये एक गाईड घेतला.त्याने विधानभवन,हवा महल,जलमहाल दाखवला पण तो सतत कमिशन मिळते  म्हणुन दुकानात नेत होता .मी मात्र दुकानात न जाता ठिकाणं पाहत होतो.शेवटी कंटाळुन तो गाईड पैसे न घेताच निघुन गेला.मी अगोदर गेलेलो असल्यामुळे अडचण येण्याचा प्रश्नच नव्हता.आम्ही आमेर फोर्टवर गेलो .अतिशय भव्य किल्ला .हत्तीवरुन किल्य्यात प्रवेश.खुपच राजेशाही थाट.पर्यटक ही भरपुर .किल्ला पाहुन निघालो.पिंक सिटी पाहुन आग्र्याकडे .भरतपुर वरुन प्रथम लेफ्ट मारुन मथुरेला मुक्कामी राहिलो.श्रीकृष्ण जन्मभुमी जवळच रुम घेतली .जेवण केले मंदिर परिसरात फेरफटका मारुन आलो.सकाळी लवकर फ्रेश होउन श्रीकृष्ण जन्मभुमी पाहिली .मंदिरात दर्शन घेऊन फिरलो अन मथुरा एक्सप्रेस हाईवेने थेट आग्रा.आग्रात ताजमहल ला गेलो तेथे प्रचंड गर्दी.शेवटी एका स्थानिक व्यक्तिला पैसे देऊन दुसर्‍या बाजुच्या गेटने तिकीट काढुन अगदी सहज आत प्रवेश केला.ताजमहल चे सौंदर्य सर्वानाच आवडते.हि वास्तुच मुळात खुप सुंदर आहे.मनसोक्त फिरुन ताजमहल पाहिला.शेजारुन वाहणारी यमुना नदीही खुप छान.नंतर आलो ते रेड फोर्टला .याच लालकिल्याच्या समोर उभा असलेला छत्रपती शिवाजी महाराजांचा पुतळा पाहुन उर अभिमानाने भरुनआला.जय भवानी जय शिवाजी च्या घोषणा देतच आम्ही किल्ल्यात प्रवेश केला.लोक आमच्या कडे कुतुहलाने पाहत होते.किल्ला अजुनही खुप छान जतन करुन ठेवला आहे.राजस्थानचे व येथीलही किल्ले खरंच पाहण्यासारखे आहेत.सायं .5 वाजता आग्रा सोडला व रिटन माघारी फिरलो.धौलपुर ,ग्वालियर करत पुढे एका पेट्रोलपंपावर मस्त झोप काढली.सकाळी उठुन फ्रेश होउन पुन्हा प्रवास उज्जेन च्या दिशेने दुपारी एकवाजता उज्जैनला पोहोचलो.क्षिप्रा नदीत स्नान करुन महांकाळेश्वराचे दर्शन घेतले.दुरवर असणार्‍या काळभैरवाचे दर्शन घेतले .येथे तर देवालाच दारुचा नैवेद्य दाखवतात.मंदिरात सगळा दारुचा प्रचंड वास येत होता.

तेथुन इंदौरकडे येताना एका ढाब्यावर मुक्काम केला.सकाळीच निघालो .ते थेट महु ,सेंधवा ,धुळे,मालेगाव करत शिर्डी ला साईबाबांचे दर्शन घेतले.व  सायंकाळी घरी परतलो.लिहिण्यासारखे अनेक प्रसंग या ट्रिपमध्ये घडले,जस कि सम ची डेझर्ट,उंटवाले,नागौर ची शेती,नागौर मधिल एका राजस्थानी मित्राकडे भेट ,ऊज्जैन चे किस्से,पुष्करचे ते प्रसंग , यासंबंधात  सेपरेट लिहावे लागेल.खरंच ही  बेस्ट ट्रिप ठरली.राजस्थान गुजरात मधे कोठेही स्विट होम चे दुकान  नाही.तेथील राजस्थानी घरांना आपण बसवतो ती मार्बल नाही.हा सगळा ऊत आलाय तो आपल्याकडेच.अतिशय साधी राहणी  आणि पैसे कमावण्यासाठी  आपल्या महाराष्र्टात  घरटी एक तरी माणुस आहेच.तर या दहा अकरा दिवसात अडचण अजिबात आली नाही.गाड्यांनीही त्रास दिला नाही.रस्ते एकदम भारीच होते.त्यामुळे गाडी चालवायचा त्रास झाला नाही.स्वत मी आमचा मित्र तुषार बहिरट,अमोल बहिरट,बापु मोरे,जयसिंग जगताप,उमेश खेडेकर,पांडुरंग खेडेकर,निलेश कोळपे सर्वच जणांची ही ट्रिप अविस्मरणीयच झाली असे म्हणावे लागेल.कारण कमी दिवसात !,कमी खर्चात जास्तीत जास्त ठिकाणे आम्हाला पाहता आली.

स्वताची गाडी असल्यामुळे वाटेल तेथे थांबणे ,आडबाजुची गावे प्रत्यक्ष पाहणे,शेतीला भेट देणे. हे सर्व करता आलं.ट्रिप मध्ये  खुप चर्चा झाल्या.स्थानिक लोकांशी बोलणे ,त्यांचा चालीरिती समजुन घेणं या ही गोष्टी झाल्या. राजस्थान,गुजरात ,

उत्तरप्रदेश,मध्यप्रदेश व महाराष्र्ट अशा पाच राज्यातुन प्रवास करुन,जेवण,डिझेल,मुक्काम,एन्र्टी फी,टोल असा परहेड दहा हजार रु.खर्च प्रत्येकाला आला.निनांत सुदर झालेला हा प्रवास आम्ही आठ जण कधीच विसरु शकत नाही. .हि ट्रिप म्हणजे पैसा वसुल ट्रिप म्हणावी लागेल.


शब्दांकन— श्री.सतिश नानासाहेब कोळपे 

तांबेवाडी ता.दौंड जि.पुणे

वासोटा ट्रेक

  उन्हाळ्याची जम्मूकाश्मीर ची ट्रिप करुन परततानाच दिवाळी त पुन्हा एकदा एकत्र फिरायला जाण्याचे ठरले होते .पण बर्‍याच वेळा फिरायला जायचे ठरवल्यावरही पुन्हा सगळी तीच मंडळी एकत्र येणे म्हणजे मोठा योगच म्हणावा लागेल.असाच योग जुळुन आला .आणि दिवाळी सुट्टीच्या पहिल्याच दिवशी आप्पाचा फोन आला .सतिश आज जायचय वासोट्याला .लगेच निघायच आहे उद्या संध्याकाळी परत येऊ.काहीही तयारी न करता उरुळी गाठली.तेथुन प्रवीण च्या ओमनी कारने मी,आप्पा गायकवाड,अशोक पवार,महादेव बारवकर,विलास दिवटे आणि प्रवीण कुंजीर असे सहा जण  सातार्‍याच्या दिशेने निघालो.वातावरण फारच छान होते.सगळीकडे हिरवे गार डोंगर,वाहणार्‍या नद्या अगदी निसर्गरम्य परिसर.सातार्‍यात चहा पिऊन लगेचच यवतेश्वर घाटातुन वरती गेलो.ते थेट कास पठारावर .सगळीकडे  फुलेच फुले.निसर्गाचा चमत्कारच तो! पण त्यावेळी कास पठार आजच्या एवढं प्रसिद्धीस आलेलं नव्हतं.तो नयनरम्य देखावा पाहुन थेट गेलो ते बामनोली ला.सुंदर खेडेगाव.कोयना धरणाच्या बॅकवाॅटर शेजारी वसलेले,सह्याद्रीच्या कुशीत असलेलं आणि आपलं खरंखुरं गावपण जपलेलं गाव म्हणजे बामणोली.यापुर्वी आमच्या पैकी कोणीही वासोट्याला गेलेलं नव्हतं.वृक्षवेलींनी नटलेला ,पुर्ण पाण्याने भरलेला जलाशय,आंबा,फणसाची झाडे अशा या निसर्ग सुंदर गावात भरपुर फिरलो.आजचा मुक्काम आणि जेवणाची चिंता होतीच, कारणही तसेच होते.आम्ही घरुन घेतलेला डबा संपत आला होता.बामनोली त हाॅटेल आणि राहण्याची व्यवस्था काहीच नव्हती.पण त्यातुनही मार्ग काढत एका घरी मस्त जेवणाची व्यवस्था झाली.आणि झोपण्यासाठी बामनोलीतील मंदिर गाठले.रात्रीगप्पा मारता मारता पहाट झाली.रात्रभर विनोद आणि फक्त हशा!!!

दोन तीन झोपलो असेन तेव्हा.सकाळी उठुन अंघोळीला थेट जलाशयात.मनसोक्त पोहलो आम्ही सर्व जण.नंतर वासोट्याला जाण्यासाठी वनविभागाची परवानगी घ्यावी लागते ,ती लगेच मिळाली.जाण्या येण्यासाठी एक बोट ठरवली.आम्ही सहा जण आणि पिंपरी चिंचवड वरुन आलेले सहाजण असे फक्त बारा जणच या ट्रिपसाठी तेथे आलेलो होतो.बोट निघायला अजुन वेळ होता म्हणुन एका स्थानिक रहिवाशाने खुपच आग्रह केला म्हणुन त्यांच्याकडे चहा पिण्यासाठी गेलो.त्या व्यक्तीने आमची खुप आपुलकीने विचारपुस केली.गप्पा मारल्या.तुम्ही इकडे पहिल्यांदाच आलात का? मी हो म्हटलं.आणि तो गृहस्थ फक्त थोडासा गालात हसला.पण त्याचे हसु मला जरा मनात शंका उत्पन्न करुन गेलं. आम्ही सगळे बोटीत बसुन किल्याकडे निघालो.अथांग जलाशयातला तो प्रवास खरंच अविस्मरणीय.एक दोन ठिकाणी पाणी प्यायला आलेले रानगवे दृष्टीस पडले.पण बोटीच्या आवाजाने जंगलात दिसेनासे झाले.वासोट्याच्या पायथ्याजवळ बोट थांबली.तेथे जवळच वनविभागाचे आॅफीस आहे.एक वनसंरक्षक धावत पळत आमच्या स्वागताला आला.आम्ही सर्वजण बोटीतुन खाली उतरलो .व आॅफिसकडे वनसंरक्षकाच्या पाठीमागे निघालो.वनसंरक्षक उड्या मारत पळत होता.आम्हाला आश्चर्य वाटलं.मी त्याला विचारले.तुम्ही असे का चालताय.तो म्हटला तुम्हाला माहित नाही?

मी म्हटले— काय?

तो म्हटला अहो इथं खुप जळु आहेत त्यामुळे त्यांना चुकवत चालावं लागतं.मी म्हणालो कसले जळू,आम्हाला तर नाही दिसले.

तो म्हणाला या इकडे मी दाखवतो.त्याने एकएक करीत काडीसारखे दिसणारे जळू दाखवले.त्याचे वर्णन ऐकुन आणि तो चावल्यानंतर काय होत हे सांगितल्यानंतर आमच्या पायाखालची वाळूच सरकली.कारण उन्हाळ्यात हे जळू काडीसारखे होतात.पण एखाद्या प्राण्याची हालचाल जाणवली तर लगेच त्याला चिकटतात.आणि काही क्षणात रक्त पिऊन बोटाच्या अंगठ्याएवढे टम्म फुगतात .काळे फुगलेले जळु पाहुन चक्कर यायचीच बाकी राहीली होती.त्यात पावसाळ्यानंतर वासोट्याला येणारे या सिजन मधले आम्ही पहिले प्रवासी होतो.जळु पावसाळ्यामुळे अॅक्टीव झालेले.मग सगळेच खुप घाबरलो.पण वनसंरक्षकाने धीर दिला आणि वाट करुन देण्यासाठी तो स्वत येणार असल्याने धीर आला.एवढ्या दुरवर आलोच आहे तर जंगलातुन पाच सहा किलोमीटरचा ट्रेक करत वासोटा गाठायचाच .असा ठाम निश्चय करुन आम्ही वनसंरक्षकाच्या पाठीमागे निघालो.वनसंरक्षकाच्या हातात दक्षिणात्य चित्रपटात गुंडाच्या हातात असतो ना तसा कोयता होता.रस्त्यावर आलेल्या फांद्या छाटुन तो वाट मोकळी करत होता .आम्ही त्याच्या पाठीमागे जय भवानी जय शिवाजी,हर हर महादेव,छत्रपत्री शिवाजी महाराज कि जय अशा आसमंत दुमदुमुन सोडणार्‍या घोषणा देत चालत होतो.चालताना पायाला जळु लागणार नाही.याचीही काळजी घेत होतो.जंगलातला रस्ता काही केल्या संपत नव्हता .दमलो तरीही बसावेसे वाटत नव्हते कारण जळू ची भीती होतीच.दिड दोन तासाने एकदाचे वासोट्यावर पोहोचलो.किल्ल्याच्या एन्र्टी जवळचा रस्ता पावसामुळे अतिशय निसरडा झालेला होता.आम्ही काळजी घेत किल्य्यावर पोहोचलो.वाटेत आमच्या ग्रुपपैकी चारपाच जणांना जळुने प्रसाद दिलाच.पण वनसंरक्षकाने त्यांचे जळु अलगद काढले.खुपच भयंकर प्रकार होता तो!गडावर पोहोचलो तेव्हा खुप आनंद झाला .महाराजांच्या या गडावर येता आले ,ऊर भरुन आला.महाराजांचा जयघोष करीत गडावर फेरफटका मारला.संपुर्ण पणे पडलेल्या अवस्थेत फक्त बांधकामाच्या पायाचे अवशेष तेवढेच शिल्लक.कोकण कडा तर भयंकर खोल.पण तेथुन दिसणारे दृश्य म्हणजे फारच छान.पाणी पिण्याचे सुंदर टाके ,स्वच्छ पाणी.आजही पिण्यासाठी वापरतात असे वनसंरक्षकाने सांगितलं.. तेथे रानगव्याचा आवाज येत होता.रानगवे किल्य्यात येतात हे त्यांच्या पायाच्या ठशामुळे समजत होते.किल्य्याचे ते सौंदर्य पाहुन मन थक्क होते.एवढ्या उंचीवर किल्ला कसा बांधला असेल असा विचार मनात आल्याशिवाय राहत नाही.बराच वेळ तेथे फिरल्यानंतर माघारी निघालो.पुन्हा जळू आणि वन्य प्राण्याची भीती होतीच.शेवटी रिटन जाताना सर्वानी पळत जायचा निर्णय घेतला .जिथे झाडे नाहीत ,उघडा भाग असेल तिथं थांबायचं असे ठरवुन आम्ही पळत किल्ला उतरायला सुरुवात केली.जंगलात वाटा खुप त्यामुळे रस्ता चुकण्याची शक्यता जास्त पण वनसंरक्षकाने तोडलेल्या ताज्या फांद्यामुळे रस्ता चुकलो नाही.परतताना आम्ही सगळे बारा जण अक्षरक्ष जीव मुठीत धरुन पळत होतो.का तर फक्त जळू पासुन वाचण्यासाठी .पण येताना जळु सगळ्यांनाच चावला.वनसंरक्षकाने ते जळु काढले पण रक्त बराच वेळ दाबुन धरावं लागत होतं.मी मात्र खुश होतो कारण जातानाही आणि येतानाही मला जळू लागला नव्हता.आम्ही सर्वजण सुखरुपपणे वनविभागाच्या आॅफीसमध्ये आलो तेथील रजिस्टरमधे मी माझा अनुभव सविस्तर लिहीला.आणि पळतच येऊन बोटीत बसलो .सगळे जणआलेले पाहुन बोटवाल्याने बोट चालु केली तेवढ्यात वनसंरक्षक पळत येताना दिसला .आम्ही थांबलो. तो म्हणाला अजुन कुणाला तरी जळु लागलाय आॅफीस मध्ये रक्त लागलय.आम्ही सर्व जण हात पाय चेक करु लागलो अन कळलं की मलाच जळूचा प्रसाद मिळालाय .माझ्याच पायाच्या बोटाच्या खालच्या बाजुला जळू होता.तो चावल्यावर वेदना जास्त जाणवत नाहीत,.पण अंगावर टम्म फुगलेला जळू पाहुनच खुप भिती वाटते.वनसंरक्षकाने तो जळु काढला .मी रुमालाने बोट बांधले आणि वनसंरक्षकाचे  आभार मानुन आम्ही परत बामनोलीला निघालो.वाटेतच असलेला नारायण महाराजांचा सुंदर आश्रम व तेथील मंदिर पाहिले.बामनोली ला परत आलो तेव्हा कुठं बरं वाटलं.सकाळी ती व्यक्ती का हसली होती याचे उत्तर आम्हा सर्वानाच मिळालं होतं.कारण या ट्रिप व ट्रेक मध्ये काय काय होत हे जुन्या तेथे गेलेल्या लोकांना माहित असतं.ती व्यक्ती पुन्हा भेटली .अन पुन्हा एकदा हसली.आणिआम्ही ही मग आठवणी सांगत खुप खुप हसलो.सायंकाळ होत आली होती.आम्ही ही माघारी निघालो एक नवा न विसरणारा अनुभव बरोबर घेउन..

आज  बर्‍याच वर्षानंतरही हा प्रसंग मला जसाच्या तसा आठवतोय.पुन्हा मला बामनोलीला किंवा वासोट्याला जाणे झाले नाही.आता सुविधा झाल्या असतील  कदाचित  !!!!


पण आमची ट्रिप म्हणजे हाॅरर चित्रपटच ..होता हे मात्र नक्की.,!!!!!!

  शब्दांकन—श्री.सतिश नानासाहेब कोळपे 

तांबेवाडी ता.दौंड जि.पुणे


केदारनाथ —

रात्रीचा मुक्काम गौरीकुंड मध्ये केला.पहाटे ऊठुन तप्तकुंडात स्नान करुन हातात काठी घेऊन निघालो ते केदारनाथ  ला जाण्यासाठी.अजुन अंधार होता त्यामुळे महाराजा पाठोपाठ झपाझप पावले टाकत निघालो.अरुंद रस्ता ,कडेला कुठेग्रील,आम्ही मात्र चालतच होतो .दिवस उजाडला तेव्हा आम्ही तिघेही जंगलचट्टी पर्यत पोहोचलो होतो.वाटेत लोक अजिबात नव्हते.रामबाडा ला 10 वाजता पोहोचलो तेव्हा कळलं आपण फक्त अर्ध्यापर्यत आलोय.खुप दमलो होतो.चहा,नाष्टा तोही अगदी पोटभर करुन पुढे निघालो तोपर्यत घोडेवाले ,पिट्टू,दंडीकंडीवाले  अनेक जण रामबाडाला एव्हाना पोहचले होते.गर्दी जाणवायला लागली होती.बम बम भोले चा जयघोष आसमंत दुमदुमुन टाकत होता.झाडे कमी झाली होती.निसर्गाचा तो अप्रतिम देखावा पाहत पहात आम्ही पुढे निघालो.उठत बसत आम्ही बर्फातुन मार्ग काढत जात होतो.थंडी चांगलीच जाणवत होती.मध्येच हेलिकाॅप्टरचा आवाज ऐकु येत होता.नंतर नंतर हेलिकाॅप्टर दिसु लागली.गरुडचट्टी पर्यत आम्ही दमलो होतो.तरीही ओम नमःशिवाय म्हणत केदारनाथ मध्ये 1 वाजता पोहोचलो .वेळ खुप लागला.पण निसर्ग पाहताना   वेळ कसा गेला कळलेच नाही.केदारनाथच्या मेन पेठेतुन मार्ग काढत पुढे गेलो.चहुबाजुने बर्फाच्छादित पर्वता मध्ये असलेले केदारेश्वर मंदिर पाहुन मन प्रसन्न झाले.थकवा कुठल्या कुठं पळुन गेला.मंदाकिनीच्या थंडगार पाण्यात स्नान करुन दर्शन लाईनला गेलो .गर्दी नव्हती .अगदी दहा वीस लोक चौथर्‍यावर उभे होते.आम्ही लाईनला लागलो.मंदिराच्या दरवाज्या जवळ गेलो अन अचानक माझा मित्र शंकर कारंडे चक्कर येऊन पडला.काय झाले म्हणुन सगळे गोळा झाले .मी तर खुप घाबरलो होतो.पण तरीही धीर करुनपाहिलं तर शंकरच्या पायातुन रक्त येत होते.बर्फामुळे अंकुचीदार झालेला दगड बोटाच्या कापल्यामुळे रक्त वाहत होत.आम्ही त्याला पटकन मंदिराच्या शेजारीच असलेल्या दवाखान्यात नेलं.पट्टी केली.गोळ्या खायला दिल्या .दहा मिनिटांनी त्याला बरं वाटायला लागलं.पण चालताना मात्र तो लंगडत होता.मंदिरात गेलो अगदी दोन्ही हातांनी त्या पिडींला कवळ मारुन दर्शन घेतले आणि केदारनाथ ला आल्याचे सार्थक झाल्यासारखे वाटले.नवीन उत्साह अंगात संचारला.केदारनाथांचे ते सौदर्य पाहुन निसर्ग पाहुन मी मंत्रमुग्ध झालो. माघारी जावेसे वाटत नव्हते .पण तरीही माघारी निघालो.शंकर लंगडत होता.चालायला त्याला त्रास होत होता.मी त्याला घोड्यावर जाऊ म्हणुन म्हटल तर त्याने नकार दिला.एकट्याला चालायला जड तिथे मग शेवटी त्याचा हात खांद्यावर घेऊन चौदा किलोमीटर खाली उतरलो तेव्हा रात्रीचे नऊ वाजले होते.केवळ आणि केवळ त्या परमेश्वराच्या आर्शिवादानेच मी मित्राला खाली आणु शकलो.गौरीकुंडला आल्यानंतर जेवण केले.अनेकांना त्रास झाला.पण मला त्या दिवशी कसलाच त्रास झाला नाही हे विशेष.महाराजांचे सुद्धा पाय दुखत होते.

 आज अनेक वर्षानंतरही  तो प्रसंग मला नेहमी आठवतो.माझ्याबरोबर असलेले संजय महाराज यांच्याबरोबर तसेच  मित्रांबरोबर वर्षातुन एकदा तरी  आजपर्यत  बारा ते पंधरा वेळा गंगोत्री,यमुनोत्री,बद्रिनाथ,

केदारनाथ  ला  जाण्याचा योग आला  .मला हि ठिकाणं खुप खुप आवडतात.तासनतास मी गंगोत्रीला गेल्यानंतर पांडव गुहेत बसतो.छान वाटत तिथे. एकदाही घोड्यावरुन प्रवास केला नाही कायम पायीच.चारधाम यात्रेवेळी अनेक बरे वाईट अनुभवही आले.पण जाण्यात खंड पडला नाही.केदारनाथ प्रलयाच्या चार दिवस अगोदर च तेथुन मी दर्शन घेऊन माघारीआलो होतो.त्या यात्रेवेळी  गंगोत्री आणि केदारनाथ ला एवढं प्रचंड ऊन पहिल्यांदा अनुभवलं होतं.त्यामुळे काहीतरी भयानक घडणार याची चिंता मी माझ्या मित्रांना तेथेच बोलुन दाखवली होती.आणि घडलंही  तसंच.त्याच्यानंतरही मी दरवर्षी जातो आहे.

फिरताना मनसोक्त आणि बिनधास्त फिरलं पाहिजे या मताचा मी आहे.म्हणजे अडचणी जाणवत नाहीत.आहे तसं फिरणं ,जास्तीचं प्लॅनिंग न करणे,नव्या गोष्टी पाहणे.,लोकल जेवणाचा आनंद काही औरच असतो.आजही जेव्हा माझा मित्र शंकर व महाराज भेटतात तेव्हा या ट्रिपची आठवण नक्की निघते.

  शब्दांकन —श्री.सतिश नानासाहेब कोळपे

तांबेवाडी ता.दौंड जि.पुणे

चारधाम यात्रा वर्णन 

15 ते 16 वर्ष झाली या गोष्टीला .मी चारधाम ला जायचे प्लनिंग करत होतो .माझं वयही त्यावेळी 23-24 होतं.महाराष्र्ट बर्‍यापैकी फिरुन झाला होता.त्यामुळे महाराष्र्टाबाहेर जायच मी ठरवत होतो.त्यावेळी आजच्यासारखी मोबाईल ,इंटरनेट सारखीसाधने नव्हती .पुण्याला बुकींग करायला जावे लागायचे.सकाळच्या रेल्वेने पुण्यात गेलो आणि झेलम एक्सप्रेसचे दिल्ली पर्यंत तिकीट बुक केले.उन्हाळ्याची सुट्टी सुरु झाली अन मी निघायचा बेत केला.पुर्वी बर्‍याच वेळा मी एकटाच प्रवास करायचो.मला आवडत एकट फिरायला.ना कुणाला अडचण ,ना जबाबदारी एकटाच स्वछंदी.पण अचानक एका मित्राचा फोन आला .अरे यावर्षी कुठे जातोयेस? मी सांगितलं गंगोत्री ला निघालोय आज.मित्र म्हटला मलापण यायचय.मी म्हटलं ठिक आहे तुझ उरकुन दौंडला ये 7 वाजता.ठरल्याप्रमाणे आम्ही दोघेही दौंडवरुन निघालो .नगर सोडल्यावर रेल्वेतच घरुन आणलेलं जेवण केलं. वरात्री झोपी गेलो .पहाटे जाग आली .गाडी धावत होती.खांडवा करत गाडी इटारसी ला थांबली .आम्ही फ्रेश झालो चहा घेतला.साखर घरुनच एका पिशवीत बांधुन घेतली होती.कारण रेल्वेतला चहा म्हणजे नुसत पाणी.असो.मी माझी डायरी काढली अन एक एक गोष्ट नोट करु लागलो .कारण सवय आहे ठिकाणांची नावे ,अंतर लागलेला वेळ,लक्षात राहिल अशी गोष्ट,लिहायची.भोपाळ ,

झांसी,ग्वालियर ,आग्र्याला गाडी सायं 6 वाजता पोहोचली.वाटेत गप्पा मारत, बाहेरची दृश्य पाहत प्रवास छान चालला होता.रात्री 10 वाजता नवी दिल्ली स्टेशनला गाडी थांबली आम्ही बॅग घेऊन खाली उतरलो.बॅग तरी किती मोठी जेमतेम दोन ड्रेस,टाॅवेल,शाल ,औषधे,

बॅटरी ,काॅडेकचा कॅमेरा बस .जे महत्वाचे असेल तेवढच घ्यायचं ओझं कमी आणि बिनधास्त फिरायचा हा पहिल्यापासुनचा माझा हातखंडा.त्यामुळे जास्त सामान असं नाहीच.रात्र रेल्वे स्टेशनवरच काढली.कारण नवीन भागात रेल्वेस्टेशन इतकं सुरक्षित ठिकाण कुठच नाही.सकाळीचौकशी केली हरिद्वारला जाणारी गाडी 11 वाजता निजामुद्दीन स्टेशनवरुन होती.बाहेर जाऊन बसने निजामुद्दिन स्टेशनवर पोहोचलो.गाडीत बसलो .गाडी निघाली .दिल्ली बाहेर गाडी निघाली.गर्दी अजिबात नव्हती.आम्ही दोघे जण गप्पा मारत होतो.तेवढ्यात एकलाल कपडे घातलेला साधु आमच्या जवळ आला अन बोलु लागला.मी त्याच्याशी हिंदी तुन बोलु लागलो.कारण दोन दिवसापासुन रेल्वेत सगळेच हिंदी बोलत होते.बराच वेळ झाला मित्राच्या लक्षात आलंकी तो साधु मराठीत बोलतोय आणि हा हिंदीतुन बोलतोय.जेव्हा ही गोष्ट माझ्या लक्षात आली.त्यावर तासभर तरी हशा झाला असेल.तो साधु महाराष्र्टाच होता.वाटेतत्या साधु महाराजाबरोबर गप्पा मारत रात्री  8 वाजता हरिद्वारला पोहोचलो.ते महाराज केदारनाथ यात्रेला निघाले होते.त्यांना मी सांगितलं आम्ही गंगोत्रीला निघालो आहे.महाराज म्हटले ,बेटा शिवजी कि भुमी मे आये हो पहले केदारनाथ चलो.पण आम्ही दोघे मात्र एकमेकाकडे पाहत होतो .कसा विश्वास ठेवायचा अनोळखी व्यक्तीवर .पण मनाचा ठाम निश्चय केला.

आम्ही अचानक प्लॅन बदलला आणि केदारनाथ ला जायचे बुकींग त्याच रात्री केलं.पहाटे 5 वाजता बसने राईट टाईम हरिद्वार सोडल .केदारनाथ अंतर 280 किलोमीटर माझ्या मनाने दुपारी 2 वाजता गाडी पोहचेल.वाटेत रुषीकेश ,देवप्रयाग,श्रीनगर करत दुपारी गाडी रुद्रप्रयाग ला पोहचली .वाटेत सगळा घाट.सपाट कुठे नाहीच.मनात भीती वाटत होती.तो प्रचंड हिमालय,खोलखोल दर्‍या,वळणावळणाचे छोटे रस्ते .पण आमचा बस ड्रायव्हर एक्सपर्ट होता.सायंकाळचे 4 वाजले होते अचानक आभाळ भरुन आलं .मोठमोठे आवाज यायला लागले.प्रचंड भिती वाटायला लागली.आमच्या ड्रायव्हरने एक सुरक्षित जागा पाहुन अगस्तीमुनी च्या पाठीमागे 2 किलो मीटरवर गाडी उभी केली.आम्ही सगळे घाबरलो .मी तर पटकन पहिल्यांदा खाली उतरलो.मी विचारले क्या हुआ भाईसाहब? तो सहजपणे म्हणाला आगे बादल फट गया है शायद!बादल फट गया .मला त्यावेळी या गोष्टिबद्दल जास्त माहिती नव्हती.आम्ही आपसात चर्चा करत होतो.भीती खुप वाटत होती .पाठीमागे बर्‍याच गाड्या थांबल्या होत्या .अर्धा एक तासाने सर्व शांत झाले.पण ड्रायव्हर गाडी पुढे नेईना.मी विचारले .अब क्या हुआ?तो म्हटला आगे से जब तक खबर नही आती गाडी नही जाएगी.मी म्हटल मी पाहुन येऊ का ? तो म्हणाला साहब जाओ लेकीन जादा आगे मत जाणा! आम्ही तिघेही  त्या सुंदर वातावरणात पायी चालत निघालो.रस्तावर चिटपाखरुही नव्हत..एका टर्न वरुनसमोर जे आम्ही पाहिलं.ते आठवल्यावर आजही अंगावर शहारे येतात.मोठेमोठे दगड मातीसह ढासळत होते.ते मंदाकिनी नदिच्या पात्रात पडुन प्रचंड आवाज येत होते.समोरच्या त्या दृश्याने काळजाच पाणी पाणी झाल.वरुन आलेल्या दगड मातीमुळे झाडे देखील धडाधड कोसळत होती.15 ते 20 मिनिटे हे सगळं सुरु होत.अगस्तीमुनीगावच्या मधोमध दहा बारा घरंही ढिगार्‍याबरोबर वाहत नदित गेली.नंतर सगळ शांत झालं.त्या प्रसंगानंतर लगेच BRO चे जवान ,स्थानिक लोकांनी रस्तावरचा राडारोडा जेसीबी च्या सहाय्याने एकमेकांना मदत करत बाजुला हटवायला सुरुवात केली.सर्व जण या कामात सहभागी झालेले पाहुनआम्ही तिघेही मदत करु लागलो .जेसीबी मागे घे,पुढे घे.थांबा पत्रा कापा .पाईप लाईन कापा दगडी उचला अशा कामात जवळजवळ दोन तास गेले,.पण रस्ता मोकळा झाला.गाड्या चालु झाल्या .आमचीही गाडी पुढे आली आम्ही गाडीत बसलो व केदारनाथ कडे निघालो.पण आज जेआम्ही पाहिलं ,अनुभवलं ते विलक्षण होत.अशी आपत्ती मी डोळ्यासमोर पाहिली.व तेथील लोकांच स्पिरीट ही अचाट होऊन पाहिल.अशा अनेक वेळोवेळी येणार्‍या संकटांना हि लोकं नेहमी सामोरी जातात.आम्ही रात्री 10 वाजता गौरीकुंडला पोहोचलो.व तप्तकुंडाच्या शेजारीच रुम घेतली.व थांबलो. 

 क्रमशः

शब्दांकन—श्री.सतिशराव नानासाहेब कोळपे

तांबेवाडी ता.दौंड जि.पुणे

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